New Year Poems in Hindi (2020) अर्थात इस article में आप पढेंगे, नयें साल की कविताएँ 40 से भी ज्यादा अनमोल कविताएँ जो इस नयें वर्ष आपका मन खुश कर देंगी.
New Year Poems in Hindi – (नयें साल की कविताएँ)
Contents
- 1 New Year Poems in Hindi – (नयें साल की कविताएँ)
- 1.1 अलविदा / अजेय
- 1.2 आओ, नूतन वर्ष मना लें / हरिवंशराय बच्चन
- 1.3 आप खुशियाँ मनाएँ नए साल में / कुमार अनिल
- 1.4 गए साल की / केदारनाथ अग्रवाल
- 1.5 गया साल / माहेश्वर तिवारी
- 1.6 जश्न है हर सू , साल नया है / सतपाल ‘ख़याल’
- 1.7 नई सुबह / कुँअर रवीन्द्र
- 1.8 नए वर्ष की शुभ कामनाएँ / हरिवंशराय बच्चन
- 1.9 नए साल का कार्ड / लीलाधर मंडलोई
- 1.10 नए साल का गीत / एकांत श्रीवास्तव
- 1.11 नए साल की तरह / कविता किरण
- 1.12 नए साल की पहली नज़्म / परवीन शाकिर
- 1.13 नए साल की शुभकामनाएं ! / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
- 1.14 नए साल की सुबह : एक चित्र / सांवर दइया
- 1.15 नए साल में / अश्वघोष
- 1.16 नया वर्ष / अनिल जनविजय
- 1.17 नया वर्ष / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
- 1.18 नया साल / निर्मल आनन्द
- 1.19 नया साल / राकेश भारतीय
- 1.20 नया साल उन बच्चों के नाम / रंजना भाटिया
- 1.21 नया साल ख़ुशियोँ का पैग़ाम लाए / अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी
- 1.22 नया साल जब आया / अवतार एनगिल
- 1.23 नया साल मुबारक हो / हरीशचन्द्र पाण्डे
- 1.24 नया साल है और नई यह ग़ज़ल / अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी
- 1.25 नया साल हो / अशोक चक्रधर
- 1.26 नव वर्ष / जगदीश व्योम
- 1.27 नव वर्ष / महेन्द्र भटनागर
- 1.28 नव वर्ष / सौरभ
- 1.29 नव वर्ष / हरिवंशराय बच्चन
- 1.30 नव वर्ष आया है द्वार / शशि पाधा
- 1.31 नव वर्ष मंगलमय हो / अनिल करमेले
- 1.32 नवल हर्षमय नवल वर्ष यह / सुमित्रानंदन पंत
- 1.33 नववर्ष / सोहनलाल द्विवेदी
- 1.34 नवीन वर्ष / हरिवंशराय बच्चन
- 1.35 फिर वर्ष नूतन आ गया / हरिवंशराय बच्चन
- 1.36 मुबारक हो नया साल / नागार्जुन
- 1.37 मुस्कानों के बीज-नव वर्ष के दोहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु
- 1.38 वर्ष नया / अजित कुमार
- 1.39 साथी, नया वर्ष आया है / हरिवंशराय बच्चन
- 1.40 साल की आख़िरी रात / वेणु गोपाल
- 1.41 साल मुबारक! / अमृता प्रीतम
- 1.42 Related Posts:
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अलविदा / अजेय
अलविदा ओ पतझड़!
बाँध लिया है अपना डेरा-डफेर.
हाँक दिया है अपना रेवड़
हमने पथरीली फाटों पर
यह तुम्हारी आखिरी ठण्डी रात है
इसे जल्दी से बीत जाने दे
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की दुनिया देखेंगे!
विदा, ओ खामोश बूढ़े सराय!
तेरी केतलियाँ भरी हुई हैं लबालब हमारे गीतों से
हमारी जेबों में भरी हुई है ठसाठस तेरी कविताएँ
मिलकर समेट लें
भोर होने से पहले
अँधेरी रातों की तमाम यादें
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की हलचल सुनेंगे!
विदा, ओ गबरू जवान कारिन्दो!
हमारी पिट्ठुओं में
ठूँस दी है तुमने
अपनी संवेदनाओं के गीले रूमाल
सुलगा दिया है तुमने
हमारी छातियों में
अपनी अँगीठियों का दहकता जुनून
उमड़ने लगा है एक लाल बादल
आकाश के उस कोने में
आज हम पहाड़ लाँघेंगे, उस पार की हवाएँ सूँघेंगे!
सोई रहो बर्फ़ में
ओ, कमज़ोर नदियों
बीते मौसम घूँट-घूँट पिया है
तुम्हें बदले में कुछ भी नहीं दिया है
तैरती है हमारी देहों में तुम्हारी ही नमी
तुम्हारी ही लहरें मचलती हैं
हमारे पाँवों में
सूरज उतर आया है आधी ढलान तक
आज हम पहाड़ लाँघेंगे उस पार की धूप तापेंगे!
विदा, ओ अच्छी ब्यूँस की टहनियों
लहलहाते स्वप्न हैं हमारी आँखों में
तुम्हारी हरियाली के
मज़बूत लाठियाँ हैं हमारे हाथों में
तुम्हारे भरोसे की
तुम अपनी झरती पत्तियों के आँचल में
सहेज लेना चुपके से
थोड़ी-सी मिट्टी और कुछ नायाब बीज
अगले बसंत में हम फिर लौटेंगे!
आओ, नूतन वर्ष मना लें / हरिवंशराय बच्चन
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
गृह-विहीन बन वन-प्रयास का
तप्त आँसुओं, तप्त श्वास का,
एक और युग बीत रहा है, आओ इस पर हर्ष मना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
उठो, मिटा दें आशाओं को,
दबी छिपी अभिलाषाओं को,
आओ, निर्ममता से उर में यह अंतिम संघर्ष मना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
हुई बहुत दिन खेल मिचौनी,
बात यही थी निश्चित होनी,
आओ, सदा दुखी रहने का जीवन में आदर्श बना लें!
आओ, नूतन वर्ष मना लें!
आप खुशियाँ मनाएँ नए साल में / कुमार अनिल
आप खुशियाँ मनाएँ नए साल में
बस हँसे, मुस्कुराएँ नए साल में
गीत गाते रहें, गुनगुनाते रहें
हैं ये शुभ-कामनाएं नए साल में
रेत, मिटटी के घर में बहुत रह लिए
घर दिलों में बनायें नए साल में
अब न बातें दिलों की दिलों में रहें
कुछ सुने, कुछ सुनाएँ नए साल में
जान देते हैं जो देश के वास्ते
गीत उनके ही गायें नए साल में
भूल हमको गए हैं जो पिछले बरस
हम उन्हें याद आयें नए साल में
गए साल की / केदारनाथ अग्रवाल
गए साल की
ठिठकी ठिठकी ठिठुरन
नए साल के
नए सूर्य ने तोड़ी।
देश-काल पर,
धूप-चढ़ गई,
हवा गरम हो फैली,
पौरुष के पेड़ों के पत्ते
चेतन चमके।
दर्पण-देही
दसों दिशाएँ
रंग-रूप की
दुनिया बिम्बित करतीं,
मानव-मन में
ज्योति-तरंगे उठतीं।
गया साल / माहेश्वर तिवारी
जैसे -तैसे गुज़रा है
पिछला साल
एक-एक दिन बीता है
अपना
बस हीरा चाटते हुए
हाथ से निबाले की
दूरियाँ
और बढ़ीं, पाटते हुए
घर से, चौराहों तक
झूलतीं हवाओं में
मिली हमें
कुछ झुलसे रिश्तों की
खाल
व्यर्थ हुई
लिपियों-भाषाओं की
नए-नए शब्दों की खोज
शहर
लाश घर में तब्दील हुए
गिद्धों का मना महाभोज
बघनखा पहनकर
स्पर्शों में
घेरता रहा हमको
शब्दों का
आक्टोपस-जाल
जश्न है हर सू , साल नया है / सतपाल ‘ख़याल’
जश्न है हर सू , साल नया है
हम भी देखें क्या बदला है
गै़र के घर की रौनक है वो
अब वो मेरा क्या लगता है
दुनिया पीछे दिलबर आगे
मन दुविधा मे सोच रहा है
तख्ती पे ‘क’ ‘ख’ लिखता वो-
बचपन पीछे छूट गया है
नाती-पोतों ने जिद की तो
अम्मा का संदूक खुला है
याद ख्याल आई फिर उसकी
आँख से फिर आँसू टपका है
दहशत के लम्हात समेटे
आठ गया अब नौ आता है
नई सुबह / कुँअर रवीन्द्र
चलो,
पूरी रात प्रतीक्षा के बाद
फिर एक नई सुबह होगी
होगी न,
नई सुबह?
जब आदमियत नंगी नहीं होगी
नहीं सजेंगीं हथियारों की मंडिया
नहीं खोदी जायेगीं नई कब्रें
नहीं जलेंगीं नई चिताएँ
आदिम सोच, आदिम विचारों से
मिलेगी निजात
होगी न,
नई सुबह?
सब कुछ भूल कर
हम खड़े हैं
हथेलियों में सजाये
फूलों का बगीचा,
पूरी रात जाग कर
फिर एक नई सुबह के लिए
होगी न
नई सुबह?
नए वर्ष की शुभ कामनाएँ / हरिवंशराय बच्चन
(वृद्धों को)
रह स्वस्थ आप सौ शरदों को जीते जाएँ,
आशीष और उत्साह आपसे हम पाएँ।
(प्रौढ़ों को)
यह निर्मल जल की, कमल, किरन की रुत है।
जो भोग सके, इसमें आनन्द बहुत है।
(युवकों को)
यह शीत, प्रीति का वक्त, मुबारक तुमको,
हो गर्म नसों में रक्त मुबारक तुमको।
(नवयुवकों को)
तुमने जीवन के जो सुख स्वप्न बनाए,
इस वरद शरद में वे सब सच हो जाएँ।
(बालकों को)
यह स्वस्थ शरद ऋतु है, आनंद मनाओ।
है उम्र तुम्हारी, खेलो, कूदो, खाओ।
नए साल का कार्ड / लीलाधर मंडलोई
कितना अजीब है यह कार्ड कि बोलता नहीं-‘सब खैरियत है’
न केवल पेड़-पौधे
न केवल अरब सागर
गायब है धरती, अंतरिक्ष गायब
भाग रहे हैं तमाम पखेरू नये ठिकानों की फिक्र में
कोई ऐसी जगह नहीं
कि चिलकती हो माकूल जगह
सिर्फ गर्द है, धुआँ है, आग है और
और असंख्य छायाएँ छोड़तीं ठिकाने
वर्दियों से अटा कितना अजीब है यह कार्ड
कि बोलता नहीं-‘सब खैरियत है’
नए साल का गीत / एकांत श्रीवास्तव
जेठ की धूप में तपी हुई
आषाढ़ की फुहारों में भीगकर
कार्तिक और अगहन के फूलों को पार करती हुई
यह घूमती हुई पृथ्वी
आज सामने आ गयी है
नये साल की देहरी के
तीन सौ पैंसठ जंगलों
तीन सौ पैंसठ नदियों
तीन सौ पैंसठ दुर्गम घाटियों को पार करने के बाद
आज यह घूमती हुई पृथ्वी
यह पृथ्वी
टहनी से टपका एक ताजा पका फल
लुढ़ककर आ गया है साबुत
अभी-अभी लिपे हुए आंगन में
प्रथम दिवस की चौखट के सामने
तीन सौ पैंसठ पत्थरों से बचकर
न जाने कितने लोगों का भय रेंग रहा है इस पर
न जाने कितने नगरों-गावों का रक्त
बह रहा है अभी भी
न जाने कितनी चीखों से
दहल गयी है यह पृथ्वी
ऐसे मे कितना सुखद है यह देखना
कि तीन सौ पैंसठ घावों से भरी यह पृथ्वी
आज जब सामने आयी है
नये साल के प्रथम दिवस की चौखट के
इसके माथे पर चमक रहा है नया सूर्य
इसकी नदियों का जल
हमारे जनों के हाथों में
अर्ध्य के लिए उठा है सूर्य की ओर
और ठीक वहीं
जहां पिछले अंधेरों को पार करने के बाद
ठिठकी खड़ी है यह पृथ्वी
दिन की टहनियों पर
फूले हैं गुड़हल के फूल.
नए साल की तरह / कविता किरण
गुज़रो न बस क़रीब से ख़याल की तरह
आ जाओ ज़िंदगी में नए साल की तरह
कब तक तने रहोगे यूँ ही पेड़ की तरह
झुक कर गले मिलो कभी तो डाल की तरह
आँसू छलक पड़ें न फिर किसी की बात पर
लग जाओ मेरी आँख से रूमाल की तरह
ग़म ने निभाया जैसे आप भी निभाइए
मत साथ छोड़ जाओ अच्छे हाल की तरह
बैठो भी अब ज़हन में सीधी बात की तरह
उठते हो बार-बार क्यों सवाल की तरह
अचरज करूँ ‘किरण’ मैं जिसको देख उम्र-भर
हो जाओ ज़िंदगी में उस कमाल की तरह
नए साल की पहली नज़्म / परवीन शाकिर
अंदेशों के दरवाज़ों पर
कोई निशान लगाता है
और रातों रात तमाम घरों पर
वही सियाही फिर जाती है
दुःख का शब-खूं रोज़ अधूरा रह जाता है
और शिनाख्त का लम्हा बीतता जाता है
मैं और मेरा शहर-ए-मोहब्बत
तारीकी की चादर ओढ़े
रोशनी की आहट पर कान लगाये कब से बैठे हैं
घोड़ों की टापों को सुनते रहते हैं
हद्द-ए-समाअत से आगे जाने वाली आवाजों के रेशम से
अपनी रिदा-ए-सियाह पे तारे काढ़ते रहते हैं
अन्गुश्ताने इक-इक करके छलनी होने को आए
अब बारी अंगुश्त-ए-शहादत की आने वाली है
सुबह से पहले वो कटने से बच जाए तो
नए साल की शुभकामनाएं ! / सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
नए साल की शुभकामनाएँ!
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पाँव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गाँव को
नए साल की शुभकामनाएं!
जाँते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
इस पकती रोटी को बच्चों के शोर को
चौंके की गुनगुन को चूल्हे की भोर को
नए साल की शुभकामनाएँ!
वीराने जंगल को तारों को रात को
ठंडी दो बंदूकों में घर की बात को
नए साल की शुभकामनाएँ!
इस चलती आँधी में हर बिखरे बाल को
सिगरेट की लाशों पर फूलों से ख़याल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को
हर नन्ही याद को हर छोटी भूल को
नए साल की शुभकामनाएँ!
उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे
नए साल की शुभकामनाएँ!
नए साल की सुबह : एक चित्र / सांवर दइया
इकतीस दिसम्बर की रात
की जमी हुई झील को पार कर
पूर्व की देहरी
की ओर जा रहे सूरज संग चली
नव वर्ष की भोर-दुल्हन
देहरी तक पहुंचते-पहुंचते
ठर कर अचेत हो गई
लगा है सूरज
अपनी देह से उसकी देह गरमाने
लो,
धीरे-धीरे छंटने लगा कोहरा
फूटने लगा हल्का-हल्का उजास
सुगबुगाहट-सी हुई देख देह में
संतोष की सांस ली सूरज ने
खिल-खिल उठे लोग
भोर-दुल्हन के दर्शन कर
छ्त-आंगन और चौक में
खेलने लगे बच्चे
खिलखिलाती धूप में
खिलखिलाने लगे बच्चे !
नए साल में / अश्वघोष
नए साल में
प्यार लिखा है
तुम भी लिखना
प्यार प्रकृति का शिल्प
काव्यमय ढाई आखर
प्यार सृष्टि पयार्य
सभी हम उसके चाकर
प्यार शब्द की
मयार्दा हित
बिना मोल, मीरा-सी-बिकना
प्यार समय का कल्प
मदिर-सा लोक व्याकरण
प्यार सहज संभाव्य
दृष्टि का मौन आचरण
प्यार अमल है ताल
कमल-सी,
उसमें दिखना।
नया वर्ष / अनिल जनविजय
नया वर्ष
संगीत की बहती नदी हो
गेहूँ की बाली दूध से भरी हो
अमरूद की टहनी फूलों से लदी हो
खेलते हुए बच्चों की किलकारी हो नया वर्ष
नया वर्ष
सुबह का उगता सूरज हो
हर्षोल्लास में चहकता पाखी
नन्हें बच्चों की पाठशाला हो
निराला-नागार्जुन की कविता
नया वर्ष
चकनाचूर होता हिमखण्ड हो
धरती पर जीवन अनन्त हो
रक्तस्नात भीषण दिनों के बाद
हर कोंपल, हर कली पर छाया वसन्त हो
नया वर्ष / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
नया वर्ष कुछ ऐसा हो पिछले बरस न जैसा हो
घी में उँगली मुँह में शक्कर पास पर्स में पैसा हो ।
भूल जाएँ सब कड़वी बातें पाएँ नई नई सौगातें
नहीं काटना पड़ें वर्ष में बिन बिजली गर्मी की रातें ।
कोई घपला और घुटाला काण्ड न ऐसा-वैसा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…
बच्चे खुश हों खेलें खायें रोज सभी विद्यालय जायें
पढ़ें लिखें शुभ आदत सीखें करें शरारत मौज मनायें
नहीं किसी के भी गड्ढ़े में गिरने का अंदेशा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…
युवा न भटकें गलियाँ-गलियाँ मिल जाएँ सबको नौकरियाँ
राहू केतु शुभ हो जाएँ मिल जाएँ सबकी कुण्डलियाँ
लड़की ऐश्वर्या-सी लड़का अभिषेक बच्चन जैसा हो ।।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…
स्वस्थ रहें सब वृद्ध सयाने बच्चे उनका कहना मानें
सेवा में तत्पर हो जाएँ आफिस कोर्ट कचहरी थाने
डेंगू और चिकनगुनियाँ का अब प्रतिबन्ध हमेशा हो
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…
नए वर्ष में नूतन नारे बना सकें नेता बेचारे
गाली बकलें कोई किसी को पर जूते चप्पल न मारे
नहीं विश्व में अन्त किसी का बेनजीर के जैसा हो ।
नया वर्ष कुछ ऐसा हो…
नया साल / निर्मल आनन्द
चमक रहे हैं
हमारे स्वागत में
दिन के नए पन्ने
इन्हीं में लिखनी है हमें
अपनी कहानियाँ
देना है अपना बयान
कि इन्हें बचना है
आग की लपटों से
ख़ून के धब्बों से
नया साल / राकेश भारतीय
बस आखिरी ही रात है
दीवार पर इस कैलेंडर की
पर आखिरी बार नहीं
रोया है कोई बेरोजगार
साल बदलने के साथ उम्र
बोझ बन जाने की संभावना पर
आखिरी बार नहीं कोई कमसिन
मुफलिसी में लगा रही है हिसाब
बेहतर होगा अकेले छीजते रहना
या किसी मालदार बूढ़े की लार
हाार हाार बार सहते चलना
और भी बहुत अप्रिय बातों का
सिलसिला टूटने की उम्मीद के
साल भर बाद टूटने के साथ
फिर वही मांर है सामने
नाच रहे हैं इन्सानी मुखौटों में
तमाम तरह के स्खलनकामी कीड़े
इन्सानियत की ढहती दीवारों में
नये साल में नये तरीके से
सेंध लगाने की उम्मीद में
पर टेरने में लगा है कवि
उगते हुए सूर्य के साथ सुबह
उगायेंगे हम उम्मीदों का नया साल
नया साल उन बच्चों के नाम / रंजना भाटिया
नया साल…..
उन बच्चो के नाम
जिनके पास
न ही है रोटी
न ही है ,
कोई खेल खिलोने
न ही कोई बुलाए
उन्हें प्यार से
न कोई सुनाये कहानी
पर बसे हैं ,
उनकी आंखों में कई सपने
माना कि अभी है
अभावों का बिछोना
और सिर्फ़ बातो का ओढ़ना
आसमन की छ्त है
और घर है धरती का एक कोना
पर ….
उनके नाम से बनेगी
अभी कागज पर
कुछ योजनायें
और साल के अंत में
वही कहेंगी
जल्द ही पूरी होंगी यह आशाएं …
इसलिए ,उम्मीद की एक किरण पर .
नया साल उन बच्चो के नाम ………..
नया साल ख़ुशियोँ का पैग़ाम लाए / अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी
नया साल ख़ुशियोँ का पैग़ाम लाए
ख़ुशी वह जो आए तो आकर न जाए
ख़ुशी यह हर एक व्यक्ति को रास आए
मोहब्बत के नग़मे सभी को सुनाए
रहे जज़ब ए ख़ैर ख़्वाही सलामत
रहें साथ मिल जुल के अपने पराए
जो हैँ इन दिनोँ दूर अपने वतन से
न उनको कभी यादें ग़ुर्बत सताए
नहीँ खिदमते ख़ल्क़ से कुछ भी बेहतर
जहाँ जो भी है फ़र्ज़ अपना निभाए
मुहबबत की शमएँ फ़रोज़ाँ होँ हर सू
दिया अमन और सुलह का जगमगाए
रहेँ लोग मिल जुल के आपस में बर्क़ी
सभी के दिलोँ से कुदूरत मिटाए
नया साल जब आया / अवतार एनगिल
मैने नए नए साल से कहा
भूल जाओ
यात्राओं की यातना
फिलहाल जूते उतारो
गर्म पानी लो
धो लो पाँव
यह रहा तौलिया
पोंछ डालो
सूर्य से यहाँ तक
पहुँचने की थकान
वह मुस्कुराया
खिड़की तक आया
और पहली किरन के साथ
स्नानगृह में चला गया
जब हम
साथ- साथ, पास-पास बैठे
मैने उसे गिलास थमाया
और कहा—
हर्ज क्या है
गर कुछ पल
बहक भी जाएं हम?
‘मैं तो यात्री हूँ…
कहा उसने… और….. देखा मैने
कहीं नही था वह
मेज से द्वार
द्वार से आँगन
आँगन से सड़क तक
फैली थी
नये साल की
नयी धूप ।
नया साल मुबारक हो / हरीशचन्द्र पाण्डे
झाड़ियों के उलझाव से
बाहर निकलने की कोशिश में
बैलों के गले में बँधी घंटियाँ बोल उठीं
नया साल मुबारक हो
बिगड़ी गाड़ी को
बड़ी देर से ठीक करने में जुटा मैकेनिक
गाड़ी के नीचे से उतान स्वरों में ही बोला
नया साल मुबारक हो
बरसों से मंगली लड़का ढूँढ़ते-ढूँढ़ते परेशान माँ-बाप को देख
नीबू के पत्ते की नोक पर ठिठकी
जनवरी की ओस ने कहा
नया साल मुबारक हो
कल बुलडोजर की आसानी के लिए
आज घर को चिह्नित करते कर्मचारी को देख
घर का छोटा बच्चा दूर से ही बोला पंचम में
नया साल मुबारक हो अंकल
नया साल मुबारक हो…
नया साल है और नई यह ग़ज़ल / अहमद अली ‘बर्क़ी’ आज़मी
नया साल है और नई यह ग़ज़ल
सभी का हो उज्जवल यह आज और कल
ग़ज़ल का है इस दौर मेँ यह मेज़ाज
है हालात पर तबसेरा बर महल
बहुत तल्ख़ है गर्दिशे रोज़गार
न फिर जाए उम्मीद पर मेरी जल
मेरी दोस्ती का जो भरते हैँ दम
छुपाए हैँ ख़ंजर वह ज़ेरे बग़ल
न हो ग़म तो क्या फिर ख़ुशी का मज़ा
मुसीबत से इंसाँ को मिलता है बल
यह मंदी जो है सारे संसार में
घड़ी यह मुसीबत की जाएगी टल
वह आएगा उसका हूँ मैं मुंतज़िर
न जाए खुशी से मेरा दम निकल
है बेकैफ़ हर चीज़ उसके बग़ैर
नहीं चैन मिलता मुझे एक पल
अगर आ गया मुझसे मिलने को वह
तो हो जाएगा मेरा जीवन सफल
न समझें अगर ग़म को ग़म हम सभी
तो हो जाएँगी मुशकिलें सारी हल
सभी को है मेरी यह शुभकामना
नया साल सबके लिए हो सफल
ख़ुदा से है बर्की मेरी यह दुआ
ज़माने से हो दूर जंगो जदल
नया साल हो / अशोक चक्रधर
नव वर्ष की शुभकामनाएं
हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर।
दिलों में हो फागुन, दिशाओं में रुनझुन
हवाओं में मेहनत की गूंजे नई धुन
गगन जिसको गाए हवाओं से सुन-सुन
वही धुन मगन मन, सभी गुनगुनाएं।
नव वर्ष की शुभकामनाएं
हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर।
नया साल हो आप सबको मुबारक।
ये धरती हरी हो, उमंगों भरी हो
हरिक रुत में आशा की आसावरी हो
मिलन के सुरों से सजी बांसुरी हो
अमन हो चमन में, सुमन मुस्कुराएं।
नव वर्ष की शुभकामनाएं
हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर।
नया साल हो आप सबको मुबारक।
न धुन मातमी हो न कोई ग़मी हो
न मन में उदासी, न धन में कमी हो
न इच्छा मरे जो कि मन में रमी हो
साकार हों सब मधुर कल्पनाएं।
नव वर्ष की शुभकामनाएं
हैपी न्यू इयर, हैपी न्यू इयर।
नया साल हो आप सबको मुबारक।
नव वर्ष / जगदीश व्योम
आमों पर खूब बौर आए
भँवरों की टोली बौराए
बगिया की अमराई में फिर
कोकिल पंचम स्वर में गाए।
फिर उठें गंध के गुब्बारे
फिर महके अपना चन्दन वन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!
गौरैया बिना डरे आए
घर में घोंसला बना जाए
छत की मुँडेर पर बैठ काग
कह काँव-काँव फिर उड़ जाए
मन में मिसिरी घुलती जाए
सबके आँगन हों सुखद सगुन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!
बच्चों से छिने नहीं बचपन
वृद्धों का ऊबे कभी न मन
हो साथ जोश के होश सदा
मर्यादित बनी रहे फैशन
जिस्मों की यूँ न नुयाइश हो
बदरंग हो जाए घर आँगन।
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!
घाटी में फिर से फूल खिलें
फिर स्र्के शिकारे तैर चलें
बह उठे प्रेम की मन्दाकिनि
हिम-शिखर हिमालय से पिघलें।
सोनी मचले, महिबाल चले
राँझे की हीर करे नर्तन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन !
विज्ञान ज्ञान के छुए शिखर
पर चले शांति के ही पथ पर
हिन्दी भाषा के पंख लगा
कम्प्यूटर जी पहुँचें घर-घर।
वह देश रहे खुशहाल `व्योम’
धरती पर जहाँ प्रवासी जन
नव वर्ष तुम्हारा अभिनन्दन!
नव वर्ष / महेन्द्र भटनागर
हे नव वर्ष !
तुम्हारा स्वागत-सत्कार
चाहते हुए भी
न कर सका !
तुम्हारे शुभागमन के पूर्व
कई दिनों से
विविध आयोजनों की
रूपरेखा बनाने का विचार
मन में आता रहा,
न जाने
क्या-क्या अभिनव-अनूठा समाता रहा ;
पर, कार्यरूप में
तनिक भी
परिणत न कर सका उसे !
हे नव वर्ष !
तुम आ गये बिना किसी धूमधाम के ?
तुम्हें प्यार भरी भुजाओं में
चाहते हुए भी
न भर सका !
हे नव वर्ष !
तुम सचमुच
कितने उदास हो रहे होगे !
तुम्हारे अभिनन्दन में
इस बार
एक क्या अनेक कविताएँ
लिखना चाहते हुए भी
एक पंक्ति भी तुम्हें
समर्पित न कर सका !
अरे, यह क्या हुआ ?
कुछ भी तो स्मरणीय विशिष्ट
घटित हो जाता —
जीवन-नाटक का
मंगलाचरण
या
पटाक्षेप !
पर, कुछ भी तो नहीं हुआ ;
मात्र पूर्वाभ्यास का बोध होता रहा !
हे नव वर्ष !
तुम्हें जीवन-क्रमणिका में
महत्त्वपूर्ण स्थान दिलाने की साध लिए
जागता… सोता रहा !
चाहते हुए भी
न जी सका,
न मर सका !
नव वर्ष / सौरभ
एक
आओ नववर्ष को नव बनाएँ
खुद को ही दीप बनाएँ
अँधेरों में करें उजियारा
आँधियों को दूर भगाएँ
औरों को दिखाएँ रास्ता
खुद देख सकते हो अगर।
दो
कि बीत गया नया वर्ष
दे गया कई मौन संकेत
सब बदला पर नहीं बदला आदमी
कई वर्षों से चला आ रहा यही
वही हिंसा वही भगवान
नई सदी में पुराना आदमी
क्या कर पाएगा कुछ नया
आदमी बाँटे चला जा रहा है
खुद को सब को
आणविक विघटन जब होता है पूर्ण
नहीं बनता सब कुछ भी
न आदमी न मैं न तू।
नव वर्ष / हरिवंशराय बच्चन
वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!
नव वर्ष आया है द्वार / शशि पाधा
मंगल दीप जलें अम्बर में
मंगलमय सारा संसार
आशाओं के गीत सुनाता
नव वर्ष आया है द्वार
स्वर्ण रश्मियाँ बाँध लड़ी
ऊषा प्राची द्वार खड़ी
केसर घोल रहा है सूरज
अभिनन्दन की नवल घड़ी
चन्दन मिश्रित चले बयार
नव वर्ष आया है द्वार
प्रेम के दीपक नेह की बाती
आँगन दीप जलाएँ साथी
बदली की बूँदों से घुल मिल
नेह सुमन लिख भेजें पाती
खुशियों के बाँटें उपहार
नव वर्ष आया है द्वार
नव निष्ठा नव संकल्पों के
संग रहेंगे नव अनुष्ठान
पर्वत जैसा अडिग भरोसा
धरती जैसा धीर महान
सुख सपने होंगे साकार
नव वर्ष आया है द्वार
नव वर्ष मंगलमय हो / अनिल करमेले
यह उठते हुए नए साल की सुबह है
धुंध कोहरे और काँपती धरती की
अजीब स्तब्ध सनसनी में छटपटाती
सूरज भी जैसे मुँह छुपा रहा
बीते साल के रक्तिम सवालों से
चमक रहे हैं मक्कार चेहरे वैसे ही
वैसे ही जुटे हुए हैं
सभी किस्म के हत्यारे
करोड़ों बच्चे काम के रास्ते में हैं
उत्तर आधुनिक नरक में हैं करोड़ों स्त्रियाँ
एक बड़े व्यापारिक घराने
और उस पर लुढ़कते शेयर बाज़ार पर
औंधे मुँह पड़ा है मीडिया
और बिकती गवाहियों की
क्रुर मुस्कराहटों पर
हाय-हाय करता हुआ न्याय
मुआवज़े की कुछ नहीं जैसी राहत से
ज़हरीली साँसों को बमुश्किल थामे हुए
फिर तिनके जुटा रहे हैं
शहर के बाशिंदे
इस देश के सच्चे धार्मिक
फिर रोने-रोने को हैं
अधर्मियों की कारगुज़ारियों पर
फिर शुरू होने जा रही हैं
सियासी कलाबाजियाँ
मधुबालाओं और मीनाकुमारियों
की जूतियों की धूल
कई मल्लिकाएँ
अश्लील चुटकुलों की तरह
हमारे ड्राइंग रूम में
बरस रही हैं लगातार
कल जैसा ही हाहाकार है चहुँ ओर
कल जैसे ही दु:ख हैं और
आँखें हैं आँसू भरी-भरी
कल के असीम जश्न के बाद
यह नया साल है
जीवन है पेड़ हैं बच्चे हैं
उम्मीदें कायम हैं
अब का समय सुख का बीते
नए साल में यही मंगल कामनाएँ हैं।
नवल हर्षमय नवल वर्ष यह / सुमित्रानंदन पंत
नवल हर्षमय नवल वर्ष यह,
कल की चिन्ता भूलो क्षण भर;
लाला के रँग की हाला भर
प्याला मदिर धरो अधरों पर!
फेन-वलय मृदु बाँह पुलकमय
स्वप्न पाश सी रहे कंठ में,
निष्ठुर गगन हमें जितने क्षण
प्रेयसि, जीवित धरे दया कर!
नववर्ष / सोहनलाल द्विवेदी
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, नूतन-निर्माण लिये,
इस महा जागरण के युग में
जाग्रत जीवन अभिमान लिये;
दीनों दुखियों का त्राण लिये
मानवता का कल्याण लिये,
स्वागत! नवयुग के नवल वर्ष!
तुम आओ स्वर्ण-विहान लिये।
संसार क्षितिज पर महाक्रान्ति
की ज्वालाओं के गान लिये,
मेरे भारत के लिये नई
प्रेरणा नया उत्थान लिये;
मुर्दा शरीर में नये प्राण
प्राणों में नव अरमान लिये,
स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!
तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!
युग-युग तक पिसते आये
कृषकों को जीवन-दान लिये,
कंकाल-मात्र रह गये शेष
मजदूरों का नव त्राण लिये;
श्रमिकों का नव संगठन लिये,
पददलितों का उत्थान लिये;
स्वागत!स्वागत! मेरे आगत!
तुम आओ स्वर्ण विहान लिये!
सत्ताधारी साम्राज्यवाद के
मद का चिर-अवसान लिये,
दुर्बल को अभयदान,
भूखे को रोटी का सामान लिये;
जीवन में नूतन क्रान्ति
क्रान्ति में नये-नये बलिदान लिये,
स्वागत! जीवन के नवल वर्ष
आओ, तुम स्वर्ण विहान लिये!
नवीन वर्ष / हरिवंशराय बच्चन
तमाम साल जानता कि तुम चले,
निदाघ में जले कि शीत में गले,
मगर तुम्हें उजाड़ खण्ड ही मिले,
मनुष्य के लिए कलंक हारना।
अतीत स्वप्न, मानता, बिखर गया,
अतीत, मानता, निराश कर गया,
अतीत, मानता, निराश कर गया,
तजो नहीं भविष्य को सिंगारना।
नवीन वर्ष में नवीन पथ वरो,
नवीन वर्ष में नवीन प्रण करो,
नवीन वर्ष में नवीन रस भरो,
धरो नवीन देश-विश्व धारणा।
फिर वर्ष नूतन आ गया / हरिवंशराय बच्चन
फिर वर्ष नूतन आ गया!
सूने तमोमय पंथ पर,
अभ्यस्त मैं अब तक विचर,
नव वर्ष में मैं खोज करने को चलूँ क्यों पथ नया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
निश्चित अँधेरा तो हुआ,
सुख कम नहीं मुझको हुआ,
दुविधा मिटी, यह भी नियति की है नहीं कुछ कम दया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
दो-चार किरणें प्यार कीं,
मिलती रहें संसार की,
जिनके उजाले में लिखूँ मैं जिंदगी का मर्सिया।
फिर वर्ष नूतन आ गया!
मुबारक हो नया साल / नागार्जुन
फलाँ-फलाँ इलाके में पड़ा है अकाल
खुसुर-पुसुर करते हैं, ख़ुश हैं बनिया-बकाल
छ्लकती ही रहेगी हमदर्दी साँझ-सकाल
–अनाज रहेगा खत्तियों में बन्द !
हड्डियों के ढेर पर है सफ़ेद ऊन की शाल…
अब के भी बैलों की ही गलेगी दाल !
पाटिल-रेड्डी-घोष बजाएँगे गाल…
–थामेंगे डालरी कमंद !
बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
–अब तो बाँटिए मित्रों में कलाकंद !
मुस्कानों के बीज-नव वर्ष के दोहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु
पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार ।
बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार ।।
जीवन कहते हैं जिसे, है सुख-दुख का मेल ।
ख़ुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल ।।
अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत-भरी कमीज़ ।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज ।।
भाई ने परदेस से, किया बहिन को फोन ।
तेरी खुशियों से बड़ा, मेरा जग में कौन ।।
घर में या परदेस में ,सबसे मुझको प्यार ।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार ।।
नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल ।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल ।।
मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल ।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल ।।
अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष ।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष ।।
वर्ष नया / अजित कुमार
कुछ देर अजब पानी बरसा ।
बिजली तड़पी, कौंधा लपका …
फिर घुटा-घुटा सा, घिरा-घिरा
हो गया गगन का उत्तर-पूरब तरफ़ सिरा ।
बादल जब पानी बरसाये
तो दिखते हैं जो,
वे सारे के सारे दृश्य नज़र आये ।
छप-छप,लप-लप,
टिप-टिप, दिप-दिप,-
ये भी क्या ध्वनियां होती हैं ॥
सड़कों पर जमा हुए पानी में यहां-वहां
बिजली के बल्बों की रोशनियां झांक-झांक
सौ-सौ खंडों में टूट-फूटकर रोती हैं।
यह बहुत देर तक हुआ किया …
फिर चुपके से मौसम बदला
तब धीरे से सबने देखा-
हर चीज़ धुली,
हर बात खुली सी लगती है
जैसे ही पानी निकल गया ।
यह जो आया है वर्ष नया-
वह इसी तरह से खुला हुआ ,
वह इसी तरह का धुला हुआ
बनकर छाये सबके मन में ,
लहराये सबके जीवन में ।
दे सकते हो ?
–दो यही दुआ ।
साथी, नया वर्ष आया है / हरिवंशराय बच्चन
साथी, नया वर्ष आया है!
वर्ष पुराना, ले, अब जाता,
कुछ प्रसन्न सा, कुछ पछताता
दे जी भर आशीष, बहुत ही इससे तूने दुख पाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ इसका स्वागत करने को,
स्नेह बाहुओं में भरने को,
नए साल के लिए, देख, यह नई वेदनाएँ लाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
उठ, ओ पीड़ा के मतवाले!
ले ये तीक्ष्ण-तिक्त-कटु प्याले,
ऐसे ही प्यालों का गुण तो तूने जीवन भर गाया है!
साथी, नया वर्ष आया है!
साल की आख़िरी रात / वेणु गोपाल
एक छलांग
- लगाई है
- उजाले ने
अंधेरे के पार
- पाँव
- हवा में–
और
- मैं
- अपनी डायरी पर
- झुका हुआ
- अपनी डायरी पर
उसके
- धरती छूने का
- इन्तज़ार
- करता
- इन्तज़ार
रात के बारह बजने में
अभी
काफ़ी देर है।
साल मुबारक! / अमृता प्रीतम
जैसे सोच की कंघी में से
एक दंदा टूट गया
जैसे समझ के कुर्ते का
एक चीथड़ा उड़ गया
जैसे आस्था की आँखों में
एक तिनका चुभ गया
नींद ने जैसे अपने हाथों में
सपने का जलता कोयला पकड़ लिया
नया साल कुझ ऐसे आया…
जैसे दिल के फ़िक़रे से
एक अक्षर बुझ गया
जैसे विश्वास के काग़ज़ पर
सियाही गिर गयी
जैसे समय के होंटो से
एक गहरी साँस निकल गयी
और आदमज़ात की आँखों में
जैसे एक आँसू भर आया
नया साल कुछ ऐसे आया…
जैसे इश्क़ की ज़बान पर
एक छाला उठ आया
सभ्यता की बाँहों में से
एक चूड़ी टूट गयी
इतिहास की अंगूठी में से
एक नीलम गिर गया
और जैसे धरती ने आसमान का
एक बड़ा उदास-सा ख़त पढ़ा
नया साल कुछ ऐसे आया…
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