Hindi Poems on Jhansi Kii Rani, Lakshmi Bai या झाँसी की रानी, लक्ष्मीबाई पर हिन्दी कविताएँ. इस आर्टिकल में बहुत सारी हिन्दी कविताओं का एक संग्रह दिया गया है जिनका विषय झाँसी की रानी, लक्ष्मीबाई (Jhansi Kii Rani, Lakshmi Bai) पर आधारित है.
Jhansi Ki Rani Poems in Hindi – झाँसी की रानी पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Jhansi Ki Rani Poems in Hindi – झाँसी की रानी पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 मतना लाओ वार सखी / रणवीर सिंह दहिया
- 1.2 शहीदों में तू नाम लिखा ले रे! / गोपालप्रसाद व्यास
- 1.3 सोते थे आण जागयो री / रणवीर सिंह दहिया
- 1.4 गुलाम कर दिया म्हारा देश / रणवीर सिंह दहिया
- 1.5 मैदाने जंग में मरना है / रणवीर सिंह दहिया
- 1.6 झाँसी की रानी की समाधि पर / सुभद्राकुमारी चौहान
- 1.7 झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान
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मतना लाओ वार सखी / रणवीर सिंह दहिया
एक दिन झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भी महिला सैनिकों की ट्रेनिंग में शामिल होती हैं। ट्रेनिंग खत्म होने के बाद लक्ष्मी बाई अपनी महिला सेना पति झलकारी बाई से कहती हैं- क्या बात है झलकारी बाई औरतो की संख्या बढ़ नहीं रही तुम्हारी सेना में। झलकारी बाई कहती हैं- रानी जी ये मर्द अपनी औरतों को सेना में भेजना ही नहीं चाहते। कहते हैं औरतें भी कहीं सेना में जाती हैं? रानी लक्ष्मी बाई ठण्डी सांस भर कर जवाब देती हैं- ठीक कहती हो झलकारी बाई। मैनै जब खुद हथियार उठाये थे तो राव परिवार को पसन्द नहीं आये थे। यह पुरुषों की नस्ल है ही ऐसी। मगर झलकारी बाई ने दुगने उत्साह के साथ गांव-गांव जाकर महिलाओं को प्रोत्साहित करना शुरू किया। महिलाओं की टोली बना कर वह गांव-गांव जाती और गीत गा-गाकर औरतों को प्रोत्साहित करती थी। कैसे भलाः
मतना लाओ वार सखी, हो जाओ तैयार सखी
ठाल्यो सब हथियार सखी, लड़नी पड़ै लड़ाई हे॥
गांव गली शहर कूंचे मैं, इज्जत म्हारी महफूज नहीं
फिरंगी करै अत्याचार करता कोए बी महसूस नहीं
नहीं लड़ाई आसान सखी युद्ध होगा घमासान सखी
मारां फिरंगी शैतान सखी, ईब मतना करो समाई हे॥
रूढ़िवादी विचार क्यों दखे बनकै ये दीवार खड़े
बन्दूक ठाई औरत नै खिलाफ हुये प्रचार बड़े
फिरंगी गेरता फूट सखी, घणी मचाई लूट सखी
ईब हम लेवां ऊठ सखी, समों लड़न की आई हे॥
फिरंगी घणा फरेबी पाया फंदा घाल दिया फांसी का
रानी झांसी तार बिठाई, राज खोंस लिया झांसी का
नहीं सहां अपमान सखी, आजादी का अभियान सखी
आज आया इम्तिहान सखी, डंके की चोट बताई हे॥
जीणा सै तो लड़णा होगा, संघर्ष हमारा नारा बहना
पलटन बनाकै कदम बढ़ै, दूर नहीं किनारा बहना
अब तो उँचा बोल सखी, झिझक ले अब खोल सखी
जाये फिरंगी डोल सखी, रणबीर अलख जगाई हे॥
शहीदों में तू नाम लिखा ले रे! / गोपालप्रसाद व्यास
वह देश, देश क्या है, जिसमें
लेते हों जन्म शहीद नहीं।
वह खाक जवानी है जिसमें
मर मिटने की उम्मीद नहीं।
वह मां बेकार सपूती है,
जिसने कायर सुत जाया है।
वह पूत, पूत क्या है जिसने
माता का दूध लजाया है।
सुख पाया तो इतरा जाना,
दुःख पाया तो कुम्हला जाना।
यह भी क्या कोई जीवन है:
पैदा होना, फिर मर जाना !
पैदा हो तो फिर ऐसा हो,
जैसे तांत्या बलवान हुआ।
मरना हो तो फिर ऐसे मर,
ज्यों भगतसिंह कुर्बान हुआ।
जीना हो तो वह ठान ठान,
जो कुंवरसिंह ने ठानी थी।
या जीवन पाकर अमर हुई
जैसे झांसी की रानी थी।
यदि कुछ भी तुझ में जीवन है,
तो बात याद कर राणा की।
दिल्ली के शाह बहादुर की
औ कानपूर के नाना की।
तू बात याद कर मेरठ की,
मत भूल अवध की घातों को।
कर सत्तावन के दिवस याद,
मत भूल गदर की बातों को।
आज़ादी के परवानों ने जब
खूं से होली खेली थी।
माता के मुक्त कराने को
सीने पर गोली झेली थी।
तोपों पर पीठ बंधाई थी,
पेड़ों पर फांसी खाई थी।
पर उन दीवानों के मुख पर
रत्ती-भर शिकन न आई थी।
वे भी घर के उजियारे थे
अपनी माता के बारे थे।
बहनों के बंधु दुलारे थे,
अपनी पत्नी के प्यारे थे।
पर आदर्शों की खातिर जो
भर अपने जी में जोम गए।
भारतमाता की मुक्ति हेतु,
अपने शरीर को होम गए।
कर याद कि तू भी उनका ही
वंशज है, भारतवासी है।
यह जननी, जन्म-भूमि अब भी,
कुछ बलिदानों की प्यासी है।
अंग्रेज गए जैसे-तैसे,
लेकिन अंग्रेजी बाकी है।
उनके बुत छाती पर बैठे,
ज़हनियत अभी वह बाकी है।
कर याद कि जो भी शोषक है
उसको ही तुझे मिटाना है।
ले समझ कि जो अन्यायी है
आसन से उसे हटाना है।
ऐसा करने में भले प्राण
जाते हों तेरे, जाने दे।
अपने अंगों की रक्त-माल
मानवता पर चढ़ जाने दे।
तू जिन्दा हो और जन्म-भूमि
बन्दी हो तो धिक्कार तुझे।
भोजन जलते अंगार तुझे,
पानी है विष की धार तुझे।
जीवन-यौवन की गंगा में
तू भी कुछ पुण्य कमा ले रे!
मिल जाए अगर सौभाग्य
शहीदों में तू नाम लिखा ले रे!
सोते थे आण जागयो री / रणवीर सिंह दहिया
झलकारी बाई ने समाज की अवहेलना भी बहुत झेली थी। मगर उसने कभी हार नहीं मानी। यह अलग बात है कि उतार चढ़ाव उसके जीवन में भी आये। झांसी के आस-पास के देहात में जहां रानी लक्ष्मी बाई बहुुत लोक प्रिय थी वहीं झलकारी बाई को भी लोग एक कर्मठ व बहादुर महिला के रूप में जानने लगे थे। आपस में जहां भी कुछ महिलायें इकठ्ठी होती वहां झलकारी बाई के बारे में चर्चाएं बहुत होती थी। महिलाओं ने झलकारी बाई को लेकर बहुत से गीत भी बना लिये थे और बहुत से मौकों पर महिलाएं इकठ्ठी होकर गीत गाती भी थी। क्या बताया भलाः
सोते थे आण जागयो री, झलकारी बाई नै॥
सच्चाई को भूल रहे थे, फिरंगी झोली झूल रहे थे
हमे सही रास्ता दिखायो री, झलकारी बाई नै॥
लाई लूट खसोट की मण्डी, लूट रहे थे फिरंगी पाखण्डी
इनके सारे भेद बतायो री, झलकारी बाई नै॥
आपस मैं तकरार जात की, धर्म पै लड़ाई बिन बात की
हमे उजड़ण तै बचायो री, झलकारी बाई नैं॥
नारी का सत्कार नहीं था, पढ़ने का अधिकार नहीं था
बन्दूक चलाना सिखायो री, झलकारी बाई नैैै॥
दिल मैं विश्वास नहीं था, म्हारे अन्दर इकलास नहीं था
फिरंगी तै लड़वायो री, झलकारी बाई नै॥
गुलाम कर दिया म्हारा देश / रणवीर सिंह दहिया
रानी झांसी को जब हुकम सुना दिया जाता है तो वह झांसी की रानी नहीं बन सकती तो रानी झांसी ने फिर भी हार नहीं मानी। कई बार फिरंगी के नुमाइन्दों से बातचीत का दौर चला कि झांसी को रानी लक्ष्मी बाई को दिया जाये। जब आखिरी हुकम सुना दिया जाता है तो रानी झांसी को एक बार तो बड़ा धक्का लगता है मगर रानी लक्ष्मी बाई जल्दी ही उबर जाती हैं और पूरन को और झलकारी बाई जैसे योद्धाओं के साथ मिलकर फिरंगी से टकराने का फैसला करती है। एक दिन फिरंगियो के बारे में झलकारी बाई और लक्ष्मी बाई के बीच बातचीत होती है तो झलकारी बाई क्या कहती है फिरंगी हुकमरानों के बारे में:
गुलाम कर दिया म्हारा देश आपस मैं लडव़ाकै॥
फिरंगी छाये भारत उपर, गरीब गेरे कुंएं मैं ठाकै॥
चाल पाई या आण्डी बाण्डी
या राजनीति फिरंगी की लाण्डी
इनमै मारी खूबै डाण्डी या जनता बहकाकै॥
कितै मस्जिद पै लड़वाये सां
कितै बिन बात भिड़वावे सां
न्यों गुलाम बनावै सां, उन्टी ये सीख सीखाकै॥
धरती म्हारी खोंस लई है
लगन कई गुणा ठोक दई है
किसानी हो बेहाल गई है, कई मरे फंसी खाकै॥
फिरंगी नै बीज फूट के बोकै
किसान लूट लिये नंगे होकै
कहै रणबीर बी रोकै, देखो नै नजर घुमाकै॥
मैदाने जंग में मरना है / रणवीर सिंह दहिया
झलकारी के सामने अब एक ही रास्ता बचा था कि गोरों का ध्ध्यान रानी से हटाया जाये और लक्ष्मी बाई को बचाया जाये। वह एकदम छावनी जा पहुंची। घोड़े की लगाम खींची। तेज आवाज सुनकर गोरे चौंक गये। पूछा- कौन हाय? झलकारी ने बेखौफ जवाब दिया था- रानी। सैनिक बोला- कौन रानी? झलकारी फिर बोली-झांसी की रानी लक्ष्मी बाई। रोज को खबर दी गई। वह आया और पूछा- कौन हो टुम। कहा- झंासी की रानी । सब कैम्प में आ गये। फिरंगी दुविधा में थे। कैसे पता लगायें वास्तव मैं यह औरत रानी लक्ष्मी बाई है। घर का भेदी लंका ढाये। दुल्हाजु अंग्रेजों का भेदिया था। उसे बुलाया गया। यह वही दुल्हाजु था जिसने ओरछा फाटक खोलकर अंग्रेजीं सेना को भीतर आने का अवसर दिया था। वह बोला सर यह रानी नहीं है। यह झलकारी कोरिन है। झलकारी दुल्हाजु पर झपटी। रोज ने कहा- तुम्हे गोली मार देगा। झलकारी फिर गरजी- मार देय गोली। मोखौं मौत से डर नई लागै। अंग्रेज उसकी निडरता से प्रभावित होते हैं। और उसे छोड़ देते हैं। उसे बचने की खुशी न थी। वह याद करती है पिछला वक्त। क्या बताया भलाः
मैदाने जंग मंे मरना है, फिरंगी से नहीं डरना है
यो वायदा पूरा करना है, कहती रानी लक्ष्मी बाई॥
तीन बरस ना जेवर पहरे अपणा प्रण निभाया
रानी तै बोली गहने पहरूं यो समों लडण का आया
रानी बोली गहने पहरो, वा बोली रानी जी कहरो
नहीं मेरे पै गहना रहरो, बछिया का जुर्माना चुकाई॥
शाम दाम दण्ड भेद के दम सौचे यो राज कमाया
देश बी बंट्या जात धर्म पै फिरंगी नै फायदा ठाया
घर का भेदी यो लंका ढावै, म्हारे राज उड़ै पहोंचावै
फिंरगी आपस मैं लड़वावै, म्हारी इसनै रेल बनाई॥
दुख इतना दिया इननै कसर बाकी रही कोन्या
भोली जनता जान गई फिरंगी की नीत सही कोन्या
बड़ा जटिल रूप सै जंग का, दुश्मन पाया दुल्हाजू भाई॥
उतार-चढ़ाव आये देश मैं जन क्रान्ति का माहौल था
बोली फिरंगी सुणकै म्हारी होग्या डामा डोल था
यो बरोने आला रणबीर, जो जंग की खीचैं तस्वीर
झलकारी बनी रणधीर, जबान की घणी पक्की पाई॥
झाँसी की रानी की समाधि पर / सुभद्राकुमारी चौहान
इस समाधि में छिपी हुई है, एक राख की ढेरी |
जल कर जिसने स्वतंत्रता की, दिव्य आरती फेरी ||
यह समाधि यह लघु समाधि है, झाँसी की रानी की |
अंतिम लीलास्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||
यहीं कहीं पर बिखर गई वह, भग्न-विजय-माला-सी |
उसके फूल यहाँ संचित हैं, है यह स्मृति शाला-सी |
सहे वार पर वार अंत तक, लड़ी वीर बाला-सी |
आहुति-सी गिर चढ़ी चिता पर, चमक उठी ज्वाला-सी |
बढ़ जाता है मान वीर का, रण में बलि होने से |
मूल्यवती होती सोने की भस्म, यथा सोने से ||
रानी से भी अधिक हमे अब, यह समाधि है प्यारी |
यहाँ निहित है स्वतंत्रता की, आशा की चिनगारी ||
इससे भी सुन्दर समाधियाँ, हम जग में हैं पाते |
उनकी गाथा पर निशीथ में, क्षुद्र जंतु ही गाते ||
पर कवियों की अमर गिरा में, इसकी अमिट कहानी |
स्नेह और श्रद्धा से गाती, है वीरों की बानी ||
बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी |
खूब लड़ी मरदानी वह थी, झाँसी वाली रानी ||
यह समाधि यह चिर समाधि है , झाँसी की रानी की |
अंतिम लीला स्थली यही है, लक्ष्मी मरदानी की ||
झांसी की रानी / सुभद्राकुमारी चौहान
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
‘नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार’।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये सवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
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