Mother Teresa Biography in Hindi अर्थात इस article में आपके लिए मदर टेरेसा की जीवनी हिन्दी में दी गयी है. मदर टेरेसा के जीवन से हम सब को बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
मदर टेरेसा
कलियुग में भी ऐसे अनेक महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने सत्य, अहिंसा, धर्म और परोपकार की मशाल को प्रज्वलित किया । बीसवीं सदी में ऐसी ही एक महान आत्मा अवतरित हुई । उसने भी अपना सपूर्ण जीवन मानव-सेवा में अर्पण किया । आज विश्व का बच्चा-बच्चा उस महान विभूति के सद्कायों का गुणगान करता है । करोड़ो-अरबों मांओं की कोख से जन्मे व्यक्तियों की मां बनी इस महान आत्मा का नाम था- ‘मदर टेरेसा’ ।
27 अगस्त, 1910 में यूगोस्ताविया के स्कोपजे में मदर टेरेसा का जन्म हुआ । उनका बचपन का नाम एग्नेस था । सन् 1917 में उनके पिता की मृत्यु हुई । वे एक भवन निर्माता थे । सन् 1927 में मदर टेरेसा भारत आई ।
भारत आकर उन्होंने दीन-दुखियों और सामाजिक तिरस्कार से जूझते हुए लोगों को एक मां का सच्चा प्यार दिया । कोढ़ी, अपाहिज, वृद्ध और गरीब बच्चों के लिए मदर टेरेसा ईश्वर का प्रतिरूप बनी । जिन कोढ़ियों के शरीर से मवाद रिसता था, घावों पर मक्खियां भिनभिनाती थी, जो नित प्रति मृत्यु की अभिलाषा में जीवित थे, जिन्हें समाज ने तिरस्कृत किया, उनके समीप से गुजरना भी उगम उगदमी के लिए दुष्कर था, परंतु मदर टेरेसा साधारण संसारी नहीं थीं । उन्होंने उन कोढ़ियों को न सिर्फ छुआ, बल्कि उनकी सेवा-सुश्रुषा भी की । बड़े ही तन्मय भाव से, जिस प्रकार ईश्वर की भक्ति में लीन भक्त । मदर टेरेसा दीन-दुखियों की भक्त थीं, उन्हें उनके शरीर से पूणा नहीं होती थी । उनके हृदय में दया उगैर प्रेम का ऐसा सागर उमड़ता था कि रोगी स्वयं को निरोगी समझने लगते थे ।
मदर टेरेसा का एक ही धर्म था, मानव सेवा । सर्वधर्म, समभाव की भावना को वे दीनहित में समाहित रखती थीं । उनके सेवा-उद्देश्य वाले जीवन में सैकड़ों बाधाएं उत्पन्न हुई, परंतु उन्होंने डटकर इन बाधाओं का मुकाबला किया । हर अच्छे कार्य के आरम्भ में बाधाएं आनी स्वाभाविक हैं । बाधाएं ही उद्देश्य की तरफ अग्रसर होने का साहस देती हैं । मदर टेरेसा ने ऐसी अनेक बाधाओं को अपनी दृढ़ता, सेवा और स्नेह से पराजित किया । मदर टेरेसा ईसाई थीं । उगलोचक उन पर धार्मिक कट्टरता का आरोप लगाते थे, किंतु यह एक भ्रामक उगैर निरर्थक उगरोप था । मदर टेरेसा प्रत्येक सेवा कार्य को प्रोत्साहन देती थीं । जयपुर की ‘ भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति’ इसका उदाहरण है ।
मदर टेरेसा वृद्धावस्था में भी उतनी ही कार्यशील थी, जितनी तरुणावस्था में । सेवा-भाव उनकी ऊर्जा थी । सेवा-भाव से ही वे इस चमत्कार में सफल हुईं कि सैंतालीस वर्ष तक वे उरपने उद्देश्य व)ा सफलतापूर्वक पालन करती रहीं । कई असामाजिक तत्त्वों ने मदर टेरेसा के परमार्थ कार्यों को सेवा- भाव की उगडृ में धर्म-परिवर्तन का षड्यंत्र बताया, परंतु समय के बीतते-बीतते उन असामाजिक तत्त्वों की बोलती बंद हो गई । इससे बढ्कर चमत्कार क्या होगा कि उगज मदर टेरेसा जीवित नहीं हैं, परंतु उनका उद्देश्य उनके अनुयायी पुर्णरूपेण निभा रहे हैं । उगज भी मदर टेरेसा द्वारा स्थापित सेवा-सदन, मदर-होम पूरी लगन से मानव-सेवा में लीन हैं । संसार के सभी देश मदर टेरेसा का कार्य क्षेत्र थे । वे जहां भी गईं, वहीं अपना निर्मल प्रेम बांटा । उनकी दृष्टि में सभी दुखी प्राणी एक जैसे थे । तिरस्कृत चाहे फिलिस्तीनी हों या भारतीय, मदर टेरेसा ने सबके दुखों पर अपना रनेहिल मरहम लगाया । अनाथ बच्चे, बेसहारा वृद्ध उरौर गंभीर रोग से पीड़ित रोगी मदर के रनेहिल स्पर्श से मानो उरपने सारे दुख-दर्द भूल जाते थे । उनके सेवा-सदनों में हजारों ऐसे व्यक्ति थे । मदर टेरेसा सबका उपचार करतीं उगैर स्नेह का प्रसाद भी बांटतीं । मदर टेरेसा के उग्नुयायियों की संख्या भी हजारों में थी । मदर टेरेसा के सेवा-कार्य ही उन उरनुयायियों की प्रेरणा थे । मदर टेरेसा स्वयं महात्मा गांधी से प्रेरित थीं, हालांकि वे कभी गांधीजी से नहीं मिल सकीं । गांधीजी ने अस्पृश्यता विरोध, दलित, हरिजन और कुष्ठ रोगियों के लिए सेवा कार्य का दोलन चलाया था । मदर टेरेसा को गांधीजी के इन कार्यों ने बहुत प्रभावित किया । इस प्रेरक आह्वान को मदर टेरेसा ने सुना और स्वयं भी इसी पथ पर चल पड़ी । फ्लोरेंस नाइटेंगल (लेडी विद द लैम्प, स्पेन की नन टेरेसा और सेंट उगँफ असीसी जैसे महान परमार्थियों से प्रेरणा लेकर मदर टेरेसा ने जीवन- भर परमार्थ के पथ पर सेवा-भाव का दीपक प्रज्वलित रखा ।
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