Sai Baba Quotes in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, साईं बाबा के अनमोल विचार हिन्दी में. साईं बाबा के उपदेश और अनमोल वचन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं.
Sai Baba Quotes (साईं बाबा के अनमोल वचन)
Contents
- मन की मलिनता दूर करने के लिए नीति रूपी साबुन और निष्ठा रूपी पानी अर्थात सिद्धांत और व्यवहार दोनों की आवश्यकता होती है ।
- शांति और सुख बाह्य वस्तुएं नहीं हैं । वे तुम्हारे अंदर ही निवास करती हैं । सिर्फ उन्हें पहचानने की बात
- सांसारिक चीजों से मुक्ति की तीव्र इच्छा होनी चाहिए ।
- परमात्मा की कृपा का होना भी अनिवार्य है । वेद, शास्त्र अथवा कोई अन्य ग्रंथ पढ़ने और उनका गहरा ज्ञान प्राप्त करने मात्र से आत्म-ज्ञान संभव नहीं ।
- जो गृहस्थ व्यक्ति अपने नित्य कर्तव्यों का पालन करने में लीन हैं, वे आध्यात्मिक दृष्टि से बनावटी त्याग और योग के नमूनों से कहीं अधिक अच्छे
- मोक्ष स्वर्ग, कैलाश या बैकुंठ नहीं है, मोक्ष संपूर्ण संज्ञा है, शुद्ध व्यक्तित्व है, शुद्ध चैतन्य है । इसे प्राप्त करना ही मुक्ति है । यही मानव जीवन का सर्वोच्च है, बाकी आदर्श थोथे हैं. सेवा करने वाले हाथ स्तुति करने वाले होंठों से अधिक पवित्र हैं ।
- धर्म से अर्थ उत्पन्न होता है । धर्म से सुख होता है । धर्म से मनुष्य सब-कुछ प्राप्त करता है । धर्म जगत का सार है ।
- आत्म-निवेदन का अर्थ उरपने आपको प्रभु के हवाले करना है । आत्म-निवेदन में संपूर्ण अहंकार का नाश करके जीवन के भाव का लोप करना पड़ता है । यह अपना सिर काटकर प्रभु को चढ़ाने के समान है ।
- हानि-लाभ, जीवन-मरण, जस-उपजस विधि-हाथ । जो जीवन भगवान का प्रसाद मानकर इस भाव से जीता है, वही आत्म-निवेदन भक्ति का साकार है रूप ।
- लोक तथा परलोक संबंधी किसी भी चीज के प्रति आसक्ति नहीं होनी चाहिए ।
- हमारी इंद्रियों को बाहरी चीजों से रमण करने की आदत पड़ चुकी है । हमें इनकी वाहर भागने की प्रवृत्ति पूरी तरह रोकनी होगी और इन्हें अपने अंदर स्थित आत्मा से जोड़ना होगा ।
- जब तक व्यक्ति उरपने मन को विकारों और बुराइयों में प्रवेश करने से रोकने की शक्ति प्राप्त नहीं कर लेता, वह ज्ञान भले ही प्राप्त कर ले, पर आत्म-ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता ।
- आध्यात्मिक मार्ग-दर्शन के लिए गुरु की आवश्यकता होती है और गुरु उसी व्यक्ति को बनाना चाहिए, जिसने आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, अन्यथा सब करे-धरे पर पानी फिर जाएगा ।
- संसार के सभी आनंद क्षणिक और अस्थायी हैं, जबकि आध्यात्मिक आनंद कल्याणकारी है । अत: संसार के सुखों से अपने आपको पूरी तरह हटाकर आध्यात्मिक आनंद में रमण करना चाहिए ।
- मन और इंद्रियों को सांसारिक सुखों से विरक्त किए बिना उगध्यात्मिक ज्ञान में प्रवेश संभव ही नहीं
- आत्म-साक्षात्कार के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति केवल सत्य का आचरण करे और ब्रह्मचर्य का पालन करे ।
- अपने मन को पूरी तरह पवित्र रखा जाए और फल की इच्छा का पूरी तरह त्याग करते हुए अपने कर्तव्यों का पालन किया जाए । ऐसा करने से मन शुद्ध होता है । शुद्ध मन से आध्यात्मिक ज्ञान स्वयं रफूर्त होता है और आसक्ति अपने आप समाप्त होने लगती है, बस यही आत्मसाक्षात्कार का द्वार खुलता है.
भक्ति
- भक्ति और ज्ञान-मार्ग में कोई विरोध या मतभेद नहीं है । ये दोनों मार्ग एक-दूसरे की सहायता करते हैं और एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं । इन दोनों मार्गों में मूलभूत तत्त्व एकत्व है, प्रभु को जानना, प्रभु से स्नेह करना, इसलिए भक्ति व ज्ञान मार्ग का अर्थ एक ही है ।
- गुरु में पूर्ण विश्वास करो यही साधना है, गुरु में सभी देवता निवास करते हैं ।
- मन प्रभु की ओर पूछा हो, सारी क्रियाएं, विचार और भावनाएं प्रभु को अर्पित कर दी हों और अपने ‘मैं’ का विलय कर दिया हो तो प्रभु निश्चित रूप से भक्त की हर अवस्था में रक्षा करते हैं ।
- गुरु के चरणों में संशयहीन होकर, शुद्ध व सरल होकर अगर कोई पूर्ण समर्पण कर देता है तो उसे अन्य किसी साधना की जरूरत नहीं पड़ती । ऐसे व्यक्तियों को गुरु सिखाते नहीं हैं, वे शक्तिपात करते हैं । इस शक्तिपात से हमारी आत्मा निखर उठती है और हम जीवन के जंजाल से छूट जाते हैं ।
- कर्म ज्ञान, भोग सभी मार्ग ईश प्राप्ति के उत्तम मार्ग है । भक्ति मार्ग सबसे सहज है, इसलिए बाबा भक्ति मार्ग पर जोर देते थे । नवधा भक्ति से जिसमें पूर्ण समर्पण के साथ एक ही भक्ति होती है, संसार तर जाता है ।
वैराग्य
- संसार में रहो पर संसार को अपने अंदर मत रहने दो । यही विवेक का लक्षण है.
- सारी वासनाओं को त्याग देना चाहिए, इच्छारहित बन जाना चाहिए, हृदय में समभाव स्थापित होना चाहिए । फिर आदमी मुमुक्षु बन जाता है तो मुक्ति मिल जाती है ।
- अहंकार की समाप्ति और मनोनाश, अपने व्यक्तित्व के चैतन्य को उभारता है और व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त होता है ।
- मन में जब कभी सुख-दुख की कल्पना उभरे, उसका विरोध करो । उसे घर मत करने दो । वह शुद्ध भ्रांति है ।
- आदमी अपनी इच्छा पर काबू पाकर मन को प्रभु पर एकाग्र करता है तो मन की समाधि अवस्था प्रकट होती है गैर प्रभु मिल जाते हैं ।
नवधा भक्ति
- भागवत पुराण में अपरा भक्ति के नव अंग दिए गए हैं, जिसे नवधा भक्ति कहते हैं । इस नवधा भक्ति के संबंध में बाबा कहते हैं ।
- श्रवण : इसका सहज उर्ग्थ सुनने से लिया जाता है । धार्मिक ग्रंथों का पाठ, श्रवण, गीत-संगीत तथा संकीर्तन में भाग लेकर इसका लाभ लिया जा सकता
- कीर्तन : इसमें श्रवण की तरह भत्प्त अकर्ता न होकर स्वयं ईश्वर की प्रार्थना में लीन हो जाता है, परमसत्ता की प्रार्थना में रत रहता है ।
- स्मरण : प्रभु के नाम, रूप, गुण, प्रभाव, लीला तत्त्व और रहस्य की अमृत कथाओं में मुग्ध होना और किसी भी एकांत तथा पवित्र स्थान में बैठकर अथवा किसी भी मुद्रा में शुद्ध भाव से भगवान के स्वरूप का स्मरण करना ।
- पादसेवन : साध्य के किसी भी दिव्य मंगलमय स्वरूप की मूर्ति अथवा मानस चित्र के चरणों में श्रद्धा पूर्वक दर्शन, चिंतन, मनन, पूजन और सेवन करते वक्त भगवत प्रेम में तन्मय हो जाना ही पादसेवन है ।
- अर्चन : इसका अर्थ है ईश्वर की पूजा-अर्चना । ईश्वर के किसी भी प्रिय स्वरूप की मूर्ति लेकर अथवा मन में रखकर संपूर्ण चराचर में ईश्वर को स्थित समझकर, सबका आदर करते हुए, नाना प्रकार से भला-भक्तिपूर्वक भगवान का पूजन करना और उसके प्रेम में निमग्न होना ही अर्चन भक्ति है ।
- वंदन : भगवान के किसी स्वरूप को श्रद्धा से प्रणाम करना, उसे संसार का कारक मानते हुए मन-कर्म-वचन से नमन करना वंदन भक्ति है ।
- सरव्य : ईश्वर की महिमा को जानते हुए, मित्र भाव से उन पर अनन्य प्रेम करना और प्रसन्न रहना ही सरव्य भक्ति है ।
ज्ञान
- ज्ञान की सर्वोच्च प्राप्ति का अर्थ है, एक उरात्मा के माध्यम से सारी सृष्टि को समझ लेना ।
- ज्ञान में दो बातों की आवश्यकता होती है, एक तो मानसिक शक्ति और एक लक्ष्य पर पूर्ण एकाग्र होना ।
- संपूर्ण सत्य ही तो ज्ञानी का एकमात्र लक्ष्य है और सत्य का निर्माण नहीं होता है, न ही वह बदलता है और वह चिरंतन काल के लिए उरपने नित्य स्वरूप में, बिना कोई भी फेरबदल के सदैव उपस्थित रहता है और प्राप्त करने के लिए समरत अज्ञान का लोप होना आवश्यक है ।
- सत्य, ज्ञान प्राप्त व्यक्ति अपनी नियति नियंत्रित करने की शक्ति प्राप्त कर लेता है ।
- ज्ञान आत्मोद्वार का वह मार्ग है, जिसका केवल बौद्धिक विवाद करने से कोई तात्पर्य नहीं निकलता ।
- ज्ञान मार्ग का उरर्थ व्यक्ति के उगध्यात्मिक अनुभवों से प्राप्त उच्चतम ज्ञान है । ° सही और गलत का निर्णय लेना उगवश्यक है, इसलिए आप वही बन सकते हैं जो उगप जानते हैं और इसका कर्म के सिद्धांत के साथ घनिष्ठ संबंध है ।
- चरित्र शक्ति है । ज्ञान व्यक्ति के चरित्र को और अच्छा बनाता है ।
ब्रह्म
- ब्रह्म निराकार, अंतरिक्षीय, कभी न बदलने वाला तत्त्व है और इससे ही हर वस्तु का निर्माण हुउग है ।
- चरित्रहीन शिक्षा, मानवतारहित विज्ञान और नैतिकताहीन व्यापार लाभकारी तो होते हैं, लेकिन वे खतरनाक भी सबसे अधिक होते हैं ।
- काम-वासना, मानव की महानतम शत्रु है और इस पर काबू नहीं पाया तो क्रोध विकराल रूप धारण कर लेता है और बाकी अन्य सभी साथियों लोभ मोह, मद, मत्सर को बुलाकर आपके जीवन को नष्ट कर देता है और आध्यात्मिकता की उगेर बढ़ने वाले सारे रास्ते बंद हो जाते हैं ।
- जह्म वास्तव में सत्, चित्त, आनंद है और वह अखंड शुद्ध है तथा सारे अस्तित्व को प्रभावित करता है ।
- ब्रह्म सर्व है और इसकी समाप्ति संभव नहीं है ।
- षड्रिपु (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर सभी) एक भीषण भ्रांति हैं । वे असत्य को सत्य का जामा पहनाते हैं ।
माया
- माया और चैतन्य को प्रकृति और पुरुष भी कहा जाता है । चैतन्य तो पवित्र गुफा है और जो गुफा के भीतर जाता है वह लौटता नहीं, बल्कि स्वयं गुफा ही बन जाता है । माया सारे असत्य भेदों का निर्माण करती है । जब तक आप माया में फंसे हैं, सत्य से परिचय नहीं होता ।
- वास्तव में तीन चीजें पाना अत्यंत विकट है और वे केवल प्रभु की कृपा से ही संभव हैं-मानव जन्म, मोक्ष की तीव्र इच्छा और ख्यात नाम, सच्चे संत के साथ सत्संग ।
- मानव हृदय में पूणा, लोभ और द्वेष ऐसी विषैली घास है जो प्रेमरूपी पौधे को नष्ट कर देती है ।
- धन की जीवन में जरूरत है, जैसे पित्त की स्वारस्य के लिए, पर धन के प्रभाव में मदहोश नहीं होना चाहिए ।
- माया उरात्मा को उगवरण में रखती है और विक्षेप निर्माण करती है । अपने उगपको शुद्ध चैतन्य मानो और माया की अपवित्रता को तिलांजलि दो । तब जो बचता है, वह केवल सत्य है, उसकी उपासना करो ।
कर्म
- सुखी होना है तो अपने कर्म को निष्काम भाव से करते हुए हमें सबकुछ प्रभु पर रचेच्छा से, भक्ति से छोड़ देना चाहिए ।
- अगर कोई मेरा नाम लेकर ध्यान करता है, नाम जप करता है, मेरी लीलाओं को पड़ता है, गुनगुनाता है और मुझमें रम जाता है तो मैं उसके बुरे कर्मों का नाश करता हूं और सदैव उसके साथ रहता हूं ।
- व्यर्थ समय जाया न करो, आलसी मत बनो, काम करो, प्रभु का नाम लो, शास्त्रों का वाचन करो ।
- कर्म से ही मनुष्य का भाग्य बनता है, इसे जनसाधारण व भक्तों को समझाना ।
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