Jawaharlal Nehru quotes in Hindi अर्थात पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के अनमोल वचन हिन्दी में. पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की जीवनी को पढने के लिए यहाँ पर click कीजिये: Jawaharlal Nehru Biography in Hindi – पंडित जवाहरलाल नेहरू की जीवनी
Jawaharlal Nehru Quotes – पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के अनमोल वचन
Contents
- जय उसी की होती है जो अपने को संकट में डालकर कार्य पूरा करते हैं ।
- जो पुस्तकें तुम्हें सबसे अधिक सोचने के लिए विवश करती हैं, वे ही तुम्हारी सबसे बड़ी सहायक हैं ।
- हिन्दी एक जानदार भाषा है । यह जितनी बढ़ेगी, देश को उतना ही लाभ होगा ।
- बच्चों की सबसे बड़ी दौलत प्यार है ।
- सही कार्य अपने आप जन्म नहीं लेता, इसे विचारों की कोख में संवारना पड़ता है ।
- सबसे उत्तम विजय प्रेम की है, जो सदा के लिए विजेता का हृदय बांधती है ।
- ज्यों-ज्यों मनुष्य बूढ़ा होता जाता है, त्यों-त्यों जीवन और मृत्यु से भय बढ़ता जाता है ।
- प्रगति ही जीवन है ।
- बुराई को न रोकने से वह बढ़ती है, बुराई को बर्दाश्त कर लेने से यह तमाम क्रियाओं में जहर फैला देती है ।
- विश्व का भविष्य विज्ञान की प्रगति पर अधिकाधिक निर्भर होता जा रहा है, किंतु अध्यात्म के मार्गदर्शन बिना मानवता प्रलयकारी दुर्घटना की शिकार हो सकती है ।
- एक ओर तो लोग आणविक युग की चर्चा करते हैं, दूसरी और हम भारतवासी अभी तक गोबरयुग में रह रहे हैं ।
- मैं सोचता हूं कि यह मेरा महज ख्याल ही है या यह सच्चाई है कि चौकोर दीवार की अपेक्षा गोल दीवार में आदमी को अपने कैद होने का ज्यादा भान होता है । कोनों और मोड़ों के न होने से यह भाव हमारे मन में भी बढ़ जाता है कि हम यहां दबाए जा रहे हैं ।
- हिन्दुस्तान में एक प्रवृत्ति यह देखी जाती है कि लोग पीछे देखना चाहते हैं, उगगे नहीं, वे उस ऊंचाई की तरफ देखते हैं, जिस पर कभी वे थे, उस ऊंचाई की तरफ नहीं, जिस पर उनको पहुंचना है । इस तरह हमारे देशवासी गुजरे हुए जमाने के लिए लंबी-लंबी सांसें लेते रहे और आगे बढ़ने की बजाए, जो कोई भी आया उसका हुक्म मानते रहे । असल में साम्राज्य अपनी ताकत पर उतना निर्भर नहीं करते, जितना कि उन लोगों की गुलाम तबीयत पर, जिनके ऊपर वे हुकूमत करते हैं ।
- निरोग होना परम लाभ है, संतोष परेम धन है, विश्वास सबसे बड़ा बंधु है, निर्वाण परम सुख है ।
- जिस देश या जाति का ध्यान काम की तरफ जाता है, काम में फंसता रहता है उसको लड़ाई-झगड़े की फुरसत नहीं होती । वह काम में लगा रहता है । अगर आप लोग काम करते हैं तो आपको भी लड़ाई की फुरसत नहीं है । जब आदमी काम नहीं करता तो फिर उसका दिल दूसरी तरफ जाता है, उसे दूसरों से जलन होती है । औरों को काम करते और तरक्की करते देखना उसे बुरा लगता है । फिर इसी से लड़ाई-झगड़े पैदा होते हैं ।
- मेरी हमेशा से यही राय है कि जाति की उन्नति उस देश के स्त्री वर्ग की हालत पर निर्भर होती है । हम पिछले वर्षों में देख भी चुके हैं कि हिन्दुरतान की स्वतंत्रता के युद्ध में स्त्रियों का सहयोग कितना कामयाब रहा है । वे खूब विख्यात हो गईं और भविष्य में उनके लिए अनेक द्वार खुल गए ।
- जीने का अर्थ बदलती हुई स्थितियों के अनुसार बदलना है । हर एक राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक पद्धति के अपने नियम होते हैं । धार्मिक या सामाजिक नियम या आचार में नैतिक उगैर आध्यात्मिक आचार भी शामिल है । जब प्रयोजन और पद्धति बदलते हैं, तब पुराने नियम या उगचार भी टूटते हैं उगैर नए नियम इनकी जगह लेते हैं । पिछले पचास वर्ष में कारीगरी में इतनी तेजी से परिवर्तन हुए हैं कि समाज का ढांचा उगैर उराचार एकदम बेमेल बन गए हैं ।
- जब मनुष्य की उगत्मा अपने बंधनों को तोड़ डालती है, तो हमेशा तरक्की और नई-नई खोजें होती हैं । वे विकसित हो जाती है उगैर फैल जाती हैं । हमारे देश के आजाद होने पर हमारे देशवासियों का उगैर हमारी उनात्मा का विकास होगा उगैर हम सारी दिशाओं में उगगे बढ़ेंगे । मनुष्य ने जितना ही ज्यादा प्रकृति को समझा, उतना ही उसने उससे लाभ उठाया उगैर उसे उरपने मतलब के लिए काम में लिया । इस प्रकार उसके हाथ में बहुत ज्यादा ताकत आ गई, लेकिन अभाग्यवश इस नई ताकत को उसने ठीक ढंग से इस्तेमाल नहीं किया और अक्सर बेजा किया । मनुष्य ने विज्ञान से खासतौर से भयंकर अस्त्र-शस्त्र बनाने का काम लिया है । जिनकी मदद से वह दूसरे मनुष्य को मार सके उगैर इसी सभ्यता को नष्ट-भ्रष्ट कर डाले । जिसके बनाने में उसने मेहनत की है ।
- मनुष्य देवताओं के सामने हार नहीं मानता उगैर न वह मौत के सामने ही सिर झुकाता है, जब कभी वह हार मानता है, अपनी इच्छा शक्ति की कमजोरी की वजह से ही मानता है ।
आदर्श कर्म
- जहां आदर्श ज्वलंत रहे और दिल अडिग रहे, वहां असफलता नहीं हो सकती, ‘ सच्ची असफलता तो सिद्धांत के त्याग में, अपना हक जाने देने में और अन्याय के वशीभूत होने में है, विरोधियों के लिए हुए घावों की अपेक्षा अपने किए हुए घाव भरने में हमेशा देर लगती है ।
- श्रेष्ठतम मार्ग खोजने की प्रतीक्षा के बजाय हम गलत रास्ते से बचते रहें और बेहतर रास्ते को अपनाते रहें ।
- कर्म की सार्थकता फल में नहीं कर्मण्यता में है, उस पुरुषार्थ में है, जो एक-एक कदम की गति, एक-एक कदम की चढ़ाई का आनंद लेता है, वास्तव में चढ़ाई के प्रयत्न का सुख अपने आप में इतना मीठा है कि उसकी तृप्ति की कोई सीमा नहीं ।
- केवल कर्महीन ही ऐसे होते हैं, जो भाग्य को कोसते हैं और जिनके पास शिकायतों का बाहुल्य होता है ।
देश प्रेम/साहस
- कोई भी देश या जाति महानता को प्राप्त नहीं हो सकती, जबकि उसमें महानता का थोड़ा-बहुत माद्दा न हो ।
- विजय हमारे साश में नहीं होती, लेकिन साहस उगैर प्रयास से वह अक्सर मिल जाती है, लेकिन जो कायर हैं और नतीजों से डरते हैं उन्हें तो विजय कभी नसीब ही नहीं हो सकती ।
- मृत्यु से नया जीवन मिलता है । जो व्यक्ति और राष्ट्र के लिए मरना नहीं जाना, वे जीना भी नहीं जानते ।
- भारत की ताकत उतनी ही बढेगी, जितना हम आपस में मिलकर आगे बढ़ सकते हैं । सांप्रदायिकता एक पिछड़े राष्ट्र का चिन्ह या निशानी है,
- आधुनिक युग की नहीं । लोग अपना धर्म या मजहब रखते हैं और उस पर मजबूती से डटे रहने का उन्हें अधिकार है, लेकिन राजनीति में धर्म या मजहब को लाना और देश को तोड़ना वैसा ही है, जैसा कि तीन सौ या चार सौ वर्ष पूर्व यूरोप में हुआ था । भारत में हमें इस चीज से अपने आपको दूर रखना होगा ।
- वर्षों पहले हमने नियति को मिलन का वचन दिया था उगैर उइइग्ब वक्त आ गया है जब हम उस वचन को पूरा करेंगे ।
- कोई भी संकीर्ण तरीका लोगों को अनिवार्यत: बांट देगा और तब राष्ट्रीय भावना का अर्थ खुद-ब-खुद संकुचित हो जाएगा, तब भारत में हम हिन्दू राष्ट्रवाद, मुस्लिम राष्ट्रवाद, सिख राष्ट्रवाद और ईसाई राष्ट्रवाद का जिक्र करेंगे न कि भारतीय राष्ट्रवाद का । सच तो यह है कि ये संकुचित धार्मिक राष्ट्रवाद बीते युग के अवशेष हैं जिनकी प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है, ये एक पिछड़े और पुराने हो चुके समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं । आज भी हमारे यहां होने वाली कथित सांप्रदायिक समस्याओं की संख्या बतौर सामाजिक समूह हमारा पिछड़ापन प्रदर्शित करती है ।
- सांप्रदायिकता के साथ राष्ट्रवाद जीवित नहीं रह सकता । राष्ट्रवाद का मतलब हिन्दू, मुस्तिम या सिख राष्ट्रवाद कभी नहीं होता । ज्यों ही आप हिन्दू, सिख, मुसलमान की बात करते हैं, त्यों ही उगप हिन्दुस्तान के बारे में बात नहीं कर सकते । हरेक को अपने से यह सवाल पूछना होगा । मैं भारत को क्या बनाना चाहता हूं एक देश, एक राष्ट्र या कि दस-बीस पच्चीस टुकड़ो-टुकड़ों में बंटा हुउग राष्ट्र जिसमें कोई ताकत न हो और जो जरा-से झटके से छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाए । हरेक को इस सवाल का जवाब देना है । अलगाव हमेशा भारत की कमजोरी रही है ।
- पृथकतावादी प्रवृत्तियां चाहे वे हिन्दुओं की रही हों या मुसलमानों की, सिखों की या उगैर किसी की, हमेशा खतरनाक और गलत रही हैं । ये छोटे उगैर तंग दिमागों की उपज होती हैं । उगज कोई भी उगदमी जो वक्त की नब्ज को पहचानता है, सांप्रदायिक ढंग से नहीं चल सकता ।
- उगपत्तियां हमें आत्मज्ञान कराती हैं । वे हमें दिखा देती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं ।
संस्कृति : सभ्यता
- संस्कृति की चाहे कोई भी परिभाषा क्यों न हो, किंतु उसे व्यक्ति समूह अथवा राष्ट्र की सीमाओं में बांधना मनुष्य की सबसे बड़ी भूल है ।
- गंगा भारत की प्राचीन सभ्यता की प्रतीक रही है, निशान रही है, सदा बदलती, सदा बहती, फिर वही गंगा की गंगा । मैंने सुबह की रोशनी में गंगा को मुस्कराते उछलते, कूदते देखा है, शाम के साये में उदास, काली-सी चादर ओढे हुए । यही गंगा मेरे लिए निशानी है, भारत की प्राचीनता की, यादगार की जो बहती आई है वर्तमान तक और बहती चली जा रही है भविष्य के महासागर की ओर ।
- शहर उगैर सभ्यता साथ-साथ चलते हैं । शहरों की तरक्की से विद्या और आजादी की भावना बढ़ती है । जो लोग देहातों में रहते हैं, वे बहुत दूर-दूर बसे होते हैं और अक्सर अंधविश्वासी हुआ करते इएएं । वे प्रकृति की दया पर निर्भर रहते हैं । उन्हें बड़ी सख्त मेहनत करनी पड़ती है । बहुत कम फुरसत मिलती है और अपने मालिकों के हुक्म के खिलाफ चलने की हिम्मत उनमें नहीं होती । शहरों में लोग एक बहुत बड़ी तादाद में साथ-साथ -रहते हैं । उन्हें ज्यादा सभ्य जिंदगी बिताने का, पढ़ने का, विचारों का उगदान-प्रदान करने का उगैर आलोचना करने का और विचार-विमर्श करने का मौका मिलता है ।
- संस्कृति शारीरिक या मानसिक शक्तियों का प्रशिक्षण, दृढ़ीकरण, विकास या उससे उत्पन्न उगरथा है ।
शांति
- यदि दूसरेदेशों में शांति न हो, किसी देश में शांति हीं हो सकती । इस तंग उगैर छोटी हानि वाली दुनिया में युद्ध, शांति और स्वतंत्रता अविभाज्य हो रही है ।
- यदि दुनिया के विभिन्न भागों में बहुत बड़ी संख्या में लोग गरीबी उगैर दीनता से घिरे रहेंगे तो शांति की कोई गारंटी नहीं हो सकती ।
- आदमी धर्म के लिए झाड़ेगा, उसके लिए लिखेगा, उसके लिए मरेगा सब कुछ करेगा, पर उसके लिए जिएगा नहीं ।
धर्म-मजहब
- बलतान में ही स्वतंत्र रहने की योग्यता है । निर्बल की स्वतंत्रता तो मानो पागल के हाथ में डायनामाइट की छड़ी है ।
- ज्योंही उगपने अपनी निजी विचारधारा की पकड़ खोई आपकी कीमत खत्म हुई ।
- प्रत्येक पीढ़ी को नए सिरे से स्वतंत्रता की लड़ाई लड़नी होती है, क्योंकि इसके अभाव में किसी भी शब्द के इरादे कमजोर पड़ जाते हैं और वे जीवन तथा स्वतंत्रता के मौलिक मूल्यों को भूल जाते है ।
- नेक बात चाहे किसी धर्म की हो, किसी आदमी की हो उसे अवश्य ग्रहण करो ।
- भारत में तथा उग्न्य देशों में जिसे मजहब कहा जाता है या जैसे-जैसे संगठित मजहब कहा जाता है, उसके नजारेने हमारेदिलोंकोदहला दिया है । मैंने बहुत बार इसकी निंदा की है और चाहा है कि इसका सफाया कर दिया जाए ।
- आजादी ऐसी चीज है कि जिस वक्त आप गफलत में पड़ेंगे, वह उगपसे फिसल जाएगी ।
विचार धारा
- बहुत खून-खराबे के बाद पुराने धार्मिक झगड़े खत्म हुए और सहनशीलता पैदा हुई । फिर आर्थिक और सैद्धांतिक झगड़े क्यों नहीं खत्म हो सकते, हर एक देश को आजादी होनी चाहिए कि वह अपने ढंग से विकास करे, जो कुछ किसी और से सीखे, अपने ढंग से सीखे । उस पर कोई चीज थोपी न जाए, इसी तरह एक विचारधारा दूसरे को भावित करेगी ।
- जंजीरें, जो कभी-कभी हमारे शरीर को बांधती हैं, काफी बुरी होती हैं, लेकिन ख्यालात और पक्षपात की जंजीरें जिनसे हमारा मन बंधा हो, उनसे कहीं ज्यादा खराब होती है । ये जंजीरें हम खुद ही बनाते है और हम यह भी नहीं जान पाते कि हम बंधे हुए हैं, लेकिन असल में ये हमें बड़ी सख्ती से जकड़े होती हैं । परिवर्तन
- अगर हम वक्त पर अक्लमंदी के साथ परिवर्तन नहीं करते, तो परिवर्तन की यह आदत है कि वह बिना बुलाए ही आ जाता है और सारा मामला गड़बड़ा देता है ।
- दुनिया की कोई भी चीज जो जिंदा है, बिना परिवर्तन के नहीं रहती, सारी प्रकृति रोज बदलती रहती है । केवल मुर्दों की ही तरक्की रुकी रहती है । ताजा पानी बहता रहता है और कोई उसे रोक दे तो वह स्थिर होकर गंदा हो जाता है । आदमी और कौम की जिंदगी का भी यही हाल होता है । नन्हींनन्ही बच्चियां, छोटी-छोटी लड्कियां बड़ी लड्कियां हो जाती हैं । वही बाद में स्त्रियां और फिर बुढ़िया हो जाती हैं । हमें इन सब तब्दीलियों को बर्दाश्त करना पड़ता है ।
इतिहास
- कांति का समय न सिर्फ चरित्र, साहस, सहनशक्ति, आत्मत्याग और वर्ग की अनुभूति की कसौटी होती है, बल्कि वह अलग-अलग वर्गों और समुदायों के बीच उस असली संघर्ष को जाहिर कर देता है जो सुंदर और अस्पष्ट जुमलों के नीचे ढका हुआ होता है ।
- इतिहास को तो एक दिलचस्प नाटक समझना चाहिए, जो हमारे दिल को मुट्ठी में कर लेता है । ऐसा नाटक जो कभी-कभी सुखांत, लेकिन ज्यादातर दुखांत रहा है । दुनिया जिसका रंगमंच एवं भूतकालीन महापुरुष और वीरांगनाएं जिसके पात्र हैं ।
- आप इतिहास को मानवता की, मनुष्य की आत्मा की आगे बढ़ती हुई यात्रा समझ सकते हैं । फिर भी हम यह देखकर ठिठक जाते हैं कि किस तरह इस अग्रगामी यात्रा में व्यवधान होता है और हमें पीछे फेंक दिया जाता है ।
- मुझे यह बहुत नापसंद है कि लड़के और लड्कियां सिर्फ एक देश का हाल पढ़ें और उसमें सिर्फ कुछ तारीखें और चंद घटनाएं रट लें । इतिहास तो एक मुकम्मिल चीज है और जब तक तुम्हें यह मालूम न हो कि दुनिया के दूसरे हिस्सों में क्या हुआ, तुम किसी देश का इतिहास समझ ही नहीं सकते । भिन्न-भिन्न जातियों या मुख्तलिफ कौमों में इतना ज्यादा अंतर नहीं होता जितना लोग समझते हैं । नक्शों और एटलसों में मुल्क अलग-अलग रंगों में रंगकर दिखाए जाते हैं । इसमें शक नहीं कि मुख्तलिफ देश के रहने वालों में कुछ अंतर जरूर होता है, लेकिन उनमें समानता भी बहुत पाई जाती है । इसलिए अच्छा हो अगर हम ऊपर कही हुई बात याद रखें और नक्शों के रंग या मुक्तों की सरहदी रेखा देखकर बहक न जाए ।
- इतिहास के अध्ययन ने हमें बताया है कि जीवन प्राय : बड़ा निर्दयी और कठोर है । इस पर उत्तेजित होना या लोगों पर खाली दोष लगाना एकदम बेवकूफी है और उससे कोई मदद नहीं मिलती । बुद्धिमानी इसी में है कि गरीबी, मुसीबत उगैर शोषण के कारणों को समझने और उन्हें दूर करने की कोशिश की जाए ।
कानून व्यवस्था
- हर एक देश और हर एक मजहब का कानून पुराना होता है उगैर लोग समझते हैं कि वह अपरिवर्तनशील कानून हमेशा कायम रहेगा । कभी-कभी लोग कहते हैं कि इस कानून को ईश्वर ने बनाया है उरौर जाहिर है कि जो चीज ईश्वर भेजेगा वह परिवर्तनशील या अस्थाई नहीं समझी जा सकती, लेकिन कानून एक खास स्थिति के मुआफिक बनाए जाते हैं और उनकी मंशा यह होती है कि हम उनकी मदद से अपने को बेहतर बना सकें, अगर हालत बदल जाती है तो पुराने कानून कैसे काम में आ सकते हैं? हालत के साथ कानून को भी बदलना चाहिए । नहीं तो यह लोहे की जंजीर की तरह हमें जकड़े रहते हैं, जबकि दुनिया आगे बढ़ती जाती है । कोई भी कानून अपरिवर्तनशील नहीं हो सकता ।
- कानून और व्यवस्था का सदा यही काम है कि जिन मुट्ठी-भर लोगों के हाथ में सत्ता है, उनके उद्देश्य पूरे होते रहें और उनकी जेबों पर उगंच न आने पाए ।
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