विभाजन की कहानी – Akbar Birbal Story in Hindi

अकबर और बीरबल की कहानियाँ भारतीय लोककथाओं का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ये कहानियाँ न केवल मनोरंजन करती हैं बल्कि उनमें छुपी हुई शिक्षाएं हमें जीवन के कई पहलुओं के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं। ऐसी ही एक कहानी है विभाजन की कहानी, जिसे हम यहाँ विस्तार से प्रस्तुत कर रहे हैं।

कहानी की शुरुआत

एक बार की बात है, बादशाह अकबर अपने दरबार में एक महत्वपूर्ण सभा कर रहे थे। तभी वहाँ दो स्त्रियाँ आईं और अपने साथ एक छोटे बच्चे को लेकर आईं। दोनों स्त्रियाँ उस बच्चे को अपना बता रही थीं और बच्चे की मातृत्व का दावा कर रही थीं। दोनों में से कोई भी अपनी बात से पीछे हटने को तैयार नहीं थी, जिससे दरबार में एक अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई।

बच्चे की माँ कौन?

बादशाह अकबर ने समस्या की गंभीरता को देखते हुए बीरबल को मामले की जांच करने का आदेश दिया। बीरबल ने दोनों स्त्रियों को ध्यान से सुना और बच्चे को ध्यानपूर्वक देखा। बीरबल ने कुछ देर सोचने के बाद एक अनूठी योजना बनाई।

बीरबल की योजना

बीरबल ने आदेश दिया कि एक तलवार लाई जाए। जब तलवार लाई गई, तो बीरबल ने तलवार उठाई और बोले, “चूँकि हम इस बात का निश्चय नहीं कर पा रहे हैं कि यह बच्चा किसका है, इसलिए बच्चे के शरीर के दो हिस्से करके हम इसे दोनों महिलाओं को बाँट देंगे।” यह बात सुनते ही दरबार में सब सन्न रह गए।

सच्ची माँ का पता

जैसे ही बीरबल ने तलवार उठाई और बच्चे की ओर बढ़ाया, पहली स्त्री जोर से चिल्लाई और बोली, “नहीं, नहीं, इसे मत मारो! इसे दूसरी स्त्री को दे दो, लेकिन इसके दो टुकड़े मत करो।” दूसरी स्त्री चुपचाप खड़ी रही।

अब बीरबल को सच्चाई का पता चल गया था। बीरबल ने तलवार नीचे रख दी और मुस्कुराते हुए बोले, “यह बच्चा इस पहली स्त्री का ही है, क्योंकि वही इसकी सच्ची माँ है।” बीरबल का यह निर्णय सुनकर बादशाह अकबर और दरबार में उपस्थित सभी लोग बीरबल की बुद्धिमानी और न्यायप्रियता की प्रशंसा करने लगे।

शिक्षा

यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्ची माँ अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। इसके अलावा, बुद्धिमता और समझदारी से हम किसी भी समस्या का सही समाधान कर सकते हैं।

निष्कर्ष

इस प्रकार बादशाह अकबर और बीरबल की यह कहानी न केवल मनोरंजक है बल्कि इसमें छुपा हुआ संदेश भी हमें सोचने पर मजबूर कर देता है। बीरबल की बुद्धिमानी और निष्पक्षता हमें यह सिखाती है कि सही और अनुचित का निर्णय हमें धैर्य और समझदारी के साथ करना चाहिए।

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