Essay on Television in Hindi अर्थात इस आर्टिकल में आप पढ़ेंगे, दूरदर्शन (टेलिविजन) पर एक निबंध हिन्दी भाषा में.
दूरदर्शन (टेलिविजन)
दूरदर्शन एक महत्त्वपूर्ण दृश्य-श्रव्य-प्रसारण विधा है । यह आधुनिक विज्ञान की मनोरंजन के लिए तो एक महत्त्वपूर्ण विधा है ही, शिक्षा देने, जानकारी बढ़ाने, प्रचार और प्रसार का भी एक महत्त्वपूर्ण सशक्त माध्यम है । इस माध्यम में जैसे रेडियो और सिनेमा की श्रव्य-दृश्य विधियाँ मिल कर एक हो गई हैं । इसे बेतार-संवाद प्रेषण का अभी तक का सर्वोत्तम उपलब्ध वैज्ञानिक साधन माना जाता है ।
टेलिफोन और रेडियो के आविष्कार के पहले तक जैसे आम आदमी ने कभी कल्पना तक नहीं की थी कि कभी वह दूर-दूराज स्थित लोगों की आवाज सुन कर उन्हें अपने समीप अनुभव कर सकेगा, उसी प्रकार बोलने वाले को कभी देख भी सकेगा, यह सोचना भी कल्पना से परे था । लेकिन दूरदर्शन के आविष्कार ने असम्भव या कल्पनातीत समझी जाने वाली उन सभी बातों को आज साकार एवं सम्भव कर दिखाया है ।
इस वैज्ञानिक चमत्कार यानि दूरदर्शन का आविष्कार सन् 1926 ई० में सम्भव हो पाया था । इस का आविष्कारकर्त्ता का नाम है जॉन एल० बेयर्ड । आरम्भ में यह काफी महँगा (पड़ता था, इस कारण प्रत्येक व्यक्ति तो क्या प्रत्येक देश तक में सुलभ न था । स्वतंत्र भारत में भी इस चमत्कारी दृश्य श्रव्य प्रसारण विधा का आगमन सन् 1964 ई० के बाद ही सम्भव हो पाया ।
भारत में पहले दूरदर्शन-प्रसारण केन्द्र की स्थापना सन् 1965 में ही हो पाई । धीरे-धीरे इसका . प्रचलन और प्रसारण इस सीमा तक बढ़ा कि आज दूर-पास सर्वत्र इसे देखा-सुना जा सकता है । राजभवन से लेकर झोपड़ी तक में यह पहुँच चुका है । पहले इस का -खेत-व्ययाम स्वरूप ही प्राप्त था, जबकि आज भारत-समेत सारे विश्व में दूरदर्शन रंगीन दुनिया में प्रवेश कर चुका है । अर्थात् आज श्वेत-श्याम का स्थान रंगीन दूरदर्शन लेता जा रहा है । टेलिविजन या दूरदर्शन पर दृश्य श्रव्य रूप में जो कुछ भी प्रसारित किया जाता है, वह बहुत कुछ रेडियो-प्रसारण प्रणाली का-सा ही है ।
दूरदर्शन पर चित्रों के प्रेषण के लिए एक विशेषज्ञ प्रकार के कैमरे का प्रयोग किया जाता है । विशेष कैमरे में प्रतिबिम्बित चित्र हजारों बिन्दुओं में विभाजित एवं परिवर्तित कर प्रत्येक बिन्दु के प्रकाश-अन्धकार को बिजली की लहरों में बदल दिया जाता है । फलत: चित्र में प्रकाश-लहरें पैदा हो जाती हैं जबकि अन्धेरा या काला भाग वैसा ही रहता है । इसके बाद इन लहरों को रेडियो-तरंगों में बदल दिया जाता है ।
दूरदर्शन का एण्टीना उन्हें ग्रहण कर भीतर लगे यंत्रों तक पहुँचाता है, जबकि यंत्रों की सहायता से वे लहरें पुन: बिजली की लहरों में बदल भीतर विद्यमान ट्यूब में इलैक्टान-धारा में परिवर्तित कर दिया करती हैं । सामने वाला स्कीन पर्दे का काम किया करता है,. जबकि पिछले भाग में लगा तत्त्व इलैक्ट्रॉन के प्रभाव से जगमगा उठता है । तब एण्टीना की सहायता से प्रसारित व्यक्ति-चित्रों के प्रतिरूप प्रत्येक दूरदर्शन-सैट के पर्दे पर उभर कर की जाने वाली क्रियाएँ ज्यों-की-त्यों प्रस्तुत करने लगते हैं ।
इस प्रकार काफी जटिल-सी प्रक्रिया द्वारा दूरदर्शन का सजीव प्रसारण हम तक पहुँच पाता है । इसके लिए ट्राँसमीटरों से भी यथेष्ठ सहायता ली जाती आजकल भारत में उपग्रह की सहायता से दूरदर्शन के कार्यक्रम देश के प्रत्येक कोने में सरलता से पहुँचने लगे हैं । अब तक डेढ़-दो दर्जन तक प्रसारण केन्द्र तथा सैकड़ों रिले केन्द्र स्थापित हो चुके हैं । सदर्शन-ट्राँसमिशन की संख्या भी दिन-प्रतिदिन लगातार बढ़ती ही जा रही है ।
आधुनिक विज्ञान ने टेलिविजन का प्रयोग भिन्न-भिन्न दिशाओं में सम्भव बना दिया है । इसके कैमरों की सहायता से समुद्र के भीतर गहराई में छिपी सम्पदाओं का सहज ही पता लगाकर उपझोग में लाया जाने लगा है । इसी प्रकार दूरदर्शन अन्तरिक्ष-विज्ञान की भी कई तरह से सहायता कर रहा है । सुदूर ग्रहों की जानकारी इस के कैमरे सहज ही प्राप्त कर लेते हैं । कृत्रिम उपग्रह अन्तरिक्ष में भेजने और वहाँ उन पर नियंत्रण रखने के कार्य में भी दूरदर्शन बड़ा सहायक सिद्ध हो रहा है ।
दूरदर्शन तरह-तरह के मनोरंजन का एक सर्वसुलभ घरेलू साधन है ही, इससे शिक्षा के प्रचार-प्रसार, निरक्षरता हटाने जैसे कार्यों में भी पर्याप्त सहायता ली गई और ली जा रही है । विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को शिक्षा के साथ-साथ किसानों को कृषि कार्यों को शिक्षा के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है । इसी प्रकार दूरदर्शन प्रचार-प्रसार का भी अच्छा माध्यम है ।
सो स्वास्थ्य-सुधार, जनसंख्या-नियंत्रण, शिशु-संवर्द्धन-रक्षा जैसे कार्य भी यह कर रहा है । और भी कई प्रकार के घरेलू तथा व्यावसायिक शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए इस का व्यापक प्रयोग किया जा रहा है । देश-विदेश के समाचारों की दृश्य-श्रव्य योजना, समाचार-समीक्षा, गोष्ठियाँ, वार्ता, कवि-सम्मेलन-मुशायरे, प्रदर्शनियाँ और तरह-तरह के उत्पादों के विज्ञापन जैसे अनेक कार्य इस से लिए जा रहे हैं ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि आज दूरदर्शन हमारे व्यापक जीवन का एक व्यापक एवं व्यावहारिक अंग बन चुका है । ही, अपसंस्कृति के प्रचार का माध्यम बनने से इसे रोकना आवश्यक है । नहीं तो देश-काल के अनुरूप इस की वास्तविक उपयोगिता व्यर्थ हो कर रह जाएगी, -यह बहुत बड़ा खतरा सभी की चिन्ता का विषय है ।
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