हिंदी साहित्य में छंद का एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल कविता या पद्य रचने का माध्यम है बल्कि यह साहित्यिक सौंदर्य और अनुशासन का भी प्रतीक है। छंद का अनुसरण करके कवि या लेखक अपने विचारों को एक संरचित और प्रभावी रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं। इस लेख में हम विस्तार से छंद के विभिन्न प्रकार, उनके नियम, उदाहरण और उनके महत्व पर चर्चा करेंगे।
छंद का परिचय
छंद का शब्दिक अर्थ होता है “वह अनुशासन जिसमें कविता या पद्ध रची जाती है”। छंद एक निश्चित लय और मात्रा प्रणाली पर आधारित होता है, जिसमें सटीक साक्षरत्क्रम और लयपूर्ण ध्वनियाँ शामिल होती हैं। छंद काव्य का वह शास्त्र है जिसमें वर्णों और मात्राओं का सही उपयोग किया जाता है।
छंद के प्रकार
छंद के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं:
- वर्णिक छंद: इसमें वर्णों की संख्या को महत्व दिया जाता है। पंक्ति में वर्णों की संख्या निश्चित होती है।
- मात्रिक छंद: इसमें मात्राओं की संख्या को महत्व दिया जाता है। पंक्ति में मात्राओं की संख्या निश्चित होती है।
वर्णिक छंद
वर्णिक छंद में प्रत्येक पंक्ति में वर्णों की संख्या निर्धारित होती है। यह संज्ञा तक पहुँचाने में मदद करता है कि कविता की प्रत्येक पंक्ति में कितने वर्ण होंगे।
उदाहरण:
चंद्र याचिक-
मैं नैनन का भनतुर हौ।
मैं दीरघ गहन हुन्तुर हौ।
मात्रिक छंद
मात्रिक छंद में छंद के निर्धारण में वर्णों के बजाय मात्राओं की संख्या महत्वपूर्ण होती है।
उदाहरण:
मात्रिकी
माँ की लर सुनि
इस उदाहरण में हम देख सकते हैं कि प्रत्येक पंक्ति में मात्राओं की संख्या स्थिर है।
छंद के कुल आठ प्रमुख लक्षण
किसी भी छंद को समझने के लिए उसके आठ लक्षण महत्वपूर्ण हैं:
- वर्ण आकर्षण: वर्णों की संख्या स्थिर होनी चाहिए।
- मात्रा आकर्षण: मात्राओं की संख्या स्थिर होनी चाहिए।
- यति: एक निश्चित स्थान पर विराम।
- गति: कविता का बहाव।
- लय: छंद का संगीत।
- छंदविधान: नियमबद्ध पद्धति।
- प्रत्यय: छंद की पहचान चिन्ह।
- आंगिक: छंद का विशेष स्वरूप।
छंदों के प्रमुख उदाहरण
अनुष्टुप (श्लोक)
श्लोक सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध भारतीय छंद है। प्रत्येक श्लोक में चार पंक्तियाँ होती हैं, जो क्रमशः 8, 8, 8, 8 वर्णों में विभाजित रहती हैं।
उदाहरण:
सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।।
दोहा
दोहा हिंदी कविता का एक लोकप्रिय छंद है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं, जिनमें प्रथम और तृतीय पंक्ति में 13-13 मात्राएँ तथा द्वितीय और चतुर्थ पंक्ति में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
जो उबरे सो डूबि गया
जो डूबे बरारी होय।
सम दरश–
तो ही टिक मौलि
रुबाई
रुबाई का छंद फारसी साहित्य से प्रचलित हुआ है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं और यह सभी पंक्तियाँ एक ही लय में बंधी होती हैं।
उदाहरण:
क्यों बोलते हो इस कदर,
वो सुनता ही नहीं किसी का।
ढूँढ़ रहे हो उस ईश्वर को,
जो मिलता नहीं है किसी से।।
छंद के संयोजन के नियम
किसी विशेष छंद का निर्माण करने के लिए इन नियमों का पालन करना आवश्यक होता है:
- वर्ण और मात्रा की संख्या: निर्धारित मात्रा और वर्ण का होना अनिवार्य है।
- यति स्थान: छंद की यति को सही स्थान पर रखना होता है।
- गति और लय: छंद की गति और लय का समायोजन सही होना चाहिए।
छंद का महत्व
छंद का महत्व हिंदी साहित्य में अत्यधिक है। यह काव्य रचनाओं को सुगम बनाता है और उन्हें अनुशासनित रूप में प्रस्तुत करता है। छंद के माध्यम से कवि अपने विचारों को संगीतमय और प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत कर सकता है।
निष्कर्ष
छंद हिंदी साहित्य का महत्वपूर्ण अंग है जो कविता को सौंदर्य और अनुशासन प्रदान करता है। इसकी विभिन्न प्रकार, मात्रा और वर्ण प्रणाली के नियम और उनके अनुपालन से रचनाएँ संरचित और प्रभावी बनती हैं। छंद न केवल साहित्यिक अनुशासन का प्रतीक है, बल्कि यह लिखित और मौखिक संप्रेषण की कला को भी उच्चस्तरीय बनाता है।
हमें आशा है कि इस विस्तृत लेख के माध्यम से आप छंद के विभिन्न पहलुओं को समझ सकेंगे और अपनी काव्य रचनाओं में उसका उचित उपयोग कर पाएंगे।