Hindi/Urdu Ghazals Collection अर्थात इस आर्टिकल में आपके लिए दिया गया है, हिंदी/उर्दू ग़ज़लों का संग्रह. हर एक ग़ज़ल का पहले शीर्षक (title) दिया गया है और फिर उसके बाद पूरी ग़ज़ल देवनागरी लिपि में दी गयी है. यह collection बहुत बड़ी है जिसमे 100 से भी ज्यादा ग़ज़लें हैं. ज्यादा ग़ज़लें होने के कारण पढने में सुविधा देने के लिए इन्हें pages में बांटा गया है, हर एक page पर 5-5 ग़ज़लें है. आप आर्टिकल के बिलकुल नीचे जाकर pages को browse कर सकते हैं.
Hindi/Urdu Ghazals Collection- हिंदी/उर्दू ग़ज़लों का संग्रह
Contents
- 1 Hindi/Urdu Ghazals Collection- हिंदी/उर्दू ग़ज़लों का संग्रह
- 1.1 अगर औरत बिना संसार होता / गिरधारी सिंह गहलोत
- 1.2 अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा / इक़बाल
- 1.3 अगर कार-ए-मोहब्बत में मोहब्बत रास आ जाती / कामी शाह
- 1.4 अगर कुछ दाँव पर रख दें, सफ़र आसान होगा क्या / मदन मोहन दानिश
- 1.5 अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते / ‘सिराज’ औरंगाबादी
- 1.6 Related Posts:
अगर औरत बिना संसार होता / गिरधारी सिंह गहलोत
अगर औरत बिना संसार होता।
वफ़ा का ज़िक्र फिर बेकार होता।
ये किस्से हीर लैला के न मिलते।
हर एक आशिक़ यहाँ बेजार होता।
क़लम ख़ामोश रहता शायरों का
बिना रुजगार के फ़नकार होता।
नहीं फिर जिक्र होठों पर किसी के
नयन जुल्फ-ओ-लब-ओ-रुख़्सार होता।
न करता कोई बातें ग़म ख़ुशी की
किसी को कब किसी से प्यार होता।
सजावट धूल खाती फिर मकाँ की
लटकता आइना ग़मख़्वार होता।
सभी ख़ामोश होती महफ़िलें भी
नहीं फिर रूप का बाज़ार होता।
बहन माशूक मां बेटी ओ बीबी
बिना कोई न रिश्तेदार होता।
‘तुरंत ‘ अब ये हक़ीक़त और जानो
बिना औरत बशर क्या यार होता।
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा / इक़बाल
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मुझे फ़िक्र-ए-जहाँ क्यूँ हो जहाँ तेरा है या मेरा
अगर हँगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
ख़ता किस की है या रब ला-मकाँ तेरा है या मेरा
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
मोहम्मद भी तेरा जिब्रील भी क़ुरआन भी तेरा
मगर ये हर्फ़-ए-शीरीं तरजुमा तेरा है या मेरा
इसी कौकब की ताबानी से है तेरा जहाँ रौशन
ज़वाल-ए-आदम-ए-ख़ाकी ज़ियाँ तेरा है या मेरा
अगर कार-ए-मोहब्बत में मोहब्बत रास आ जाती / कामी शाह
अगर कार-ए-मोहब्बत में मोहब्बत रास आ जाती
तुम्हारा हिज्र अच्छा था जो वसलत रास आ जाती
गला फाड़ा नहीं करते रफ़ू दरयाफ़्त करने में
अगर बेकार रहने की मशक़्क़त रास आ जाती
तुम्हें सय्याद कहने से अगर हम बाज़ आ जाते
हमें भी इस तमाशे में सुकूनत रास आ जाती
फ़क़त ग़ुस्सा पिए जाते हैं रोज़ ओ शब के झगड़ में
कोई हँगाम कर सकते जो वहशत रास आ जाती
अगर हम पार कर सकते ये अपनी ज़ात का सहरा
तो अपने साथ रहने की सहूलत रास आ जाती
अगर कुछ दाँव पर रख दें, सफ़र आसान होगा क्या / मदन मोहन दानिश
अगर कुछ दाँव पर रख दें, सफ़र आसान होगा क्या
मगर जो दाँव पर रखेंगे वो ईमान होगा क्या
कमी कोई भी वो ज़िन्दगी में रंग भरती है
अगर सब कुछ ही मिल जाए तो फिर अरमान होगा क्या
मगर ये बात दुनिया की समझ में क्यों नहीं आती
अगर गुल ही नहीं होंगे तो फिर गुलदान होगा क्या
बगोला-सा कोई उठता है क्यों रह-रह के सीने में
जो होना है तआल्लुक का इसी दौरान होगा क्या
कहानी का अहम् किरदार क्यों ख़ामोश है दानिश
कहानी का सफ़र आगे बहुत वीरान होगा क्या
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते / ‘सिराज’ औरंगाबादी
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
पहुँचते जा लब-ए-साक़ी कूँ पैमाने हुए होते
अबस इन शहरियों में वक्त अपना हम किए ज़ाए
किसी मजनूँ की सोहबत बैठ दीवाने हुए होते
न रखता मैं यहाँ गर उल्फ़त-ए-लैला निगाहों कूँ
तो मजनूँ की तरह आलम में अफ़साने हुए होते
अगर हम आशना होते तिरी बेगाना-ख़ौफ़ी सीं
बरा-ए-मसलिहत ज़ाहिर में बेगाना हुए होते
ज़ि-बस काफ़िर अदा यूँ चलाए संग बे-रहमी
अगर सब जमा करता मैं तो बुत-ख़ाने हुए होते
न करता ज़ब्त अगर मैं गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी कूँ
गुज़रता जिस तरफ़ ये पूर वीराने हुए होते
नज़र चश्म-ए-ख़रीदारी सीं करता दिल-बर नादाँ
अगर क़तरे मिरे आँसू के दुर दाने हुए होते
मोहब्बत के नशे हैं ख़ास इंसाँ वास्ते वर्ना
फ़रिश्ते ये शराबें पी के मस्ताने हुए होते
एवज़ अपने गरेबाँ के किसी की ज़ुल्फ हात आती
हमारे हात के पंजे मगर शाने हुए होते
तिरी शमशीर-ए-अब्र सीं हुए सन्मुख व इल्ला न
अजल की तेग़ सीं ज्यूँ आरा दंदाने हुए होते
मज़ा जो आशिक़ी में है सो माशूक़ी में हरगिज़ नहीं
‘सिराज’ अब हो चुके अफ़सोस परवाने हुए होते
All Ghazal Best & Superb
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