मकर संक्रांति पर निबंध – Essay on Makar Sankranti in Hindi

भारत त्योहारों का देश है, जहाँ हर त्योहार का अपना एक विशिष्ट महत्व और पहचान है। इन त्योहारों में मकर संक्रांति का एक विशेष स्थान है। मकर संक्रांति न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह हमारे किसानों की मेहनत और फसलों के उत्पादन का भी उत्सव है। इस निबंध में हम मकर संक्रांति की उत्पत्ति, पुराणिक कथाएँ, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, धार्मिक महत्व, उत्सव की विभिन्न रीति-रिवाज, और संक्रांति से जुड़ी जनमानस की भावनाओं का विस्तार में वर्णन करेंगे।

मकर संक्रांति की उत्पत्ति और महत्व

मकर संक्रांति का नाम इसके खगोलीय महत्व से उत्पन्न हुआ है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। यह घटना प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में होती है और इसे खगोलीय रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, जिससे दिन के बढ़ने की प्रक्रिया शुरू होती है।

इस दिन को सूर्य की उत्तरायण गमन की शुरुआत माना जाता है। प्राचीन भारतीय खगोलविदों ने इसे विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना है, क्योंकि यह दिन रात की तुलना में दिन के लंबा होने की शुरुआत का प्रतीक है। यह समय कृषि और फसलों का भी महत्वपूर्ण समय होता है, जब रबी की फसलें तैयार होती हैं और किसान अपनी मेहनत का फल पाते हैं।

धार्मिक और पौराणिक कथाएँ

मकर संक्रांति से जुड़ी कई धार्मिक और पौराणिक कथाएँ हैं, जो इसके महत्व को और बढ़ाती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख कथाएँ निम्नलिखित हैं:

भगवान सूर्य और शनि की कथा

एक प्रमुख कथा के अनुसार, मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए उनके घर जाते हैं। शनि, जिसे न्याय और कर्म का देवता माना जाता है, सूर्य के प्रति कुछ विरक्ति रखते थे। यह दिन हमें यह भी सिखाता है कि हमें अपने रिश्तों में कड़वाहट नहीं रखनी चाहिए और पुरानी अनबन को भुलाकर मेलजोल रखना चाहिए।

गंगासागर मेला

एक और मुख्य कथा गंगा नदी के समुद्र में मिलने से संबंधित है। कहा जाता है कि भगीरथ के तपस्या के फलस्वरूप गंगा धरती पर आईं और कपिल मुनि के आश्रम में जाकर सागर से मिलीं। तभी से प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति को गंगा सागर मेला मनाया जाता है, जहाँ लाखों श्रद्धालु स्नान कर पुण्य कमाते हैं।

महाभारत और भीष्म पितामह

महाभारत में भीष्म पितामह ने इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त किया था और शरीर त्यागने के लिए उन्होंने मकर संक्रांति का दिन ही चुना। उन्होंने अपने देह त्याग कर स्वर्ग लोको की प्राप्ति की, जिससे यह दिन धार्मिक दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण हो गया। इस दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व है।

मकर संक्रांति के उत्सव – विविधता में एकता

भारत की सांस्कृतिक विविधता में मकर संक्रांति का उत्सव भी विभिन्न राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। इस पर्व को अलग-अलग नामों और विधियों से पूरे देश में मनाया जाता है।

उत्तर भारत में मकर संक्रांति

उत्तर भारत में मकर संक्रांति को ‘खिचड़ी’ के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग गंगा नदी या अन्य पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, दान-पुण्य करते हैं और तिल-गुड़ का सेवन करते हैं। यह दिन विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार में खिचड़ी बनाने और बांटने का प्रचलन है।

पंजाब में लोहरी

पंजाब में मकर संक्रांति के एक दिन पहले ‘लोहरी’ का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोग आग के चारों ओर नाचते-गाते हैं और मूंगफली, तिल के लड्डू, गुड़ आदि अग्नि में अर्पित करते हैं। यह उत्सव किसानों के लिए खुशियों का प्रतीक है और नई फसल की कटाई की शुरुआत का उत्सव भी है।

गुजरात और राजस्थान में उत्तरायण

गुजरात और राजस्थान में मकर संक्रांति को ‘उत्तरायण’ के नाम से जाना जाता है। इस दिन पतंगबाजी का विशेष प्रचलन है। आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से भर जाता है और प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। लोग अपने दोस्तों और परिवार के साथ मिलकर खाना-पीना और मनोरंजन करते हैं।

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति

महाराष्ट्र में मकर संक्रांति के दिन महिलाएं एक-दूसरे को हल्दी-कुमकुम बांटती हैं और तिल-गुड़ के लड्डू बांटकर एक-दूसरे को ‘तिलगुल ध्या, गोड गोड बोला’ यानी ‘तिलगुल लो, मीठा-मीठा बोलो’ कहते हैं। यह परंपरा लोगों को मीठे बोल बोलने और आपसी सौहार्द्र बढ़ाने की अद्भुत मिसाल है।

तमिलनाडु में पोंगल

तमिलनाडु में मकर संक्रांति को ‘पोंगल’ के नाम से मनाया जाता है। यह एक चार दिवसीय उत्सव है। पहले दिन ‘भोगी’, दूसरे दिन ‘पोंगल’, तीसरे दिन ‘मट्टु पोंगल’, और चौथे दिन ‘कन्या पोंगल’ मनाया जाता है। इस त्योहार में पारंपरिक पोंगल नामक व्यंजन, जो की चावल, दूध और गुड़ से बनाया जाता है, विशेष रूप से बनाया और बांटा जाता है।

समाज पर मकर संक्रांति का प्रभाव

मकर संक्रांति का समाज पर व्यापक प्रभाव है। यह त्योहार सामाजिक इकाईयों को मजबूत बनाने, आपसी मनमुटाव को समाप्त करने, और एकता और सौहार्द्र को बढ़ावा देने का कार्य करता है। विभिन्न जातियों और समुदायों के लोग इस दिन को मिलजुल कर मनाते हैं, जो समाज में भाईचारे को बढ़ाता है।

मकर संक्रांति और तिल-गुड़

मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ का विशेष महत्व है। तिल-गुड़ के लड्डू और अन्य व्यंजन इस त्योहार का मुख्य आकर्षण होते हैं। तिल को आयुर्वेद में बहुत ही स्वास्थ्यवर्धक माना गया है और गुड़ भी ऊर्जा और पोषक तत्वों से भरपूर होता है।

तिल और गुड़ दोनों का सेवन सर्दियों में शरीर को गर्म रखने मदद करता है और इनकी मिठास रिश्तों में मिठास बढ़ाने का प्रतीक मानी जाती है। तिल-गुड़ का आदान-प्रदान इस बात का भी प्रतीक है कि हमें पुराने गिले-शिकवे भुलाकर रिश्तों में नई ऊर्जा और मिठास भरनी चाहिए।

संक्रांति स्नान का महत्व

मकर संक्रांति पर स्नान का भी विशेष महत्व है। लोग गंगा, यमुना, गोदावरी, कृष्णा, और कावेरी जैसी पवित्र नदियों में स्नान करके पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। गंगासागर में मकर संक्रांति पर लाखों श्रद्धालुओं का तांता लगता है। यह परंपरा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि स्वच्छता और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

संक्रांति और समाज कल्याण

संक्रांति का एक प्रमुख पहलू दान-पुण्य भी है। इस दिन लोग गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, और धन दान करते हैं। इसका महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी है। यह दिन हमें समाज में समरसता और समानता बढ़ाने का संदेश देता है।

विभिन्न नामों से मकर संक्रांति का उत्सव

मकर संक्रांति का उत्सव विभिन्न स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है। यह विविधता में एकता का अद्भुत उदाहरण है। जैसे:

  • उत्तर प्रदेश में – खिचड़ी
  • पश्चिम बंगाल में – पौष संक्रांति
  • राजस्थान में – उत्तरायण
  • महराष्ट्र में – मकर संक्रांति
  • गुजरात में – उत्तरायण
  • कर्नाटक में – संक्रांति
  • तमिलनाडु में – पोंगल
  • आंध्र प्रदेश में – पेद्दा पंडगा
  • केरल में – मकरविलक्कू

यह विभिन्न नाम और रीति-रिवाज इस बात का परिचायक है कि भारतीय संस्कृति में विभिन्नता में भी एकता बनी रहती है।

मकर संक्रांति पर दान का महत्त्व

मकर संक्रांति के अवसर पर दान का विशेष महत्व है। इस दिन विशेषकर तिल, गुड़, वस्त्र, अन्न, और धन का दान करने से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना फलदायी होता है। पुराने समय से लेकर आज तक, भारतीय समाज में दान की परंपरा कायम रही है और यह समाज कल्याण का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

निष्कर्ष

मकर संक्रांति भारतीय संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हमें सामाजिक एकता, दान-पुण्य, और रिश्तों में मिठास बढ़ाने का संदेश देता है। इस त्योहार का महत्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि खगोलीय, सामाजिक, और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बहुत अधिक है।

मकर संक्रांति न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह हमारे जीवन को दिशा देने वाली एक प्रेरणा भी है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने पुराने गिले-शिकवों को भूलकर, एक नई शुरुआत कर सकते हैं और अपने समाज और रिश्तों को और भी मजबूत और मधुर बना सकते हैं।

आइए, इस मकर संक्रांति पर हम सभी आपसी सद्भाव, प्रेम और सौहार्द्र को बढ़ावा दें और अपने समाज को और भी सुंदर और बेहतर बनाने का संकल्प लें।

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