Hindi Poems on Waterfall या झरने पर हिन्दी कविताएँ. इस आर्टिकल में बहुत सारी हिन्दी कविताओं का एक संग्रह दिया गया है जिनका विषय झरने (Waterfall) पर आधारित है.
Hindi Poems On Waterfall – झरने पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Hindi Poems On Waterfall – झरने पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 और एक झरना बहुत शफ़्फ़ाफ़ था / बाबू महेश नारायण
- 1.2 कस्तालिया का झरना / अज्ञेय
- 1.3 हिरनी झरना / रश्मि रेखा
- 1.4 झरना / अवतार एनगिल
- 1.5 झरना / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा
- 1.6 सुबह का झरना हमेशा हंसने वाली औरतें / बशीर बद्र
- 1.7 सुबह का झरना / बशीर बद्र
- 1.8 झरना मेला / श्रीस्नेही
- 1.9 झरना बने हुए हो कोई तुम से क्या मिले / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
- 1.10 झरना / इब्बार रब्बी
- 1.11 झरना बहाएँगे (ताँका)/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
- 1.12 झरना / श्रीप्रसाद
- 1.13 जीवन का झरना / आरसी प्रसाद सिंह
- 1.14 झरना / अरुण कमल
- 1.15 झरना / नंदकिशोर आचार्य
- 1.16 झरना / माखनलाल चतुर्वेदी
- 1.17 झरना (कविता) / जयशंकर प्रसाद
- 1.18 Related Posts:
और एक झरना बहुत शफ़्फ़ाफ़ था / बाबू महेश नारायण
और एक झरना बहुत शफ़्फ़ाक था,
बर्फ़ के मानिन्द पानी साफ़ था,-
आरम्भ कहाँ है कैसे था वह मालूम नहीं हो:
पर उस की बहार,
हीरे की हो धारा,
मोती का हो गर खेत,
कुन्दन की हो वर्षा,
और विद्युत की छटा तिर्छी पड़े उन पै गर आकर,
तो भी वह विचित्र चित्र सा माकूल न हो।
कस्तालिया का झरना / अज्ञेय
चिनारों की ओट से
सुरसुराता सरकता
झरने का पानी।
अरे जा! चुप नहीं रहा जाता तो
चाहे जिस से कह दे, जा,
सारी कहानी।
पतझर ने कब की ढँक दी है
धरा की गोद-सी वह ढाल जहाँ
हम ने की थी मनमानी
अक्टूबर, 1969
कस्तालिया : पार्नासस पर्वत की दक्षिणी उपत्यका में देल्फी के निकट एक झरना, जो अपोलो और कला-देवताओं का तीर्थ माना जाता था
हिरनी झरना / रश्मि रेखा
तमाम शोरगुल से भरे माहौल में
स्मृतियो की ऊँची पहाड़ी पर टिका
अक्सर वक्त-बेवक्त झरने लगता है
मन के भीतर का झरना
कई-कई जंगलों के बेतरतीब से पेड़ो मुलाक़ात करते
टेबो-घाटी के कई-कई खूबसूरत मोड़ों के सूनेपन
से गुज़रते निहारते उन्हें
आती है दूर से पुकारती हिरनी झरने की आवाज़
अपने करीब और करीब बुलाती हुई
आदिवासी नृत्य के मोहक घेरे में फँसे मन में पसरता
उनके गीतों से टपकता आदिम उल्लास
मुंडारी के बोल न जानने के बावजूद
और तेज होने लगी थी पानी के गिरने की आवाज़
एक ज़ादू के देश में पहुँच गए थे हम
गँवाकर बीते समय की सारी याददाश्त
ऊपर समझदार लड़की की तरह सलीके से
बही जा रही थी पहाड़ी पथ्थरों पर हिरनी नदी
दिखी औचक बदलती हुई पाला
उछल कर कूद पड़ी नीचे की ओर
दौड़ा बचाने को पीछे से आता पानी का रेला
पर वह भागी जाती थी कुलाँचे भरती हिरनी की तरह
सारे अवरोधों को रौंदती-कुचलती
कितना मादक और कितना सुरीला पथ्थरों पर
पानी का संगीत
क़ुदरत ने कैसे किया होगा इस इंद्रजाल का अविष्कार
झरना / अवतार एनगिल
तीन रमणियों संग
नौका-विहार करता वह व्यक्ति
निर्जन घाट पर उतरता है
भुरभुरी रेत पर
अपने पौरुष की लिप्सा मग्न
उस आदमी को लगता है
….नदी पर नाव में भी
वह तीसरी
रमण से बचते हुए
कन्या ही रही है
,,,कि बोझिल कदम उठाती
वह फिर
नदी से बातें करने जा रही है
तभी अचानक
कन्या पलटकर भागती है
और मदन-मस्त व्यक्ति के देखते-देखते
नदी तट से जुड़े
बुदबुद उबलते दलदल में कूदकर
धंसने लगती है
गंधक के भापीले कुहरे में
हो जाती है लुप्त
तब
उसकी आंख से
दो रमणियां
उबलते कीचड़ के कगार खड़ा
वह कायर शख़्स
कन्या के पीछे कूद
उसे बचाने
अथवा स्वयं मरने में असमर्थ
तलाशने लगता है
मैले दर्पण में
उजली परछाईं
फटता है कीचड़
फटता है जल
वह निकलता है तब
एक निर्मल झरना
लेता हिचकियां
बहता निर्बाध
नीलम आंख से
पावन जल
झरना / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा
पहाडको शिखरबाट
देखेँ झरेको जल ।
मेरो मनमा बत्ती बले
हजारौँ झलमल ॥
त्यो पानीको झरनामा
शक्ति कति छ लुकेको ।
देख्न सके कति त्यसमा
बत्ती बिजुली बलेको ॥
तर हाय त्यसै नै पग्ली
पानी व्यर्थ बहन्छ ॥
के हामी मानिसका
हृदयका गिरिमा
छैनन् यस्तै अटूट
निर्मल जलका झरना ?
हामी भित्र भए यदि यस्ता
सुन्दर झरना हजार !
हाय छ कस्तो अपशोच !
अझ छ अँध्यारो संसार !
सुबह का झरना हमेशा हंसने वाली औरतें / बशीर बद्र
सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़ामोश गहरी औरतें
संतुलित कर देती हैं ये सर्द मौसम का मिज़ाज
बर्फ़ के टीलों पे चढ़ती धूप जैसी औरतें
सब्ज़ नारंगी सुनहरी खट्टी मीठी लड़कियां
भारी ज़िस्मों वाली टपके आम जैसी औरतें
सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें
शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें
सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें
इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का ज्वालामुखी
किन पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें
सब्ज़ सोने के पहाड़ों पर क़तार अन्दर क़तार
सर से सर जोड़े खड़ी हैं लाम्बी लाम्बी औरतें
इक ग़ज़ल में सैकड़ों अफ़साने नज़्में और गीत
इस सराय में छुपी है कैसी कैसी औरतें
वाकई दोनों बहुत मज़्लूम हैं नक़्क़द और
माँ कहे जाने की हसरत में सुलगती औरतें
सुबह का झरना / बशीर बद्र
सुबह का झरना, हमेशा हंसने वाली औरतें
झूटपुटे की नदियां, ख़मोश गहरी औरतें
सड़कों बाज़ारों मकानों दफ्तरों में रात दिन
लाल पीली सब्ज़ नीली, जलती बुझती औरतें
शहर में एक बाग़ है और बाग़ में तालाब है
तैरती हैं उसमें सातों रंग वाली औरतें
सैकड़ों ऎसी दुकानें हैं जहाँ मिल जायेंगी
धात की, पत्थर की, शीशे की, रबर की औरतें
इनके अन्दर पक रहा है वक़्त का आतिश-फिशान
किं पहाड़ों को ढके हैं बर्फ़ जैसी औरतें
झरना मेला / श्रीस्नेही
मैयो झरना मेला देखैलेॅ हम्हूं जैबऽ!
मिट्ठऽ-चोखऽ कुछ नै झरनी-ककबालेबऽ॥
माथऽ कान बान्है भौजी भैया साथें जैतैगे।
काड़ा-छाड़ा पिन्हीं मेला पान-बीरा खैतैगे॥
हमरऽ मैयो झट-पट बान्धी देॅ दे खोपऽ।
गे मैयो झरना मेला देखैलेॅ हम्हू जैबऽ॥
सुगिया मुसबा सभ्भे जायछै आरो जायछै टूनिया गे।
सकराँती के झरना मेला आबै देखेॅ दुनिया गे॥
गूड़ मूर्ही-लड़ुआ देॅ दे भरी खोयछऽ!
गे मैयो झरना मेला देखैलेॅ हम्हूँ जैबऽ॥
नै मांगबौ पैसा मैयो नै चोली-घंघरा गे।
हौंसली-टिकली कुछ नै मांगबौ नै लेबौ कपड़ा गे॥
कलजुगबा के पत्थर मारी घूरी ऐबऽ।
गे मैयो झरना मेला देखैलेॅ हम्हूँ जैबऽ॥
झरना बने हुए हो कोई तुम से क्या मिले / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
झरना बने हुए हो कोई तुम से क्या मिले
उतरे पहाड़ से तो समन्दर से जा मिले
किरदार की ख़ला में मुअल्लक़ नहीं हूँ मैं
लेकिन कोई सिला तो मिरी ज़ात का मिले
पहचान ले जो मद्दे-मुक़ाबिल [1] को वाकई
हर आइने से खून उबलता हुआ मिले
छोटा-सा एक नीम का पौधा करे भी क्या
हर बेल चहती है उसे आसरा मिले
पेशानियाँ टटोल फ़रिश्ते मिलें अगर
मिट्ती का पाँव देख अगर देवता मिले
झरना / इब्बार रब्बी
वह पहाड़ से छलाँग लगा रहा है
उत्साह घाटी से मिलने को दौड़ा
सफ़ेद रंग दहाड़ रहा है।
झरना बहाएँगे (ताँका)/ रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
किसे था पता-
ये दिन भी आएँगे
अपने सभी
पाषाण हो जाएँगे
चोट पहुँचाएँगे।
2
जीवन भर
रस पीते रहे
वे तो जिए
हम तो मर -मर
घाव सीते रहे।
3
वे दर्द बाँटें
बोते रहे हैं काँटे
हम क्या करें?
बिखेरेंगे मुस्कान
गाएँ फूलों के गान।
4
काटें पहाड़
झरना बहाएँगे
भोर लालिमा
चेहरे पे लाएँगे
सूरज उगाएँगे ।
5
उदासी -द्वारे
भौंरे गुनगुनाएँ
मन्त्र सुनाएँ-
जब तक है जीना
सरगम सुनाएँ।
6
ओ मेरे मन !
तू सभी से प्यार की
आशा न रख
पाहन पर दूब
कभी जमती नहीं ।
7
मन के पास
होते वही हैं खास
बाकी जो बचे
वे ठेस पहुँचाते
तरस नहीं खाते
8
ये सुख साथी
कब रहा किसी का
ये हरजाई
थोड़ा अपना दु:ख
तुम मुझको दे दो।
9
पीर घटेगी
जो तनिक तुम्हारी
मैं हरषाऊँ
तेरे सुख के लिए
दु:ख गले लगाऊँ ।
10
जो भी कामना
मन में हो भावना
सदा हो पूरी
सदा चाँदनी खिले
सिर्फ़ सुख ही मिले !
-0-
झरना / श्रीप्रसाद
बड़े वेग से झरना उतरा
पर्वत पर से
दुनिया में कुछ करने को
निकला है घर से
दृढ़ संकल्प, कठोर लक्ष्य
बस एक बनाए
चाहे कुछ भी करे
काम औरों के आए
कितना बल है, कहीं ठहरना
नहीं जानता
आगे बढ़ना, एक ध्येय
बस यही मानता
प्यास बुझाता पेड़ों की
चिड़ियों की, सबकी
हर मनुष्य की, हर पशु की
हर नन्हे कण की
निर्मल, उज्ज्वल, वेगभरा
बस बढ़ता जाता
लहर उठाता, चंचल, कलकल
छलछल गाता
ऊँचे पर से गिरता झरना
बड़ा निडर है
आता पर्वत पर से
मगर कहाँ पर घर है
झरना है मस्ती का
खुशियों का झरना है
इसको सूखेपन में
हरियाली भरना है।
जीवन का झरना / आरसी प्रसाद सिंह
यह जीवन क्या है? निर्झर है, मस्ती ही इसका पानी है।
सुख-दुख के दोनों तीरों से चल रहा राह मनमानी है।
कब फूटा गिरि के अंतर से? किस अंचल से उतरा नीचे?
किस घाटी से बह कर आया समतल में अपने को खींचे?
निर्झर में गति है, जीवन है, वह आगे बढ़ता जाता है!
धुन एक सिर्फ़ है चलने की, अपनी मस्ती में गाता है।
बाधा के रोड़ों से लड़ता, वन के पेड़ों से टकराता,
बढ़ता चट्टानों पर चढ़ता, चलता यौवन से मदमाता।
लहरें उठती हैं, गिरती हैं; नाविक तट पर पछताता है।
तब यौवन बढ़ता है आगे, निर्झर बढ़ता ही जाता है।
निर्झर कहता है, बढ़े चलो! देखो मत पीछे मुड़ कर!
यौवन कहता है, बढ़े चलो! सोचो मत होगा क्या चल कर?
चलना है, केवल चलना है ! जीवन चलता ही रहता है !
रुक जाना है मर जाना ही, निर्झर यह झड़ कर कहता है !
झरना / अरुण कमल
पहली ही पहली बार हमने-तुमने देखा झरना
देखा कैसे जल उठता है गिरता है पत्थर पर
कैसे धान के लावों जैसा फूट-फूटकर झर पड़ता चट्टानों पर
कितना ठंडा घना था कितना जल वह
अभी-अभी धरती की नाभि खोल जो बाहर आया
कौन जानता कितनी सदियों वह पृथ्वी की नस-नाड़ी में घूमा
जीवन के आरम्भ से लेकर आज अभी तक
धरती को जो रहा भिंगोए
वही पुराना जल यह अपना
पहली ही पहली बार हमने-तुमने देखा झरना–
झरते जल को देख हिला
अपने भीतर का भी
जल ।
झरना / नंदकिशोर आचार्य
मेरे सीने में
एक झरना है
बस इसी बात का तो
मरना है !
(1982)
झरना / माखनलाल चतुर्वेदी
पर्वतमालाओं में उस दिन तुमको गाते छोड़ा,
हरियाली दुनिया पर अश्रु-तुषार उड़ाते छोड़ा,
इस घाटी से उस घाटी पर चक्कर खात छोड़ा,
तरु-कुंजों, लतिका-पुंजों में छुप-छुप जाते छोड़ा,
निर्झरिनी की गोदी के
श्रृंगार, दूध की धारा,–
फेंकते चले जाते हो
किस ओर स्वदेश तुम्हारा?
लतिकाओं की बाहों में रह-रह कर यह गिर जाना!
पाषाणों के प्रभुओं में बह-बह कर चक्कर खाना,
फिर कोकिल का रुख रख कर कल-कल का स्वर मिल जाना
आमों की मंजरियों का तुम पर अमृत बरसाना।
छोटे पौधों से जिस दिन
उस लड़ने की सुधि आती
तप कर तुषार की बूँदें
उस दिन आँखों पर छातीं।
किस आशा से, गिरि-गह्वर में तुम मलार हो गाते,
किस आशा से, पाषाणों पर हो तुषार बरसाते,
इस घाटी से उस घाटी में क्यों हो दौड़ लगाते,
क्यों नीरस तरुवर-प्रभुओं के रह-रह चक्कर खाते?
किस भय से हो, वन–
मालाओं से रह-रह छुप जाते,
क्या बीती है, करुण-कंठ से
कौन गीत हो गाते?
रचनाकाल: जबलपुर सेन्ट्रल जेल-१९३१
झरना (कविता) / जयशंकर प्रसाद
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
न हैं उत्पात, छटा हैं छहरी
मनोहर झरना।
कठिन गिरि कहाँ विदारित करना
बात कुछ छिपी हुई हैं गहरी
मधुर हैं स्रोत मधुर हैं लहरी
कल्पनातीत काल की घटना
हृदय को लगी अचानक रटना
देखकर झरना।
प्रथम वर्षा से इसका भरना
स्मरण हो रहा शैल का कटना
कल्पनातीत काल की घटना
कर गई प्लावित तन मन सारा
एक दिन तब अपांग की धारा
हृदय से झरना-
बह चला, जैसे दृगजल ढरना।
प्रणय वन्या ने किया पसारा
कर गई प्लावित तन मन सारा
प्रेम की पवित्र परछाई में
लालसा हरित विटप झाँई में
बह चला झरना।
तापमय जीवन शीतल करना
सत्य यह तेरी सुघराई में
प्रेम की पवित्र परछाई में॥
ज़रूर पढ़िए:
- Patriotic Poems in Hindi – देश प्रेम की 10 कविताएँ
- Patriotic Poems in Hindi (PART 2) – देश प्रेम की कविताएँ
- Republic Day Speech in Hindi – गणतंत्र दिवस पर भाषण
- Celebration of Independence Day Essay – भारत में स्वतंत्रता दिवस निबंध
- Independence Day Essay in Hindi – स्वतन्त्रता दिवस निबंध
हिन्दीविद्या पर अलग-अलग विषयों पर रचित हिन्दी कविताओं का एक बहुत बड़ा संग्रह है:
- Poems on Friendship in Hindi – दोस्ती पर हिन्दी कविताएँ
- Hindi Poems on Relation – रिश्तों पर हिन्दी कविताएँ
- Beti Bachao Beti Padhao Poems – बेटी बचाओ, बेटी पढाओ पर कविताएँ
- Nursery Poems in Hindi – नर्सरी कक्षा की कविताएँ
- Hindi Poems On Dussehra – दशहरा पर हिन्दी कविताएँ
- Amir Khusrow Poems in Hindi – अमीर खुसरो की कविताएँ
- Abdul Rahim Khan-I-Khana Poems in Hindi – रहीम की कविताएँ
- Hindi Poems On Girlfriend – प्रेमिका पर हिन्दी कविताएँ
- Hindi Poems On Wife – पत्नी पर हिन्दी कविताएँ
- Hindi Poems On Success – सफलता पर हिन्दी कविताएँ
- Rose Flower Poems in Hindi – गुलाब के फूल पर हिन्दी कविताएँ
- Krishna Poems in Hindi – कृष्ण पर हिन्दी कविताएँ
- Poems On Festival in Hindi – त्यौहार पर हिन्दी कविताएँ
- Poems On Kids in Hindi – बच्चों पर हिन्दी कविताएँ
- Good Night Poems in Hindi – शुभ रात्रि हिन्दी कविताएँ
- Good Morning Poems in Hindi – शुभ सवेरा हिन्दी कविताएँ
- Poems on Girl in Hindi – बेटी पर हिन्दी कविताएँ
- Poems on Heamant Season in Hindi – हेमंत ऋतु पर हिन्दी कविताएँ
हमें पूरी आशा है कि आपको हमारा यह article बहुत ही अच्छा लगा होगा. यदि आपको इसमें कोई भी खामी लगे या आप अपना कोई सुझाव देना चाहें तो आप नीचे comment ज़रूर कीजिये. इसके इलावा आप अपना कोई भी विचार हमसे comment के ज़रिये साँझा करना मत भूलिए. इस blog post को अधिक से अधिक share कीजिये और यदि आप ऐसे ही और रोमांचिक articles, tutorials, guides, quotes, thoughts, slogans, stories इत्यादि कुछ भी हिन्दी में पढना चाहते हैं तो हमें subscribe ज़रूर कीजिये.
Leave a Reply