मुगल सम्राट अकबर और उनके बुद्धिमान मंत्री बीरबल की कहानियाँ हमेशा से लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय रही हैं। इन कहानियों में न केवल मनोरंजन होता है बल्कि इनमें गहरी शिक्षाएँ भी छिपी होती हैं। ऐसे ही एक बार अकबर ने बीरबल की परीक्षा लेने का मन बनाया।
परीक्षा की योजना
एक दिन अकबर ने बीरबल को अपने दरबार में बुलाया और कहा, “बीरबल, मैं तुम्हारी बुद्धिमत्ता की बहुत प्रशंसा करता हूँ। लेकिन आज मैं तुम्हें एक कठिन परीक्षा में डालना चाहता हूँ। तुम्हें तीन दिनों के भीतर ऐसी कोई वस्तु ढूंढनी होगी जो न केवल सच्चाई हो बल्कि झूठ भी हो।”
बीरबल ने सम्मानपूर्वक अकबर को प्रणाम किया और कहा, “जहाँपनाह, मैं आपकी परीक्षा को स्वीकार करता हूँ और तीन दिनों के भीतर ही आपकी इच्छा पूरी करूंगा।”
बीरबल की खोज
बीरबल ने नगर भर में घूमना शुरू किया। वह हर जगह जाकर लोगों से पूछने लगा कि ऐसी कौन सी वस्तु हो सकती है जो सच्चाई भी हो और झूठ भी। लेकिन किसी को भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं सूझ रहा था।
पहले दिन बीरबल ने सभी विद्वानों और पंडितों से परामर्श लिया, लेकिन कोई भी इस प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका। दूसरे दिन भी बीरबल का नतीजा शून्य रहा। उन्होंने व्यापारी, किसान, और यहाँ तक कि बच्चों से भी पूछा, लेकिन किसी के पास भी संतोषजनक उत्तर नहीं था।
समाधान का मार्ग
तीसरे दिन बीरबल अपने ही घर के आँगन में बैठकर इस समस्या के समाधान के बारे में सोचना शुरू कर दिया। अचानक उसके मन में एक विचार आया। उन्होंने झट से एक पत्र पर कुछ लिखा और दरबार की ओर चल पड़े।
अकबर की प्रति
जब बीरबल दरबार में पहुँचा, तब वहाँ पूरी दरबारिया सभा एकत्रित थी। सभी को बीरबल के उत्तर का बेसब्री से इंतजार था। अकबर ने बीरबल से पूछा, “बीरबल, क्या तुमने उस वस्तु को ढूंढ निकाला है जो सच्चाई भी हो और झूठ भी?”
बीरबल ने एक कागज का टुकड़ा निकालकर अकबर को सौंप दिया। अकबर ने उस कागज को खोला और उसमें सिर्फ एक वाक्य लिखा था:
“यह भी बीत जाएगा।”
अकबर की प्रसन्नता
अकबर ने उस वाक्य को पढ़ा और तुरंत ही समझ गया कि बीरबल ने समस्या का समाधान ढूंढ लिया है। अकबर ने मुस्कराते हुए कहा, “बीरबल, तुमने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि तुम्हारी बुद्धिमत्ता का कोई मुकाबला नहीं है। यह वाक्य सच भी है जब समय अच्छा होता है और जब समय बुरा होता है तो यह झूठ भी होता है।”
पुरी दरबार बीरबल की तर्कशक्ति और बुद्धिमानी की तारीफ करने लगी और उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे सही मायनों में अकबर के सबसे विश्वसनीय और बुद्धिमान मंत्री थे।
इस प्रकार बीरबल ने अपनी बुद्धिमानी और सोच की वजह से यह कठिन परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली और अकबर का विश्वास और भी अधिक मजबूत हो गया।
इसीलिए कहते हैं कि सच्चा ज्ञान सिर्फ किताबों में ही नहीं बल्कि जीवन के अनुभवों में भी पाया जाता है। हर समस्या का हल ढूंढने के लिए एक अलग दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जैसा कि बीरबल ने किया।