अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला था / रफ़ी रज़ा
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अगरचे वक़्त मुनाजात करने वाला था
मिरा मिज़ाज सवालात करने वाला था
मुझे सलीक़ा न था रौशनी से मिलने का
मैं हिज्र में गुज़र-औक़ात करने वाला था
मैं सामने से उठा और लौ लरज़ने लगी
चराग़ जैसे कोई बात करने वाला था
खुली हुई थी बदन पर रवाँ रवाँ आँखें
न जाने कौन मुलाक़ात करने वाला था
वो मेरे काबा-ए-दिल में ज़रा सी देर रूका
ये हज अदा वो मिरे साथ करने वाला था
कहाँ ये ख़ाक के तौदे तले दबा हुआ जिस्म
कहाँ मैं सैर-ए-समावात करने वाला था
अगरचे सख़्त सफ़र है, धुआं घना होगा / ध्रुव गुप्त
अगरचे सख़्त सफ़र है, धुआं घना होगा
कहीं कोई तो मेरी राह देखता होगा
वो जिसने हमको भुलावे सी ज़िंदगी दी है
ज़रूर उसने कोई रास्ता दिया होगा
जो ख़ुद से इश्क़ तेरा है तो कहां जाएगा
तू इधर है तो उधर कौन दूसरा होगा
मैं मर गया तो मेरी बुज़दिली ख़बर होगी
मैं जी गया तो तेरा शुक्रिया अदा होगा
सितारे टांक रहा जो ज़मीं के आंचल में
ख़बर की सारी सुर्ख़ियों से लापता होगा
कभी तमाम भी होता नहीं नदी का सफ़र
वो जा मिले तो समंदर भी रास्ता होगा
बुरी है फिर भी दिलफ़रेब है अपनी दुनिया
तेरी बेरुह सी जन्नत में क्या मज़ा होगा
अगरचे हाथ मेरा छू गया हो / आनंद खत्री
कभी तुम साथ मेरे घर तो आना
हमारा घर भी तुमको घर लगेगा
अगर आओगे तुम कमरे के भीतर
तो शायर-मन, तुमे तलघर लगेगा
जहाँ है खाट औ उलझा सा बिस्तर
वहीं पे फिर ग़ज़ल दफ्तर लगेगा
पता कागज़ को रहता है तुमारा
नशा बस स्याही को पीकर लगेगा
सुनो तुम बैठना आराम करवट
अभी किस्सों में ये दिलतर लगेगा
अगरचे हाथ मेरा छू गया हो
तो शायद तुम को थोड़ा डर लगेगा
ये आलम आ ही जाता है इनायत
यूँ मौका ज़िन्दगी कमतर लगेगा
तग़ाफ़ुल शेर पे है शेर कहना
उफनता चाह का तेवर लगेगा
मुक़र्रर औ मुक़र्रर दाद रौनक
रवानी फासला खोकर लगेगा
तसव्वुर में कई जो ख्वाइशें है
ये अबतक उन से तो हटकर लगेगा
अगरचे गुदगुदी तुमको हुईतो
चुनाँचे तब यहाँ बिस्तर लगेगा
अगरचे हाल ओ हवादिस की हुक्मरानी है / याक़ूब आमिर
अगरचे हाल ओ हवादिस की हुक्मरानी है
हर एक शख़्स की अपनी भी इक कहानी है
मैं आज कल के तसव्वुर से शाद-काम तो हूँ
ये और बात कि दो पल की ज़िंदगानी है
निशान राह के देखे तो ये ख़याल आया
मिरा क़दम भी किसी के लिए निशानी है
ख़िज़ाँ नहीं है ब-जुज़ इक तरद्दुद-ए-बेजा
चमन खिलाओ अगर ज़ौक़-ए-बाग़बानी है
कभी न हाल हुआ मेरा तेरे हस्ब-ए-मिज़ाज
न समझा तू कि यही तेरी बद-गुमानी है
न समझे अश्क-फ़िशानी को कोई मायूसी
है दिल में आग अगर आँख में भी पानी है
मिला तो उन का मिला साथ हम को ऐ ‘आमिर’
न दौड़ना है जिन्हें और न चोट खानी है
अग़र तुम लौट आओ तो वही ख़ुशबू बिखर जाये / हरकीरत हीर
अग़र तुम लौट आओ तो वही ख़ुशबू बिखर जाये
खयालों में वही मीठी, हसीं मुस्कान भर जाये
इशारों से, अदाओं से, निगाहों से, बहानो से
किया इज़हार मैंने जो, ज़हे सपना सँवर जाये
मुझे तू माफ़ करना रब, कभी दर आ नहीं पाई
ख़ुदा उसको जो माना है कोई कैसे उधर जाये
दवा लिख दूँ, नवा लिख दूँ, ख़ुदा लिख दूँ , फ़िदा लिख दूँ
बता तू क्या लिखूँ जो तेरे दिल में ही उतर जाये
कहाँ तक ढूँढ कर आती नज़र कैसे बताऊँ मैं
नहीं पैग़ाम तेरा औ’ न कोई भी ख़बर आये
बसा लो धड़कनों में आज़ साँसों में समा लो तुम
बची जो ज़िंदगी है वो, न यादों में गुज़र जाये
लगी ये तिश्नगी दिल की, बुझेगी अब नहीं जानम
बना लो ‘हीर’ को अपना सकूँ दिल में ठहर जाये
All Ghazal Best & Superb
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