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नैतिकता, जिसे हम अंग्रेजी में Morality कहते हैं, मानव जीवन का एक अतिआवश्यक अंग है। यदि हम नैतिकता के बिना जीवन जीने का प्रयास करें, तो समाज का संतुलन पूरी तरह से बिगड़ सकता है। नैतिकता का महत्व केवल किसी व्यक्ति विशेष के नैतिक रवैये तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की संपूर्ण संरचना और उसकी स्थिरता के लिए भी आवश्यक है। इस निबंध में, हम नैतिकता के विभिन्न पहलुओं, उसके तत्वों, उसकी आवश्यकता, और उसकी शिक्षा पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
नैतिकता का परिचय
नैतिकता का मूल रूप से अर्थ है सही और गलत के बीच का अंतर समझना और सही का अनुसरण करना। यह वह दिशा-निर्देश है, जो हमें हमारे कार्यों में नैतिकता का पालन करने के लिए प्रेरित करता है। नैतिकता एक प्रकार की आंतरिक अनुशासन है, जो व्यक्ति को अनुचित व्यवहार से रोकता है और उसे उचित आचार और विचारों को अपनाने के लिए प्रेरित करता है।
नैतिकता के तत्व
नैतिकता किसी व्यक्ति के आचार-व्यवहार में निम्नलिखित तत्वों के माध्यम से परिलक्षित होती है:
- ईमानदारी: यह नैतिकता का पहला और सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। ईमानदार व्यक्ति हमेशा सच बोलता है और झूठ से दूर रहता है।
- निष्ठा: निष्ठा नैतिकता का आधार होती है। यह व्यक्ति को अपने कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के प्रति समर्पित बनाती है।
- न्याय: न्याय करना और समाज में न्याय की स्थापना करना नैतिकता का अहम हिस्सा है।
- संवेदनशीलता: दूसरों की समस्याओं और उनके दुख-दर्द को समझना और उनकी मदद करने की भावना नैतिकता का महत्वपूर्ण अंग है।
- स्वानुभूति: दूसरों के विचारों और भावनाओं को समझने की क्षमता नैतिक दृष्टिकोण से जरूरी है।
नैतिकता की आवश्यकता
आज के समाज में नैतिकता की अत्यधिक आवश्यकता है। नैतिकता के अभाव में हमारा समाज अराजकता, ऊपद्रव और अस्थिरता का शिकार हो सकता है। नैतिकता न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
समाज में नैतिकता की भूमिका
समाज एक संगठित इकाई है, जिसमें विभिन्न व्यक्ति, समूह और संस्थाएँ शामिल हैं। नैतिकता समाज की नींव है, जो उसे स्थिरता और संतुलन देती है। नैतिकता के बिना समाज में अनुशासनहीनता और अराजकता फैल सकती है। नैतिकता समाज के विभिन्न घटकों जैसे परिवार, विद्यालय, कार्यस्थल, और समुदाय में तालमेल बनाए रखने में सहायक होती है।
व्यक्तिगत जीवन में नैतिकता
नैतिक आचरण व्यक्ति को आत्मसम्मान और आत्मविश्लेषण की उच्चतम स्थिति पर पहुंचाता है। नैतिकता के पालन से व्यक्तियों का व्यक्तित्व निखरता है और उन्हें समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
नैतिकता की शिक्षा
नैतिकता की शिक्षा देना अत्यंत महत्वपूर्ण है और यह बाल्यावस्था से ही प्रारंभ होनी चाहिए। विद्यालयों और परिवारों में बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा दी जानी चाहिए, ताकि वे सही और गलत के बीच का अंतर समझ सकें और अपने जीवन में नैतिकता को अपनाने के लिए प्रेरित हो सकें।
विद्यालयों में नैतिकता की शिक्षा
विद्यालयों में नैतिक शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए। विद्यालय हमारे जीवन का वह स्थान होता है, जहाँ हम ज्ञान और शिक्षा प्राप्त करते हैं। यदि इस स्थान पर नैतिकता की शिक्षा दी जाए, तो बच्चे बचपन से ही नैतिक मूल्यों को आत्मसात करेंगे और उनका पालन करेंगे।
परिवार में नैतिकता की शिक्षा
परिवार हमारे जीवन का वह पहला स्कूल होता है, जहाँ हम सबसे पहले नैतिक मूल्यों की शिक्षा प्राप्त करते हैं। माता-पिता और परिवार के अन्य सदस्य बच्चों को अनुशासन, सम्मान, ईमानदारी और संवेदनशीलता के महत्व को सीखाते हैं।
नैतिकता का सामाजिक और राजनैतिक संदर्भ
समाज और राजनीति दोनों में ही नैतिकता की अत्यधिक आवश्यकता होती है। सामाज में नैतिकता के अभाव में हिंसा, भ्रष्टाचार और अन्य असामाजिक कृत्यों का प्रचलन बढ़ सकता है। राजनीति में नैतिकता के अभाव में भ्रष्टाचार, सत्ता का दुरुपयोग, और अन्य अनैतिक गतिविधियों का प्रचलन हो सकता है।
सामाजिक नैतिकता
सामाजिक नैतिकता वह नैतिकता है, जो एक समाज के सभी घटकों में तालमेल और सहयोग स्थापित करती है। यह नैतिकता व्यक्ति को अपने सामाजिक कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों के प्रति संवेदनशील बनाती है।
राजनैतिक नैतिकता
राजनैतिक नैतिकता का महत्व राजनीति के क्षेत्र में अत्यधिक होता है। राजनेताओं और सार्वजनिक अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी, निष्ठा और संवेदनशीलता के साथ करना चाहिए। यदि राजनेता और अधिकारी नैतिकता का पालन करेंगे, तो जनता का विश्वास उन पर बढ़ेगा और समाज में स्थिरता और संतुलन बना रहेगा।
नैतिकता का इतिहास
नैतिकता का इतिहास अत्यंत पुराना है और इसका संबंध मानव सभ्यता की शुरुआत से ही है। हर सभ्यता और संस्कृति में नैतिकता का विशेष स्थान रहा है। भारतीय संस्कृति में नैतिकता को अत्यधिक महत्व दिया गया है और हमारे प्राचीन ग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद, महाभारत, रामायण, और भगवद गीता में नैतिकता का विस्तृत वर्णन किया गया है।
प्राचीन भारतीय नैतिकता
प्राचीन भारतीय संस्कृति में नैतिकता को धर्म की संज्ञा दी गई है। हमारे वेदों में नैतिकता का स्थान सर्वोपरि है। उपनिषदों में नैतिकता के नियमों का उल्लेख है, जो हमें सही जीवन जीने की शिक्षा देते हैं। महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों में भी नैतिकता का वर्णन मिलता है, जिसमें राम, युधिष्ठिर, और विभीषण जैसे पात्रों ने अपने नैतिक आचारण से समाज को दिशा दिखाई।
पश्चिमी नैतिकता
पश्चिमी सभ्यता में भी नैतिकता का विशेष स्थान है। ग्रीक दार्शनिक अरस्तू, प्लेटो, और सुकरात ने नैतिकता पर अपने गहन विचार प्रकट किए। ईसाई धर्म में भी नैतिकता को अत्यधिक महत्व प्राप्त है और बाइबिल में नैतिक आदर्शों का विस्तृत वर्णन है।
नैतिकता के समसामयिक मुद्दे
आज के दौर में नैतिकता के कई समसामयिक मुद्दे सामने आए हैं, जिनमें नैतिकता का अनुकरण महत्वपूर्ण होता जा रहा है। भौतिकवाद, उपभोक्तावाद, और टेक्नोलॉजी ने हमारे जीवन को प्रभावित किया है और नैतिकता के प्रचलन में कुछ चुनौतियाँ प्रस्तुत की हैं।
भौतिकवाद और नैतिकता
भौतिकवाद के इस युग में लोग अपने काम, रिश्तों, और सामाजिक जीवन में नैतिकता को नजरअंदाज करने लगे हैं। धन, सत्त्ता, और भौतिक सुख-सुविधाओं की अंधी दौड़ ने नैतिक मूल्यों को कमजोर कर दिया है।
उपभोक्तावाद और नैतिकता
उपभोक्तावाद ने हमारे जीवन में नैतिकता के तत्वों को प्रभावित किया है। उपभोक्तावादी समाज में लोग अपने व्यक्तिगत फायदों के लिए नैतिक मूल्यों को नजरअंदाज करने लगे हैं।
टेक्नोलॉजी और नैतिकता
टेक्नोलॉजी के अत्यधिक उपयोग ने भी हमारे जीवन में नैतिकता के कई मुद्दे उत्पन्न किए हैं। सोशल मीडिया, इंटरनेट, और अन्य डिजिटल माध्यमों के दुरुपयोग से नैतिकता की सीमाएँ धुंधली हो गई हैं।
नैतिक आदर्श और महापुरुष
इतिहास और वर्तमान दोनों में अनेक महापुरुषों ने अपने जीवन से नैतिकता के आदर्श प्रस्तुत किए हैं। इन महापुरुषों ने अपने नैतिक आचरण से समाज को सही दिशा दिखाई और नैतिकता के महत्व को समझाया।
महात्मा गांधी
महात्मा गांधी, जिन्हें बापू के नाम से भी जाना जाता है, नैतिकता के सबसे बड़े आदर्श प्रस्तुतकर्ताओं में से एक माने जाते हैं। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों का अनुसरण कर स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और समाज को नैतिकता का पाठ पढ़ाया।
स्वामी विवेकानंद
स्वामी विवेकानंद ने नैतिकता के महत्व को अपने उपदेशों और शिक्षाओं के माध्यम से समझाया। उन्होंने सच्चाई, आत्म-संयम, और निष्ठा के महत्व पर जोर दिया और युवाओं को नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा दी।
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, भारत के पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक, ने अपने जीवन में नैतिकता का उच्चतम पालन किया। उन्होंने सत्यनिष्ठा, कठोर परिश्रम, और संवेदनशीलता के महत्व को समझाया और समाज को नैतिकता का आदर्श प्रस्तुत किया।
निष्कर्ष
नैतिकता हमारे जीवन का आधार है। यह वह मार्गदर्शक है, जो हमें सही और गलत के बीच का अंतर समझाती है और हमारे कार्यों को सही दिशा में ले जाती है। नैतिकता का पालन हमारे समाज, संस्कृति, और राष्ट्र की मजबूती और स्थिरता के लिए आवश्यक है। हमें अपने जीवन में नैतिकता के मूल्यों को आत्मसात करना चाहिए और उन्हें दूसरों के साथ भी साझा करना चाहिए।
नैतिकता की शिक्षा और उसके महत्व को समझ कर ही हम एक बेहतर समाज की स्थापना कर सकते हैं। नैतिकता का पालन करने से व्यक्ति न केवल अपने जीवन में सफल होता है, बल्कि समाज में भी एक अच्छी छवि प्रस्तुत करता है। अतः हमें नैतिकता को अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए और इसका पालन करना चाहिए।