Poems On Kids in Hindi अर्थात इस article में आप पढेंगे, बच्चों पर हिन्दी कविताएँ. हमने आपके लिए अलग-अलग कवियों द्वारा लिखी बच्चों पर कविताओं की collection दी है.
Poems On Kids in Hindi – बच्चों पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Poems On Kids in Hindi – बच्चों पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 बच्चे / नरेश अग्रवाल
- 1.2 बच्चे, तुम अपने घर जाओ / गगन गिल
- 1.3 बच्चे एक दिन / अशोक वाजपेयी
- 1.4 बच्चे जब होते हैं बच्चे / विज्ञान व्रत
- 1.5 बच्चे / शम्भुनाथ तिवारी
- 1.6 बच्चे मन के सच्चे / साहिर लुधियानवी
- 1.7 मेरे बच्चे, मेरे प्यारे / अंजना भट्ट
- 1.8 हम नन्हे-नन्हे बच्चे हैं / सोहनलाल द्विवेदी
- 1.9 Related Posts:
कविताएँ नीचे एक-एक करके, उनके कविओं के नाम के साथ दी गयीं हैं.
बच्चे / नरेश अग्रवाल
बच्चे लाइन में चलना नहीं चाहते
बच्चे नहीं जानते यह सुरक्षा का नियम है
बच्चे लाइनें तोड़ देते हैं
वे खेलना चाहते हैं मनपसंद बच्चों के साथ।
बच्चों के लिए कोई थकान नहीं,
न ही कोई दूरी है
दायरा है दूर-दूर तक देखने का
वे खेलते समय पाठ याद नहीं रखते
भूल जाते हैं पढ़ाई भी कुछ होती है
बच्चे मासूम उगते हुए अंकुर या छोटे से वृक्ष
अभी इतने कच्चे कि हवा से लथ-पथ
इनके चेहरे याद नहीं रहते
जैसे सभी अपने हों और एक जैसे
और उनकी खुशियां समां लेने के लिए
कितना छोटा पड़ जाता है यह भूखंड।
बच्चे, तुम अपने घर जाओ / गगन गिल
बच्चे, तुम अपने घर जाओ
घर कहीं नहीं है?
तो वापस कोख़ में जाओ
मां की कोख नहीं है?
पिता के वीर्य में जाओ
पिता कहीं नहीं है?
तो मां के गर्भ में जाओ
गर्भ का अण्डा बंजर?
तो मुन्ना झर जाओ तुम
उसकी माहवारी में
जाती है जैसे उसकी
इच्छा संडास के नीचे
वैसे तुम भी जाओ
लड़की को मुक्त करो अब
बच्चे, तुम अपने घर जाओ।
बच्चे एक दिन / अशोक वाजपेयी
बच्चे
अंतरिक्ष में
एक दिन निकलेंगे
अपनी धुन में,
और बीनकर ले आयेंगे
अधखाये फलों और
रकम-रकम के पत्थरों की तरह
कुछ तारों को ।
आकाश को पुरानी चांदनी की तरह
अपने कंधों पर ढोकर
अपने खेल के लिए
उठा ले आयेंगे बच्चे
एक दिन ।
बच्चे एक दिन यमलोक पर धावा बोलेंगे
और छुड़ा ले आयेंगे
सब पुरखों को
वापस पृथ्वी पर,
और फिर आँखें फाड़े
विस्मय से सुनते रहेंगे
एक अनन्त कहानी
सदियों तक ।
बच्चे एक दिन……
(रचनाकालः1986)
बच्चे जब होते हैं बच्चे / विज्ञान व्रत
बच्चे जब होते हैं बच्चे
ख़ुद में रब होते हैं बच्चे
सिर्फ़ अदब होते हैं बच्चे
इक मकतब होते हैं बच्चे
एक सबब होते हैं बच्चे
ग़ौरतलब होते हैं बच्चे
हमको ही लगते हैं वरना
बच्चे कब होते हैं बच्चे
तब घर में क्या रह जाता है
जब ग़ायब होते हैं बच्चे!
बच्चे / शम्भुनाथ तिवारी
बच्चे,
जिनमें फूल-सी खिलखिलाहट और
ओस के बूँद सी तरलता होती है
उनके मन में कोई मैल नहीं
उनमें अव्वल दर्जे की
सचाई और अकृत्रिम सरलता होती है।
बच्चे,
जो नहीं जानते गीता
नहीं पहचानते कुरान
उन्हें पूजा से भी कोई सरोकार नहीं
वे नहीं समझते धर्म और ईमान।
मगर हम उन्हें
एक खाँचे का पत्थर बनाना चाहते हैं
उनकी जिंदगी के हालात को
बद से बदतर बनाना चाहते हैं।
बच्चे,
जिन्हें हम समझते हैं
मिट्टी का लोंदा
उम्र का कच्चा अक्ल का भोंदा
उन्हें हम कोरी स्लेट समझते हैं
और सोचते हैं
इन पर कोई भी मनमानी चल जाएगी
उनके माथे पर कुछ भी लिख दो
एक पत्थर की लकीर बन जाएगी।
मगर बच्चे,
इतने नासमझ नहीं होते
वे अक्ल के कच्चे भी नहीं होते
वे एक अनगढ़ पत्थर हैं
जो तराशने पर
इतने फौलादी हो जाते हैं
जिन्हें तोड़ा न जा सके
उनके इरादों से
उन्हें मोड़ा न जा सके।
बस जरूरी है
उन्हें खास अहमीयत देने की
खुले आकाश तले
अपना आकार खुद निर्मित कर सकें
इसके लिए
उन्हें सहूलियत देने की
फिर वे
किसी खास कौम के नहीं
पूरी मानवता के
अंतिम छोर बन जाएँगे
वक्त आने पर फूल से नरम और
पत्थर से कठोर बन जाएँगे।
तब हम देखेंगे कि
उन्हें मनमाना आकार देने की
हमारी नाकाम कोशिशें कहीं खो गई हैं
फिर
यह दुनिया शायद
कुछ और हो गई है!!
बच्चे मन के सच्चे / साहिर लुधियानवी
बच्चे मन के सच्चे सारी जग के आँख के तारे
ये वो नन्हे फूल हैं जो भगवान को लगते प्यारे
खुद रूठे, खुद मन जाये,
फिर हमजोली बन जाये
झगड़ा जिसके साथ करें,
अगले ही पल फिर बात करें
इनकी किसी से बैर नहीं,
इनके लिये कोई ग़ैर नहीं
इनका भोलापन मिलता है सबको बाँह पसारे
बच्चे मन के सच्चे …
इन्ससान जब तक बच्चा है,
तब तक समझ का कच्चा है
ज्यों ज्यों उसकी उमर बढ़े,
मन पर झूठ क मैल चढ़े
क्रोध बढ़े, नफ़रत घेरे,
लालच की आदत घेरे
बचपन इन पापों से हटकर अपनी उमर गुज़ारे
बच्चे मन के सच्चे …
तन कोमल मन सुन्दर
हैं बच्चे बड़ों से बेहतर
इनमें छूत और छात नहीं,
झूठी जात और पात नहीं
भाषा की तक़रार नहीं,
मज़हब की दीवार नहीं
इनकी नज़रों में एक हैं, मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारे
बच्चे मन के सच्चे …
मेरे बच्चे, मेरे प्यारे / अंजना भट्ट
मेरे बच्चे, मेरे प्यारे,
तू मेरे जिस्म पर उगा हुआ
इक प्यारा सा नन्हा फूल…
क्या है तेरा मुझसे रिश्ता?
बस….एक लाल धागे का…
टूटने पर भी उतना ही सच्चा, उतना ही पक्का
जितना परमात्मा से आत्मा का रिश्ता.
तेरी मुस्कुराहटों से जागता है
मेरी सुबहों का लाल सूरज.
तेरी संतुष्टी में ढलता है
मेरी शामों का सुनहरी सूरज.
तेरी हिम्मतों से खिलता है
मेरी रातों का सफेद चंद्रमा.
तेरी खुशियों में झिलमिलाते हैं
मेरी रातों के चंचल तारे.
तेरा जीवन सफ़र है मेरी आकाशगंगा
जहाँ तेरी कामयाबी …है मेरा स्वर्णिम मुकाम वहीँ
जहाँ तू नहीं…वो स्वर्ग हो कर भी मेरे लिए स्वर्ग नहीं.
तेरी हिम्मत की बताये रास्तों पर चल कर
उलझने की बजाये तूने अपना रास्ता खुद चुना.
मोती मिलेंगे तुझे…मेरे बच्चे…
बस जिन्दगी की सिप्पियाँ खुद ही खोल कर देखना होगा.
अंतहीन नीले आसमान की ऊंचाइयो में अकेले पंछी की तरह धीरज से उड़ना होगा.
अपनी रातों के रंगीन सपनों को खुली आँखों से हकीकत में उतारना होगा.
अपनी खामोशियों में मचलते शब्दों को चुन चुन कर गीतों से संवारना होगा.
अपनी राहों में परमात्मा की उंगली थामे बादलों के महलों में छुपे खज़ाने को खुद ही तलाशना होगा.
वेदों की सच्चाईओं का आशीर्वाद देती हूँ तुझे…
तेरी आँखों में हर पल सूरज की रोशनी जगमगाए
वायू देवता तेरे प्राणों में निरंतर बसें
वाणी में अग्नी सी साफ़ सच्चाई और
चंद्रमा की चांदनी सी मासूमियत तेरे दिल में बसे.
ओ परमात्मा …
मेरे बच्चे के संकल्प मंगलमय कर दे
उसके रोम रोम में चिंतन की काबिलियत भर दे
मेरे बच्चे के मन में सच्चाई, शांती और मुहब्बत भर दे
मेरे बच्चे को अपना प्रिय जान उसका जीवन सुखमय कर दे
अपने रहमों करम की बारिश से मेरे बच्चे के घर में दाने भर दे.
हम नन्हे-नन्हे बच्चे हैं / सोहनलाल द्विवेदी
हम नन्हे-नन्हे बच्चे हैं,
नादान उमर के कच्चे हैं,
पर अपनी धुन के सच्चे हैं!
जननी की जय-जय गाएँगे,
भारत की ध्वजा उड़ाएँगे!
अपना पथ कभी न छोड़ेंगे,
अपना प्रण कभी न तोड़ेंगे,
हिम्मत से नाता जोड़ेंगे!
हम हिम गिर पर चढ़ जाएँगे,
भारत की ध्वजा उड़ाएँगे!
हम भय से कभी न डोलेंगे,
अपनी ताकत को तोलेंगे,
माता के बंधन खोलेंगे!
हम इसकी शान बढ़ाएँगे,
भारत की ध्वजा उड़ाएँगे!
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