अश्शु भइया / श्रीकान्त जोशी
Contents
- 1 अश्शु भइया / श्रीकान्त जोशी
- 2 आ गया जाड़ा / शिवचरण चौहान
- 3 आ गया सूरज / कृष्ण कल्पित
- 4 आ गये बादल / सूर्यकुमार पांडेय
- 5 आ जा री निंदिया आ जा (लोरी)
- 6 आ री कोयल / श्रीप्रसाद
- 7 आ री निंदिया! आ जा / दुर्गादत्त शर्मा एम.ए.
- 8 आ री निंदिया, आ री निंदिया / शंभुदयाल सक्सेना
- 9 आ री नींद / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
- 10 आ… रा… रा… रा… रा… रा…! / रमेश तैलंग
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अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
जब हँसता है तो हँसता है
अपने सच्चे मन से,
जो कहता है, सो कहता है
बेहद अपनेपन से।
काम तुरत कर लेता अपना
कभी न करता देर!
अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
अश्शु भइया जब पढ़ता है
डरता नहीं जिरह से,
बात समझ में उसके आती
अक्सर इसी वजह से।
इसीलिए कक्षा में रहता
सदा सवाया सेर!
अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
रोज पहनता अपने कपड़े
अपने ही हाथों से,
और साफ रखता है उनको
स्याही के दागों से।
संग सभी के मिल कर रहता
करता ना मुठभेड़!
अश्शु भइया राजा है,
अश्शु भइया शेर!
आ गया जाड़ा / शिवचरण चौहान
खोलकर खिड़की किवाड़ा
आ गया जाड़ा!
दाँत पढ़ते हैं पहाड़ा
आ गया जाड़ा!
टोप कानों पर चढ़ा
सीने कसा स्वेटर,
अंग सारे ढके फिर भी
काँपते थर-थर।
ताल में आया सिंघाड़ा
भा गया जाड़ा!
दाँत उग आए-
लगा अब काटने पानी,
अब नहाने से बहुत
डरने लगी नानी।
पीटता आया नगाड़ा-
छा गया जाड़ा!
आ गया सूरज / कृष्ण कल्पित
धूप का बस्ता उठाए आ गया सूरज,
बैल्ट किरणों की लगाए, आ गया सूरज!
भोर की बुश्शर्ट पहने
साँझ का निक्कर,
दोपहर में सो गया था
लॉन में थककर।
सर्दियों में हर किसी को भा गया सूरज!
हर सुबह रथ रोशनी का
साथ लाता है,
साँझ की बस में हमेशा
लौट जाता है।
दोस्तों को दोस्ती सिखला गया सूरज!
आ गये बादल / सूर्यकुमार पांडेय
लगे झींगुर बजाने वॉयलिन,
लो आ गये बादल।
छतों पर गिर रहीं बूँदें
कि जैसे थाप तबलों की,
कि होता तिनक-ता-ता धिन
गगन में छा गये बादल।
छमाछम बरसता पानी
कि जैसे खनकती पायल,
फुहारों से भरे हैं दिन
सभी को भा गये बादल।
लगे हैं राग में गाने
सभी तालाब के मेढक,
भरे संगीत से पल-छिन
हमें बतला गये बादल।
आ जा री निंदिया आ जा (लोरी)
आ जा री निंदिया आ जा, मुनिया/मुन्ना को सुला जा
मुन्ना है शैतान हमारा
रूठ बितता है दिन सारा
हाट-बाट औ’अली-गली में नींद करे चट फेरी
शाम को आवे लाल सुलावे उड़ जा बड़ी सवेरी!
आ जा निंदिया आ जा तेरी मुनिया जोहे बाट
सोने के हैं पाए जिसके रूपे की है खाट
मखमल का है लाल बिछौना तकिया झालरदार
सवा लाख हैं मोती जिसमें लटकें लाल हज़ार!
आ जा री निंदिया आ जा!
नींद कहे मैं आती हूँ सँग में सपने लाती हूँ
निंदिया आवे निंदिया जाय, निंदिया बैठी घी-गुड़ खाय
भोर पंख ले के उड़ जाय!
वर्षा के मौसम में जुड़ जाता
पानी बरसे झम-झम कर, बिजली चमके चम-चम कर
भोर का जागा मुन्ना, मेरी गोद में सोवे बन-बन कर
निरख-निरख छवि तन-मन वारूँ लोर सुनाऊं चुन-चुन कर
आ जा री निंदिया…
आ री कोयल / श्रीप्रसाद
आ री कोयल, गा री कोयल
मीठे गाने गा
मेरी इस नन्ही बगिया में
शाम-सुबह तू आ
पक्षी आते, शोर मचाते
बगिया भर जाती
सूरज मुसकाता पेड़ों पर
किरण-किरण आती
फूलों वाली, बड़ी निराली
बगिया है सुंदर
दिनभर हवा चला करती है
गम-गम, मधुर-मधुर
तू आएगी, तू गाएगी
सुन करके गाना
खिल-खिल-खिल हँस देगी बगिया
कोयल, तू आना।
आ री निंदिया! आ जा / दुर्गादत्त शर्मा एम.ए.
आ री निंदिया! आ जा
आ री निंदिया! आ जा।
सोई मेरी मुन्नी रानी, निज पलकों का कमल बनाए,
हंसती सपनों की छाया में, परियों के राजा को भाए।
सपनों में खोई बिटिया के, सपने अमर बना जा।
आ री निंदिया! आ जा।
कोमल-कोमल पंखुड़ी चुनकर, मनभावन-सा हार बनाए,
भावों के अपने राजा को, हंस-हंसकर प्रिय भेंट चढ़ाए।
स्वर्णिम सपनों की माला को सुंदर और सजा जा।
आ री निंदिया! आ जा।
पत्ती-पत्ती परियां गातीं, झिलमिल-झिलमिल रूप सजाए,
रेशम-डोरी पवन-हिंडोला, मुन्नी रानी को दुलराए।
परियों के संग झूला झूले, मुन्नी को सहला जा।
आ जा री निंदिया! आ जा।
(‘बाल सखा’ पत्रिका के फरवरी 1946 अंक में प्रकाशित)
आ री निंदिया, आ री निंदिया / शंभुदयाल सक्सेना
आ री निंदिया, आ री निंदिया,
सपने भर-भर ला री निंदिया।
सोता है भैया पलने में,
तारों को दे जा री निंदिया।
प्यारी निंदिया, प्यारी निंदिया,
चंदा को संग ला री निंदिया।
मुन्ना के फुलके गालों पर,
फूलों की छवि प्यारी निंदिया।
ओ री ऐसी-वैसी निंदिया,
तेरी ऐसी-तैसी निंदिया।
है तू निपट अनारी निंदिया,
ओ री निंदिया, आ री निंदिया,
माथे पर दे जा री निंदिया।
आ री नींद / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
आ री नींद, लाल को आ जा।
उसको करके प्यार सुला जा।।
तुझे लाल हैं ललक बुलाते।
अपनी आँखों पर बिठलाते।।
तेरे लिए बिछाई पलकें।
बढ़ती ही जाती हैं ललकें।।
क्यों तू है इतनी इठलाती।
आ-आ मैं हूँ तुझे बुलाती।।
गोद नींद की है अति प्यारी।
फूलों से है सजी-सँवारी।।
उसमें बहुत नरम मन भाई।
रूई की है पहल जमाई।।
बिछे बिछौने हैं मखमल के।
बड़े मुलायम सुंदर हलके।।
जो तू चाह लाल उसकी कर।
तो तू सो जा आँख मूँदकर।।
मीठी नींदों प्यारे सोना।
सोने की पुतली मत खोना।।
उसकी करतूतों के ही बल।
ठीक-ठीक चलती है तन कल।।
आ… रा… रा… रा… रा… रा…! / रमेश तैलंग
टिक-टिक, टिक-टिक
टिक-टिक, टिक-टिक
टिक-टिक बोले घड़ी मेरी,
घड़ी में बज गए बा…राकृ।
आ…रा…रा…रा…रा…रा…!
बारा बजकर पाँच मिनट पर
खाएँगे हम सब खाना,
बारा बजकर बीस मिनट पर
सब के सब चुप हो जाना,
बारा बजकर तीस मिनट पर
फूटेगा गुब्बा…रा।
आ…रा…रा…रा…रा…रा…!
घड़ी की टिक-टिक बता रहा है
चिक-चिक, चिक-चिक मत करना,
ठीक समय पर रात को सोना
ठीक समय सुबह जगना,
समय को साधा जिसने, उसकी
मुट्ठी में जग सा…रा।
आ…रा…रा…रा…रा…रा…!
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