नमस्कार, होली के त्यौहार से संभंधित होलिका प्रह्लाद की कहानी बहुत ही अधिक चर्चित है. नीचे हमने पूरी कहानी को detail (विस्तार) से लिखा हुआ है.
Full Story of Holika Prahlad (Holika Dahan) – होलिका प्रह्लाद की कहानी (होलिका दहन)
हर्नाख्श और पर्नाख्श नाम के दो भाई बैकुंठ में रहते थे, देवतायों के श्राप के कारण इनको बैकुंठ से निकलना पड़ा , हर्नाख्श बहुत बलवान था वो पृथ्वी पर आकर राज करने लग गया और अचानक पर्नाख्श की मृत्यु हो गयी. हर्नाख्श भले ही बलवान था पर उसे मृत्यु से बहुत डर लगता था और वो मृत्यु से काबू पाना चाहता था. वह अपना राज – भाग छोड कर हिमालय पर्वत पर जा कर तपस्या करने लग गया. उसकी कठिन तपस्या और साधना से प्रभावित होकर भगवन उसके सामने प्रगट हुए. हर्नाख्श ने परमात्मा से नीचे लिखे वरदान मांगे.
मैं न दिन को मरूँ न रात को मरूँ.
मैं न अन्दर मरूँ न बहार मरूँ.
मैं न धरती पर मरूँ न आकाश में.
मैं न बीमारी से मरूँ न हथियार से.
मैं न इंसान से मरूँ न पशु से.
परमात्मा ने ये वर हर्नाख्श को दे दिए. हर्नाख्श बहुत खुश हुआ. वो पृथ्वी पर आ कर फिर राज करने लगा. अब उसे किसी का डर नहीं था. वो धरती के लोगों पर अपनी ईन मनाने लगा. उसने हंकार में आकर जुल्म करने आरम्भ कर दिए. यहाँ तक कि उसने लोगों को परमात्मा की जगह अपना नाम जपने का हुकम दे दिया.
कुछ समय बाद हर्नाख्श के घर में एक बेटे का जनम लिया. उसका नाम प्रह्लाद रखा गया. प्रह्लाद कुछ बड़ा हुआ तो, उसको पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया. पाठशाला के गुरु ने प्रह्लाद को हर्नाख्श का नाम जपने की शिक्षा दी. पर प्रह्लाद हर्नाख्श के स्थान पर परमात्मा का नाम जपता था. वह परमात्मा को हर्नाख्श से बड़ा समझता था.
गुरु ने प्रह्लाद की हर्नाख्श से शिकायत कर दी. हर्नाख्श ने प्रह्लाद को बुला कर पूछा कि वह उसका नाम जपने के स्थान पर परमात्मा का नाम क्यूँ जपता है ?
प्रह्लाद ने कहा, “इशवर सर्व शक्तिमान है. उसने ही सारी कुदरत को रचा है.” अपने पुत्र का उत्तर सुनकर हर्नाख्श लोहा लाखा हो गया. उसको खतरा पैदा हो गया कि कही बाकी के लोग भी उससे आकी न हो जाए. उसने गरज कर कहा, “मैं ही सबसे अधिक शक्तिशाली हूँ, मुझे कोई नहीं मर सकता. मैं तुझे अब ख़त्म कर सकता हूँ.” उसकी आवाज़ सुनकर प्रह्लाद की माँ भी वहां आ ज्ञ. उसने हर्नाख्श का तरला करते हुए कहा, “आप सभी इसको ना मारो, मैं इसको समझाने का यत्न करती हूँ.” वो प्रह्लाद को अपने पास बिठाकर कहने लगी, “तेरे पिता जी इस धरती पर सबसे शक्तिशाली है. उनको अमर रहने का वर मिला हुआ है. इनकी बात मान ले.”
प्रह्लाद बोला, “माता जी मैं माता हूँ कि मेरे पिता जी बहुत ताकतवर है पर सबसे अधिक बलवान भगवन है जिसने हम सभी को बनाया है. पिता जो को भी उसने ही बनाया है. प्रह्लाद का ये उत्तर सुन कर उसकी माँ बेबस हो गयी. प्रह्लाद अपने विश्वास पर द्रिड था. ये देख कर हर्नाख्श को और गुस्सा आ गया. उसने अपने जल्लादों को हुकम दिया कि वो प्रह्लाद को समुद्र में डूबा कर मार दें. जल्लाद प्रह्लाद को समुद्र में फेंकने के लिए ले गये. उन्होंने प्रह्लाद को समुद्र में फेंक दिया ओर समुद्र की एक लहर ने प्रह्लाद को किनारे पर फैंक दिया. जल्लादों ने प्रह्लाद को फिर समुद्र में फेंक दिया. प्रह्लाद फिर बहार आ गया. जल्लादों ने आकर हर्नाख्श को बताया तो उसने कहा कि उसको किसी ऊँचे परबत से नीचे फेंक कर मर दो. जल्लादों ने इसी प्रकार किया पर प्रह्लाद एक घने वृक्ष पर गिरा जिस कारण उसको कोई चोट नहीं लगी. हर्नाख्श ने प्रह्लाद को एक पागल हाथी के आगे फेंका तो जो हाथी उसको अपने पैरों के नीचे कुचल दे. पर हाथी ने प्रह्लाद को कुछ नहीं कहा. लगता था जैसे साड़ी कुदरत प्रह्लाद की मदद कर रही हो.
हर्नाख्श की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था. होलिका अपने भाई हर्नाख्श की परेशानी दूर करना चाहती थी. होलिका को वर कारण आग जला सकती थी. उसने अपने भाई को कहा कि वो प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ जाएगी. वर कारण वो खुद आग में जलने से बच जाएगी पर प्रह्लाद जल जायेगा. इस प्रकार ही किया गया. बहुत सारा बालन इकट्ठा कर लिया गया. तब होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर बालन में बैठ गयी. बालन को आग लगा दी गयी. पर इस आग में होलिका जल गयी पर प्रह्लाद बच गया. होलिका ने जब वरदान में मिली शक्ति का दुरुपयोग किया, तो वो वरदान उसके लिए श्राप बन गया.
हर्नाख्श गुस्से में एक तरह पागल ही हो गया. उसको समझ नहीं आ रही थी कि वो क्या करें. उसने एक लोहे के खम्बे को गरम करवाया. जब खम्बा गरम हो के लाल हो गया. तब उसने प्रह्लाद को बुलाकर पुछा, “तेरा परमात्मा कहाँ है?” प्रह्लाद ने उत्तर दिया, “ परमात्मा तो कण-कण में शामिल है. वो मेरे अन्दर, आपके अन्दर, सबके अन्दर है.”
हर्नाख्श ने कहा, “क्या परमात्मा इस खम्बे में है?”
प्रह्लाद ने ‘हाँ’ में उत्तर दिया. तब हर्नाख्श ने प्रह्लाद को कहा कि अगर परमात्मा इस खम्बे के अन्दर है तोह वो इस खम्बे को गले लगा ले. इस से पहले प्रह्लाद इस गरम खम्बे को देख कर पिघल जाये उसे खम्बे पर एक चींटी दिखी. तब प्रह्लाद ने गरम खम्बे को गले लगा लिया. उसका कुछ भी नुकसान नहीं हुआ.
आखिर कार हर्नाख्श ने गुस्से में अंधे होकर तलवार निकल ली. उसने तलवार के साथ प्रह्लाद पर वार कर दिया. तलवार खम्बे को जाकर लगी और खम्बा टूट गया. कहते हैं उस समय उसमें से परमात्मा नर सिंह के रूप में आ प्रगट हुआ. परमात्मा के इस रूप का आधा हिस्सा इंसान का और आधा शेर का था. उसने हर्नाख्श को उठा लिया और दहलीज़ के ऊपर बैठ कर उसको अपनी गोद में बिठा लिया. हर्नाख्श को एहसास हुआ कि उसका अंत नज़दीक है. उसने नर सिंह को कहा कि उसको तो वरदान प्राप्त हुआ था कि उसको कोई मार नहीं सकेगा. नर सिंह ने कहा कि उसके वरदान की सारी शर्ते पूरी करके ही उसे मारा जा रहा है.
ये कह कर नर सिंह ने हर्नाख्श को अपनी नाखूनों से मार दिया. उस समय न दिन था न रात थी. दोनों वक्त मिलते थे भाव शाम का समय था. मरते समय हर्नाख्श न अन्दर था न बहार था, वो दहलीज़ कर था. उस समय वो धरती पर नहीं और न ही आकाश में था, वो नर सिंह की गोद में था. हर्नाख्श की मौत न बीमारी के साथ हुई और ना ही किसी हथियार के साथ. नर सिंह के नाखूनों ने उसको सदा की नींद सुला दिया था. उसको मारने वाला पूरा इंसानी रूप नहीं था और न ही पशु रूप था. इस तरह हर्नाख्श को वरदान में मिली शर्तें भी उसे बचा न सकी.
परमात्मा ने सारी बाते पूरी करते हुए जुल्म का नाश करने के लिए हर्नाख्श का अंत कर दिया. प्रह्लाद धरती पर राज करने लगा और उसके राज्य में सब सुखी थे.
इसी कारण हर होली से एक दिन पहले रात को इस घटना पर आधारित अच्छाई की बुराई पर जीत मनाने के लिए होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन होली का रंगों का त्यौहार मनाया जाता है.
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