एक समय की बात है, मुगल सम्राट अकबर के दरबार में एक अत्यंत धनवान व्यापारी आया, जिसे अपनी संपत्ति और शक्ति पर बेहद गर्व था। उस व्यापारी का नाम रमेश था। रमेश अपने व्यापार के विभिन्न कारनामों के लिए विख्यात था, लेकिन उसमें एक बड़ी कमज़ोरी थी – उसकी लालच। वह हमेशा अधिक से अधिक संपत्ति और धन पाने की लालसा रखता था।
एक दिन रमेश ने सुना कि अकबर के दरबार में बीरबल नामक एक ज्ञानवान और बुद्धिमान दरबारी है, जो अपनी कुशाग्र बुद्धि के लिए प्रसिद्ध है। रमेश ने सोचा कि क्यों न बीरबल को अपनी बुद्धि से मात दी जाए और खुद को सबसे चालाक साबित किया जाए।
चुनौती देना
रमेश ने दरबार में आकर बादशाह अकबर को अपनी इच्छा बताई। उसने कहा, “महाराज, मैं चाहता हूँ कि आप बीरबल को एक चुनौती दें। यदि बीरबल मेरी पहेली सुलझाने में सफल होता है तो मैं उसे अपनी संपत्ति का एक हिस्सा दूंगा, और यदि वह असफल होता है तो मुझे बीरबल का सबसे प्रिय कुछ भी चाहिए।”
अकबर को रमेश की चुनौती में रुचि आई और उन्होंने बीरबल को बुला भेजा। बीरबल ने रमेश की चुनौती सुनी और बिना किसी चिंता के उसे स्वीकार कर लिया।
पहेली
रमेश ने बीरबल के सामने एक पहेली रखी, “एक ऐसी चीज बताओ जो मेरे पास अभी भी न हो, और जिसे पाने के लिए मैं अपनी संपत्ति दे दूंगा। अगर तुम बता सकते हो तो यह सोने का मुकुट तुम्हारा, नहीं तो तुम्हें अपनी सबसे प्रिय चीज़ मुझे देनी होगी।”
बीरबल ने कुछ समय शांत रहकर सोचा, फिर एक हल्की सी मुस्कान के साथ बोला, “रमेश जी, जवाब बहुत आसान है – संतोष
। आपके पास भले ही कितनी भी संपत्ति हो, लेकिन आपकी लालच और असंतोष आपको कभी संतुष्ट नहीं होने देगा। संतोष की प्राप्ति के लिए अगर आप अपनी संपत्ति छोड़ भी दें, तो भी आपको वह नहीं मिल पाएगा।”
निष्कर्ष
रमेश ने बीरबल की यह बात सुनी और उसका चेहरा फक्क पड़ गया। उसे एहसास हुआ कि बीरबल ने उसकी सबसे बड़ी कमजोरी को उजागर कर दिया है। वह अवाक रह गया और उसने हार मान ली। अकबर और दरबारियों ने बीरबल की बुद्धिमता की प्रशंसा की और रमेश को उसके व्यवहार के लिए फटकारा। अंततः बीरबल ने रमेश को समझाया कि असली संपत्ति धन या शक्ति में नहीं, बल्कि संतोष में है।
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि लालच हमें कभी भी संतुष्ट नहीं होने देता, और असली खुशी हमारी संपत्ति में नहीं, बल्कि हमारे मन के संतोष में होती है।