अगर मौज है बीच धारे चला चल / ‘हफ़ीज़’ जालंधरी
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अगर मौज है बीच धारे चला चल
वगरना किनारे किनारे चला चल
इसी चाल से मेरे प्यारे चला चल
गुज़रती है जैसे गुज़ारे चला चल
तुझे साथ देना है बहरूपियों का
नए से नया रूप धारे चला चल
ख़ुदा को न तकलीफ़ दे डूबने में
किसी नाख़ुदा के सहारे चला चल
पहुँच जाएँगे क़ब्र में पाँव तेरे
पसारे चला चल पसारे चला चल
ये ऊपर का तबक़ा ख़ला ही ख़ला है
हवा ओ हवस के ग़ुबारे चला चल
डुबोया है तू ने हया का सफ़ीना
मिरे दोस्त सीना उभारे चला चल
मुसलसल बुतों की तमन्ना किए जा
मुसलसल ख़ुदा को पुकारे चला चल
यहाँ तो बहर-ए-हाल झुकना पड़ेगा
नहीं तो किसी और द्वारे चला चल
तुझे तो अभी देर तक खेलना है
इसी में तो है जीत हारे चला चल
न दे फुर्सत-ए-दम-ज़दन ओ ज़माने
नए से नया तीर मारे चला चल
शब-ए-तार है ता-ब-सुब्ह-ए-क़यामत
मुकद्दर है गर्दिश सितारे चला चल
कहाँ से चला था कहाँ तक चलेगा
चला चला मसाफ़त के मारे चला चल
बसीरत नहीं है तो सीरत भी क्यूँ हो
फ़कत शक्ल ओ सूरत सँवारे चला चल
‘हफीज’ इस नए दौर में तुझ को फ़न का
नशा है तो प्यारे उतारे चला चल
अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे / बशीर बद्र
अगर यकीं नहीं आता तो आजमाए मुझे
वो आईना है तो फिर आईना दिखाए मुझे
अज़ब चिराग़ हूँ दिन-रात जलता रहता हूँ
मैं थक गया हूँ हवा से कहो बुझाए मुझे
मैं जिसकी आँख का आँसू था उसने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे
बहुत दिनों से मैं इन पत्थरों में पत्थर हूँ
कोई तो आये ज़रा देर को रुलाए मुझे
मैं चाहता हूँ के तुम ही मुझे इजाज़त दो
तुम्हारी तरह से कोई गले लगाए मुझे
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगा / ख़्वाजा मीर दर्द
अगर यों ही ये दिल सताता रहेगा
तो इक दिन मेरा जी ही जाता रहेगा
मैं जाता हूँ दिल को तेरे पास छोड़े
मेरी याद तुझको दिलाता रहेगा
गली से तेरी दिल को ले तो चला हूँ
मैं पहुँचूँगा जब तक ये आता रहेगा
क़फ़स[1] में कोई तुम से ऐ हम-सफ़ीरों
ख़बर कल की हमको सुनाता रहेगा
ख़फ़ा हो कि ऐ “दर्द” मर तो चला तू
कहाँ तक ग़म अपना छुपाता रहेगा
अगर ये ज़िद है कि मुझ से दुआ सलाम न हो / ज़मील मुरस्सापुरी
अगर ये ज़िद है कि मुझ से दुआ सलाम न हो
तो ऐसी राह से गुज़रो जो राह-ए-आम न हो
सुना तो है कि मोहब्बत पे लोग मरते हैं
ख़ुदा करे कि मोहब्बत तुम्हारा नाम न हो
बहार-ए-आरिज़-ए-गुल्गूँ तुझे ख़ुदा की क़सम
वो सुब्ह मेरे लिए भी कि जिस की शाम न हो
मिरे सुकूत को नफ़रत से देखने वाले
यही सुकूत कहीं बाइस-ए-कलाम न हो
इलाही ख़ैर कि उन का सलाम आया है
यही सलाम कहीं आख़िरी सलाम न हो
‘जमील’ उन से तआरूफ़ तो हो गया लेकिन
अब उन क बाद किसी से दुआ सलाम न हो
अगर ये हो कि हर इक दिल में प्यार भर जाये / नवीन सी. चतुर्वेदी
अगर ये हो कि हरिक दिल में प्यार भर जाये
तो कायनात घड़ी भर में ही सँवर जाये
किसी की याद मुझे भी उदास कर जाये
कोई तो हो जो मेरे ज़िक्र से सिहर जाये
किसी भी तरह वो इज़हार तो करे इक बार
नज़र से कह के ज़ुबाँ से भले मुकर जाये
जो उसको रोज़ ही आना है मेरे ख़्वाबों में
तो मेरी पलकों पे उल्फ़त का नक्श धर जाये
तपिश के दौर ने “शबनम की उम्र” कम कर दी
घटा घिरे तो गुलिस्ताँ निखर-निखर जाये
बहुत ज़ियादा नहीं दूर अब वो सुब्ह ‘नवीन’
फ़क़त ये रात किसी तरह से गुजर जाये
All Ghazal Best & Superb
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