Motivational Poems in Hindi अर्थात इस आर्टिकल में आप पढेंगे, प्रेरणादायक हिन्दी कविताएँ जोकि आपकी इच्छा शक्ति को किसी कार्य को पूरा करने में लगाये रखेंगी.
तू युद्ध कर
Contents
माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ…… खुद अपनी राह बना………………………..
माना सूरज अँधेरे में खो गया है……
पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन………………………..
सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर………………………..
इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर – बस युद्ध कर………………………..
हे वीर पुरुष
हे वीर पुरुष, पुरुषार्थ करो
तुम अपना मान बढ़ाओ न …….
अपनी इच्छा शक्ति के बल पर
उनको जवाब दे आओ न ………………………..
वे वीर पुरुष होते हीं नहीं
जो दूजों को तड़पाते हैं
वे वीर पुरुष होते सच्चे
जो दूजों का मान बढ़ाते हैं………………………..
इतनी जल्दी थक जाओ नहीं
चलना तुमको अभी कोसों है
पांडव तो अब भी पाँच हीं हैं
पर कौरव अब भी सौ-सौ हैं………………………..
– विद्या वैभव भरद्वाज
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
जिन राहों पर दुश्मनों की निगाह होती है,
वो राहें ही हमारे लिए सर्वोपरि होती हैं !
मुश्किलों के राह मे चलने के कारण,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
लोगों को कुछ पाने की तड़प होती है,
पर उनकी ये ख्वाब पूरी नहीं होती है!
चूंकि उनके जीवन में आलस्य होती हैं,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
बीते हुए समय कभी नहीं लौटते हैं,
उन राहों में अपने भी खो जाते हैं!
फूलों और कांटों के ऊपर बनी,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
काबिलियत से ही लोगों की पहचान होती है,
कर्मों से ही सपने स्वीकार होती हैं!
उन सब कर्मों को आज का अभी करें क्योंकि,
वे राहें ही इंसान की असल मंजिल होती हैं!!
– आदित्यराज
चलना चाहते हैं
हम राह को बदलना नहीं चाहते हैं,
हम राह बनाना चाहते हैं…
जो खुद पथ के राही हो,
वो सिर्फ राह चलना चाहते हैं…
जिंदगी की सफर खत्म नहीं होती,
वो सिर्फ चलती ही रहती है…
भले हम रूक जाये खुशी से,
वो दुःख में भी चलते रहते हैं…
भाग्य मंदिर जाकर नहीं बदलते हैं,
भाग्य तो खुद ही बनते हैं…
और जो कर्मवीर होते हैं,
वो भाग्य के भरोसे नहीं रहते हैं…
रास्ते कभी कठिन नहीं होते,
वह तो सीधे – सरल होते हैं…
जो यह जानकर भी आगे न बढ़े,
कसम से! वो बड़े मुर्ख होते हैं…
– आदित्यराज
बस चलते जाना है
राह में चलते जाना है |
मंजिल खुद ही पाना है |
दूर दूर तक चलते,
बस चलते जाना है ||
रास्ते खुद ही बनाना है |
आगें बढ़ते जाना है |
दूर दूर तक चलते,
बस चलते जाना है ||
लक्ष्य भेद कर हमको ,
आगें जाना है |
सपने को पूरा करके,
हमे मंजिल पाना है ||
लाख मुसीबत आये कोई ,
उसे ऱास्ते से हटाना है |
दूर दूर तक चलते,
बस चलते जाना है ||
More Hindi Inspirational/Motivational Poems
चित्त की सुनो
चित्त की सुनो रे मनवा
चित्त की सुनो
बाहर घोर अंध्काल
संभल कर चलो …
राह् कई है, अनजानी सी
देख् पग धरो, रे मनवा
चित्त की सुनो…
अज्ञान- के कारे बादल
गरजे बरसें बिन कोई मौसम
आपने मन की लौ को जगा कर
रखना तू हर पल
रे मनवा ,चित्त की सुनो…
ऐसे चित्त का चित्त रमाये ध्यान करे हरि का
भव्सागर पार हो जाए
कलयुग में
जगा कर रोम रोम और प्राण
रे मनवा ,
चित्त की सुनो हर बार
अपने अपने हिस्से का आसमान
वो नीला आसमान ,
कुछ तेरा , कुछ मेरा
बाँट लिया आपस में
हमने अपने हिस्से का आसमान
कई रंग के ख्वाब यहाँ …
जीने के हजारों मक़ाम…
तेरी जेब में दुनिया को खरीदने का सारा सामान
मैंने भी जोड़े चंद सिक्के ,
अपनाने कुछ ऐश ओ आराम ..
पर वो शक़्स रहता जो
खुले आसमान के तले
ना जुटा पाया कुछ सामान
ना पहचाने दुनिया उसे ,
ना अपनाये अपनों में कहाँ
…
छीन गयी जिसकी
एक बिघा ज़मीन
ढोये वो बोझ, गैरों का यहाँ …
वो राह् पर भूकाबैठा …
तू चटकारे लगाये यहाँ …
क्या खूब जिया तू इनसान
कैसा यह फ़ासला …
इनसान …तू
इनसान से जुदा यहाँ !
उस अनपढ़ , के हाथों
ना दी किसी ने एक
कलम और किताब
छीन लिया बचपन
थमा दी लाठी
दूर् कर
भेद कर
अलग कर
इनसान को ,
इनसान से यहाँ…
बस
बाँट लिया आपस में हमने
अपने अपने हिस्से का आसमान !
रंगरेज
तक़दीर मेरी क्या रंग लाती है
तेरे दर पर आने के बाद
तारे गिन गिन हो गई सुबह
कहता यह दिल
मत कर नादानियाँ…
वो थाम ले जो हाथ तेरा
अंबर तक चले जाना
जो ना नजर मिलाये तो
चाँद को धरती पर बुला लाना…
आँखों में ख्वाब बेशुमार
हलका सा खुमार
ग़र हम है तेरे रंगरेज
तुझ पर भी चदा होगा
मोहब्बत का बुखार
घोंसला
आज तूफान आया था घर के बरामदे मेँ
उजड़ गया तिनकों का महल एक ही झोंके मेँ
उस चिड़िया की आवाज़ आज ना सुनायी दी
कई दिनो से
शायद
फिर से जूट गयी बेचारी सब सँवारने मेँ
बनते बिगड़ते हौंसले से बना फिर वो घोंसला
पर किसी को ना दिखा चिड़िया का वो टूटता पंख नीला
अब कैसे वो उड़े नील गगन में
जहाँ बसते थे उसके अरमान !
सबर का इम्तिहान उसने भी दिया
बचा लिया घरौंदा…
मगर कुर्बान ख़ुद को किया
ऐ मन , तू है चिरायु!
घने बादलों के साये मँडराते है आज
चहुं ओर छाया है अन्धेरा
ना कोइ रौशनी , ना कोई आस्
फिर भी चला है यह मन अकेला.
ना डरे यह काले साये से
ना छुपा सके इसे कोहरा
अपनी ही लौ से रोशन करे यह दुनिया
चले अपनी डगर…
हो अडिग, फिर भी अकेला …
ना झुकता है यह मन किसी तूफान में
ना टूटे होंसला इसका कभी कही से
एक तिनके को भी अपनी उम्मीद बना ले…
ऐसा है विश्वास बांवरे मन का…
ना थके वो , ना रुके वो
मंज़िल है दूर् , दूर् है सवेरा
चला जाए ऐसे, पथ पर निरंतर
ऐ मन , तू है चिरायु …
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शानदार पोस्ट ……… बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति … !! 🙂 🙂
nice poem dil khush kar dia
very inspirational