Swami Vivekananda Quotes in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल वचन हिन्दी में.
Swami Vivekananda Quotes (स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल वचन)
Contents
- निर्बलता ही सब पापों की जड़ है ।
- उठो, जागो, तब तक रुको नहीं, जब तक लक्ष्य पर न पहुंच जाउगे ।
- भय से ही दुख आते हैं और भय से ही बुराइयां जन्म लेती हैं ।
- इस विश्व में पूर्ण समता असंभव है । यदि हम पूर्ण समता के लिए प्रयास करेंगे तो हम विनाश के शिखर पर पहुंच जाएंगे ।
- ताकत के बूते निर्बल की असमर्थता का फायदा उठाना धनी मानी वर्गों का विशेषाधिकार रहा है और इस विशेषाधिकार को अरत करना ही हर युग की नैतिकता है ।
- विचार और कर्म की स्वतंत्रता जीवन, विकास और कल्याण की एकमात्र शर्त है । जहां उसका अभाव होता है, वहां मनुज जाति और राष्ट्र अवश्य अवनति की ओर जाते हैं ।
- यदि तुम अपनी ही मुक्ति के लिए प्रयत्न करो, तो नरक में जाउगेगे । तुम्हें दूसरों की मुक्ति का भी प्रयास करना चाहिए ।
- यह सारा संसार अनंत आनंद से भरी एक सुंदर कविता है ।
- प्रसन्नता अनमोल खजाना है । छोटी-छोटी बातों पर उसे लुटने न दें ।
- संसार में रहो, किंतु संसार के माया-मोह से निर्लिप्त रहो ।
- दयाशील अंतःकरण प्रत्यक्ष स्वर्ग है ।
- कार्य तुच्छ नहीं । यदि मनपसंद कार्य मिल जाए, तो मूर्ख भी उसे पूरा कर सकता है, किंतु बुद्धिमान पुरुष वही है, जो प्रत्येक कार्य को उरपने लिए रुचिकर बना ले ।
- श्रद्धा का अर्थ अंधविश्वास नहीं है ।
- जिसने स्वयं को वश में कर लिया है, संसार की कोई भी शक्ति उसकी विजय को पराजय में नहीं बदल सकती ।
- अगर आपने किसी जरूरतमंद की सेवा की तो धन्यवाद के पात्र उगप नहीं वह जरूरतमंद व्यक्ति है, क्योंकि उसने उगपको सेवा का मौका दिया ।
- असंतुष्ट व्यक्ति किसी वस्तु से संतुष्ट नहीं होता, उसके लिए सभी कर्तव्य नीरस होते हैं । फलस्वरूप उसका जीवन असफल होना स्वाभाविक है ।
- मनुज को पापी कहना ही पाप है, यह कथन मानव स्वभाव पर एक लांछन है ।
- भय ही पाप और पतन का निश्चित कारक है ।
- भूख से पीड़ित जनों के गले में धर्म उड़ेलना उसका अपमान करना है ।
- पवित्र और दृढ़ इच्छा सर्वशक्तिमान है ।
- जो व्यक्ति निश्चय कर सकता है, उसके लिए कुछ असंभव नहीं ।
- ब्रह्मांड अपनी सृष्टि स्वयं करता है, स्वयं विघटित होता है और स्वयं अभिव्यक्त होता है ।
- गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है ।
- लोभ से बुद्धि नष्ट होती है, बुद्धि नष्ट होने से लज्जा, लज्जा नष्ट होने से धर्म तथा धर्म नष्ट होने से धन और सुख नष्ट हो जाता है ।
- परस्पर विनियम यानी ‘ देना-लेना’ सारी दुनिया का नियम है ।
- किसी भी बात पर वाद-विवाद बढ़ा कि मन का संतुलन नष्ट हुआ ।
- असंतुष्ट व्यक्ति के लिए सभी कर्तव्य नीरस होते हैं ।
- मनुष्य ही परमात्मा का सर्वोच्च साक्षात मंदिर है, इसलिए साक्षात देवता की पूजा करो ।
- इच्छा का समुद्र अतृप्त रहता है । उसकी मांगें ज्यों-ज्यों पूरी की जाती हैं, त्यों-त्यों वह गर्जन करता है ।
शिक्षा
- भविष्य में क्या होगा, इसकी चिंता में जो सर्वदा रहता है, उससे कोई कार्य नहीं हो सकता । इसलिए जिस बात को तुम समझते हो कि वह सत्य है उसे अभी ही कर डालो । भविष्य में क्या होगा, क्या नहीं होगा, इसकी चिंता करने की क्या जरूरत है
- जिस प्रकार जीवन बचपन से प्रारंभ होता है । उसी प्रकार ज्ञान वैराग्य से उत्पन्न होता है ।
- शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिक्ष में ठूंस दिया गया है.
- और जो आत्मसात हुए बिना वहां आजन्म पड़ा रहकर गड़बड़ मचाया करता है.
- हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र निर्माण में सहायक हों । यदि तुम केवल पांच ही परखे हुए विचार आत्मसात कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हो, तो तुम एक पूरे ग्रंथालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हो ।
- यदि शास्त्र सब व्यक्तियों के लिए, सब परिस्थितियों में, सब समय उपयोगी नहीं हों तो फिर वे किस काम के
- क्रियाशीलता ही ज्ञान प्राप्ति का एकमात्र मार्ग है । ज्ञान ही शक्ति है । साधनाकाल में साधना में ही मन प्राण अर्पण करो, क्योंकि उसकी चरम अवस्था का नाम ही सिद्धि है ।
- मनुष्य का पहला कर्तव्य ज्ञान प्राप्ति व दूसरा लोक कल्याण है ।
- वेदों का अर्थ है, भिन्न–भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा अविकृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष ।
- विचार से बढ़कर कोई शस्त्र नहीं और चिंतन से बड़ा कोई शास्त्र नहीं है ।
- तुम्हें जो शिक्षा मिल रही है, उसमें कुछ अच्छाइयां अवश्य हैं, पर उसमें एक भयंकर दोष है जिससे ये सब अच्छी बातें दब गई हैं । सबसे पहली बात यह है कि उसमें मनुष्य बनाने की शक्ति नहीं है । वह शिक्षा नितांत भावनाविहीन है । भावनाविहीन शिक्षा मृत्यु से भी बुरी है ।
आत्मबोध
- अपवित्र कल्पना भी उतनी ही बुरी होती है जितना कि अपवित्र कर्म होता है
- है, क्योंकि कामना सागर की भांति अतृप्त, ज्यों-ज्यों उसकी आवश्यकता पूरी करते हैं त्यों-त्यों उसका कोलाहल बढ़ता है ।
- मैं तुम सबसे यही एक बात चाहता हूं कि तुम सदा के लिए स्वार्थपरता, कलहप्रियता और ईर्ष्या का त्याग कर दो । तुम सबको धरती माता की भांति सर्वसहिष्णु होना चाहिए । यदि तुम ऐसे हो सको, तो सारी दुनिया तुम्हारे पैरों पर लोटने लगेगी ।
- किसी भी बात पर वाद-विवाद बढ़ा कि मन का संतुलन नष्ट हुआ । हम जितने शांत होंगे हमारे ला! जितने ही कम उत्तेजित होंगे, हम उतना ही अधिक मानव प्रेम कर सकेंगे और हमारा कार्य उतना ही अधिक अच्छा होगा ।
- जो विचार एवं कार्य आत्मा की पवित्रता और शक्ति को संकुचित कर देते हैं, वे बुरे विचार हैं, बुरे कार्य हैं और जो विचार तथा कार्य आत्मा की अभिव्यक्ति में सहायक होते हैं एवं उसकी शक्ति को मानो प्रकाशित कर देते हैं वे अच्छे हैं, नीति पर हैं
- हम संसार के ऋणी हैं, संसार हमारा ऋणी नहीं है । यह तो हमारा सौभाग्य है कि हमें संसार में कुछ करने का अवसर मिलता है । संसार की सहायता करने से हम वास्तव में स्वयं अपना ही कल्याण करते हैं ।
- दूसरी की भलाई से अपनी भलाई होती है औरों का हित करना आत्म विकास का एक उपाय है ।
- दूसरों की भलाई करने का अनवरत प्रयत्न करते हुए हम अपने आपको भूल जाने करते हैं अपने आपको भूल जाना एक ऐसा बड़ा सबक का प्रयत्न । यह वह है, जिसे हमें अपने जीवन में सीखना है । मनुष्य मूर्खता से यह सोचने लगता है कि वह अपने आपको सुखी बना सकता है, पर वर्षों के संघर्ष के पश्चात अंत में वह कहीं समझ पाता है कि सच्चा सुख स्वार्थ के नाश में है और उसे अपने आपके अतिरिक्त अन्य कोई सुखी नहीं बना सकता । स्वार्थ ही अनैतिकता और स्वार्थहीनता ही नैतिकता है ।
- हम कभी भी नई वस्तु का निर्माण नहीं कर सकते । केवल पुरानी वस्तु का स्थान-परिवर्तन कर सकते हैं । सारे काम अपने आप होते रहेंगे, फिर भी आप निरंतर कार्य करते रहें जरा भी आसक्त न हों । पथिक की तरह कार्य करते रहें । किसी प्रकार के बंधन में नहीं पड़े । आप बस कार्य करते जाएं । यह सोचकर कि अब हम जा रहे हैं, बस अब जा रहे हैं ।
- सुख के प्रत्येक तोले के साथ सेर-भर दुख भी आता है । वस्तुत: वह एक ही शक्ति है जो एक समय सुख बनकर व्यक्त होती है और दूसरे समय पर दुख बनकर । दूसरी के दोष देखने में आप जितना समय लगाते हैं उतना अपने दोष सुधारने में लगाएं । आप अपना चरित्र सुधारेंगे, अपना आचरण पवित्र बनाएंगे तो संसार उरपने आप ही सुधर जाएगा ।
- जीत सेवा से बढ्कर दूसरा धर्म नहीं है । सेवा धर्म का यथार्थ अनुष्ठान करने से संसार का बंधन सुगमता से छिन्न हो जाता है ।
- केवल वही व्यक्ति सबकी अपेक्षा उत्तम रूप से कार्य करता है जो पूर्णतया निःस्वार्थी है, जिसे न तो धन की लालसा है, न कीर्ति की और न किसी अन्य वस्तु की ।
- कुछ मत माँगो, बदले में कुछ मत चाहो । तुम्हें जो देना है, दे दो, वह तुम्हारे पास लौटकर आएगा, पर अभी उसकी बात मत सोचो । वह बर्धित होकर वापस आएगा, पर ध्यान उधर न जाना चाहिए । तुममें केवल देने की शक्ति है । दे दो, बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है ।
- प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक राष्ट्र को महान बनाने के लिए बातें आवश्यक हैं-।
- सद्वृत्ति की शक्ति पर अडिग श्रद्धा, 2
- अविश्वास और ईर्ष्या से मुक्ति, 3
- सत्प्रवृत्ति एवं सत्कार्य में रत व्यक्तियों के प्रति सहयोग का भाव । शुभ उद्देश्य सही साधन एवं सात्विक साहस के अधिष्ठान पर खड़े होओ और वीर बनो ।
- क्या तुम अपने बंधुओं से प्रेम करते हो
- भगवान को खोजने तुम कहां जाओगे
- क्या ये गरीब, दुखी और दुर्बल भगवान नहीं हैं
- पहले उन्हीं की पूजा क्यों नहीं करते
- गंगातीर पर कुआं खोदने क्यों जाते हो
- प्रेम की सर्वशक्तिमत्ता में विश्वास रखो । इस सब नाम यश की कौन परवाह करता है
- क्या तुममें प्रेम है
- यदि है तो तुम सर्वशक्तिमान हो । क्या तुम पूर्णत: निस्वार्थ हो
- यदि हां, तो तुम अजेय हो । चरित्र ही सर्वत्र फलदायक है । यह ईर्ष्या और छल-कपट छोड़ दो । दूसरों के लिए संगठित होकर कार्य करना सीखो । यही हमारे देश की एक बड़ी आवश्यकता है ।
- भारत की विशृंखल आध्यात्मिक शक्तियों के एकीकरण में ही भारत की राष्ट्रीय एकता निहित है । भारत में राष्ट्रीय एकता का अभिप्राय है, उन हृदयों का भी एकीकरण जिनके स्पंदन से एक ही आध्यात्मिक लय झंकृत हो रही है । ?
- मानव की सेवा ही सच्ची ईश्वरोपासना है ।
- जब पड़ोसी भूखा हो तब भगवान को प्रसाद बढ़ाना पुण्य नहीं, पाप है ।
- तुम भगवान की खोज में कहां जाना चाहते हो
- क्या निर्धन, निर्बल और दीन भगवान नहीं हैं
- तुम पहले उनकी पूजा क्यों नहीं करते
- उनका ध्यान करो, उनकी भलाई की चेष्टा करो, मेरा विचार है कि जनता की अवहेलना करना राष्ट्रीय अपराध है और यह हमारे पतन का एक कारण है ।
- प्रेम विश्व की संचालक शक्ति है । प्रेम के प्रभाव से ईसा मसीह मानवता के लिए अपनी जान देने को तैयार होता है और बुद्ध पशु तक के लिए अपना बलिदान करता है । प्रेम ही भगवान है ।
- जहां विचार नहीं वहां कार्य नहीं । अत: मस्तिष्क को उच्च विचारों से, उच्च आदर्शों से भर दो । उन्हें दिन-रात अपने सामने रखो और तब उसमें से महान कार्य निष्पन्न होगा ।
देश के नाम सन्देश
- क्या वे स्वाधीनता पाने योग्य हैं जो दूसरों को स्वाधीनता देने के लिए प्रस्तुत नहीं
- राष्ट्रीय जीवन रूपी यह जहाज लाखों लोगों को जीवन रूपी समुद्र के पार करता रहा है । कई शताब्दियों से इसका यह कार्य चल रहा है और इसकी सहायता से लाखों आत्माएं इस सागर से उस पार अमृत धाम मैं पहुंची हैं, पर आज शायद तुम्हारे ही दोष से इस पोत में कुछ खराबी हो गई है, इसमें एक-दो छेद हो गए हैं तो क्या तुम इसे कोसोगे ।
- तुम्हारी सहायता कौन करेगा
- तुम स्वयं ही विश्व के सहयतारचरूप हो । तुम्हारी सहायता करने वाला मनुष्य, ईश्वर या प्रेतात्मा कहां है
- तुम स्वयं ही विश्व सूष्टा भगवान हो, तुम किससे सहायता लोगे
- सहायता और कहीं से नहीं अपने आप से ही मिली है और मिलेगी । अपनी अज्ञानता की स्थिति में तुमने जितनी प्रार्थना की और उसका जो उत्तर तुम्हें मिला, तुम समझते रहे कि वह उत्तर किसी अन्य व्यक्ति ने दिया है, पर वास्तव में तुम्हीं ने अनजाने में उन प्रार्थनाओं का उत्तर दिया ।
- आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी तरह के धर्म परस्पर बैपुज का भाव रखें, क्योंकि अगर उन्हें जीना है तो साथ-साथ और मरना है तो साथ-साथ । बैपुज की यह भावना पारस्परिक रनेह और उगदर पर आधारित होनी चाहिए, न कि संरक्षणशील, प्रसादस्वरूप, किंचित शुभेच्छा की कृपण अभिव्यक्ति पर, जिसे उगज तक धर्म अनुग्रह पूर्णभाव से दूसरे पर दर्शाते हुए पाया जाता है । एक ओर हैं मानसिक व्यापारों की उग्ध्ययनजन्य धार्मिक अभिव्यक्तियां और दूसरी और हैं, धर्म की वे अभिव्यक्तियां जिनके मस्तिष्क तो स्वर्ग के रहस्यों में अधिक व्यरत हैं, किंतु जिनके चरण पृथ्वी पर ही चिपके हैं । उरव इन दोनों के मध्य इस बकुल की भावना की सर्वोपरि आवश्यकता है ।
- नियम बनाओ, किंतु उन्हें इस प्रकार बनाउगे कि जब लोग बिना उनके काम चलाने लगें तो वे उन्हें तोड़कर फेंक सकें । हमारी मौलिकता पृर्णु अनुशासन के साथ पूर्ण स्वतंत्रता को संयुक्त कर देने में है ।
- भारत का सदैव यही संदेश रहा है कि आत्मा प्रकृति के लिए नहीं, बल्कि प्रकृति उरात्मा के लिए है । यदि भारत परमात्मा की खोज में लगा रहा तो वह अमर रहेगा, किंतु यदि वह राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष में पड़ा तो वह नष्ट हो जाएगा ।
- देशभक्त बनने की दिशा में पहला कदम भूख से पीड़ित करोड़ों व्यक्तियों के- प्रति संवेदना का अनुभव करना है ।
धर्म
- सत्य के लिए हर वस्तु की बलि दी जा सकती है, किंतु सत्य की बलि किसी भी वस्तु के लिए नहीं दी जा सकती ।
- लोभ से बुद्धि नष्ट होती है, बुद्धि नष्ट होने से लज्जा, लज्जा नष्ट होने से धर्म तथा धर्म नष्ट होने से धन और सुख नष्ट हो जाता है ।
- धर्म मनुष्य के भीतर निहित देवत्वका विकास है ।
- कर्म करना ही उपासना करना है, विजय प्राप्त करना ही त्याग करना है । स्वयं जीवन ही धर्म है । इसे प्राप्त करना और अपने अधिकार में रखना उतना ही कठोर न्यास है जितना कि इसका त्याग करना और इससे विमुख होना ।
- कोई भी मत जो तुम्हें ईश्वर प्राप्ति में सहायता देता है, अच्छा है । धर्म ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम भर है ।
- नास्तिक उदार हो सकता है पर धार्मिक नहीं, पर धार्मिक मनुष्य को उदार होना चाहिए ।
- यत-यज्ञ, प्रणाम-दंडवत और जप-जाप उगदि धर्म नहीं हैं । वे वहीं तक उग्च्छे हैं, जहां तक वे हमें सुंदर और वीरतापूर्ण कार्य करने की प्रेरणा देते हैं तथा हमारे विचारों को इतना उन्नत बना देते हैं जिससे हम दैवी पूर्णता की धारणा कर सकें ।
- धर्मग्रंथ जिन सद्गुणों को अपनाने की बात करते हैं, वे सभी उरनायास उससे प्रवाहित होने लगते हैं जो वेदांत का आचरण करते हैं ।
- जो शास्त्रों को पढ़कर उनका उरपने जीवन में आचरण नहीं करते उन पर यह बात पूरी तरह लागू होती है, ‘यथा खरश्चंदन भारवाही, भारस्य वेत्ता न तु चंदनस्य’ जिस प्रकार गधा अपनी पीठ पर लदे चंदन के भार को जानता है । उसके मूल्य को नहीं । अर्थात ज्ञान के मूल्य को वह नहीं जानता ।
- उगज संसार में सब धर्म प्राणहीन एवं परिहास की वस्तु हो गए । उगज जगत का सच्चा अभाव है चरित्र । संसार को उनकी आवश्यकता है । जिनका जीवन उत्कट प्रेम तथा निःस्वार्थपरता से पूर्ण है । वह प्रेम प्रत्येक शब्द को वजवत शक्ति प्रदान करेगा ।
- मनुष्य तभी तक मनुष्य कहा जा सकता है, जब तक वह प्रकृति से ऊपर उठने के लिए संघर्ष करता है । इस प्रकृति के भीतर ऐसे सूक्ष्म नियम भी हैं जो बाह्य प्रकृति को संचालित करने वाली उग्तरूप प्रकृति का नियमन करते हैं । बाह्य प्रकृति को जीत लेना भव्य है पर उससे असंख्य गुना अच्छा और भव्य है अभ्यंतर प्रकृति पर विजय पाना । उरांतरिक मनुष्य पर विजय पाना, मानव मन की जटिल सूक्ष्म क्रियाओं के रहस्य को समझना पूर्णतया धर्म के अंतर्गत आता है ।
- ईश्वर सर्वव्यापी हैं । वे प्रत्येक प्राणी में अपने-उगपको व्यक्त करते हैं । मनुष्य के लिए तो वे मनुष्य के रूप में ही दिख सकते हैं और पहचाने जा सकते हैं । जब उनका प्रकाश उनकी व्यापकता, आत्मा के दिव्य मुख पर चमकती है, तभी और केवल तभी मनुष्य उन्हें समझ पाता है ।
- हम सब व्यापारी बन गए हैं । हम प्राणों का व्यापार करते हैं, गुणों का व्यापार करते हैं, धर्म का व्यापार करते हैं । आश्चर्य है कि हम प्रेम का भी व्यापार करते हैं ।
- जब एक व्यक्ति खड़ा होकर यह कहता है कि मेरा धर्म ही सच्चा है, मेरा पैगम्बर ही सच्चा है, तो वह सत्य नहीं बोलता, उसे धर्म का क, ख, ग..
- भी नहीं मालूम । धर्म न प्रतिपादन और खंडन है और न बौद्धिक सहमति ही है । धर्म का अर्थ है-अंतर्तम चेतना में सत्य
- की उपलब्धि ।
- धर्म कल्पना की चीज नहीं है । वह प्रत्यक्ष दर्शन की चीज है । जिसने एक भी महान उगत्मा के दर्शन कर लिए वह अनेक किताबी पंडितों से बढ्कर है ।
- यदि भारतवर्ष मिट गया तो संसार से आध्यात्मिकता लुत्त हो जाएगी, नैतिक परिपूर्णता विलीन हो जाएगी । धर्म के प्रति अनुराग और सहानुभूति विलुत्त हो जाएगी । समस्त आदर्शप्रियता मिट जाएगी और इनके स्थान पर होगा विषयाशक्ति उनौर विलास का जोड़ा एक नर और एक मादा, धन होगा उसका पुरोहित, बलात्कार, धोखेबाजी और प्रतिद्वंद बनेंगे इनके अनुष्ठान और मानवता की होगी बलि ।
- हमारा धर्म है ‘मुझे छुओ मत, मैं पवित्र हूं । ‘ यदि यह एक शताब्दी तक और चलता रहा तो हम सब पागलखाने में होंगे ।
- अगर तुम्हारा अहंकार चला गया है तो किसी और धर्म-पुरलुक की एक पंक्ति भी बांचे बगैर, किसी भी मंदिर में पैर रखे बगैर,, तुमको जहां बैठे हो वहीं मोक्ष प्राप्त हो जाएगा ।
- परोपकार ही धर्म है, परपीड्न ही पाप । शक्ति और पौरुष पुण्य है, कमजोरी और कायरता पाप । स्वतंत्रता पुण्य है, पराधीनता पाप । दूसरों से प्रेम करना पुण्य है, दूसरों से पूणा करना पाप । परमात्मा और उरपने उगप में विश्वास है, संदेह ही पाप है ।
- निस्वार्थता ही धर्म की कसौटी है, जो जितना अधिक निस्वार्थी है, वह उतना ही अधिक आध्यात्मिक और शिव के समीप है ।
चरित्र
- पहले हम स्वयं देवता बनें और फिर दूसरों के देवता बनने में सहायता दें । बनो और बनाओ, बस यही हमारा मंत्र होना चाहिए ।
- विचार या भाव ही मनुष्य को उत्तेजित करते हैं । आदर्श ही लोगों को मृत्यु तक का सामना करने को तैयार करते हैं ।
- यह चरित्र ही है जो विपत्तियों की अभेद दीवारों में से भी मार्ग बना लेता है । आनंद की पूर्ति सौंदर्य में दृष्टिगोचर होती है । उगनंद बाहरी हालात पर नहीं आतरिक अवस्था पर निर्भर है ।
- सर्वोच्च को ही खोजो, सदा सर्वोच्च को ही खोजो, क्योंकि सर्वोच्च में ही शाश्वत उगनंद है । सभ्यता चरित्र का वह रूप है जो मनुष्य को कर्तव्य का मार्ग दिखाती है ।
- न तो धन का मूल्य है न ही नाम और यश का । अगर कोई दृढ़ चरित्र है तो उसे कोई अमर होने से नहीं रोक सकता । ?
- कर्म करना बहुत अच्छा है पर वह विचारों से उगता । इसलिए अपने मस्तिष्क को उच्च विचारों और उच्चतम आदर्शों से भर लो, उन्हें रात-दिन उरपने सामने रखो, उन्हीं में से महान कार्यों का जन्म होगा ।
- उग्ब तुम्हें महावीर के जीवन को अपना आदर्श बनाना होगा । देखो, वे कैसे श्रीराम चंद्र की उगज्ञा मात्र से विशाल सागर को लांघ गए । उन्हें जीवन या मृत्यु से कोई नाता न था । वे संपूर्ण रूप से इंद्रयजित थे और उनकी प्रतिभा अद्भुत थी । उग्ब तुम्हें अपना जीवन दारच-भक्ति के उस महान उगदर्श पर खड़ा करना होगा, उसके माध्यम से क्रमश: उग्न्य सारे उगदर्श जीवन में प्रकाशित होंगे । गुरु की आज्ञा का सर्वतोभावेन पालन और अटूट ब्रह्मचर्य, बस यही सफलता का रहस्य है । हनुमान एक और जिस प्रकार सेवादर्श के ??
- प्रतीक हैं, उसी प्रकार दूसरी ओर सिंहविक्रम के भी प्रतीक जि, सारा संसार उनके सम्मुख श्रद्धा और भय से सिर झुकाता है ।
- दृढ़ संकल्प कर लो कि तुम किसी दूसरे को नहीं कोसोगे । किसी दूसरे को दोष नहीं दोगे, पर तुम मनुष्य बन जाउगे, खड़े होउगे उरौर उरपने उरापको ही
- दोष दो । स्वयं की और ध्यान ही न दो, यह जीवन का पहला पाठ है, यही सच्ची बात है ।
युवकों के लिए संदेश
- मेरे साहसी युवको! यह विश्वास रखो कि तुम्हीं सबकुछ हो, महान कार्य करने के लिए इस धरती पर उगए हो । गीदड़-पुड्कियों से भयभीत न हो जाना, चाहे वज भी गिरे तो भी निडर हो खड़े हो जाना और कार्य में लग जाना ।
- यदि हमें भारत का पुनरुत्थान करना है तो हमें उतम जनता के लिए काम करना होगा ।
- जो दूसरों के लिए जीते है वे ही केवल जिंदा है, बाकी सब मृत समान हैं ।
- आज हमारे देश को जिस चीज की आवश्यकता है, वह है लोहे की मांसपेशियां और फौलाद के स्नायु-प्रचंड इच्छाशक्ति, जिसका अवरोध दुनिया की कोई ताकत न कर सके, जो जगत के गुत्त तथ्यों और रहस्यों को भेद सके और जिस उपाय से भी हो अपने लक्ष्य की पूर्ति करने में समर्थ हो, फिर चाहे समुद्र तल में ही क्यों न जाना पड़े, साक्षात मृत्यु का ही सामना क्यों न करना पड़े ।
- तुम्हारे देश को वीरों की आवश्यकता है अत: वीर बनो । पर्वत की भांति अडिग रहो । ‘सत्यमेव जयते’ सत्य की ही सदैव विजय होती है । भारत चाहता है एक नई विद्युत शक्ति, जो राष्ट्र की नस-नस में नया जीवन संचार कर
- दे । साहसी बनो, मनुष्य तो एक बार ही मरता है । मेरे शिष्य कायर न हों । मुझे कायरता से पूणा है । गंभीर-से-गंभीर कठिनाइयों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाए रखो, क्षुद्र अबोध जीव तुम्हारे विरुद्ध .क्या कहते हैं, इसकी तनिक भी करो उपेक्षा! उपेक्षा! उपेक्षा! रखो, गंखें दो है, परवाह न ।
- ध्यान उ कान भी दो हैं पर मुंह केवल एक है । पर्वतकाय विश्व-बाधाओं में से होते हुए ही सारे.कार्य संपन्न होते हैं । अपना पुरुषार्थ प्रकट करो । काम और कांचन में जकड़े हुए मोहान्ध व्यक्ति उपेक्षा की दृष्टि से देखे जाने योग्य हैं ।
- खड़े हो, साहसी बनो, शक्तिमान होउगे । सारा उत्तरदायित्व उरपने कंधों पर लो और जान लो कि तुम्हीं अपने भाग्य के विधाता हो । तुम्हें जो कुछ बल और सहायता चाहिए, सब तुम्हारे ही भीतर है । अतएव अपना भविष्य तुम स्वयं गड़ो ।
- उठो और काम में लग जाओ । यह जीवन भला है कितने दिन, जब तुम इस दुनिया में उगए हो, तो कुछ चिन्ह छोड़ जाओ । अन्यथा तुममें और वृक्ष उगदि में अंतर ही क्या
- ये भी तो पैदा होते हैं, परिणाम को प्राप्त होते हैं और मर जाते हैं ।
- ३ नवयुवको! मैं गरीबों, मूर्खों और उत्पीड़ितों के लिए इस सहानुभूति उरौर अथक प्रयत्न को’ थाती के तौर पर तुम्हें सौंपता हूं । जाओ इसी क्षण जाओ उस पार्थसारथि के मंदिर में, जो गोकुल के दीन-दरिद्र खालों के सखा थे, जो गुहक चंडाल को भी गले लगाने से नहीं हिचके, जिन्होंने अपने बुद्ध-अवतार में अमीरों का न्यौता स्वीकार न कर एक वीरांगना का न्यौता स्वीकार किया और उसे उबारा, जाओ उनके पास जाओ, जाकर साष्टांग प्रणाम करो और उनके समुख एक महाबलि दो, अपने जीवन की बलि दो, उन दीन पतित और उत्पीड़ित के लिए जिनके लिए भगवान युग-युग में अवतार लिया करते हैं और जिन्हें वे सबसे अधिक प्यार करते हैं ।
- तुम रोते क्यों हो बंधु, तुम्हीं में तो सारी शक्ति निहित । अपनी सर्वशक्तिमान प्रकृति को उद्बुद्ध करो, देखोगे यह सारी दुनिया तुम्हारे पैरों पर लोटने लगेगी । एकमात्र आत्मा ही शासन करती है, जड़पदार्थ क्या शासन करेगा । अपने को शरीर से अभिन्न समझने वाले मूर्ख व्यक्ति ही करुण स्वर में चिल्लाते हैं, हम दुर्बल हैं, हम दुर्बल हैं । उगज देश को आवश्यकता है, साहस और वैज्ञानिक प्रतिभा की । हम चाहते हैं प्रबल साहस, प्रचंड शक्ति और अदम्य उत्साह । स्त्रियोचित व्यवहार से काम नहीं बनेगा । भाग्य-लक्ष्मी उसी के पास आती है जो पुरुषार्थी है जिसके सिंह का हृदय है । पीछे देखने का काम ही नहीं । आगे! आगे! बड़े चलो! हम चाहते हैं अनंत शक्ति, असीम उत्साह, अनंत साहस और अनंत धैर्य । तभी महान कार्य संपन्न होंगे ।
- नीति परायण, साहसी व पुन के पक्के बनो, तुम्हारे नैतिक चरित्र में कहीं धब्बा न हो, मृत्यु से भी मुठभेड़ लेने की हिम्मत रखो । धर्म के सिद्धांतों के बारे में माथा-पच्ची करने की कोई आवश्यकता नहीं, कायर ही पाप कर्म करते हैं, साहसी कभी नहीं । हर एक के प्रति प्रेम की भावना लाने का प्रयत्न करो ।
- साहसी होओ! मेरे बच्चों को सबसे पहले साहसी होना चाहिए । किसी भी दशा में सत्य के साथ थोड़ा-सा भी समझौता न करो । उच्चतम सत्यों का प्रचार करो, उन्हें दुनिया-भर में बिखेर दो । मान खो बैठने अथवा अप्रिय संघर्ष उत्पन्न हो जाने का भय मत करो । यह निश्चित जान लो कि यदि तुम नाना प्रकार के प्रलोभनों के बावजूद सत्य से लगे रह सको, तो तुममें ऐसी दैवी शक्ति आ जाएगी, जिसके समक्ष लोग तुमसे वे बातें कहते डरेंगे, जिन्हें तुम सत्य नहीं समझते । यदि तुम लगातार चौदह वर्ष तक अखंड रूप से कठोरता के साथ सत्य का पालन कर सको, तो तुम जो कुछ कहोगे, लोग उसी पर पक्का विश्वास कर लेंगे ।
- अगर हम सब वीर वृत्ति को धारण कर, दृढ़ अंतःकरण के साथ पूर्ण प्रामाणिकता को अपनाकर कर्मक्षेत्र .में कूद पड़े तो पच्चीस साल के अंदर सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा और ऐसा कोई प्रश्न शेष न रह जाएगा जिसके लिए जूझते रहना पड़े, तब संपूर्ण भारत फिर एक बार आर्यत्व से परिपूर्ण हो जाएगा ।
- जब तक किसी देश के नागरिकों में राष्ट्र के लिए बलिदान होने की प्रेरणा नहीं होगी तब तक उस देश का विकास नहीं होगा ।
आत्मिक बल
- बल ही एकमात्र आवश्यक वस्तु है । बल ही भवरोग की एकमात्र दवा है । धनिकों द्वारा रौंदे जाने वाले निर्धनों के लिए बल ही एकमात्र दवा है । विद्वानों द्वारा दबाए जाने वाले अज्ञजानों के लिए बल ही एकमात्र दवा है और उनन्य पापियों द्वारा सताए जाने वाले अज्ञाजनों के लिए भी वही एकमात्र दवा है ।
- हम तोते के समान कई बातें बोल जाते हैं, पर उनमें से एक को भी कार्य में नहीं उतारते । केवल मुख से कह देना और आचरण में न लाना, यह हमारा एक स्वभाव ही बन गया है । इसका क्या कारण है
- शारीरिक दुर्बलता । इस प्रकार का दुर्बल मस्तिष्क कुछ भी नहीं कर सकता । हमें उसको शक्तिशाली बनाना होगा । सबसे पहले हमारे नवयुवकों को बली होना चाहिए । धर्म फिर बाद में उगएगा । तुम गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के द्वारा स्वर्ग से अधिक समीप पहुंच सकोगे । जब तुम्हारी मांसपेशियां कुछ मजबूत हो जाएंगी तब तुम गीता को अधिक अच्छा समझ सकोगे । जब तुम्हारे खून में कुछ जोर आ जाएगा तब तुम कृष्ण की महान प्रतिभा और प्रचंड शक्ति को और भी अच्छी तरह समझ सकोगे । जब तुम उरपने पैरों पर दृढ़ता के साथ खड़े रह सकोगे और अपने को मनुष्य अनुभव करोगे, तब उपनिषदों और उगत्मा की महत्ता को और अच्छी तरह समझ सकोगे ।
- सारे समय अपने को रोगी सोचते रहना रोगमुक्ति का उपाय नहीं है, उसके लिए दवा की उगवश्यकता है । दुर्बलता की बात मन में लाने से कोई लाभ नहीं होता । बल दो शक्ति दो और सारे समय दुर्बलता की बात सोचते रहने से बल नहीं उगता । दुर्बलता पर सोच करते रहना दुर्बलता दूर करने का उपाय नहीं । उपाय है, बल की बात मन में लाना ।
- दुखभोग का एकमात्र कारण है दुर्बलता । हम दुखी हो जाते हैं, क्योंकि हम दुर्बल हैं, हम झूठ बोलते हैं, चोरी करते हैं, हत्या करते हैं, तरह-तरह के अपराध करते हैं, क्यों इसलिए कि हम दुर्बल हैं । हम दुख भोगते हैं, क्योंकि हम दुर्वल हैं । हम मर जाते हैं, क्योंकि हम दुर्बल हैं । जहां हमें दुर्बल कर देने वाली कोई चीज नहीं है, वहां न मृत्यु है न दुख ।
- बल ही जीवन है, दुर्बलता मृत्यु है । बल ही परम उगनंद है, शाश्वत और अमर जीवन है । दुर्बलता निरंतर भारस्वरूप है, दुखरचरूप है । दुर्वलता ही मृत्यु है । बचपन से ही तुम्हारे मस्तिष्क में रचनात्मक, बलप्रद और सहायक विचार प्रवेश करें ।
आत्मविश्वास
- यह संसार कायरों के लिए नहीं है । भागने का प्रयत्न मत करो । सफलता और असफलता की परवाह मत करो ।
- जिसे अपने पर विश्वास नहीं, उसे भगवान पर विश्वास कभी नहीं हो सकता । सब दुर्बलता और सब बंधन कल्पना हैं । उससे एक शब्द कह दो और वह लापता हो जाएगी । निर्बल मत बनो । शक्तिशाली बनो कोई भय नहीं । सत्य जैसा है, उसका सामना करो ।
- आत्मविश्वास वीरता का रहस्य है । पवित्र और दृढ़-इच्छा सर्वशक्तिमान है, जबकि कमजोरी ही मृत्यु है, इसलिए जो व्यक्ति निश्चय कर सकता है, उसके लिए कुछ असंभव नहीं ।
- जो अपने आप में विश्वास नहीं करता है वह नास्तिक है । प्राचीन धर्मों ने कहा है वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता । नया धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता । विश्वास, विश्वास, अपने आपमें विश्वास, ईश्वर में विश्वास, यही महानता का रहस्य है । यदि तुम पुराण के तैंतीस करोड़ देवताओं और विदेशियों द्वारा बतलाए हुए सब देवताओं में भी विश्वास करते हो पर यदि अपने आपमें विश्वास नहीं करते हो तो तुम्हारी मुक्ति नहीं हो सकती । उरपने आप पर विश्वास करो, उस पर स्थिर रहो और शक्तिशाली बनो ।
- हम जितना ध्यान साध्य पर देते हैं, उससे अधिक साधना पर दें तो सफलता अवश्य मिलेगी । साधन जब तक उपयुक्त ठीक तथा बलशाली न होगा, तब तक ठीक परिणाम मिलना असंभव है ।
- सफलता प्राप्त करने के लिए जबरदस्त सतत् प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखो प्रयत्नशील व्यक्ति कहता है, ‘मैं समुद्र पी जाऊंगा, मेरी इच्छा से पर्वत के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे । इस प्रकार की शक्ति और इच्छा रखो । कड़ा परिश्रम करो, तुम अपने उद्देश्य को निश्चित पा जाओगे । यह एक बड़ी सच्चाई है, शक्ति ही जीवन और कमजोरी ही मृत्यु है । शक्ति परम सुख है, अजर-अमर जीवन है, कमजोरी कभी न हटने वाला बोझा और यंत्रणा है, कमजोरी ही मृत्यु है ।
- आत्मविश्वास वीरता का रहस्य है ।
- आत्म-विश्वास जैसा कोई मित्र नहीं होता । आत्म-विश्वास ही भावी उन्नति की प्रथम सीढ़ी है ।
- क्या तुम पर्वतकाय विन-बाधाओं को लांघकर कार्य करने को तैयार हो
- यदि सारी दुनिया हाथ में नंगी तलवार लेकर तुम्हारे विरोध में खड़ी हो जाए, तो भी क्या तुम जिसे सत्य समझते हो, उसे पूरा करने का साहस करोगे
- यदि तुम्हारे पत्नी-पुत्र तुम्हारे प्रतिकूल हो जाएं, भाग्य लक्ष्मी तुमसे रूठकर चली जाए, नाम कीर्ति भी तुम्हारा साथ छोड़ दे, तो भी तुम उस सत्य से अलग तो न होगे
- फिर भी उससे लगे रहकर अपने लक्ष्य की और सतत् बढ़ते रहोगे न
- हमें अपने में आशावादी प्रवृत्ति उत्पन्न करनी होगी और प्रत्येक वस्तु में स्थित शुभ को ही देखने का प्रयत्न करना होगा । यदि हम घुटनों पर सिर टेककर अपनी शारीरिक और मानसिक अपूर्णताओं पर रोते रहें तो उससे क्या होगा
- वास्तव में विपरीत परिस्थितियों को दबा देने के लिए जो वीरतापूर्ण प्रयत्न है वही एकमात्र ऐसा है, जो हमारी आत्मा को ऊपर उठाता जाता है ।
- अपनी गरीबी के विचार दूर फेंक दो । भला तुम किन बातों में गरीब हो
- क्या तुम इसलिए सोचा करते हो कि तुम्हारे पास गाड़ी आदि नहीं हैं अथवा नौकर नहीं हैं, जो तुम्हारे पुकारते ही दौड़कर हाजिर हो जाएं
- उससे क्या
- तुम क्या जानो कि यदि रपने बहाते तुम उ हृदय का खून हुए दूसरों के लिए दिन-रात कार्य करते रहो, तो जीवन में ऐसा कुछ भी न रह जाएगा कि तुम न कर सको ।
- ऊंचे स्थान पर खड़े हो, हाथ में दो पैसे लेकर यह न कहो, ‘ऐ भिखारी यह ले’, वरन् झूलत होओ कि वह बेचारा गरीब वहां है जिसे दान देकर तुम अपनी सहायता करने का अवसर पाते हो (सौभाग्य दान लेने वाले का नहीं, वरन् दान देने वाले का है ।
- जिस दिव्य शक्ति के प्रथम स्पर्श से ही संपूर्ण विश्व में सब और महातरंगें उठने लगी हैं, उसकी पूर्ण अभिव्यक्ति की जरा अपने मस्तिष्क में कल्याणमयों कल्पना करो और वृथा संदेह-दुर्बलता और ईर्ष्या द्वेष का परित्याग कर, इस महायुग चक्र प्रवर्तन में सहायक बनो ।
- उसे मनुष्यो! हम तुम्हें मृत अतीत की उपासना से हटाकर वर्तमान की पूजा के लिए आमंत्रित कर रहे हैं । बीती बातों का रोना रोने की उपेक्षा हम तुम्हें वर्तमान की गतिविधियों में लगने का उगह्वान कर रहे हैं । भूली-बिसरी एवं मग्न पगडंडियों की खोज में कार्य-शक्ति नष्ट करने के बजाय हम तुम्हें पुकार रहे हैं, नवनिर्मित विशाल पथ पर चलने के लिए, जो कि तुम्हारे सम्मुख फैला हुउग है । जो बुद्धिमान हैं, वे इस बात को समझ लें ।
- संसार का इतिहास उन गिने-चुने महाजनों का इतिहास है जिनमें आत्म-विश्वास था । यह आत्म-विश्वास मनुष्य के अंदरूनी देवत्व को ललकारकर प्रकट कर देता है । तब वह मनुष्य कुछ भी कर सकता है, सर्व समर्थ हो जाता है । जिस क्षण कोई मनुष्य या राष्ट्र आत्म-विश्वास खो देता है, उसी क्षण उसकी मृत्यु हो जाती है ।
स्त्रियां
- नारियों का दमन और जाति बंधनों द्वारा गरीबों को कुचलना भारत की दो बड़ी बुराइयां हैं ।
- जब तक नारियों का उत्थान तथा जनता को जगाने का काम नहीं किया जाएगा तब तक राष्ट्र-कल्याण की बात करना व्यर्थ होगा ।
- स्त्रियों की पूजा करके सभी जातियां बड़ी बनी हैं । जिस देश में, जिस जाति में स्त्रियों की पूजा नहीं, वह देश, वह जाति न कभी बड़ी बन सकी और न कभी बन ही सकेगी ।
- स्त्रियां जब शिक्षित होंगी, तभी तो उनकी संतानों द्वारा देश का मुख उज्ज्वल होगा ।
- स्त्रियों की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई मार्ग नहीं है । किसी पक्षी का केवल एक पंख के सहारे उड़ना नितांत असंभव है ।
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