Rabindranath Tagore Quotes in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, भारत के महान साहित्यकार रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन हिन्दी भाषा में.
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Rabindranath Tagore Quotes in Hindi (रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनमोल वचन)
- मनुष्य का जीवन एक महानदी की भांति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में अपनी राह बना लेती है ।
- फूल चुनकर इकट्ठा करने के लिए मत ठहरो । आगे बड़े चलो, तुम्हारे पथ में फूल निरंतर खिलते रहेंगे ।
- चंद्रमा अपना प्रकाश संपूर्ण आकाश में फैलाता है, परंतु अपना कलंक अपने ही पास रखता है ।
- एकांत हमें बताता है कि हमें कैसा होना चाहिए ।
- थोड़ा पढ़ना, ज्यादा सोचना, कम बोलना, ज्यादा सुनना यही बुद्धिमान बनने के उपाय हैं ।
- यदि तुम सूर्य को खो बैठने पर आँसू बहाओगे तो तारों को भी खो बैठोगे ।
- जब मैं स्वयं पर हंसता हूं तो मेरे मन का बोझ हल्का हो जाता है ।
- अभिमन्यु व्यूह में घुसना जानता था, उससे निकलना नहीं, हिन्दू धर्म उससे ठीक उल्टा ही है । उसके समाज में घुसने का मार्ग बंद है, निकलने के मार्ग हजारों में हैं ।
- अहंकार का अर्थ ही सराह करना है, संचय करना है, वह केवल लेता ही रहता
- शील द्वारा ही चरित्र निर्माण होता है । शील हमारी गति के लिए संबल है ।
- ईश्वर की महाशक्ति मंद झोंके में है, तूफान में नहीं ।
- बहुरूपी आचरण करने वाला व्यक्ति पशु से भी बदतर है ।
- हम आजादी तभी पाते हैं, जब हम अपने जीवित रहने के अधिकार का पूरा मूल्य चुका देते हैं ।
- विघ्न हमारे हृदय की संपूर्ण शक्ति को जाग्रत करने के लिए उगता है ।विचार स्वयं को उरपने शब्दों से पोषण देता हे और विकास करता है ।
- वासना जिसका भी स्पर्श करती है, उसका प्रकाश क्षण-भर में बुझा देती है ।
- धूल स्वयं अपमान सह लेती है और बदले मैं पुष्पों का उपहार देती है ।
- मेरा अस्तित्व निंरतर एक आश्चर्य है और यही मेरा जीवन है ।
- विपत्ति से मेरी रक्षा करो, यह मेरी प्रार्थना नहीं है । दुख से व्यथित चित्त को तुमने सांत्वना नहीं दी तो न सही । मेरे लिए केवल इतना करो कि मैं दुख को जीत सकूं ।
- मेरे चित्रों का अर्थ प्रायः लोग मुझसे पूछा करते हैं । मेरे चित्र जैसे नीरव हैं, वैसे ही मैं भी हूं । व्यक्त करना उनका काम है, व्याख्या करना नहीं । अभिव्यक्त चित्र के पीछे क्या हो सकता है उसे सोचकर, समझकर खोजना होगा, भाषा द्वारा बताना होगा । रूप की सार्थकता जब रूप में प्रयुक्ति होगी, तभी उसका अस्तित्व बनता है, अन्यथा केवल विज्ञान के किसी तथ्य या सत्य से समन्वित होने या किसी नैतिक मापदंड आदि से समन्वित होने के बावजूद वे स्थायी नहीं रह सकते ।
- मुक्ति शून्यता में नहीं पूर्णता में है । पूर्णता सृष्टि करती है, धवंस नहीं करती ।
- जब तक यौवन का उत्साह हममें है, तब तक हमारी आदतों का बुरा असर तुरंत दिखाई नहीं पड़ता, किंतु धीरे- धीरे यह ओज को समाप्त करता जाता है और जब जीवन की संध्या होती है तो हमें अपना हिसाब पूरा करना पड़ता है, जिम्मेदारियां चुकता करनी पड़ती हैं, तब वही आदतें हमें दिवालिया बना देती हैं ।
- वैराग्य साधना द्वारा प्राप्त मुक्ति नहीं, बल्कि असंख्य बंधनों के बीच मिली मुक्ति की आनंदमय प्राप्ति ही मेरा लक्ष्य है ।
- हमारे जीवन का प्रत्येक अगला दिन पिछले दिन से कुछ ऐसे ढंग का हो, जिससे हमने कुछ सीखा है ।
- भगवान महावीर ने बताया कि धर्म एक सत्य है । यह सत्य है कि केवल बारह संस्कारों को करके मोक्ष की प्राप्ति नहीं की जा सकती । धर्म आदमी-आदमी में फर्क नहीं करता ।
- वस्तुत: वह संसार मिथ्या तो नहीं है, जोर देकर इसे मिथ्या कहने से क्या लाभ ।
- अच्छी और सही चीज का मजाक उड़ाना जितना आसन होता है मजाक की चीज का मजाक उड़ाना उतना सहज नहीं होता ।
- जब हम नम्रता में महान होते हैं तब हम महान व्यक्तियों के अत्यत निकटतम पहुंच जाते हैं ।
- जलधारा, यौवन, समय, संसार, सब केवल आगे ही चलते रहते हैं, पीछे लौटना नहीं जानते । केवल मनुष्य का मन ही इनसे विपरीत है जो बार-बार भूत पर भी निगाह डालता है ।
- सुख में मनुष्य शायद भगवान को भूल जाता है या फिर वह अहंकार पाप कर्म की ओर प्रवृत्त होता है । दुख में हम बरबस भगवान को याद करते हैं और वह हमारा वास्तविक अभीष्ट है ।
- सत्य अपने विरुद्ध एक आधी पैदा कर देता है और यही आंधी उसके बीजों को दूर-दूर तक फैला देती है ।
- स्त्री जब तू अपने घर के काम में व्यस्त होती है तब मेरे शरीर से ऐसी मधुर रागिनी निकलती है जैसे छोटे-छोटे पत्थरों के टुकड़ों के साथ पहाड़ी स्रोतों के खेल करने से निकलती है ।
सभ्यता
- सभ्यता की भाषा में एक खास दिक्कत यह है कि सब जगह और सब जगह के लोग उसे समझ नहीं पाते और असभ्यता की भाषा की यह शान है कि उसे सब जानते हैं ।
- सिर्फ वे लोग जिनमें सहयोग की मजबूत भावना रहती है, जीवित रहते हैं और सभ्यता की उन्नति करते हैं तो हम देखते हैं कि इतिहास की शुरूआत से ही मनुष्य परस्पर संघर्ष या सहयोग तथा निजी हित साधन या समूह का हित-साधन में से एक को चुनता रहा है ।
- हमारी दृष्टि में हिन्दू सभ्यता की मूर्ति वैसी ही है, जैसा हमारे पंचागों में अंकित संक्रांति का चित्र होता है । यह सभ्यता केवल स्नान जप करती है, व्रत उपवास से कृश हो गई है, दुनिया की प्रत्येक वस्तु का स्पर्श त्यागकर अत्यंत संकोच के साथ एक कोने में पड़ी है, परंतु एक दिन यही हिन्दू सभ्यता सजीव थी, उसने समुद्र पार किया था, उपनिवेश बसाए थे, दिग्विजय की थी, दूसरों को कुछ दिया और दूसरों से ग्रहण किया था । प्रकृति
- माटी अपनी सेवाओं के एवज में पेड़ों को अपने संग बांधे रखती है, आकाश कुछ नहीं मांगता, उसे मुक्त रहने देता है ।
- चिड़िया कहती है ‘काश मैं बादल होती । ‘ बादल कहता है – काश मैं चिड़िया होता । ‘
- तारे ने कहा ‘मैं प्रकाश दूंगा । अंधकार दूर होगा या नहीं, यह मैं नहीं जानता हूँ. ? सिर्फ वे लोग जिनमें सहयोग की मजबूत भावना रहती है, जीवित रहते है और सभ्यता की उन्नति करते हैं तो हम देखते हैं कि इतिहास की शुरुआत से ही मनुष्य परस्पर संघर्ष या सहयोग तथा निजी हित साधन या समूह का हित-साधन में से एक को चुनता रहा है ।
शांति
- मैंने शिखर को पार कर देखा है मगर यश की बेरंग और वीरान ऊंचाई में कोई शरण नहीं मिली । प्रकाश फीका पड़ने से पहले मेरे रहबर मुझे शांति की घाटी में ले चल जहां जिंदगी की फसल सुनहरे लान में सुफलित होती है ।
- भारत नकारात्मक शांति नहीं चाहता । वह सदा शिवम अर्थात लोगों का कल्याण, परोपकार भलाई चाहता है । भारत अपनी संतति को कर्म से दूर नहीं रखना चाहता, अपितु निरंतर कर्म करते हुए शाश्वत तत्त्व के साथ साक्षात्कार में विश्वास करता है । वह शुद्ध ज्ञान के द्वारा पूर्ण सत्ता के साथ आध्यात्मिक मिलन चाहता है ।
- मनुष्य सर्वत्र ही अपनी क्षुद्र बुद्धि और तुच्छ प्रवृत्ति का शासन फैलाकर कहीं भी सुख- शांति नहीं रहने देगा ।
- जो लोग शांति से सबकुछ सह लेते हैं उनके संबंध में यह बिल्कुल निश्चित है कि उन्हें भीतरी चोट बड़ी गहरी पहुंची होती है ।
प्रेम
- दंड देने का अधिकार सिर्फ उसे है जो प्रेम करता है ।
- परमेश्वर साथियों को खोजता है और प्रेम के अधिकार का दावा करता है । शैतान दासों को खोजता है और आज्ञापालन के अधिकार का दावा करता है ।
- प्रेम के उपहार दिए नहीं जाते, वे स्वीकार किए जाते हैं । प्रेम के बिना हमें एक-दूसरे का यर्थाथ परिचय भी तो नहीं मिलता ।
- सभी धर्मों का आधार प्रेम है । परमात्मा की खोज यहीं से शुरू होती है ।
- दूध का प्याला बिना मांगे तभी तुम्हारे सामने आता है जब तुम तपस्या कर लेते हो । वह प्रेम के साथ तुम्हें अर्पित किया जाता है और केवल प्रेम ही सत्य के प्रति अपना अर्ध्यदान कर सकता है । सौंदर्य
- सौंदर्य नरक में भी है, पर वहां के रहने वाले उसकी पहचान नहीं कर पाते यही तो उनकी सबसे बड़ी सजा है ।
- फूलों की पंखुड़ियों को तोड़कर तुम उसका सौंदर्य ग्रहण नहीं कर सकते ।
- आवश्यकता की समाप्ति के बाद जो वस्तु अवशिष्ट रह जाती है वही सौंदर्य है और वह सौदर्य हमें प्राप्ति के रूप में मिलता है ।
मृत्यु
- जीवन से मृत्यु में पर्दापण करना दिन से रात्रि में संक्रमण करने के समान है ।
- जो कुछ मर चुका है, उसे अपनी आत्मा का भोजन नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि जो मरा हुआ है, वह मृत्यु को लाने वाला है ।
- जिंदगी और मृत्यु से उसी प्रकार संबंध है जिस प्रकार जन्म से । गति के लिए पैर उठाना उतना ही आवश्यक है जितना पैर रखना
- मृत्यु होने पर भी जीवन नष्ट नहीं होता । मृत्यु साथ ही चलती है, वह साथ ही बैठती है और सुदूरवर्ती पथ पर भी साथ-साथ जाकर साथ लौट उगती ज्ञान
- विश्वविद्यालयों को ज्ञान संग्रह व वितरण करने वाला मशीनी संस्थान कदापि नहीं बनाया जाना चाहिए । उनके माध्यम से लोग अपना बौद्धिक सेवाभाव तथा मानसिक संपत्ति दूसरों को अर्पित करें और प्रतिफल में शेष विश्व में उपहारों को पाने का अपना गौरवपूर्ण अधिकार प्राप्त करें ।
- जिस विषय को प्रभावित नहीं किया जा सके और अप्रमाणित भी नहीं किया जा सके, उसके बारे में मन को खुला रखना ही उचित है ।
- साहित्य का काम है हृदय का योग कर देना, योग ही साहित्य का अंतिम लक्ष्य है ।
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