जिंदगी / नरेश मेहन
Contents
- 1 जिंदगी / नरेश मेहन
- 2 दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान / ज्ञानी राम शास्त्री
- 3 बेस्वादी जिंदगी / सुन्दर नौटियाल
- 4 जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम
- 5 मौत भी जिंदगी सी हो जाए / देवेन्द्र आर्य
- 6 जिंदगी के रास्ते पर चल रही हूँ / रंजना वर्मा
- 7 जिंदगी / संतोष कुमार चतुर्वेदी
- 8 खिल रहे जिंदगी के सुमन के लिये / रंजना वर्मा
- 9 जिंदगी / संगीता गुप्ता
- 10 अब जिंदगी का साथ निभाया नहीं जाता / रंजना वर्मा
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रोज
एक झोंपड़ी का
निर्माण हो रहा है
उसके कोने में
भूख का
एक नई भूख के साथ।
देखता हूँ जब भी
इन झोंपड़ियों में
तपते हुए शरीरों को
चिथड़ों की कैद में
बिलखते बचपन को
तब सोचता हूँ
ज़िन्दगी कí#2376;से सांस ले रही है?
ऊँची-ऊँची मीनारों से
उठता धूआं
लगता है
इनकी सांसो को
कैद कर लेगा।
रोज देखता हूँ
इन ज़िन्दा लाशों को
मानो
ज़िन्दगी सिसक रही है।
जब सारा विश्व सोता है
ठंडी नींद
तब यहां जीवन सुलग रहा होता है।
दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान / ज्ञानी राम शास्त्री
दुनिया म्हं महंगा होग्या सब जिंदगी का सामान
सब तै सस्ता मिलै आज यू बद किस्म्त इंसान
मरा पड्या हो पास पड़ौसी कतई नहीं अफसोस
समो समो के रंग निराले नहीं किसे का दोष
कार लिकड़ज्या ऊपर तै कर दूजे नै बेहोश
खा माणस नै माणस कै फिर भी कोन्या संतोष
खून चूसते नौकर का यें मालिक बेईमान
माणस की ना कदर करैं ये साहूकार अमीर
दूजे की मेहनत पै अपनी बणा रहे तकदीर
हालत देख लुगाई की भरज्या नैनां में नीर
भूखी मरैं आबरु बेचैं गहणै धरैं शरीर
लाल बेच दें गोदी का सै भूख बड़ी बलवान
पढ़े लिख्यां की पूछ रही ना फिरैं घणे बेकार
आत्महत्या करैं कई छोड्ड़े फिरते घर बार अ
माणस खींच रहया माणस नै आज सरे बाजार
आज मनु का पूत लाड़ला रौवे किलकी मार
अपने पैरें आप कुहाड़ी मार रहया नादान
खून, जिगर बिकते माणस के बिकते हाड्डी चाम
जिंदगी लग भी बिकज्या सै जै मिलज्यां चोखे दाम
सब तै बड़ा बताया था बेदां म्हं माणस जाम
“ज्ञानी राम इस कळियुग म्हं हो ग्या सबतै बदनाम
पता नहीं कित पड़ सोग्या पैदा करके भगवान
बेस्वादी जिंदगी / सुन्दर नौटियाल
बेस्वादी पड़ीं जिन्दगी मा
उलार कु तुड़का डाळ दौं ।
चलदी-ढलदी यीं ज्वानी का
कुछ पल त संभाळ दौं ।
लटुलि सेती होणीं न त,
हरबल काळी मेंदी लगौ ।
झुर्रिंयों तैं नि दिखेण दे,
हैवी वाळू फेसियल चढौं ।।
तिड़यीं-फट्यीं हुंठड़ी पर,
रंग-बिरंगी लिपस्टिक सजौ ।
सजीली काळी आंख्यों पर,
काळू काळू काजळ लगौ ।।
पर्स का कै खिसा मा कचमुड़यूं,
नौट कखि त निकाळ दौं ।
बेस्वादी पड़ीं जिन्दगी मा
उलार कु तुड़का डाळ दौं ।
धोती-साड़ी भौत ह्वैगि,
टॉप-जिन्स टैट बणौ ।
थोळी घिच्ची भली नी लगदी,
दांतियों कु तू सेट बणौ ।।
सूट दगड़ि मैचिंग करदा,
कनोड़ी का झुमका लगौ ।
ब्यो-बराति मा दगड़यों गैलि,
डी.जे. पर ठुमका लगौ ।।
सेळी पड़यीं उमंग अपड़ी,
सेण नी दे बिजाळ दौं ।
बेस्वादी पड़ीं जिन्दगी मा
उलार कु तुड़का डाळ दौं ।
आंख्यों मा धुंधळाट ऐगे
त फैशनवाळा स्पैक रख ।
गुंदक्याळि हाथ्यों मा अपड़ा,
स्मार्टफोन लेक रख ।।
रोज नई सेल्फी खैंचीक
तू फेसबुकै मा डाळी दी ।
यीं उलार्या ज्वानी की फोटु,
एलबम मा समाळी दी ।।
बुढेन्दा की राति आण सि पैली,
जवानी न स्यवाळ दौं ।
बेस्वादी पड़ीं जिन्दगी मा
उलार कु तुड़का डाळ दौं ।
जवानी का यौं साल दुयौक,
काटी ली दौं मस्ती मा ।
वक्त औणा सी बि पैली,
न अल्झ यीं गिरस्ती मा ।।
मन मारि-मारीक बचायूं,
हैंकका खीसा न कोच दौं ।
रात-दिन औरों कि सोचणी
कुछ अपड़ु बि सोच दौं ।।
जिंदगी कटेण सी पैली,
वक्त अपुक निकाळ दौं ।
बेस्वादी पड़ीं जिन्दगी मा
उलार कु तुड़का डाळ दौं ।
ह्वै अपड़ू जु लैली-खैली,
हंसी-खुशि मा दिन बितैली।
स्वर्ग-नर्ग यखि छन जु
यौं आंख्यों सि दिखी सकेली ।।
बिना उमंग ज्वानी मा बि,
क्वै जवान रै नि सकदु ।
उलार्या पराणी कबि भि,
बुढ्या यख ह्वै नि सकदू ।।
द्वी घड़ी खुशी की अपड़ी,
बाकि सब जंजाळ दौं ।
बेस्वादी पड़ीं जिन्दगी मा
उलार कु तुड़का डाळ दौं ।
जिंदगी को सजा नहीं पाया / जगदीश रावतानी आनंदम
जिंदगी को सजा नहीं पाया
बोझ इसका उठा नहीं पाया
खूब चश्मे बदल के देख लिए
तीरगी को हटा नहीं पाया
प्यार का मैं सबूत क्या देता
चीर कर दिल दिखा नहीं पाया
जो थका ही नही सज़ा देते
वो खता क्यों बता नहीं पाया
वो जो बिखरा है तिनके की सूरत
बोझ अपना उठा नहीं पाया
आईने में खुदा को देखा जब
ख़ुद से उसको जुदा नहीं पाया
नाम “जगदीश” है कहा उसने
और कुछ भी बता नहीं पाया
मौत भी जिंदगी सी हो जाए / देवेन्द्र आर्य
मौत भी जिंदगी सी हो जाए।
झूठ और सच का फ़र्क़ खो जाए।
तिश्ना लब के सिवाय कौन है जो
सुर्ख अहसास को भिगो जाए।
पिण्ड तो छूटे वर्जनाओं से
जो भी होना है आज हो जाए।
ऐसे मत मांग हाथ फैला के
हाथ में जो है वो भी खो जाए।
मैं तवायफ़ हूँ, बेहया तो नहीं
थोड़ी मोहलत दे, बच्चा सो जाए।
जिंदगी के रास्ते पर चल रही हूँ / रंजना वर्मा
ज़िन्दगी के रास्ते पर चल रही हूँ
मैं समय के रूप में ही ढल रही हूँ
मुफ़लिसी में भी जो बच्चों को सहेजे
मैं वही ममता भरा आँचल रही हूँ
प्यास जो बेकल जमीं की है बुझाती
आसमानों में वही बादल रही हूँ
पेट मे है भूख बन कर खौलती जो
शांत करने को उसी को जल रही हूँ
बन वफ़ा की एक मूरत हूँ ढली मैं
इश्क़ की आँखों में बन काजल रही हूँ
बेबसी के नाग हैं तन से लिपटते
उन सभी के वास्ते सन्दल रही हूँ
जो नयी उम्मीद ले कर आँख खोले
मैं वही आगत सुहाना कल रही हूँ
जिंदगी / संतोष कुमार चतुर्वेदी
हर पल जीने का
दोहराव भर नहीं है जिंदगी
पारदर्शी साँसों की
मौलिक कविता है
अनूठी यह
खिल रहे जिंदगी के सुमन के लिये / रंजना वर्मा
खिल रहे जिंदगी के सुमन के लिये
हाथ अपने उठायें नमन के लिये
प्यास बुझती रहे कामना कण्ठ की
नीर-गंगा मिले आचमन के लिये
मन भटकने न पाये उचित मार्ग से
ढूंढ लें राह सच की गमन के लिये
कीजिये दूसरों की भलाई सदा
वैर की भावना के शमन के लिये
देश ने जिस सँवारी है यह जिंदगी
कर उसे दें निछावर वतन के लिये
खुशबुएं बाँध झोली में लायी हवा
खिल रही है कली भी चमन के लिये
आँसुओं से है पुर नम नज़र हो रही
कुछ बचा ही नहीं अंजुमन के लिये
जो भी संकल्प हो हम निभायें सदा
चाहे तन के लिये या कि मन के लिये
आज फिर आ गयी हौसले की घड़ी
पाप लंका पुरी के दहन के लिये
जिंदगी / संगीता गुप्ता
जिंदगी
दूर तक
रास्ता ही रास्ता
मंज़िल कोई नहीं
कुछ दूर तो
साथ चलो कि
सफ़र
ख़ुशगवार हो जाये
अब जिंदगी का साथ निभाया नहीं जाता / रंजना वर्मा
अब जिंदगी का साथ निभाया नहीं जाता
इंसान अब इस शहर में पाया नहीं जाता
दिन गर्दिशों के आइये हम आज तो लड़ें
मायूसियाँ में छोड़ के जाया नहीं जाता
है बेसुरी वीणा ये तार टूट चुके हैं
टूटे हुए साजों को बजाया नहीं जाता
दिल आँख में रख कर वो पुकारे है इस तरह
मजबूरियाँ हैं हम से ही आया नहीं जाता
मिल जाएगी किसी के भी आग़ोश में जगह
जो छोड़ गया उस को भुलाया नहीं जाता
हर सिम्त है जलवागिरी उस की ही नुमायां
लेकिन वो कहीं पर भी तो पाया नहीं जाता
जाती बहार और खिज़ा लौट है आती
मुल्के अदम गया वो बुलाया नहीं जाता
हर ओर बियावान है पत्थर है ज़माना
दिल संग जो उन्हें भी हटाया नहीं जाता
अब खंडहरों में बैठ के रोना फ़िजूल है
नाकामियों का जश्न मनाया नहीं आता
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