Poems on Moon in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, चांद पर हिन्दी कविताएँ. हमने आपके लिए चाँद से सम्बंधित कविताएँ ढून्ढ का संकलित की हैं.
Poems on Moon in Hindi – चांद पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Poems on Moon in Hindi – चांद पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 अंधेरे पाख का चांद / केदारनाथ सिंह
- 1.2 अगर चांद मर जाता / त्रिलोचन
- 1.3 अघोरी / विजय कुमार पंत
- 1.4 अमावस का चांद / अवतार एनगिल
- 1.5 आधा चांद मांगता है पूरी रात / नरेश सक्सेना
- 1.6 इकला चांद / केदारनाथ अग्रवाल
- 1.7 इश्क़ का कारोबार करते थे / चाँद शुक्ला हदियाबादी
- 1.8 ईद का चांद हो गया है कोई / राजेंद्र नाथ ‘रहबर’
- 1.9 उस चाँद से कहना / गणेश पाण्डेय
- 1.10 एक चांद : तीन चितराम / सांवर दइया
- 1.11 एक दिन चाँद / विष्णु नागर
- 1.12 Related Posts:
कविताएँ नीचे दी गयी है. हम समय-समय पर और कविताएँ add करते रहेंगे.
अंधेरे पाख का चांद / केदारनाथ सिंह
जैसे जेल में लालटेन
चाँद उसी तरह
एक पेड़ की नंगी डाल से झूलता हुआ
और हम
यानी पृथ्वी के सारे के सारे क़ैदी खुश
कि चलो कुछ तो है
जिसमें हम देख सकते हैं
एक-दूसरे का चेहरा!
अगर चांद मर जाता / त्रिलोचन
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
खोजते सौन्दर्य नया?
देखते क्या दुनिया को?
रहते क्या, रहते हैं
जैसे मनुष्य सब?
क्या करते कविगण तब?
प्रेमियों का नया मान
उनका तन-मन होता
अथवा टकराते रहते वे सदा
चाँद से, तारों से, चातक से, चकोर से
कमल से, सागर से, सरिता से
सबसे
क्या करते कविगण तब?
आँसुओं में बूड़-बूड़
साँसों में उड़-उड़कर
मनमानी कर- धर के
क्या करते कविगण तब
अगर चाँद मर जाता
झर जाते तारे सब
क्या करते कविगण तब?
अघोरी / विजय कुमार पंत
‘साले तेरी …. की…..’
अघोरी ने शब्द निकाले
सबकी ज़ुबां पर पड़ गए ताले
वीभत्स चेहरा , तन पर राख
मदिरा में डूबी, आग उगलती आँख
गले में मानव खोपड़ी
छिन्न -भिन्न केश काले
कौन सा जीवन व्रत है ये
जहाँ केवल भय है
इनका सम्पूर्ण जीवन
दिखता घृणामय है
पर इससे भी ज़्यादा सत्य छिपा है
इनपर महादेव की कृपा है
ये जानते हैं आदि और अंत
जीवन पर्यंत
हाड मॉस केवल छलावा है
एक दिन भस्म हो जायेगा
ये सब भुलावा है
ये जब हँसते है तो भी वही है
रोते है तो भी वही है
ये विलीन हैं उस चैतन्य में
ये समाये हैं उस मूर्धन्य में
जो ज़मीन, आकाश, पाताल शेष है
जो शिव है सत्य है विशेष है
अमावस का चांद / अवतार एनगिल
इस चाँदनी रात में
काले आसमान पर
चाँद लटक रहा है
लपलपाती कटार सा….
निर्दोष नागरिक की तरफ
दाग़ दिय्ए गये हथगोले सात
दूर
अँचल में
भूंकता है
कोई एक कुत्ता
और फिर पूरी घाटी
कुत्तों की भूंक से डर जाती है।
आधा चांद मांगता है पूरी रात / नरेश सक्सेना
पूरी रात के लिए मचलता है
आधा समुद्र
आधे चांद को मिलती है पूरी रात
आधी पृथ्वी की पूरी रात
आधी पृथ्वी के हिस्से में आता है
पूरा सूर्य
आधे से अधिक
बहुत अधिक मेरी दुनिया के करोड़ों-करोड़ लोग
आधे वस्त्रों से ढांकते हुए पूरा तन
आधी चादर में फैलाते हुए पूरे पांव
आधे भोजन से खींचते पूरी ताकत
आधी इच्छा से जीते पूरा जीवन
आधे इलाज की देते पूरी फीस
पूरी मृत्यु
पाते आधी उम्र में।
आधी उम्र, बची आधी उम्र नहीं
बीती आधी उम्र का बचा पूरा भोजन
पूरा स्वाद
पूरी दवा
पूरी नींद
पूरा चैन
पूरा जीवन
पूरे जीवन का पूरा हिसाब हमें चाहिए
हम नहीं समुद्र, नहीं चांद, नहीं सूर्य
हम मनुष्य, हम–
आधे चौथाई या एक बटा आठ
पूरे होने की इच्छा से भरे हम मनुष्य।
इकला चांद / केदारनाथ अग्रवाल
इकला चांद
असंख्य तारे,
नील गगन के
खुले किवाड़े;
कोई हमको
कहीं पुकारे
हम आएंगे
बाँह पसारे !
इश्क़ का कारोबार करते थे / चाँद शुक्ला हदियाबादी
इश्क़ का कारोबार करते थे
ग़म की दौलत शुमार करते थे
क्या तुम्हें याद है या भूल गये
हम कभी तुमसे प्यार करते थे
काँटे भरते थे अपने दामन में
फूल उन पर निसार करते थे
बनके मजनू जुदाई में उनकी
पैरहन तार तार करते थे
अब तो बस इतना याद है के उन्हें
याद हम बेशुमार करते थे
याद में तेरी रात भर तन्हा
“चाँद” तारे शुमार करते थे.
ईद का चांद हो गया है कोई / राजेंद्र नाथ ‘रहबर’
ईद का चांद हो गया है कोई
जाने किस देस जा बसा है कोई
पूछता हूं मैं सारे रस्तों से
उस के घर का भी रास्ता है कोई
एक दिन मैं ख़ुदा से पूछूं गा
क्या ग़रीबों का भी ख़ुदा है कोई
इक मुझे छोड़ के वो सब से मिला
इस से बढ़ के भी क्या सज़ा है कोई
दिल में थोड़ी सी खोट रखता है
यूं तो सोने से भी खरा है कोई
वो मुझे छोड़ दे कि मेरा रहे
हर क़दम पर ये सोचता है कोई
हाथ तुम ने जहां छुड़ाया था
आज भी उस जगह खड़ा है कोई
फिर भी पहुंचा न उस के दामन तक
ख़ाक बन बन के गो उड़ा है कोई
तुम भी अब जा के सो रहो ‘रहबर`
ये न सोचो कि जागता है कोई
उस चाँद से कहना / गणेश पाण्डेय
तुम्हारे उड़ने के लिए है
यह मन का खटोला
खास तुम्हारे लिए है यह
स्वप्निल नीला आकाश
विचरण के लिए
आकाश का
सुदूर चप्पा-चप्पा
सब तुम्हारे लिए है
तनिक-सी इच्छा हो तो
चाँद पर
बना लो घर
चाहो तो चाँद के संग
पड़ोस में मंगल पर बस जाओ
जितनी दूर चाहो
जाओ
बस
देखना प्रियतम
अपने कोमल पंख
अपनी साँस
और भीतर की जेब में
मुड़ातुड़ा
अपनी पृथ्वी का मानचित्र
सोते-जागते दिखता रहे
आगे का आकाश
और पीछे प्रेम की दुनिया
धरती पर
दिखती रहें
सभी चीज़ें और अपने लोग
उड़नखटोले से
होती रहे
आकाश के चांद की बात
पृथ्वी के सगे-संबंधियों
और अपने चाँद की
आती रहे याद
जाओ जो चाहो तो जाओ
जाओ आकाश के चाँद के पास
तो लेते जाओ उसके लिए
धरती का जीवन
और संगीत
मिलो आकाश के चाँद से
तो पहले देना
धरती के चाँद की ओर से
भेंट-अँकवार
फिर धरती की चंपा के फूल
धरती की रातरानी की सुगंध
धरती की चाँदनी का प्यार
धरती के सबसे अच्छे खेत
धरती के ताल-पोखर
धान
और गेहूँ के उन्नत बीज
थोड़ी-सी खाद
और एक जोड़ी बैल
देना
कहना कि कोई सखी है
धरती पर भी है एक चाँद है
जिसे
तुम्हारे लौटने का इंतज़ार है
कहना कि छोटा नहीं है
उसका दिल
स्वीकार है उसे
एक और चाँद
चाहे तो चली आए
तुम्हारे संग
उड़नखटोले में बैठकर
मंगलगीत गाती हुई
धरती के आँगन में
स्वागत है ।
एक चांद : तीन चितराम / सांवर दइया
गाभा लाल
टीकी लाल
मांग में सिंदूर लाल
रंगां में उछाळा मारै रगत लाल
पम्पोळ बींरा गाल
बो बोल्यो-
भळै नैड़ी आव
बाथां रै बादळां में
लुकावूं थनै
ओ म्हारा चांद !
चांद सागी है
गोळ-गोळ…… पीळो-पीळो……
इन्नै दौड़ियो
बिन्नै दौड़ियो
लीर-लीर गाभा
तपती सड़क
पगां उबराणो
दिन भर घींस्यो गाडो
लुक्खा-सूखा टुक्कड़ चाबतो
आभै कानी कर आंगळी
बो बोल्यो-
सिक्योड़ो फलको तो
बो लटकै बठै !
चांद सागी है
गोळ-गोळ…… पीळो-पीळो……
दवा री शीशियां खाली
हींडिया करतो जिण में
तोतो सुर
वो हींडो खाली
एक्कानी पड़िया रोवै रमतिया
आ देख
चिंता करै बाप-
औ चांद ई खूटैला
जिंयां खूटग्यो
पीळियै में छोरो !
चांद सागी है
गोळ-गोळ…… पीळो-पीळो……
एक दिन चाँद / विष्णु नागर
जब मैंने चाँद को देखा
तो चाँद ने भी मुझे देखा
जब मैंने उससे बातें कीं
तो उसने भी मुझसे बातें कीं
लेकिन जब मैं उससे मिलने आगे बढ़ा
तो वह मुझसे आगे बढ़ गया
एक दिन तो वह इतना
आगे बढ़ा
कि उस तक पहुँचूँ-पहुँचूँ, तब तक तो सुबह हो चुकी थी!
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