अकबर और बीरबल की जोड़ी हम सभी के लिए प्रेरणादायक और मनोरंजक रही है। इन्होंने ना केवल शासन के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए बल्कि अपने बुद्धि और चतुराई से अनेक समस्याओं को सुलझाने में भी सफल रहे। आज हम ऐसी ही एक रोचक कहानी ‘बीरबल का सोने का बालक’ का वर्णन करने जा रहे हैं।
आरंभिक परिस्थितियाँ
बात उस समय की है जब अकबर का शासनकाल पूरे भारत में फैला हुआ था। एक बार अकबर अपने दरबार में विचार-विमर्श कर रहे थे। तभी दरबार में एक व्यापारी आया जो बहुत ही चिंतित और परेशान दिखाई दे रहा था। अकबर ने उससे उसकी परेशानी का कारण पूछा।
व्यापारी ने कहा, “महाराज, मेरे पास एक बहुत ही कीमती सोने का बालक है। वह दुर्लभ और अमूल्य है। लेकिन मुझे डर है कि कोई उसे चुराने की कोशिश करेगा। मैं चाहता हूँ कि आप मेरी मदद करें और किसी को ऐसा कार्य सौंपें जो न केवल उसे सुरक्षित रखे, बल्कि समय आने पर उसकी सही-सही पहचान भी कर सके।”
बीरबल का कार्यभार
अकबर ने यह बात सुनकर तुरंत बीरबल को बुलाया और व्यापारी की समस्या बताई। बीरबल ने सोचा और कुछ क्षणों बाद कहा, “महाराज, यह कार्य बहुत ही महत्वपूर्ण है, लेकिन मैं इसे बहुत ही सही तरीके से सरल और सुरक्षित रूप से कर सकता हूँ।” अकबर ने बीरबल पर भरोसा जताते हुए उसे यह कार्य सौंप दिया।
उघाटन दिवस
बीरबल ने कुछ दिनों के भीतर एक योजना बनाई और सभी मंत्री, व्यापारी एवं अन्य महत्वपूर्ण लोगों को एक बड़े सभा में आमंत्रित किया। सभा में सभी लोग उपस्थित थे। बीरबल ने अपने आदेश से व्यापारी के सोने के बालक को लाने को कहा। बालक को देखकर सभा में सभी मंत्रियों की आँखें चमक उठी। बालक की चमक और उसकी दुशाला को देख सभी जन मंत्रमुग्ध हो गए।
तभी बीरबल ने एक प्रश्न किया, “संप्रदाय में से कोई ऐसा हो जो इस बालक की सही-सही पहचान बता सके।” सभा के सभी लोग एक दूसरे की ओर देखने लगे किन्तु किसी के पास उत्तर नहीं था।
बीरबल की चतुराई
बीरबल ने फिर एक दूसरा तरकीब किया और कहा, “ठीक है, हमें इस बालक की पहचान केवल उसके मालिक व्यापारी से ही करानी होगी।” फिर बीरबल ने व्यापारी को बुलाया और उससे कहा, “आप इस बालक की पहचान कैसे करेंगे?”
व्यापारी ने कहा, “मैं इसे महज उसकी चमक और दुशाला देखकर पहचानता हूँ।” इस पर बीरबल ने कहा, “तो फिर आपके लिए एक चुनौती है। हम इस बालक की दुशाला और चमक को हटा देते हैं और आपसे पहचानने को कहते हैं।”
बीरबल ने तुरंत आदेश दिया और सोने के बालक की दुशाला और चमक हटवाई गई। तब व्यापारी हैरान हो गया और कुछ देर 보고 बोला, “महाराज, यह वही बालक है। मैं इसे इसके आदान-प्रदान से पहचान सकता हूँ।”
निष्कर्ष
अकबर ने मौलिकता से प्रभावित होकर बीरबल की तारीफ की और व्यापारी को आश्वासन दिया कि उसके कीमती सोने के बालक की सुरक्षा के लिए सभी आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। इस प्रकार बीरबल ने अपनी बुद्धिमता और चतुराई का ऐसा प्रदर्शन किया कि सभी ने उनकी सराहना की।
यह कहानी हमें सिखाती है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपनी बुद्धिमता और चतुराई का सही इस्तेमाल करने से समस्याओं का हल निकाला जा सकता है। इसके साथ ही यह भी संदेश देती है कि कला और कौशल का महत्व सदा ही सर्वोच्च रहता है।