इस article में आपके लिए वर्षा ऋतू (Rainy Season) पर एक निबंध नुक्ते बनाकर दिया गया है. (Rainy Season Essay in Hindi)
वर्षा ऋतु (Rainy Season)
भूमिका – मानव जीवन के समान ही प्रकृति में भी परिवर्तन आता रहता है. जिस प्रकार जीवन में सुख-दुःख, आशा-निराशा की विपरीत धाराएँ बहती रहती हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी कभी सुखद रूप को प्रकट करती है जो कभी दुखद । सुख के बाद दुःख का प्रवेश कुछ अधिक कष्टकारी होता हैं । बसन्त ऋतु की मादकता के बीच ग्रीष्म का आगमन होता है । ग्रीष्म ऋतु में प्रकृति का दृश्य बदल जाता है । बसन्त ऋतु की सारी मधुरता न जाने कहां चली जाती हैं । फूल मुरझा जाते है । बाग़-बगीचों से उनकी बहारें रूठ जाती हैं । गर्म लुएं सबको व्याकुल कर देती हैं । ग्रीष्म ऋतु के भयंकर ताप के पश्चात वर्षा का आगमन होता है । वर्षा ऋतु प्राणी जगत् में नए प्राणों का संचार करती है .बागों की रूठी बहारें लौट आती हैं । सर्वत्र हरियाली ही हरियाली दिखाई देश है ।
धानी चुनर ओढ़ धरा की दुल्हन जैसी मुस्कराती है ।
नई उमंगें, नई तरंगें, लेकर वर्षा ऋतु आती है ।
प्राणी जगत् पर प्रभाव – वैसे तो आषाढ़ मास से वर्षा ऋतु का आस्मभ हो जाता है लेकिन इसके असली महीने सावन और भादों हैं । धरती का ” शस्य श्यामलामू सुफलाम् ” नाम सार्थक हो जाता है । इस ऋतु में किसानों की आशा-लता लहलहा उठती है । नई-नई सब्जियां एवं फल बाजार में आ जाते हैं । लहलहाते धान के खेत हृदय को आनन्द प्रदान करते हैं । नदियों सरोवरों एवं नालों के सूखे हृदय प्रसन्नता के जल से भर जाते है । वर्षा ऋतु में प्रकृति मोहक रूप धारण कर लेती है । इस ऋतु में मोर नाचते हैं । औषधियां-वनस्पतियां लहलहा उठती हैं । खेती हरी- भरी हो जाती है । किसान खुशी में झूमने लगते हैं । पशु-पक्षी आनन्द-मग्न हो उठते हैं । बच्चे किलकारियां मारते हुए इधर से उधर दौड़ते- भागते, खेलते-कूदते हैं । स्त्री-पुरुष हर्षित हो जाते हैं । वर्षा की पहली बूंदों का स्वाकृत होता है । वर्षा प्राणी मात्र के लिए जीवन लाती है । जीवन का अर्थ पानी भी है । वर्षा होने पर नदी-नाले, तालाब, झीलें, कुएं पानी से भर जाते हैं । अधिक वर्षा होने पर चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है । कई बार भयंकर बाढ़ आ जाती है । पुल टूट जाते हैं, खेती तबाह हो जाती है । सच है कि अति प्रत्येक वस्तु की बुरी होती है । वर्षा न होने को ‘ अनावृष्टि ‘ कहते हैं । बहुत वर्षा होने को ‘अतिवृष्टि’ कहते हैं । दोनों ही हानिकारक हैं । जब वर्षा न होने से सूखा पड़ता है तब भी अकाल पड़ जाता है । वर्षा से अन्न, चारा, घास, फल आदि पैदा होते हैं जिससे मनुष्यों तथा पशुओं का जीवन-निर्वाह होता है । सभी भाषाओं के कवियों ने ‘ बादल ‘ और ‘ वर्षा ‘ पर बड़ी सुन्दर-सुन्दर कविताएं रची है अनोखी कल्पनाएं की हैं । संस्कृत, हिन्दी आदि के कवियों ने सभी ऋतुओं के वर्णन किए हैं । ऋतु-वर्णन की पद्धति बड़ी लोकप्रिय हो रही है ।
प्रचलित कथा- कहते हैं कि प्राचीन काल में एक बार बारह वर्ष तक वर्षा नहीं हुई थी- । त्राहि-त्राहि मच गई । जगह- जगह प्यास के मारे मुर्दा शरीर पड़े थे । लोगों ने कहा कि यदि नर-बलि दी जाए तो इन्द्र देवता प्रसन्न हो सकते हैं, पर कोई भी जान देने के लिए तैयार न हुआ । तब दस-बारह साल का बालक शतमनु अपनी बलि देने के लिए तैयार हो गया । बलि वेदी पर उसने सिर रखा, वधिक उसका सिर काटने के लिए तैयार था । इतने में बादल आए और वर्षा की झड़ी लग गई । बिना बलि दिए ही संसार तृप्त हो गया ।
वर्षा में जुगनू चमकते हैं । वीर बहूटियां हरी-हरी घास पर लहू की बूंदों की तरह दिखाई देती हैं । वर्षा कई प्रकार की होती है-रिमझिम, मूसलाधार, रुक-रुक कर होने वाली, लगातार होने वाली । आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद आश्विन-इन चार महीनों में साधु-संन्यासी यात्रा नहीं करते । एक स्थान पर टिक कर सत्संग आदि करके चौमासा बिताते हैं । श्रावण की पूर्णमासी को मनाया जाने वाला रक्षाबन्धन वर्षा ऋतु का प्रसिद्ध त्यौहार है ।
हानियां- वर्षा में कीट-पतंगे, मच्छर बहुत बढ़ जाते हैं । सांप आदि जीव बिलों से बाहर निकल आते हैं । वर्षा होते हुए कई दिन हो जाएं तो लोग तंग आ जाते हैं । रास्ते रुक जाते हैं । गाड़ियां बन्द. हो जाती हैं । वर्षा की अधिकता कभी-कभी बाढ़ का रूप धारण कर जन-जीवन के लिए अभिशाप बन जाती है । निर्धन व्यक्ति का जीवन तो दुःख की दृश्यावली बन जाता है ।
उपसंहार- इन दोषों के होते हुए भी वर्षा का अपना महत्त्व है । यदि वर्षा न होती तो इस संसार में कुछ भी न होता । न आकाश में इन्द्रधनुष की शोभा दिखाई देती और न प्रकृति का ही मधुर संगीत सुनाई देता । इससे पृथ्वी की प्यास बुझती है और वह तृप्त हो जाती है ।
नीचे एक और निबंध जोकि बिना नुक्ते के है, जिसका विषय वर्षा ऋतु पर ही आधारित है दिया गया है.
वर्षा-ऋतु – ऋतुओं की रानी
किसी ने ठीक ही कहा है कि वसंत ऋतुओं का राजा है तथा वर्षा ऋतु, ऋतुओं को रानी है । वर्षा ऋतु प्रकृति में चेतना उत्पन्न करती है तथा प्यासी धरती की प्यास बुझाती है । आषाढ़ के महीने में वर्षा अत्यन्त सुहावनी एवं मनभावन लगती है । ग्रीष्म के थपेड़ों से रजब समस्त पृथ्वी झुलसने लगती है, वनस्पति सूखने लगती है । नदी-नाले, तारन-तलैया सब सूख -जाते हैं, पशु-पक्षी जल के अभाव के कारण त्राहि-त्राहि करने लगते हैं, किसानों की नजरें आसमान पर गड़ी रहती है तौ वर्षा का आगमन होता है ।
वर्षा के अनते ही सभी वृक्ष हरे- भरे, नहाए सोए लगते है, ताल-तलैया पानी से ‘पर जाते हैं, धरती के सभी जड़-चेतन आनंदित हो जाते है । वर्षा अपने रग साथ नव स्फुर्ति लेकर आती है । चारों ओर हरियाली नजर आती है । मेंढक टर्र-टर्र करके- अपना उल्लास प्रकट करते है मयूर अपनी केका से वर्षा का स्वागत करते हैं । झींगरों की आवाज सुनाई पड़ता है तथा जुगनुओं की चमक दिखाई देती है । वृक्षों में नव कोपलें कूट पड़ती है । धरती का कण– कण पुलकित हो उठता है । मोर अपने पंख फैलाकर नाचने लगते है । किसान हल-बैल लेकर खेतों की ओर प्रस्थान करते ने । वर्षा के अभाव में जीवन असंभव है । वर्षा न हो तो अन्न , वनस्पति, फल-फूल न उगे ।
वर्षाकाल में ही आम के वृक्षों पर बूर आता है । इसी ऋतु में तीज का त्यौहार आता है । महिलाएं मल्हार एव -कजरी गाती हैं । एक तरफ वर्षा जीवन का आधार है तो दूसरी ओर यदि यह. विकराल रूप धारण कर लै तो अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जाती है । वर्षा का ‘रौद्र -रूप विनाशकारी बन जाता है । वर्षा ऋतु में गांवों में चारों ओर कीचड़ दिखाई देता है तो शहरों में कुछ ओर ही रूप दिखाई देता है । गांव के कच्चे मकानों की छतों में वर्षा का पानी छलनी की तरह छन कर बहता है । शहरों में वही पानी नालियों में बहकर आसपाल नदी-नालों में जा मिलता है ।
जहाँ गांव में वर्षा में भीगकर काम करने में किसानों को अपूर्ण आनंद का अनुभव होता है तो शहरों में रंग-बिरंगे छातों की प्रदर्शनी दिखाई देती है । कहीं-कहीं सड़कों पर पानी भरा नजर आता है । वर्षा के आने से त्योहार-सा बन जाता है । कहीं छोटे-छोटे बच्चे खड़े पानी में नाव चलाने का मजा ले रहे होते हैं तो कुछ पानी में भीगकर वर्षा का आनंद ले रहे होते हैं । गांव की युवतियां सावन के झूले डालने लगती हैं और तीज के गीत गाती हैं । इस प्रकार वर्षा रानी जन-जीवन के लिए वरदान बनकर आती हैं, परन्तु यदि वह रूट जाए तो अतिवृष्टि है ।
वर्षा की पूरी बहार सावन भादों में देखने को मिलती है । वर्षा पर ही संसार का भरण-पोषण निर्भर होता है । यदि वर्षा न हो तो अकाल पड़ जाता है । वर्षा के अभाव में अन्न, फल-फूल तथा वनस्पतियों का होना संभव नहीं । वर्षा है तो किसान सुखी है, किसान सुखी है तो अनाज होगा तथा देश आत्मनिर्भर बनेगा । भाई-बहनों के प्रसिद्ध स्नेह का त्योहार रक्षाबंधन, हरियाली, तीज तथा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के त्योहार वर्षा ऋतु में ही आते हैं ।
गांवों में स्त्रियां मल्हार गाती हुई, झूलों पर झूलती दिखाई देती हैं । पुरुष आल्हा गाकर अपना मनोरंजन करते हैं । कभी-कभी अतिवृष्टि के कारण गांव के गांव बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं तथा जान माल की अत्यधिक हानि होती है । अतः उचित मात्रा में ही वर्षा ऋतु लाभकारी होती है । वर्षा ऋतु में कभी-कभी ऐसा वातावरण हो जाता है कि मानव का दम घुटने लगता है । ऐसी स्थिति प्राय : वर्षा ऋतु के बाद होती है ।
वर्षा के पश्चात् निकलने वाली धूप के कारण शरीर में एक अजीब प्रकार की चुभन प्रतीत होती है । वर्षा ऋतु में अनेक प्रकार के कीटाणु जन्म लेते हैं । ये कीटाणु विशेषकर मच्छर तथा मक्खियां महामारी फैलाते हैं । हैजा तथा मलेरिया इस ऋतु की विशेष देन है । कच्चे मार्ग विशेषकर ग्रामीण मार्ग तो नरक का दृश्य पेश करते हैं । शहरों में भी टूटी-फूटी सड़कों की वर्षा के कारण जो दुर्दशा होती है, वह अवर्णनीय है । वर्षा ऋतु के दोष चाहे कितने भी हों, परन्तु ग्रीष्म के कोप से बचाने के कारण सभी इसका स्वागत करते हैं ।
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Bahut hi Badhiya Essay on Rainy Season