Republic Day Poems in Hindi या गणतन्त्र दिवस पर हिन्दी कविताएँ. हमने आपके लिए अलग-अलग कवियों के द्वारा लिखी गयी कविताओं का एक संग्रह इस आर्टिकल में प्रस्तुत किया है जिनका विषय भारतीय गणतंत्रता दिवस पर आधारित है.
Republic Day Poems in Hindi – गणतन्त्र दिवस पर हिन्दी कविताएँ
गणतंत्र दिवस पर लौट-लौट कर जाते अपने / विजेन्द्र
गणतंत्र दिवस पर लौट-लौट कर जाते अपने
घर पक्षी खोले डैने ताज़ा उजले-सीने
से हवा काटते मुड़ते तिर्यक- भर जाते सपने-
गान उदासी के नूतन नील गगन में जीने
की कांक्षा से प्रेरित- ॠतु को भासित करने ।
भरी फ़सल दूधिया- दाने चमके आँखों में
किसान की, उतरा माह पके सब पत्ते झरने
को, फूला गेंदा, गुलाब, स्वर्णफूल वसंत में
धागे बाँधे चौखट में आम के, उल्लास नया
जीवन का- चाहे मार रहा पाला सब को
भीतर से, डूबा है सूरज जो चला गया
छोड़ अकेला, नीला वन डरा रहा है हम को।
काल अँधेरा मुँह फाड़े अब खड़ा सामने
मेरी जिजीविषा को लख वह लगा काँपने ।
अड़तीसवें गणतंत्र दिवस पर / विमल राजस्थानी
मौत आयी तो कहा मैंने-रहम कर, रूक जा
आज गणतंत्र दिवस है, मैं मना लूँ तो चलूँ
धुँए से लाल हुई आँखें बरसना चाहें
माँ के आँचल में लगी आग, बुझा लूँ तो चलूँ
खून तो सिख का है, हिन्दू का लहू पानी है
अरे नादानो ! फकत यह तो बदगुमानी है
एक ही खून है, है एक धरा, एक गगन
दोनों की कटि से बँधी एक ही ‘भवानी’ है
चुने दीवार में दो बच्चे गये थे क्यौं कर
क्यौं बने सिख, ये कहानी मैं सुना लूँ तो चलूँ
देश के टुकड़े जो करने को हैं उनको रोकूँ
नीच जयचन्दों की टोली को डपट कर, टोकूँ
देश के दुश्मनों के पेट में खंजर भोकूँ
वतन को चाहने वालों में जिंदगी फूँकूँ
अपनी मिट्टी का तिलक माथे लगा लूँ तो चलूँ
देश की भक्ति के कुछ गीत बना लूँ तो चलूँ
गणतंत्र दिवस-२०१३ क अवसर पर / जगदीश प्रसाद मण्डल
अजादीक उमंग उमकि
घाटे-बाट छिछिया गेलौं।
सत्-समुद्र पहाड़ बीच
पगे-पग बौआ गेलौं।
भाय यौ, घाटे-बाट…।
तल मोड़ि तम पताल
छुबूधि भऽ छुछिया गेलौं।
अजादीक उत्साह उमंग पाबि
दिन-राति बौआ गेलौं।
भाय यौ, घाटे-बाट…।
प्रशान्त-शान्त लाल-कारी
जोर पकड़ि डिरिया गेलौं।
डिरियाइत पताल-अकासमे
डोह डाबर झाड़ कहेलौं।
अजादीक उत्साह उमकि
घाटे-बाट बौआ गेलौं।
भाय यौ, घाटे-बाट…।
बोन-बोनैया गीत गाबि
बनि शिकारी वीन बजेलौं।
मोड़ि मनुआ तोड़ि जिनगी
दिने-देखार बहकि गेलौं।
बाटे-घाट भोतिया गेलौं
भाय यौ, घाटे-बाट…।
ठाढ़े-ठाढ़ ठिठु ठिठुरि
रौद पाबि लू-लुआ गेलौं।
बनि बरखा बरसाती बनि
तरे-ऊपरे दहा गेलौं।
अजादीक उमंग उमकि
घाटे-बाट बौआ गेलौं।
भाय यौ, घाटे-बाट…।
26 जनवरी (गणतंत्र दिवस) / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
प्राची से झाँक रही ऊषा,
कुंकुम-केशर का थाल लिये।
हैं सजी खड़ी विटपावलियाँ,
सुरभित सुमनों की माल लिये॥
गंगा-यमुना की लहरों में,
है स्वागत का संगीत नया।
गूँजा विहगों के कण्ठों में,
है स्वतन्त्रता का गीत नया॥
प्रहरी नगराज विहँसता है,
गौरव से उन्नत भाल किये।
फहराता दिव्य तिरंगा है,
आदर्श विजय-सन्देश लिये॥
गणतन्त्र-आगमन में सबने,
मिल कर स्वागत की ठानी है।
जड़-चेतन की क्या कहें स्वयं,
कर रही प्रकृति अगवानी है॥
कितने कष्टों के बाद हमें,
यह आज़ादी का हर्ष मिला।
सदियों से पिछड़े भारत को,
अपना खोया उत्कर्ष मिला॥
धरती अपनी नभ है अपना,
अब औरों का अधिकार नहीं।
परतन्त्र बता कर अपमानित,
कर सकता अब संसार नहीं॥
क्या दिये असंख्यों ही हमने,
इसके हित हैं बलिदान नहीं।
फिर अपनी प्यारी सत्ता पर,
क्यों हो हमको अभिमान नहीं॥
पर आज़ादी पाने से ही,
बन गया हमारा काम नहीं।
निज कर्त्तव्यों को भूल अभी,
हम ले सकते विश्राम नहीं॥
प्राणों के बदले मिली जो कि,
करना है उसका त्राण हमें।
जर्जरित राष्ट्र का मिल कर फिर,
करना है नव-निर्माण हमें॥
इसलिये देश के नवयुवको!
आओ कुछ कर दिखलायें हम।
जो पंथ अभी अवशिष्ट उसी,
पर आगे पैर बढ़ायें हम॥
भुजबल के विपुल परिश्रम से,
निज देश-दीनता दूर करें।
उपजा अवनी से रत्न-राशि,
फिर रिक्त-कोष भरपूर करें॥
दें तोड़ विषमता के बन्धन,
मुखरित समता का राग रहे।
मानव-मानव में भेद नहीं,
सबका सबसे अनुराग रहे,
कोई न बड़ा-छोटा जग में,
सबको अधिकार समान मिले।
सबको मानवता के नाते,
जगतीतल में सम्मान मिले॥
विज्ञान-कला कौशल का हम,
सब मिलकर पूर्ण विकास करें।
हो दूर अविद्या-अन्धकार,
विद्या का प्रबल प्रकाश करें॥
हर घड़ी ध्यान बस रहे यही,
अधरों पर भी यह गान रहे।
जय रहे सदा भारत माँ की,
दुनिया में ऊँची शान रहे॥
गणतंत्र दिवस / हरिवंशराय बच्चन
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
आओ महीनो आओ घर / दिविक रमेश
अपनी अपनी ले सौगातें
आओ महीनों आओ घर।
दूर दूर से मत ललचाओ
आओ महीनों आओ घर।
थामें नए साल का झंडा
आई आई अरे जनवरी।
ले गोद गणतंत्र दिवस को
लाई खुशियां अरे जनवरी।
सबसे नन्हा माह फरवरी
फूलों से सजधज कर आता।
मार्च महीना होली लेकर
रंगभरी पिचकारी लाता।
माह अप्रैल बड़ा ही नॉटी
आकर सबको खूब हँसाता।
चुपके चुपके आकर बुद्धू
पहले ही दिन हमें बनाता।
गर्मी की गाड़ी ले देखो
मई-जून मिलकर हैं आए।
बस जी करता ठंडा पी लें
ठंडी कुल्फी हमको भाए।
दे छुटकारा गर्मी से कुछ
आई आई अरे जुलाई।
बादल का संदेशा लेकर
बूंदों की बौछारें लाई।
लो अगस्त भी जश्न मनाता
आज़ादी का दिन ले आया।
लालकिले पर ध्वज हमारा
ऊंचा ऊंचा लो फहराया।
माह सितम्बर की मत पूछो
कितना अच्छा मौसम लाता!
पढ़ने-लिखने को जी करता
मन भी कितना है बहलाता।
हाथ पकड़ कर अक्टूबर का
माह नवम्बर ठंडा आता।
ले दशहरा और दीवाली
त्योहारों के साज सजाता।
आ पहुंचा अब लो दिसम्बर
कंपकपाती रातें लेकर।
जी करता बस सोते जाएं
कम्बल गर्म गर्म हम लेकर।
गणतंत्र दिवस / निर्मल कुमार शर्मा
रात रा ईगियारा बजिया हा
नेताजी सोच में पजिया हा
बात नाक री जावे ही
आ सोच नींद ना आवे ही
जड़ बैचेनी बढ़ने लागी
तो टेलीफोन घुमायो
अर पी ऐ ने बुलवायो
बोल्या, 26 जनवरी है काले
अर, मन्ने भाषण देनो है
झंडो तो मैं फेरा द्युंगो
पण बता सरी, के कहनो है
बो बोल्यो सेवक हूँ थांरो
नयो-नयो मैं पी ऐ हूँ
दसवीं फेल हो
थांरी किरपा सू ही
तो अब बी. ऐ. हूँ
उगत नहीं इत्ती महा में
क्या थाने बतलाऊँ
रात हो गयी घनी
बताओ, कठ स्यूं मेटर ल्याऊं
इन बारे घनी नहीं जानूं
पण इत्ती लोग बतावे है
थांरे जेदो कोइ मोटो
नेता सभा में आवे है
नेताजी कद्क्या, चुप बावलिया
या तो मने खबर है रे
मैं सोच्यो, चोखो भाषण लिख देसी
पण तूं तो नीरो दफर है रे
अब बगत रे गयो है थोड़ो
तूं और करे है क्यूँ मोड़ो
कीं पध्या-लिख्या ने बुलवा ले
अर, चोखो भाषण लिखवा ले
अब पी ऐ ताबड़-तोड़ करी
अर, पध्या मिनख घर दौड़ भरी
पी ऐ ने घर रे बार देख
बो सोच्यो, किस्मत जाग गयी
आधी रात होयां पर भी
आंख्यां सू,नीन्दद्ली भाग गयी
बोल्यो,तकलीफ करी था क्यूँ
मैं खुद ही हाजिर हो जातो
भाषण री थें क्या बात करो
पूरो संविधान ही लिख लातो
फिर पूछ्यो, म्हारो काम तो हो जासी
बाबू लगवा दो या चपरासी
उम्र भर थांरा गुण गासूं
नींतर भूखों मर जासूं
ज्यूँ औरां ने टरकातो हो
पी ऐ इनने भी टरकायो
अर, खुद रो काम बना ल्यायो
दिन दिन उगियो, मिन्दर में झालर बाजन बाजण लाग्या
मोटा बंगला में
घड़ियाँ रा अलारम भी बाजण लाग्या
नेताजी रे
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