Hindi Poems On Unity अर्थात इस आर्टिकल में आप पढेंगे, एकता पर हिन्दी कविताएँ. हमारा भारत देश, अनेकता में एकता की एक मिसाल है. हमने यहाँ आपके समक्ष प्रस्तुत की हैं, अलग-अलग कवियों की इस विषय पर रचनाएँ.
Hindi Poems On Unity – एकता पर हिन्दी कविताएँ
Contents
- 1 Hindi Poems On Unity – एकता पर हिन्दी कविताएँ
- 1.1 एकता / राधेश्याम चौधरी
- 1.2 मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे / कांतिमोहन ‘सोज़’
- 1.3 एकता की पुकार / अज्ञात रचनाकार
- 1.4 एकता / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
- 1.5 एकता के एहसास / श्रीकान्त व्यास
- 1.6 एकता / मीरा हिंगोराणी
- 1.7 एकता / शशि सहगल
- 1.8 एकता / महेन्द्र भटनागर
- 1.9 एकता / अनिल धमाका
- 1.10 मज़दूर एकता के बल पर / कांतिमोहन ‘सोज़’
- 1.11 Related Posts:
एकता / राधेश्याम चौधरी
देशॉे केॅ स्वर्ग बनाय केॅ देखाबोॅ
संकल्प लेॅ, आग बढ़ी केॅ देखावोॅ।
पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण मेॅ जश फैलाबोॅ,
देशोॅ रोॅ सौदागर केॅ बतलाबोॅ,
दौलत रोॅ नशा मेॅ नै बहकोॅ,
देशोॅ केॅ सजाबोॅ, संवारोॅ।
शांति, सद्भावना रोॅ दीया जरावोॅ,
सत्य, अहिंसा रोॅ परिभाषा बतलाबोॅ।
आदमी छै छल-कपट, मद मेॅ चूर,
हेकरौं…………..समझाबोॅ।
घरोॅ-घरोॅ मेॅ ज्ञान रोॅ दीया जराबोॅ,
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई रो भेद मिटावोॅ।
आबोॅ सब्भैं मिली केॅ देशोॅ केॅ स्वर्ग बनाबोॅ,
समाज मेॅ एकता रोॅ पाठ पढ़ावोॅ।
मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे / कांतिमोहन ‘सोज़’
मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।।
जितना ही दमन किया तुमने उतना ही शेर हुए हैं हम
ज़ालिम पंजे से लड़लड़कर कुछ और दिलेर हुए हैं हम
चाहे काले क़ानूनों का अम्बार लगाए जाओ तुम
कब ज़ुल्मो-सितम की ताक़त से घबराकर ज़ेर हुए हैं हम ।
तुम जितना हमें दबाओगे हम उतना बढ़ते जाएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।।
जब तक मानव द्वारा मानव का लोहू पीना जारी है
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है ।
हम इनक़लाब के नारे से धरती-आकाश गुँजाएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।।
तुम बीती हुई कहानी हो अब अगला ज़माना अपना है
तुम एक भयानक सपना थे ये भोर सुहाना अपना है
जो कुछ भी दिखाई देता है जो कुछ भी सुनाई देता है
उसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं वो सारा फ़साना अपना है ।
‘वो दरिया झूमके उट्ठे हैं तिनकों से न टाले जाएँगे ।
हर आँधी से हर बिजली से हर आफ़त से टकराएँगे ।
मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे ।।
रचनाकाल : नवम्बर 1981
एकता की पुकार / अज्ञात रचनाकार
रचनाकाल: सन 1930
कृष्ण या करीम की कुदरत अलग कोई नहीं,
अल्लाह या ईश्वर, तेरी सूरत अलग कोई नहीं।
पान गंगा-जल करो, या आबे ज़म ज़म को पियो,
जल तत्व इनमें एक है, रंगत अलग कोई नहीं।
महादेव तो मंदिर मंे हैं, और मुस्तफ़ा मस्जिद में,
है पुरान-कुरान की आयत अलग कोई नहीं।
राम या रहमान हो, एक सीप के मोती हैं दो,
मुल्ला-पुजारी की है इबादत अलग कोई नहीं।
नरक या दोज़ख़ बुरे हैं, पापियांे के वास्ते,
हिंदुओं के स्वर्ग से जन्नत अलग कोई नहीं।
हिंदू, मुस्लिम, पारसी, ईसाई, यहूदी, क्रिश्चियन,
एक पिता के पुत्र हैं, माता अलग कोई नहीं।
एकता / बिन्देश्वर प्रसाद शर्मा ‘बिन्दु’
कर्म पुंजी है
मेहनत मार्ग है मंजिल की
बल हमारी एकता
एक ताकत है
तकदीर बदलने की।
मेल-मुहब्बत
समन्वय का प्रतिक है
शक्ति जिसकी ऑखें
मेल के बिना कोई खेल नहीं
किसी कि उन्नति
किसी कि तरक्की
किसी का उत्थान नहीं।
जिंदगी
उनके अलग-अलग रास्ते
या फिर और कुछ
बन नहीं सकती
बिन मेल की गाड़ी
बिन मेल की मुहब्बत।
विखर जाती है जिंदगी
टूट जाते हैं सपनें
मिट्टी और शीशे की तरह
अलग हो कर
हम आप और वो
रह जाते है किनारे
किसी कचरे में।
कोई भी
कुछ भी नहीं कर सकता
इस पात्र से जुड़िये
आत्मा कि प्यास
दिल की धड़कन
ताक पर रख दीजिए।
दिल जोड़ने वाला
नायक
हर काम बनाने वाली
यही एकता
यही कर्म
और यही मेहनत है।
प्रेम सिखलाने वाला महा प्रसाद
महा मंत्र बतलाने वाला
एक यंत्र
जो हमें देता है
कभी न खत्म होने वाला
एक सिलसिला।
एकता के एहसास / श्रीकान्त व्यास
एक जंगल के अजब कहानी,
शेर राजां करै मनमानी।
रोजे नीलगाय पर दौड़ै,
मारना नै झपट्टा छोड़ै।
बंदर मामा पर खिसियावै,
बकरिया पर दाँत गड़ावै।
शेर के डर सें जंगल काँपै,
डरोॅ सें गीदड़ें आँख झाँपै।
भालू भांय मिटिंग बुलैलकै,
एक-सें-एक तरकीब सुझैलकै-
अन्याय के विरोध करोॅ भाय,
आपस में नै तहोॅ लड़ोॅ भाय।
एकता के एहसास करावोॅ,
शेर सें तोॅ छुटकारा पावोॅ।
एकता / मीरा हिंगोराणी
हिकु-हिकु गुल गॾिजी,
ठहंदो आ गुलदस्तो
मिले बूंद सा बूंद त,
थिए सागर जो पसारो।
ऊंचो कयो देश जो नालो,
हथ में हथु मिलाए।
सबकु एकता जो ही उमदो,
अचो पढ़हायूं जॻ खे ॿारो।
जाति-पाति खे कयूं कैद,
लॻायूं एकता जो नारो!!
एकता / शशि सहगल
हमारा भारत एक है
यहां के निवासी
अलग-अलग रहते हुए भी एक हैं
पड़ोस में कल रात
मृत्यु हो गई
सुबह पता चला
क्योंकि हम एक हैं।
चुनाव में बासु को
छुरा घोंपकर मार दिया
क्योंकि हम एक हैं।
विमान को
पाकिस्तान में जलाये जाने पर
अपनी ही कारें
जला डालीं हमने
क्योंकि हम एक हैं।
एक कुत्ता
दूसरे कुत्ते के मुँह से
रोटी छीन खा गया
फिर सबका नेता बन भौंकने लगे
सब मिलकर कहेंगे-
‘हम एक हैं’।
एकता / महेन्द्र भटनागर
कर्बला प्रयाग है,
प्रयाग कर्बला !
क़ुरान वेद की नसीहतों से
व्यक्ति का करो भला !
टले अशुभ घड़ी
व मृत्यु भय बला !
कि जाति-द्वेष छोड़कर उठो,
कि धर्म-द्वेष छोड़कर उठो,
वतन की एकता के वास्ते,
वतन की नव-स्वतंत्रता के वास्ते !
महान हिंद की महानता बनी रहे !
उदार हिन्द की उदारता बनी रहे !
एकता / अनिल धमाका
हमने पूछा-
‘अनेकता में एकता’
आप नारा लगाते हैं,
कृपया बताएँ इसके क्रियान्वयन-हेतु
आपने अब तक क्या किया ?’
वे बोले-
‘अभी तो इसके प्रथम चरण से गुज़र रहे हैं,
सर्वप्रथम अनेकता लाने का
प्रयास कर रहे हैं।
मज़दूर एकता के बल पर / कांतिमोहन ‘सोज़’
मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
जितना ही दमन किया तुमने उतना ही शेर हुए हैं हम,
ज़ालिम पंजे से लड़-लड़कर कुछ और दिलेर हुए हैं हम,
चाहे काले कानूनों का अम्बार लगाये जाओ तुम
कब जुल्मो-सितम की ताक़त से घबराकर ज़ेर हुए हैं हम,
तुम जितना हमें दबाओगे हम उतना बढ़ते जाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
जब तक मानव द्वारा मानव का लोहू पीना जारी है,
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है,
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है
हम इन्क़लाब के नारे से धरती आकाश गुँजाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
तुम बीती हुई कहानी हो; अब अगला ज़माना अपना है,
तुम एक भयानक सपना थे, ये भोर सुहाना अपना है
जो कुछ भी दिखाई देता है, जो कुछ भी सुनाई देता है
उसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं वो सारा फ़साना अपना है,
वो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
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