अमीबा / प्रदीपशुक्ल
Contents
- 1 अमीबा / प्रदीपशुक्ल
- 2 अमृता / दीनदयाल शर्मा
- 3 अम्माँ को क्या सूझी / रमेश तैलंग
- 4 अम्माँ, मुझे उड़ाओ / रामसिंहासन सहाय ‘मधुर’
- 5 अम्मू ने फिर छक्का मारा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
- 6 अले, छुबह हो गई / रमेश तैलंग
- 7 अले, छुबह हो गई! / रमेश तैलंग
- 8 अले, छुबह हो गयी / रमेश तैलंग
- 9 अले, सुबह हो गई / रमेश तैलंग
- 10 अशफाकउल्ला खाँ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
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एक अमीबा बड़े मज़े से
नाले में था रहता
अरे! वही गंदा नाला, जो
सड़क पार था बहता
कहने को तो एक अमीबा
ढेरों उसके बच्चे
नाले में उनकी कालोनी
रहते गुच्छे-गुच्छे
क्रिकेट खेलते हुए गेंद
नाले में गिरी छपाक
आव न देखा ताव न देखा
पप्पू गया तपाक
सा#2341; गेंद के कई अमीबा
पप्पू लेकर आया
बड़े-बड़े नाखून, भूल से
उनको वहीं छुपाया
हाथ नहीं धोए अच्छे से
पप्पू ने घर जाकर
ख़ुश थे बहुत अमीबा सारे
उसके पेट में जाकर
रात हुई पप्पू चिल्लाया
हुई पेट में गुड़-गुड़
सारे बच्चे समझ रहे हैं
कहाँ-कहाँ थी गड़बड़
अमृता / दीनदयाल शर्मा
अमृता ने ही कहा
चलो मिलकर चलते हैं
चलो मिलकर जीते हैं।।।
कितना मुश्किल है
पहल करना
महान थी अमृता।
अम्माँ को क्या सूझी / रमेश तैलंग
अम्माँ को क्या सूझी
मुझको कच्ची नींद सुलाकर,
बैठ गई हैं धूप सेंकने
ऊपर छत पर जाकर।
जाग गया हूँ मैं, अब कैसे
खबर उन्हें पहुँचाऊँ?
अम्माँ! अम्माँ! कहकर उनको
कितनी बार बुलाऊँ?
पाँव अभी हैं छोटे मेरे,
डगमग-डगमग करते,
गिरने लगता हूँ मैं नीचे
थोड़ा-सा ही चलते।
कैसे चढ़ पाऊँगा मैं अब
इतना ऊँचा जीना?
सोच-सोचकर मुुझे अभी से
है आ रहा है पसीना।
अम्माँ, मुझे उड़ाओ / रामसिंहासन सहाय ‘मधुर’
अम्माँ, आज लगा दे झूला,
इस झूले पर मैं झूलूँगा!
इस पर चढ़कर ऊपर बढ़कर
आसमान को मैं छू लूँगा!
झूला झूल रही है डाली
झूल रहा है पत्ता-पत्ता,
इस झूले पर बड़ा मजा है
चल दिल्ली, ले चल कलकत्ता।
झूल रही नीचे की धरती
उड़ चल, उड़ चल, उड़ चल,
बरस रहा है रिमझिम रिमझिम
उड़कर मैं छू-लूँ दल बादल।
वे पंछी उड़ते जाते हैं
अम्माँ तुम भी मुझे उड़ाओ,
पीगें मेरे सुगना कूटी
मेरे पिंजड़े में आ जाओ।
आओ झूलूँ, तुम्हें झुलाऊँ
नन्हे को मैं यहीं सुलाऊँ,
आ जा निंदिया, आ जा निंदिया
तुम भी गाओ मैं भी गाऊँ।
यह मूरत चुनमुनिया झूले
जंगल में ज्यों मुनिया झूले,
मेरे प्यारे तुम झूलो तो
मेरी सारी दुनिया झूले!
-साभार: बालसखा, सितंबर, 1939, प्रथम पृष्ठ
अम्मू ने फिर छक्का मारा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
गेंद गई बाहर दोबारा,
अम्मू ने फिर छक्का मारा।
गेंद आ गई टप्पा खाई।
अम्मू ने की खूब धुनाई।
कभी गेंद को सिर पर झेला,
कभी गेंद की करी ठुकाई।
गूंजा रण ताली से सारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।
कभी गेंद आती गुगली है।
धरती से करती चुगली है।
कभी बाउंसर सिर के ऊपर,
बल्ले से बाहर निकली है।
अम्मू को ना हुआ गवारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।
साहस में न कोई कमी है।
सांस पेट तक हुई थमी है।
जैसे मछली हो अर्जुन की,
दृष्टि वहीं पर हुई जमी है।
मिली गेंद तो फिर दे मारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।
कभी गेंद नीची हो जाए।
या आकर सिर पर भन्नाए।
नहीं गेंद में है दम इतना,
अम्मू को चकमा दे जाए।
चूर हुआ बल्ला बेचारा।
अम्मू ने जब छक्का मारा।
सौ रन कभी बना लेते हैं।
दो सौ तक पहुँचा देते हैं।
कभी कभी तो बाज़ीगर से,
तिहरा शतक लगा देते हैं।
अपने सिर का बोझ उतारा।
अम्मू ने फिर छक्का मारा।
अले, छुबह हो गई / रमेश तैलंग
अले, छुबह हो गई
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ ।
कपले ये धूल भले,
मैले हैं यहाँ पले ।
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है ।
पप्पू की छट्ट फ़टी, दो ताँके दाल लूँ ।
कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम ।
झट छे इछतोव जला,
बलतन फिल एक चढ़ा ।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ ।
आ गया ’पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया ।
जल्दी में क्या कल लूँ,
चुपके छे अब भग लूँ ।
छंपादक दादा के नए हाल-चाल लूँ ।
अले, छुबह हो गई! / रमेश तैलंग
अले, छुबह हो गई!
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
कपले ये धूल भले
मैले हैं यहाँ पले,
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है,
पप्पू की छट्ट फटी दो ताँके दाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम,
झट छे इछतोव जला
बलतन फिल एक चढ़ा
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
आ गया ‘पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया,
जल्दी में क्या कल लूँ,
तुपके छे अब भग लूँ,
छंपादक दादा के नये हाल-चाल लूँ।
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ।
अले, छुबह हो गयी / रमेश तैलंग
अले, छुबह हो गयी
आँगन बहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ!
कपले ये धूल-भले,
मैले हैं यहाँ पले,
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है।
पप्पू की छर्ट फटी,
दो ताँके दाल लूँ ।
कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछत नलम,
झट छे इछतोव जला,
बलतन फिल एक चढ़ा।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ।
आ गया ‘पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया,
जल्दी में क्या कल लूँ,
चुपके छे अब भग लूँ।
छम्पादक दादा के नये हाल-चाल लूँ।
अले, सुबह हो गई / रमेश तैलंग
अले, छुबह हो गई !
आँगन बुहाल लूँ,
मम्मी के कमले की तीदें थमाल लूँ ।
कपले ये धूल भले,
मैले हैं यहाँ पले ।
ताय भी बनाना है,
पानी भी लाना है ।
पप्पू के छ्ट्ट फटी, दो ताँके दाल लूँ ।
कलना है दूध गलम,
फिल लाऊँ तोछ्त नलम ।
झट छे इछतोव जला,
बलतन फिल एक चढ़ा ।
कल के ये पले हुए आलू उबाल लूँ ।
आ गया ’पलाग’ नया,
काम छभी भूल गया ।
जल्दी में क्या कल लूँ
चुपके छे अब भग लूँ ।
छंपादक दादा के नए हाल-चाल लूँ ।
अशफाकउल्ला खाँ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
बोलोॅ अशफाकउल्ला खाँ
अंग्रेज मूसोॅ लेॅ जे म्यां
काकोरी के रेल डकैती
अंगरेजो ठो गेलै चेती।
बदली-बदली भेष बनाय
अशफाकउल्ला जन्नें जाय
राजस्थान, बिहारो तक
अंगरेजोॅ केॅ हुएॅ नै शक।
लेकिन दोस्त ही दुश्मन भैलै
जे कारण सें ऊ पकड़ैलै
माफी के नै कोय फिकिर
लटकी गेलै फाँसी पर।
वीर शहीदोॅ में के, हाँ
बोलोॅ असफाकउल्ला खाँ।
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