रिश्ते भी मुरझाते हैं / रमा द्विवेदी
Contents
पल-पल रिश्ते भी मुरझाते हैं
उम्र बढते-बढते वे घटते जाते हैं।
मानव कुछ और की चाह बढाते हैं,
इसलिए वे कहीं और भटक जातेहैं॥
रिश्ते का जो पक्ष कमजोर है,
समय उसको ही देता झकझोर है।
अतीत की गवाही नहीं चलती वहां,
मानव सुख की पूंजी का जमाखोर है॥
मानव एक रिश्ते को तोड,दूसरे को अपनाता है,
अब तक के सारे कसमें-वादे भूल जाता है।
मानव से अधिक स्वार्थी न कोई होगा जहां में,
अपनी तनिक खुशी के लिए वो दूसरों के घर जलाता है॥
रिश्ते-1 / निर्मल विक्रम
ये कँटीले रिश्तों की झाड़ियाँ
बिच्छुओं के डंक सिर्फ़
लकीरें बनाती हैं
विषबुझी लकीरें हैं
घुटन में घुटती हैं
निराश
न सुबह अपनी
रातें भी पराई हैं
सोचों में उलझनें डाले
कसती हैं मोड़ कर
ये रिश्तेदारियाँ
मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव
दिल के रिश्ते / रमेश तैलंग
दिल के रिश्ते गाढे हों और बोलाचाली बनी रहे.
मांग दुआ, आँखों के आगे ये हरियाली बनी रहे.
नए चाँद की खुशियाँ ले कर ईद हमारे घर आये,
और तुम्हारे आँगन में हर रोज़ दिवाली बनी रहे.
शक-शुबहों के धूल भरे जाले हो जाएँ साफ़ ज़रा,
ऐसा भी क्या जब देखो तब नज़र सवाली बनी रहे.
संजीदा चेहरों को तकते-तकते सालों गुज़र गए,
अब मुखड़ों पर लाली आई है तो लाली बनी रहे.
बहुत रुलाया है हम बिछुडों को कमबख्त सियासत ने,
कोई सूरत कर कुछ दिन तो अब खुशहाली बनी रहे.
रिश्ते / केशव
रिश्ते ही
जिन्दगी का ईंधन हैं
बताने
कोई नहीं आता
यह पहाड़ ढोना होता है अकेले
चुपचाप
कुछ घटने की प्रतीक्षा में
ज़रूरी नहीं
कि घटना
घटे माकूल मौसम में
और सच की नँगी पीठ पर बैठे
दोहराते रहें खुद को
सभी रिश्ते नशे जैसी हालत में
सही हालत में तो
यह रहता है सभी कुछ
जो फूल जैसा है
ज़िंन्दगी में
या ज़हर की तरह घुला हुआ
जीता रहा है वह
सहयात्री की उम्मीद में
जिसे खोजने के लिए
घुसा रहता है हर पल
किताबों की दरारों में
जहाँ खुद को ही पाता है
क्रॉस पर लटकता हुआ
अक्सर
अपनी ही बातें पढ़कर
बुनता है
एक ताज़ी सुबह का भ्रम
काश!
उसकी ज़िंन्दगी
इतिहास से अलग
कुछ और भी हो सकती
तो वह जंगली फूलों-सी
रिश्तों की भाषा
पढ़ सकता अँधी आँखों से भी
जीते जी रिश्तों के लिए
अँधे गायकों की तरह
न भटकता द्वार-द्वार
और पानी पर चलने के झूठ का
वरण न करता
जाने-अनजाने में
एक छोटी-सी गलती करके
डरने लगता है वह
मौत से और जिंदगी की डाल से
अंतिम सफेद कबूतर भी
उड़ जाता है
रिश्ते के लिए
कुछ भी पीने को तैयार
महअ एक सिगरेट पीकर
रह जाता है आखिरकार
तलाश जैसे खत्म हो जाती है
वह देखता रह जाता है
दवार पर टँगा अपना चित्र
प्रश्नचिन्ह
फैलता रहता है
फैलता रहता है
और एक दिन वह
बिना इधर-उधर देखे
कर जाता है प्रवेश
अँधेरी सुरँग में.
ज़रूर पढ़िए:
- Beti Bachao Beti Padhao Poems – बेटी बचाओ, बेटी पढाओ पर कविताएँ
- Hindi Poems On Success – सफलता पर हिन्दी कविताएँ
- Rose Flower Poems in Hindi – गुलाब के फूल पर हिन्दी कविताएँ
हमें पूरी आशा है कि आपको हमारा यह article बहुत ही अच्छा लगा होगा. यदि आपको इसमें कोई भी खामी लगे या आप अपना कोई सुझाव देना चाहें तो आप नीचे comment ज़रूर कीजिये. इसके इलावा आप अपना कोई भी विचार हमसे comment के ज़रिये साँझा करना मत भूलिए. इस blog post को अधिक से अधिक share कीजिये और यदि आप ऐसे ही और रोमांचिक articles, tutorials, guides, quotes, thoughts, slogans, stories इत्यादि कुछ भी हिन्दी में पढना चाहते हैं तो हमें subscribe ज़रूर कीजिये.
Leave a Reply