Moral Stories in Hindi अर्थात इस आर्टिकल में आप पढेंगे, हिन्दी में नैतिक कहानियां. हमने आपके लिए 5 नैतिक कहानियों की एक बहुत बढ़िया collection तैयार की है.
आपकी सुविधा के लिए हमने हिंदी moral stories को लिखिती रूप के इलावा videos के रूप में भी दिया है.
Moral Stories in Hindi – हिन्दी में नैतिक कहानियां
1. First Hindi Moral Story – बदलाव
जिन्दगी में बहुत सारे अवसर ऐसे आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी तो सब कुछ बदलना संभव नहीं है और क्या पता मेरा ये छोटा सा बदलाव कुछ क्रांति लेकर आएगा या नहीं लेकिन मैं आपको बता दूँ हर चीज़ या बदलाव की शुरुआत बहुत ही basic ढंग से होती है । कई बार तो सफलता हमसे बस थोड़े ही कदम दूर होती है कि हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रख कर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नहीं होता और वो हमारी जिन्दगी में एक नीव का पत्थर भी साबित हो सकता है । चलिए एक कहानी पढ़ते है इसके द्वारा समझने में आसानी होगी कि छोटा बदलाव किस कदर महत्वपूर्ण है ।
एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था । आते जाते वो एक बूढी महिला को देखता था । वो बूढी महिला तालाब के किनारे छोटे छोटे कछुवों की पीठ को साफ़ किया करती थी । एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची ।
वो लड़का महिला के पास गया और उनका अभिवादन कर बोला ” नमस्ते आंटी ! मैं आपको हमेशा इन कछुवों की पीठ को साफ़ करते हुए देखता हूँ आप ऐसा किस वजह से करते हो ?” महिला ने उस मासूम से लड़के को देखा और इस पर लड़के को जवाब दिया ” मैं हर रविवार यंहा आती हूँ और इन छोटे छोटे कछुवों की पीठ साफ़ करते हुए सुख शांति का अनुभव लेती हूँ ।” क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उस पर कचता जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है इसलिए ये कछुवे तैरने में मुश्किल का सामना करते है । कुछ समय बाद तक अगर ऐसा ही रहे तो ये कवच भी कमजोर हो जाते है इसलिए कवच को साफ़ करती हूँ ।
यह सुनकर लड़का बड़ा हैरान था । उसने फिर एक जाना पहचाना सा सवाल किया और बोला “बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रहे है लेकिन फिर भी आंटी एक बात सोचिये कि इन जैसे कितने कछुवे है जो इनसे भी बुरी हालत में है जबकि आप सभी के लिए ये नहीं कर सकते तो उनका क्या क्योंकि आपके अकेले के बदलने से तो कोई बड़ा बदलाव नहीं आयेगा न ।
2. Second Hindi Moral Story – अपना अपना नजरिया
एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे । तभी एक राहगीर वंहा से गुजरा तो महात्मा को नदी में नहाते देख वो उनसे कुछ पूछने के लिए रुक गया । वो संत से पूछने लगा ” महात्मन एक बात बताईये कि यंहा रहने वाले लोग कैसे है क्योंकि मैं अभी अभी इस जगह पर आया हूँ और नया होने के कारण मुझे इस जगह को कोई विशेष जानकारी नहीं है ।”
इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि ” भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम जिस जगह से आये वो वंहा के लोग कैसे है ?” इस पर उस आदमी ने कहा “उनके बारे में क्या कहूँ महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यंहा बसेरा करने के लिए आया हूँ ।” महात्मा ने जवाब दिया बंधू ” तुम्हे इस गाँव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे ।” वह आदमी आगे बढ़ गया ।
थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और महात्मा से प्रणाम करने के बाद कहता है ” महात्मा जी मैं इस गाँव में नया हूँ और परदेश से आया हूँ और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूँ लेकिन मुझे यंहा की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसे है और यंहा रहने वाले लोग कैसे है ?”
महात्मा ने इस पर फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहा कि ” मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वंहा रहने वाले लोग कैसे है ??”
उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा ” गुरूजी जन्हा से मैं आया हूँ वंहा भी सभ्य सुलझे हुए और नेकदिल इन्सान रहते है मेरा वंहा से कंही और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूँ और यंहा की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था ।” इस पर महात्मा ने उसे कहा बंधू ” तुम्हे यंहा भी नेकदिल और भले इन्सान मिलेंगे ।” वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया ।
शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरूजी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग अलग जवाब दिए हमे कुछ भी समझ नहीं आया । इस पर मुस्कुराकर महात्मा बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि (point of view) से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है । अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमे अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई देखना चाहें तो हमे बुरे लोग ही मिलेंगे । सब देखने के नजरिये ( point of view in hindi ) पर निर्भर करता है ।
3. Third Hindi Moral Story – अपना अपना नजरियासंतोष का धन
पंडित श्री रामनाथ शहर के बाहर अपनी पत्नी के साथ रहते थे । एक जब वो अपने विद्यार्थिओं को पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो उनकी पत्नी ने उनसे सवाल किया ” कि आज घर में खाना कैसे बनेगा क्योंकि घर में केवल मात्र एक मुठी चावल भर ही है ?” पंडित जी ने पत्नी की और एक नजर से देखा फिर बिना किसी जवाब के वो घर से चल दिए ।
शाम को वो जब वापिस लौट कर आये तो भोजन के समय थाली में कुछ उबले हुई चावल और पत्तियां देखी । यह देखकर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा ” भद्रे ये स्वादिष्ट शाक जो है वो किस चीज़ से बना है ??” मेने जब सुबह आपके जाते समय आपसे भोजन के विषय में पूछा था तो आपकी दृष्टि इमली के पेड़ की तरफ गयी थी । मैंने उसी के पतों से यह शाक बनाया है । पंडित जी ने बड़ी निश्चितता के साथ कहा अगर इमली के पत्तो का शाक इतना स्वादिष्ट होता है फिर तो हमे चिंता करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है अब तो हमे भोजन की कोई चिंता ही नहीं रही ।
जब नगर के राजा को पंडित जी की गरीबी का पता चला तो राजा ने पंडित को नगर में आकर रहने का प्रस्ताव दिया किन्तु पंडित ने मना कर दिया । तो राजा हैरान हो गया और स्वयं जाकर उनकी कुटिया में उनसे मिलकर इसका कारण जानने की इच्छा हुई । राजा उनकी कुटिया में गया तो राजा ने काफी देर इधर उधर की बाते की लेकिन वो असमंजस में था कि अपनी बात किस तरह से पूछे लेकिन फिर उसने हिम्मत कर पंडित जी से पूछ ही लिया कि आपको किसी चीज़ का कोई अभाव तो नहीं है न ??
पंडित जी हसकर बोले यह तो मेरी पत्नी ही जाने इस पर राजा पत्नी की और आमुख हुए और उनसे वही सवाल किया तो पंडित जी की पत्नी ने जवाब दिया कि अभी मुझे किसी भी तरीके का अभाव नहीं है क्योंकि मेरे पहनने के वस्त्र इतने नहीं फटे कि वो पहने न जा सकते और पानी का मटका भी तनिक नहीं फूटा कि उसमे पानी नहीं आ सके और इसके बाद मेरे हाथों की चूडिया जब तक है मुझे किसी चीज़ का क्या अभाव हो सकता है ?? और फिर सीमित साधनों में भी संतोष की अनुभूति हो तो जीवन आनंदमय हो जाता है ।
राजा बड़ी श्रद्धा से उस देवी के सामने झुक गये ।
4. Fourth Hindi Moral Story – प्रजा धर्म और यूनान का राजदूत
मौर्य साम्राज्य (Ashoka State) में बार यूनान के राजदूत का आना हुआ तो उसने मौर्य साम्राज्य के महामंत्री चाणक्य की प्रशंशा प्रत्येक मनुष्य जो वंहा का रहने वाला और आस पास के लोगो के मुख से सुनी तो उसे भी चाणक्य से मिलने की इच्छा हुई कि देखूं तो सही इतना प्रभावशाली व्यक्ति है कौन आखिर ?
दरबार से पता पूछने के बाद राजदूत चाणक्य से मिलने के लिए उनके निवास स्थान गंगा के किनारे चल दिया ।वंहा पहुँचने के बाद देखता है कि गंगा के किनारे एक आकर्षक व्यक्तित्व का धनी लम्बा चौड़ा पुरुष नहा रहा था । जब वह आदमी नहा कर कपड़े धोने लगा तो राजदूत ने पास जाकर उस व्यक्ति से पूछा कि क्या आप चाणक्य का घर जानते है इस पर उस व्यक्ति ने सामने एक झौंपडी की और इशारा किया ।
राजदूत को भरोसा ही नहीं हुआ कि किसी राज्य का महामंत्री इस साधारण सी झौंपड़ी में रहता होगा लेकिन फिर भी वो उस झौपडी की और चल पड़ा और भीतर जाकर उसने उस झौपडी को खाली पाया । यह देखकर राजदूत को लगा कि गंगा के किनारे उसे मिले उस व्यक्ति ने उसका मजाक बनाया है ऐसा सोचकर वो मुड़ने लगा तो क्या देखता है कि वही व्यक्ति उसके सामने खड़ा है ।
यह देखकर वो राजदूत उस व्यक्ति से कहने लगा ” अपने तो कहा था न कि चाणक्य यंही रहते है लेकिन यंहा तो कोई नहीं है अपने मेरे साथ मजाक किया है क्या ?” इस पर वह व्यक्ति कहने लगा महाशय मैं ही चाणक्य हूँ कहिये क्या प्रयोजन है ? इस पर राजदूत हैरान रह गया कहने लगा “मौर्य सम्राज्य के महामंत्री और इतनी सरल दिनचर्या और वो भी इस झौपडी में निवास , कमाल है विश्वाश ही नहीं होता ”
चाणक्य ने बड़ी सादगी से जवाब दिया कि अगर मैं महलों और राजभवन की सुविधाओं के बीच रहने लग जाऊ तो प्रजा के हिस्से में झोपडी आ जाएगी इसलिए मैं प्रजा धर्मं का निर्वहन करते हुए यंहा रहता हूँ ।
5. Fifth Hindi Moral Story – एक रुपया
एक महात्मा भ्रमण करते हुए किसी नगर से होकर जा रहे थे । मार्ग में उन्हें एक रुपया (A rupee) मिला । महात्मा तो वैरागी और संतोष से भरे व्यक्ति थे भला एक रूपये (A rupee) का क्या करते इसलिए उन्होंने यह रुपया किसी दरिद्र को देने का विचार किया कई दिन की तलाश के बाद भी उन्हें कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला ।
एक दिन वो अपने दैनिक क्रियाकर्म के लिए सुबह सुबह उठते है तो क्या देखते है एक राजा अपनी सेना को लेकर दूसरे राज्य पर आक्रमण के लिए उनके आश्रम के सामने से सेना सहित जा रहा है । ऋषि बाहर को आये तो उन्हें देखकर राजा ने अपनी सेना को रुकने का आदेश दिया और खुद आशीर्वाद के लिए ऋषि के पास आकर बोले महात्मन मैं दूसरे राज्य को जीतने के लिए जा रहा हूँ ताकि मेरा राज्य विस्तार हो सके । इसलिए मुझे विजयी होने का आशीर्वाद प्रदान करें ।
इस पर ऋषि ने काफी देर सोचा और सोचने के बाद वो एक रुपया राजा की हथेली में रख दिया । यह देखकर राजा हेरान और नाराज दोनों हुए लेकिन उन्हें इसके पीछे का प्रयोजन काफी देर तक सोचने के बाद भी समझ नहीं आया । तो राजा ने महात्मा से इसका कारण पूछा तो महात्मा ने राजा को सहज भाव से जवाब दिया कि राजन कई दिनों पहले मुझे ये एक रुपया आश्रम आते समय मार्ग में मिला था तो मुझे लगा किसी दरिद्र को इसे दे देना चाहिए क्योंकि किसी वैरागी के पास इसके होने का कोई औचित्य नहीं है । बहुत खोजने के बाद भी मुझे कोई दरिद्र व्यक्ति नहीं मिला लेकिन आज तुम्हे देखकर ये ख्याल आया कि तुमसे दरिद्र तो कोई है ही नहीं इस राज्य में जो सब कुछ होने के बाद भी किसी दूसरे बड़े राज्य के लिए भी लालसा रखता है । यही एक कारण है कि मैंने तुम्हे ये एक रुपया दिया है ।
राजा को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने युद्ध का विचार भी त्याग दिया ।
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