रिश्ते / सावित्री नौटियाल काला
Contents
रिश्तों की जीवन में अहमियत होती है
जरुरत होती है नियामत होती है
मल्कियत होती है शराफत होती है
नजाकत होती है अदावत होती है
जो रिश्ते शराफत से निभाये जाते है
मन मंदिर में बसाये जाते है
घरों में सजाये जाते है
ईमानदारी व दुनियादारी से निभाये जाते है
वही रिश्ते जीवन में महान होते है
उन्हीं का सब सम्मान करते है
उन्हीं की कथा सब बयान करते है
उन्हीं की कीर्ति का सब बखान करते है
जब जीव संसार में आता है
वह बहुत से रिश्तों से जुड़ता है
रिश्ते बनाता है उन्हें निभाता है
बड़ी सलीके से जीवन में रिश्ते बढ़ाता है।
कुछ पूछते है रिश्ते कैसे बनाएँ
उन्हें जीवन में किस सीमा तक निभायें
आज तो मानव स्वछंद रहना चाहता है
किसी प्रकार के बंधन में नहीं बंधना चाहता है।
फिर भी जीवन में रिश्ते बनते ही है
निभाना चाहो तो निभते ही है
छुटकारा पाना चाहो तो टूटते भी है
पर रिश्ते तो रिश्ते ही होते है
रिश्तों की अहमियत वे ही जानते है
जो उन्हें अपनी शख्सियत से निभाते है
वे रिश्तों को निभाने में कुर्बान हो जाते है
कुछ तो रिश्तों में जान की जान भी ले लेते है
रिश्ते की खोज / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
मैंने तुम्हारे दुख से अपने को जोड़ा
और –
और अकेला हो गया ।
मैंने तुम्हारे सुख से
अपने को जोड़ा
और –
और छोटा हो गया ।
मैंने सुख-दुख से परे
अपने को तुम से जोड़ा
और –
और अर्थहीन हो गया ।
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं / गिरिजा अरोड़ा
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
जाने कहाँ अपनी भावनाएँ छिपाते हैं
मोबाइल, कम्प्यूटर
आखिर इंसानी फैक्टरियों में बनें हैं
ईश्वरीय देन तो
वही दिल है
जो दुखता है तो
ठहरने के लिए एक कंधा ढूँढता है
कैसे दुखन को एक स्क्रीन में दबाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
वो वक्त भी दूर नहीं गया
जब हल्की सी ठोकर पर
ढेरों आँसू बहाते थे
रूमालों की अपेक्षा नहीं
अब केवल
फीलिंग सैड के इमोटिकॉन से
खुद को सहलाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
वो भी याद होगा
जबतीखे व्यंग से लबालब तीर
रिश्ते की अहमियत जतातेथे
ये कड़वाहट छिपा लेते हैं
प्यार भरी संवेदनाए लिए
रोज़ रोज़ दिख जाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
जो टूट चुके थे रिश्ते, जो छूट चुके थे लोग
ऑनलाइन कुछ फिर मिल गए हैं
फटते हुए कपड़ों में जैसे पेबंद लग गए हैं
रूठ कर सिर पटकते नहीं
काँच की तरह चटकते नहीं
बहुत ज्यादा नहीं मिलता इन्हें
अपनों की फोटो से ही
अपनों को करीब पाते हैं
जो वर्चुअल रिश्ते बनाते हैं
रिश्ते-2 / निर्मल विक्रम
रिश्ते का जिस्म नहीं
वजूद होता है
छू सकना आसान नहीं
जितना कह सकता हूँ आसान
लांघनी पड़ती हैं कई छतें, दीवारें और जंगले
रिश्ते के अंत तक फिर भी मुश्किल है पहुँचना
हवा के झोंकों की तरह
उड़ जाता है
ज़रा-सा छू भर लेने से कोई भी रिश्ता
तब
उम्र के अभाव
फुटाव लेते हैं वसन्त बन कर
दरअसल तब
रिश्ता टोहने की नहीं
छूने की चीज़ होता है।
मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव
रिश्ते / संध्या पेडणेकर
स्नेह नहीं
शुष्क काम है
लपलप वासना है
क्षणभंगुर
क्षण के बाद रीतनेवाली
मतलब से जीतनेवाली
रिश्तेदारी है
खाली घड़े हैं
अनंत पड़े हैं
उनके अन्दर व्याप्त अन्धकार
उथला है पर
पार नहीं पा सकते उससे
अन्धकार से परे कुछ नहीं
उजास एक आभास है
क्षितिज कोई नहीं
केवल
आकाश ही आकाश है
Leave a Reply