रस: परिभाषा और प्रकार (Sentiment or Essence in Hindi Literature: Definition and Types)

रस हिंदी साहित्य का एक ऐसा तत्व है जो लेखनी में जान डाल देता है और पाठकों के मन को मोह लेता है। हिन्‍दी साहित्‍य में ‘रस’ का प्रमुख स्थान है और इसके विभिन्न प्रकार, आदिकाल से ही, साहित्यिक कृतियों में मनोभावनाओं को प्रकट करने में सहायक होते आए हैं। इस लेख में हम रस के विभिन्न प्रकार, उनके उद्गमन और उनके उपयोग के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

रस की परिभाषा

रस का शाब्दिक अर्थ ‘रसायन’ होता है, लेकिन हिंदी साहित्य में इसका अर्थ होता है ‘आनंद’ या ‘सुखद अनुभूति’। जब किसी कविता, नाटक या कहानी को पढ़ते समय पाठकों के अंदर एक विशेष प्रकार की भावना उत्पन्न होती है, तो उस भावना को रस कहते हैं। राजा भोज ने अपनी कृति ‘सरस्वतीकण्ठाभरण’ में कहा है: “रसो वै स:।” यानी “रस ही साहित्य का आत्मा है।”

रस के घटक

रस के निर्माण में चार मुख्य घटक होते हैं:

  • विभाव: विभाव वह तत्व है जो रस को उत्पन्न करने का कारण बनता है। यह दो प्रकार के होते हैं – आलंबन (मुख्य कारण) और उद्दीपन (सहायक कारण)।
  • अनुभाव: विभावों से उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाएं को अनुभाव कहते हैं। जैसे- हर्ष के समय चेहरे पर मुस्कान आना।
  • सञ्चारी भाव: ये सहायक भाव होते हैं जो मुख्य भाव को पुष्ट करते हैं।
  • स्थायी भाव: यह वही भाव होता है जो सबसे अधिक स्थायी रहता है और अन्य भावों का समन्वय करता है।

रस के प्रकार

भारतीय नाटक शास्त्र में रस को मुख्य रूप से नौ प्रकारों में बाँटा गया है, जिन्हें नव रस कहा जाता है। यह निम्नलिखित हैं:

1. श्रृंगार रस

श्रृंगार रस प्रेम से सम्बंधित होता है। इसका स्थायी भाव ‘रति’ है। यह दो प्रकार का होता है:

  • संयोग श्रृंगार: जिसमें प्रेमी-प्रेमिका का मिलन दर्शाया जाता है।
  • वियोग श्रृंगार: जिसमें प्रेमी-प्रेमिका का वियोग दिखाया जाता है।

उदाहरण:

महाकवि कालिदास की रचनाओं में श्रृंगार रस मुख्य रूप से देखा जा सकता है।

2. हास्य रस

हास्य रस का स्थायी भाव ‘हास’ है और यह आनंद का स्रोत होता है। हास्य रस भी दो प्रकार का होता है:

  • स्मित हास्य: जिसमें साधारण मंद मुस्कान होती है।
  • विस्मित हास्य: जिसमें जोर से हँसना आता है।

उदाहरण:

गीदड़ और ऊंट की कहानी एक अच्छा उदाहरण हो सकता है जिसमें हास्य रस का प्रदर्शन होता है।

3. करुण रस

करुण रस का स्थायी भाव ‘शोक’ होता है। इसका मुख्य उद्देश्य दुख, विपत्ति को दर्शाना होता है।

उदाहरण:

महाभारत में अभिमन्यु वध का प्रसंग करुण रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।

4. रौद्र रस

रौद्र रस का स्थायी भाव ‘क्रोध’ है। यह क्रोध, युद्ध और आक्रामकता को प्रदर्शित करता है।

उदाहरण:

रामायण में परशुराम के क्रोध का वर्णन रौद्र रस के तहत आता है।

5. वीर रस

वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ है और यह शौर्य, साहस और वीरता को दर्शाता है।

उदाहरण:

महाकाव्य महाभारत में अश्वत्थामा के युद्ध कौशल को वीर रस का उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है।

6. भय रस

भय रस का स्थायी भाव ‘भय’ है। यह आतंक, डर और चिंता को प्रकट करता है।

उदाहरण:

अद्भुत कहानियों में भूत-प्रेत, यक्ष-राक्षस आदि का वर्णन भय रस को उत्पन्न करता है।

7. बीभत्स रस

बीभत्स रस का स्थायी भाव ‘जुगुप्सा’ है। यह घृणा और अव्साद को दर्शाता है।

उदाहरण:

ताड़का वध के बाद उसके शव का वर्णन बीभत्स रस का उदाहरण है।

8. अद्भुत रस

अद्भुत रस का स्थायी भाव ‘आश्चर्य’ है। इसमें चमत्कार, विस्मय और नवीनता होती है।

उदाहरण:

रामायण में हनुमान द्वारा समुद्र पार करने का वर्णन अद्भुत रस का उदाहरण है।

9. शान्त रस

शान्त रस का स्थायी भाव ‘शमा’ है। यह शान्ति, परम सुख और आत्मा की गहराई को दर्शाता है।

उदाहरण:

महाभारत के अंत में युद्ध के पश्चात शान्ति का दृश्य शान्त रस का उदाहरण है।

नव रस के उदाहरण

उदाहरण के रूप में, महाभारत, रामायण, और कालिदास की रचनाओं में नव रस का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिलता है। इन रचनाओं में भावनाओं का विविध संकलन और उनके प्रदर्शन का गहन अध्ययन किया जा सकता है।

रस का महत्त्व

रस का साहित्य में विशेष महत्व होता है क्योंकि यह रचना में आकर्षण पैदा करता है और पाठक को कथा या कविता के प्रति जुड़ाव महसूस कराता है। रस के माध्यम से लेखक अपनी भावनाओं को बड़ी सहजता से पाठक के मन में उतार सकते हैं। यह न केवल साहित्य की गुणवत्ता को बढ़ाता है, बल्कि रचना की प्रभावशीलता को भी बढ़ाता है।

नव रसों का ऐतिहासिक उपयोग

अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो देख सकते हैं कि संस्कृत साहित्य, पौराणिक कथा और भारतीय काव्यशास्त्र में नव रसों का भरपूर उपयोग किया गया है। भारत के विभिन्न संस्कृत शास्त्रों ने रस सिद्धांत को विस्तृत रूप से अपनाया और इसे साहित्यिक रचनाओं का अभिन्न अंग बना दिया।

नव रसों की प्रासंगिकता

आज के दौर में भी नव रसों की प्रासंगिकता बनी हुई है। चाहे कहानी हो, कविता हो या फिर नाटक, हर कहीं रसों का उपयोग किया जाता है। आधुनिक हिंदी साहित्य भी रसों की इस परंपरा का उपयोग करके पाठक और दर्शकों को अपने साथ जोड़ता है।

निष्कर्ष: निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि रस हिंदी साहित्य का अटूट हिस्सा है। यह साहित्य की आत्मा को प्रकट करते हैं और पाठकों के मन में गहरे प्रभाव छोड़ते हैं।

Scroll to Top