हैरान जिंदगी / केदारनाथ अग्रवाल
Contents
- 1 हैरान जिंदगी / केदारनाथ अग्रवाल
- 2 रो-रो के हँसना है ज़िन्दगी / शिवशंकर मिश्र
- 3 पालकी में बैठ कर आया करो ऐ जिंदगी / प्राण शर्मा
- 4 कठोर हुई जिंदगी / सोम ठाकुर
- 5 जिंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़ / मज़हर इमाम
- 6 किसी सराय की तरह है जिंदगी मेरी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
- 7 की छेकै जिंदगी / कुंदन अमिताभ
- 8 रहेगी कहां-री जिंदगी / हरीश बी० शर्मा
- 9 जिंदगी एक सुहाना सपना है / चाँद हादियाबादी
- 10 अब तो पथ यही है / दुष्यंत कुमार
- 11 Related Posts:
नट और नटिन
नाचते हैं
धुआँ का नाच
हैरान जिंदगी
नाश और नशे की चिलम पकड़े
धुएँ पर धुआँ पीटती है
मौत की मुहब्बत में फँसा आदमी
अवैध कामशास्त्र पढ़ता है
और रामनामी सड़कों पर मौज से
मदन की मुद्राओं का प्रदर्शन करता है
ज्ञान न ध्यान रत्ती भर फिर भी पंडित गुमानी
आदमी को कुत्ता
और कुत्ते को आदमी समझते हैं
मुखर नहीं होती सच की जबान
जहाँ मुखर होना चाहिए झरझराते झरने की तरह
चुप नहीं रहती है मन की मैना
जहाँ चुप रहना चाहिए, अवाक दर्पण की तरह
रचनाकाल: ०१-०९-१९७१
रो-रो के हँसना है ज़िन्दगी / शिवशंकर मिश्र
रो-रो के हँसना है जिंदगी
काय तेरा कहना है जिंदगी
काँटों के बीच किसी फूल-सा
खिलना-महकना है जिंदगी
जैसे पहाड़ों में दौड़ता
गीतों का झरना है जिंदगी
हारी बिसातें सहेजकर
बाजी पलटना है जिंदगी
मौत एक हकीकत है छूठ है
सच जो है, सपना है जिंदगी
‘मिशरा’ हदों की न बात कर
हद से गुजरना है जिंदगी
पालकी में बैठ कर आया करो ऐ जिंदगी / प्राण शर्मा
पालकी में बैठ कर आया करो ऐ जिंदगी
हर किसी को हर घड़ी भाया करो ऐ जिंदगी
काला-काला टीका माथे पर तुम्हारे चाहिए
बन-संवर कर जब कभी आया करो ऐ जिदगी
सबसे है रिश्ता तुम्हारा सदियों से फिर पर्दा क्यों
अपना असली रूप दिखलाया करो ऐ जिंदगी
बेवज़ह हर एक पल मायूस क्यों हो आदमी
साथ अपने हर खुशी लाया करो ऐ जिंदगी
गर्मियों की तेज़ तपती धूप सी छाई हो तुम
छाना है तो बदली सी छाया करो ऐ जिंदगी
प्यार का हर राग गाती हो तो प्यारी लगती हो
प्यार का हर राग ही गाया करो ऐ जिंदगी
कठोर हुई जिंदगी / सोम ठाकुर
हमने तो जन्म से पहाड़ जिए
और भी कठोर हुई ज़िंदगी
दृष्टि खंड -खंड टूटने लगी
कुहरे कि भोर हुई ज़िंदगी
ठोस घुटन आसपास छा गई
कड़वाहट नज़रों तक आ गई
तेज़ाबी सिंधु में खटास की
झागिया हिलोर हुई ज़िंदगी
चीख -कराहों में डूबे नगर
ले आए अपराधों कि लहर
दिन – पर- दिन मन ही मैले हुए
क्या नई -निकोर हुई ज़िंदगी
नाखूनों ने नंगे तन छुए
दाँत और ज़्यादा पैने हुए
पिछड़े हुए हैं खूनी भेड़िए
खुद आदम- खोर हुई ज़िंदगी
जो कहा समय ने सहना पड़ा
सूरज को जुगनू रहना पड़ा
गाली पर गाली देती गई
कैसी मुँहज़ोर हुई ज़िंदगी
सुकराती आग नहीं प्यास में
रह गया ‘निराला’ इतिहास में
चाँदी को संटी खाती गई
साहू का ढोर हुई ज़िंदगी
कानो में पिघलता सीसा भरा
क्या अन्धेपन का झरना झरा
मेघदूत-शाकुन्तल चुप हुए
यंत्रो का शोर हुई ज़िंदगी
जिंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़ / मज़हर इमाम
जिंदगी काविश-ए-बातिल है मिरा साथ न छोड़
तू ही इक उम्र का हासिल है मिरा साथ न छोड़
लोग मिलते हैं सर-ए-राह ग़ुजर जाते हैं
तू ही इक हम-सफ़र-ए-दिल है मिरा साथ न छोड़
तू ने सोचा है मुझे तू ने सँवारा है मुझे
तू मिरा ज़ेहन मिरा दिल है मिरा साथ न छोड़
तू न होगा तो कहाँ जा के जलूँगा शब भर
तुझ से ही गर्मी-ए-महफ़िल है मिरा साथ न छोड़
मैं कि बिफरे हुए तूफ़ाँ में हूँ लहरों लहरों
तू कि आसूदा-ए-साहिल है मिरा साथ न छोड़
इस रिफ़ाक़त को सिपर अपनी बना लें जी लें
शहर का शहर ही क़ातिल है मिरा साथ न छोड़
एक मैं ने ही उगाए नहीं ख़्वाबों के गुलाब
तू भी इस जुर्म में शामिल है मिरा साथ न छोड़
अब किसी राह पे जलते नहीं चाहत के चराग़
तू मिरी आख़िरी मंज़िल है मिरा साथ न छोड़
किसी सराय की तरह है जिंदगी मेरी / त्रिपुरारि कुमार शर्मा
किसी सराय की तरह है जिंदगी मेरी
लोग आते हैं रहते हैं चले जाते हैं
डेढ़ साल तक तेरा ठहरना हुआ
की छेकै जिंदगी / कुंदन अमिताभ
की छेकै जिंदगी
बस तनी देर
पलाश फूलऽ सें बात करेॅ देॅ
झब-झब मंजर के खूश्बू
जौरऽ करेॅ रेॅ।
बस तनी देर
निहारेॅ देॅ
कूँड़ चलौ रहलऽ छै
नहाबेॅ (नहाबेॅ) देॅ
तमसलऽ रौदा में घामऽ सें तरान लेॅ
लीखी पेॅ सिधियैलऽ जाय रहलऽ छै
कलेॅ-कलेॅ बैलगाड़ी मंजिल दन्नेॅ।
बस तनी देर
टिकली देखेॅ देॅ
डैनिया टिकली, ललकी टिकली
बधानी में गोबर के महक सूँघेॅ देॅ
अटिया डेगौंनी के स्वर सुनेॅ देॅ
डग्घर के हवा में घुललऽ दरद
भोरकरऽ रौदा के सर्दाहट
महसूस करेॅ देॅ।
बस तनी देर
सागऽ के घुमौनऽ खाबेॅ देॅ
केतारी चूसेॅ देॅ
आम चोभेॅ देॅ
ओर्हा खाबेॅ देॅ
सोजीना तरकारी के स्वाद चखेॅ देॅ
बचलऽ खुचलऽ खाना केॅ
कुतबा लेॅ परोसेॅ देॅ।
बस तनी देर
झमझम सुनेॅ देॅ झरिया के
भींजेॅ देॅ झरिया में
घोघी ओढ़े देॅ
बैहार जाय केॅ
खढ़ोय काटेॅ देॅ
बिचड़ऽ उखाड़ेॅ देॅ
हऽर जोती केॅ
रोपनी करेॅ देॅ
बस तनी देर
केपी सें घऽर आरो ओसरा साटेॅ देॅ
गोबर सें लीपेॅ देॅ अँगना
सनाठी सें लुक्का पाँती बनाबेॅ देॅ
दीया आरो चुकिया जलाबेॅ देॅ
लछमी घऽर दरिद्दर बाहर करेॅ देॅ
बस तनी देर
गामऽ के अँचरा सें लिपटेॅ देॅ
माय बाबू के गोदी सें चिपकेॅ देॅ
शीत वसंतऽ के खिस्सा सुनेॅ देॅ
बड़का खेत लगाँकरऽ
मौरका में नुकाबेॅ देॅ
धनकटनी के सुन्नर गीत सुनेॅ देॅ
बस तनी देर।
रहेगी कहां-री जिंदगी / हरीश बी० शर्मा
पता
नहीं पूछता मैं किसी का भी
डरता हूं
उस स्वाभाविक सवाल से
जब पूछ लिया जाएगा
ठिकाना मेरा
सच-सच बता पाऊंगा
बुला पाऊंगा
मेरे ठिकाने
कितना आसां होता है
कह देना
‘मेरे घर आना जिंदगी’
रहेगी कहां-री जिंदगी
जब आएगी
जीने के लिए मेरे घर ?
जिंदगी एक सुहाना सपना है / चाँद हादियाबादी
जिंदगी एक सुहाना सपना है
कल पराया है आज अपना है
एक अधूरा-सा ख़्वाब देखा है
मुख़्तसर-सा फ़साना अपना है
पास वो आए जब ख़यालों में
हमने सोचा ज़माना अपना है
भूल जाएँ वो चाहे क़ौल अपना
हमको वादा निभाना अपना है
देखना आप हम जो रूठे तो
कितना मुश्किल मनाना अपना है
आज हैं चाके-गिरेबान तो क्या
जाना-माना घराना अपना है
चाँद है आज यहाँ कल है वहाँ
यही पक्का ठिकाना अपना है
अब तो पथ यही है / दुष्यंत कुमार
जिंदगी ने कर लिया स्वीकार,
अब तो पथ यही है|
अब उभरते ज्वार का आवेग मद्धिम हो चला है,
एक हलका सा धुंधलका था कहीं, कम हो चला है,
यह शिला पिघले न पिघले, रास्ता नम हो चला है,
क्यों करूँ आकाश की मनुहार ,
अब तो पथ यही है |
क्या भरोसा, कांच का घट है, किसी दिन फूट जाए,
एक मामूली कहानी है, अधूरी छूट जाए,
एक समझौता हुआ था रौशनी से, टूट जाए,
आज हर नक्षत्र है अनुदार,
अब तो पथ यही है|
यह लड़ाई, जो की अपने आप से मैंने लड़ी है,
यह घुटन, यह यातना, केवल किताबों में पढ़ी है,
यह पहाड़ी पाँव क्या चढ़ते, इरादों ने चढ़ी है,
कल दरीचे ही बनेंगे द्वार,
अब तो पथ यही है |
Leave a Reply