अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते / सय्यद ज़मीर जाफ़री
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अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते
शहर होते भी तो आवाज़ के ज़िंदाँ होते
ज़िंदगी तेरे तक़ाज़े अगर आसाँ होते
कितने आबाद जज़ीरे हैं कि वीराँ होते
तू ने देखा ही नहीं प्यार से ज़र्रों की तरफ़
आँख होती तो सितारे भी नुमायाँ होते
इष्क़ ही शोला-ए-इम्कान-ए-सहर है वर्ना
ख़्वाब ताबीर से पहले ही परेशाँ होते
माज़ी ओ दोश का हर दाग़ है फ़र्दा का चराग़
काश ये शाम ओ सहर सर्फ़-ए-दिल-ओ-जाँ होते
ज़ब्त-ए-तूफ़ाँ की तबीअत ही का इक रूख़ है ‘ज़मीर’
मौज आवाज़ बदल लेती है तूफ़ाँ होते
अगर हमसे मुहब्बत की ये नादानी नहीं होती / गिरधारी सिंह गहलोत
अगर हमसे मुहब्बत की ये नादानी नहीं होती।
कसम से फिर हमारे दिल की क़ुर्बानी नहीं होती।
मुझे लगता यक़ीं तुमको नहीं मेरी मुहब्बत पर
अगर रखते रक़ीबों पर नज़रसानी नहीं होती।
शरारत छेड़खानी तंज़ कसना है अदा तेरी
मगर अच्छी कभी दिल से ये शैतानी नहीं होती।
जनम से साथ रहते हैं हमेशा ग़म मेरे घर में
है मेरी ज़ीस्त का हिस्सा तो हैरानी नहीं होती।
उठाते बोझ कुनबे का न शानों पर अगर अपने
हमारी भी शिकनयफ़्ता ये पेशानी नहीं होती।
अगरचे इश्क़ की परवाज़ हम दोनों नहीं करते
न कोई बादशा होता कोई रानी नहीं होती।
हमारे मुल्क की तहजीब का पालन अगर करते
लिबासों की समाजों में ये उर्यानी नहीं होती।
नहीं अख़लाक़ सीखें गर किसी भी क़ौम के तालिब
कहीं दुनियाँ जहाँ में फिर क़दरदानी नहीं होती।
मुहब्बत का हसीं ज़ज्बा कभी का ख़त्म हो जाता
खुदा की गर ‘तुरंत’ हम पर मेहरबानी नहीं होती।
अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था / शकील जमाली
अगर हमारे ही दिल मे ठिकाना चाहिए था
तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था
चलो हमी सही सारी बुराईयों का सबब
मगर तुझे भी ज़रा सा निभाना चाहिए था
अगर नसीब में तारीकियाँ ही लिक्खीं थीं
तो फिर चराग़ हवा में जलाना चाहिए था
मोहब्बतों को छुपाते हो बुज़दिलों की तरह
ये इश्तिहार गली में लगाना चाहिए था
जहाँ उसूल ख़ता में शुमार #2361;ोते हों
वहाँ वक़ार नहीं सर बचाना चाहिए था
लगा के बैठ गए दिल को रोग चाहत का
ये उम्र वो थी कि खाना कमाना चाहिए था
अगर हवाओं के रुख मेहरबाँ नहीं होते / मयंक अवस्थी
अगर हवाओं के रुख मेहरबाँ नहीं होते
तो बुझती आग के तेवर जवाँ नहीं होते
हमें क़ुबूल जो सारे जहाँ नहीं होते
मियाँ यकीन करो तुम यहाँ नहीं होते
दिलों पे बर्फ जमीं है लबों पे सहरा है
कहीं खुलूस के झरने रवाँ नहीं होते
हम इस ज़मीन को अश्कों से सब्ज़ करते हैं
ये वो चमन है जहाँ बागबाँ नहीं होते
कहाँ नहीं हैं हमारे भी ख़ैरख्वाह , मगर
जहाँ गुहार लगाओ वहाँ नहीं होते
इधर तो आँख बरसती है, दिल धड़कता है
ये सानिहात तुम्हारे यहाँ नहीं होते
वफा का ज़िक्र चलाया तो हंस के बोले वो
फ़ुज़ूल काम हमारे यहाँ नहीं होते
अगर है ज़िंदगी तो ज़िंदगी बोलती जाए / विनय मिश्र
अगर है ज़िंदगी तो ज़िंदगी बोलती जाए ।
उदासी और तन्हाई में कोई गीत तो गाए ।
ख़्याली आँच पर रक्खी हुई वो केतली खोलो,
कि जिससे भाप के परचम उड़ें, माहौल गरमाए ।
मुझे मु्स्कान के बदले मिलीं आँसू की सौगातें,
मेरे दिल ने ये चाहा था कहीं से रोशनी आए ।
कहाँ मज़बूतियों का शोर था बाज़ार से घर तक,
कहाँ कमज़ोरियाँ इतनी कि सन्नाटा भी गिर जाए ।
न आई नींद तो फिर कैसे आते उसकी बातों में,
दिखाने को तो रातों ने भी अवसर ख़ूब दिखलाए ।
हवा के ज़ोर के आगे बहुत चंचल है पानी भी,
कभी मौसम का रुख देखे, कभी लहरों में आ जाए ।
तुम्हारी याद ही अपनी उम्मीदों का सिरहाना है
सँभाला है इसी ने जब भी दिल के ज़ख़्म गहराए ।
All Ghazal Best & Superb
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