तीज भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण और प्रमुख त्योहार है, जिसे मुख्यतः महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह त्योहार श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है, इसलिए इसे तीज कहा जाता है। तीज का त्योहार देवी पार्वती और भगवान शिव के मिलन की स्मृति में मनाया जाता है। इस विशेष दिन पर महिलाएं उपवास रखकर अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन की कामना करती हैं। इस निबंध में हम तीज के महत्व, इतिहास, उत्पत्ति, विभिन्न प्रकार और इसे मनाने की विधियों पर विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।
तीज का महत्व
धार्मिक महत्व
धार्मिक दृष्टिकोन से तीज का महत्व अत्यधिक है। हिंदू धर्म में देवी पार्वती को अखण्ड सौभाग्य की देवी माना जाता है। यह त्योहार, जो उनके सपत्नीक जीवन से संबंधित है, महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है। देवियों का उपवास और व्रत के माध्यम से देवी पार्वती और भगवान शिव का पूजन करना, उनकी शक्ति और भक्ति को प्रदर्शित करता है।
सांस्कृतिक महत्व
संस्कृति के दृष्टिकोन से तीज का पर्व हमारी प्राचीन धरोहर और परंपराओं को जीवित रखने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। लोकगीत, लोकनृत्य और पारंपरिक वेशभूषा इस पर्व की पहचान हैं। इस समय महिलाएं झूला झूलकर और नई-नई वेशभूषा पहनकर इस त्योहार का आनंद उठाती हैं।
तीज का इतिहास और उत्पत्ति
तीज के त्योहार का इतिहास और उत्पत्ति हजारों साल पुराना है। यह मान्यता है कि तत्कालीन समाज में महिलाएं अपनी इच्छाओं और भावनाओं को प्रदर्शित करने का विशेष अवसर तीज के रूप में पाती थीं। समय के साथ इस पर्व ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व प्राप्त किया।
पौराणिक कहानियां
तीज के पीछे कई पौराणिक कहानियां हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध कहानी देवी पार्वती और भगवान शिव की है।
देवी पार्वती और भगवान शिव: यह कहा जाता है कि देवी पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। उनकी तपस्या और समर्पण से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तीज का त्योहार इसी प्रसंग को स्मरण करने के लिए मनाया जाता है।
हेमाद्रि पर्वत की कहानी: दूसरी कहानी हेमाद्रि पर्वत की है, जहां देवी पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए ध्यान किया था। तीज के उपलक्ष्य में महिलाएं इस कथा को स्मरण करती हैं और उपवास रखती हैं।
तीज के प्रकार
तीज के विभिन्न प्रकार होते हैं जो विभिन्न संगठित सामाजिक और भौगोलिक परिवेशों पर आधारित होते हैं। प्रमुख तीजें निम्नलिखित हैं:
हरियाली तीज
हरियाली तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। इसे श्रवण तीज भी कहते हैं। इस समय वृक्षों पर नई पत्तियाँ निकलती हैं और हरियाली छा जाती है, इसलिए इसे हरियाली तीज कहते हैं। इस दिन महिलाएं हरे रंग के वस्त्र पहनती हैं और हरे रंग की चूड़ियाँ धारण करती हैं।
कजली तीज
कजली तीज श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। यह प्रमुखतः उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मनाई जाती है। इस तीज का प्रमुख उद्देश्य महिलाओं के मनोरंजन और पारिवारिक बंधन को मजबूत करने का होता है।
हरतालिका तीज
हरतालिका तीज भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। यह त्योहार मुख्यतः उत्तर भारत, विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखकर देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं।
तीज मनाने की विधि
तीज के दिन महिलाएं विशेष रूप से तैयार होती हैं और विभिन्न धार्मिक क्रियाकलाप करती हैं। तीज की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं:
उपवास और व्रत
तीज के दौरान महिलाएं निर्जल और निराहार व्रत रखती हैं। यह व्रत कठिन होने के बावजूद भी भक्तिभाव से भरा होता है और महिलाओं को इसे पालन करने में विशेष संतुष्टि मिलती है।
सोलह श्रृंगार
इस दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं। इसमें मेहंदी, काजल, बिंदी, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ, और अन्य आभूषण शामिल होते हैं। पारंपरिक परिधान पहनना भी तीज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
पूजन और कथा
हरियाली तीज के दिन महिलाएं देवी पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति की पूजा करती हैं। पूजा के दौरान विभिन्न प्रकार के फूल, फल, और मिठाई चढ़ाई जाती हैं। इसके बाद तीज की कथा सुनी जाती है, जो देवी पार्वती और भगवान शिव की कथा पर आधारित होती है।
मेहंदी और झूला
तीज का एक और मुख्य आकर्षण मेहंदी और झूला है। महिलाएं अपने हाथों पर सुंदर मेहंदी के डिजाइन बनवाती हैं और झूला झूलकर खुशियाँ मनाती हैं। इस दौरान वे गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
भोज और प्रसाद
तीज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भोज और प्रसाद का वितरण भी होता है। व्रत समाप्त करने के बाद महिलाएं विशेष तीज के व्यंजन बनाती हैं और उसे परिवार और मित्रों के साथ साझा करती हैं। प्रमुख तीज के व्यंजनों में घेवर, पूरनपोली, मालपुआ, और गुजिया शामिल हैं।
तीज के परंपरागत गीत और नृत्य
तीज के अवसर पर परंपरागत गीत और नृत्य का आयोजन भी होता है। गांव एवं शहर के विभिन्न स्थानों पर महिलाएं इकट्ठा होकर तीज के गीत गाती हैं और आनंदपूर्वक नृत्य करती हैं।
लोकगीत
तीज के अवसर पर गाए जाने वाले लोकगीत महिला की भावनाओं, समर्पण और प्रेम को व्यक्त करते हैं। ये गीत अक्सर पारंपरिक वाद्यों के साथ गाए जाते हैं जिनमें ढोलक, मंजीरा, और हारमोनियम प्रमुख होते हैं।
लोकनृत्य
लोकनृत्य भी तीज के त्योहार का एक अंग होता है। महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में तीज के लोकनृत्य प्रस्तुत करती हैं। इन नृत्यों में सामूहिक और व्यक्तिगत नृत्य दोनों ही शामिल होते हैं।
तीज का सामाजिक महत्व
तीज का सामाजिक महत्व भी कम नहीं है। यह पर्व महिलाओं के समाज में एकता एवं बांधवता का प्रतीक है। तीज के माध्यम से महिलाएं अपने दुःख-दर्द को साझा करती हैं और एक दूसरे को सहयोग करती हैं।
सामाजिक एकता
तीज का पर्व सामाजिक एकता और महिलाओं के बीच प्रेम और सहयोग को बढ़ावा देता है। इस दिन महिलाएं आपस में मिलकर गाना-बजाना करती हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं।
संस्कृति का संरक्षण
तीज जैसे पर्व हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह हमारी पुरानी परंपराओं, रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं को जीवंत बनाए रखता है।
निष्कर्ष
तीज भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अनमोल प्रतीक है। यह न सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। तीज का पर्व महिलाओं के जीवन में एक नई उमंग और उत्साह लाता है। यह पर्व त्याग, भक्ति, और समर्पण का प्रतीक है। तीज के माध्यम से हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेज सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों को इससे जोड़ सकते हैं।