Poems On Rose Flower in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, गुलाब के फूल पर हिन्दी कविताएँ. हमने आपके लिए अलग-अलग कवियों द्वारा लिखी गुलाब के फूल पर कविताओं की collection दी है.
Poems On Rose Flower in Hindi – गुलाब के फूल पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Poems On Rose Flower in Hindi – गुलाब के फूल पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब / हरिवंशराय बच्चन
- 1.2 गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या क्या है / राहत इन्दौरी
- 1.3 खुशबू वाले दिन गुलाब के / राजकुमारी रश्मि
- 1.4 काला गुलाब / हरकीरत हीर
- 1.5 दूब, गुलाब, तितली और मैं / राजकिशोर राजन
- 1.6 गंध में उड़ रहा गुलाब / केदारनाथ अग्रवाल
- 1.7 प्रेम वाले लाल गुलाब / शर्मिष्ठा पाण्डेय
- 1.8 लाल गुलाब के लिए / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
- 1.9 आमीन, गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आये / भवानीप्रसाद मिश्र
- 1.10 लड़की और गुलाब के फूल / महेश वर्मा
- 1.11 Related Posts:
कविताएँ नीचे एक-एक करके, उनके कविओं के नाम के साथ दी गयीं हैं.
ड्राइंग रूम में मरता हुआ गुलाब / हरिवंशराय बच्चन
गुलाब
तू बदरंग हो गया है
बदरूप हो गया है
झुक गया है
तेरा मुंह चुचुक गया है
तू चुक गया है ।
ऐसा तुझे देख कर
मेरा मन डरता है
फूल इतना डरावाना हो कर मरता है!
खुशनुमा गुलदस्ते में
सजे हुए कमरे में
तू जब
ऋतु-राज राजदूत बन आया था
कितना मन भाया था-
रंग-रूप, रस-गंध टटका
क्षण भर को
पंखुरी की परतो में
जैसे हो अमरत्व अटका!
कृत्रिमता देती है कितना बडा झटका!
तू आसमान के नीचे सोता
तो ओस से मुंह धोता
हवा के झोंके से झरता
पंखुरी पंखुरी बिखरता
धरती पर संवरता
प्रकृति में भी है सुंदरता
गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या क्या है / राहत इन्दौरी
गुलाब ख़्वाब दवा ज़हर जाम क्या-क्या है
मैं आ गया हूँ बता इन्तज़ाम क्या-क्या है
फक़ीर शेख कलन्दर इमाम क्या-क्या है
तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है
अमीर-ए-शहर के कुछ कारोबार याद आए
मैँ रात सोच रहा था हराम क्या-क्या है
खुशबू वाले दिन गुलाब के / राजकुमारी रश्मि
खुशबू वाले दिन गुलाब के जाने कहाँ गये ?
तितली वाले पर किताब के जाने कहाँ गये ?
दिन भर नंगे पाँव दौड़ कर गलियों में जाना
माँ का आँचल पकड़ रूठना रो रोकर खाना
पन्ने वे बिखरी किताब के जाने कहाँ गये ?
परियों वाले सपने बूड़ी दादी की लोरी
भैय्या के टूटे गुल्लक से पैसों की चोरी
मुठ्ठी के सारे कसाव वे जाने कहाँ गये ?
राजा जैसा रख रखाव था गुड़ियों से जेवर
सारा घर हँस कर सहता था गुस्से के तेवर
इतने सारे पल लगाव के जाने कहाँ गये ?
काला गुलाब / हरकीरत हीर
औरत ने जब भी
मुहब्बत का गीत लिखा
इक काला गुलाब खिल उठा है उसकी देह पर
रात ज़िस्म के सफ़हों पर लिख देती है
उसके कदमों की दहलीज़
बेशक़ वह किसी ईमारत पर खड़ी होकर
लिखती रहे दर्द भरे नग़में
पर उसके ख़त कभी मुहब्बत में तर्जुमा नहीं होते
इससे पहले कि होंठों पर क़ोई शोख़ हर्फ़ उतर आये
फतवे पढ़ दिये जाते हैं उसकी ज़ुबाँ पर
कभी किसी काले गुलाब को
हाथों में लेकर गौर से देखना
रूहानी धागों से बँधी होंगी उसके संग
कोई मुहब्बत की डोर
दूब, गुलाब, तितली और मैं / राजकिशोर राजन
दूब को देखा मैंने गौर से
और हथेलियों से सहलाता रहा
दूब तो दूब ठहरी
लगी थी पृथ्वी को हरा करने में निःशब्द
सुबह का खिला गुलाब था
उसकी रंगत, कँटीली काया और सब्ज़ पत्तों को देखा
बाँट रहा था पृथ्वी को सुगन्ध निःशब्द
मैंने एक तितली का पीछा किया
वह फूलों से अलग बैठी थी घास पर
वह भी मना रही थी उत्सव रंगपर्व का निःशब्द
दूब, गुलाब, तितली सभी निःशब्द
पृथ्वी को समर्पित
मेरे पास सिर्फ़ शब्द थे और भाव
जिनसे लिखी जा सकती थीं कुछ कविताएँ
उस दिन मुझे भरोसा हुआ
दूब, गुलाब, तितली की तरह
मेरे पास भी कुछ है, देने के लिए पृथ्वी को
और उनकी तरह
मेरी भी जगह है पृथ्वी पर।
गंध में उड़ रहा गुलाब / केदारनाथ अग्रवाल
गंध में
उड़ रहा गुलाब
निर्बंध बने रहने के लिए
प्राण से मिलकर
प्राण बने रहने के लिए
रहस्य की बात रहस्य से कहने के लिए
रचनाकाल: १३-१२-१९६५
प्रेम वाले लाल गुलाब / शर्मिष्ठा पाण्डेय
प्रेम वाले लाल गुलाब मासूम थे
तोड़े गए पर उन्हें पता न था
गुलदानों में असली फूलों का चलन बीत चुका था
तो,यूँ ही उन्हें रख दिया कैक्टस के इक पौधे पर
बेमेल सही कांटे भी चुभन भी
लेकिन, गुलाब तो हैं
प्रेम भी
बस यही बहुत है
लाल गुलाब के लिए / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
मेरा भी प्रिय रंग है लाल
मेरा भी प्रिय फूल है गुलाब।
मैं लाल गुलाब के लिए ही
लड़ता रहा हूँ।
ज़रा आँखें उठाकर तो देखो
सागर से हिमालय तक
हमारा शोकाकुल प्रेम
तक रहा है
अपनी ही माटी की ओर।
आज तलक गुलामी की ज़ंजीरों के घाव
रिस रहे हैं,
सूख नहीं पाए साँसों के ताने-बाने
किसी सरगम में बँध नहीं पाए अब भी;
सर्वनाश की कगार से
यह पृथ्वी हमेशा की तरह
आज भी पीछे नहीं हट पायी।
खेलों की ऊबड़-खाबड़ ज़मीन की तरह
औंधा पड़ा है यह समय
इस पर चलते हुए-
तकलीफ़ होने पर भी
मुझे पता है कि इसके गर्भ में
डाले गए हैं बीज।
हमारे वर्तमान के समस्त अभिमान
जो निराश, आहत और अशान्त हैं
अपनी आँखों से आँसू पोंछकर
मनाएँगे, नवान्न का त्यौहार।
लाल गुलाब को-
अब अपनी आँखों में नहीं
अपने सीने में सँजोकर रखना होगा।
सीने में सहेजकर ही की जा सकेगी उसकी रक्षा।
मेरा प्रिय रंग है लाल
मेरा प्रिय फूल है
गुलाब।
अपने हृदय में साहस बटोकर,
उस लाल गुलाब के लिए ही ठाने हुए हैं हम
अपनी लड़ाई।
आमीन, गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आये / भवानीप्रसाद मिश्र
गुलाब का फूल है
हमारा पढ़ा – लिखा
मैंने उसे काफी
उलट-पुलट कर देखा है
मुझे तो वह ऐसा ही दिखा
सबसे बड़ा सबूत
उसके गुलाब होने का यह है
कि वह गाँव में जाकर
बसने के लिए
तैयार नहीं है
गाँव में उसकी
प्रदर्शनी कौन कराएगा
वहाँ वह अपनी शोभा की
प्रशंसा किससे कराएगा
वह फूलने के बाद
किसी फसल में थोड़े ही
बदल जाता है
मूरख किसान को फूलने के बाद
फसल देने वाला ही तो भाता है
गाँव में इसलिए ठीक है
अलसी और सरसों और
तिली के फूल
जा नहीं सकते वहाँ कदापि
गुलाब और लिली के फूल
बुरा नहीं मानना चाहिए
इस गुलाब – वृत्ति का
गाँव वालों को
क्योंकि वहाँ रहना चाहिए सिर्फ ऐसे हाथ – पाँव वालों को
जो बो सकते हैं
और काट सकते हैं
कुएँ खोद सकते हैं
खाई पाट सकते हैं
और फिर भी चुपचाप
समाजवाद पर भाषण सुनकर
वोट दे सकते हैं
गुलाब के फूल को
और फिर अपना सकते हैं
पूरे जोश के साथ अपनी उसी भूल को
याने जुट जा सकते हैं जो
उगाने में अलसी और
सरसों और तिली के फूल
गुलाब और लिली के फूल
तो भाई यहीं शांतिवन में रहेंगे
बुरा मानने की इसमें
कोई बात नहीं है
बीच – बीच में यह प्रस्ताव कि गुलाब वहाँ जा कर
चिकित्सा करे या पढ़ाये
पेश करते रहने में हर्ज नहीं है
मगर साफ समझ लेना चाहिए
गुलाब का यह फर्ज नहीं है
कि गाँवों में जाकर खिले
अलसी और सरसों वगैरा से हिले-मिले
और खोये अपना आपा
ढँक जाये वहाँ की धूल से
सरापा
और वक्तन बवक्तन
अपनी प्रदर्शनी न कराये
आमीन , गुलाब पर ऐसा वक्त कभी न आये
लड़की और गुलाब के फूल / महेश वर्मा
उन दिनों हमने शायद ही यह शब्द कहा हो — प्यार ! हम कुछ भी कहते टिफ़िन, हवा, दवाई, शहर, पढ़ाई ..सुनाई देता प्यार। प्यार से हम नफ़रत करते, चिढ़ते और एक-दूजे को ख़त्म करते ।
प्यार से हम इतना दुख देते कि मुँह मोड़ लेती सिसकी लेती हवा । हमें वह प्यार सुनाई देता — हवा का सिसकी लेना।
एक अभिशप्त भविष्य का हम चित्र रचते प्यार में और उसे ज़हर बुझे लिफाफों में एक दूसरे को भेंट करते। एक ज़हरीला संगीत जो हवा में गूँजता रहता, हम उसको सबसे पहले सुन लेते — पर हमें वह प्यार सुनाई देता ।
हम जुदाई की मेहंदी रचाते न आने वाली रातों के सपनों में, एक जली हुई सड़क हमारे सामने होती तो कहते थोड़ी दूर चल लेते हैं साथ ।
हमें अलग-अलग समयों में जन्म लेना था कहने से पेश्तर एक बार कह लेना था प्यार ।
गुलाब के फूलों का ज़िक्र और लड़की आने से छूट गए कैसे नामालूम इस अफ़साने में ।
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