अब तो खुश हो / प्रकाश मनु
Contents
- 1 अब तो खुश हो / प्रकाश मनु
- 2 अब तो जाग / दीनदयाल शर्मा
- 3 अब दिन शाला चलने के / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
- 4 अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी / महादेवी वर्मा
- 5 अबोध का बोध पाठ / लावण्या शाह
- 6 अभिनंदन सै बार बसंत / सुधीर सक्सेना ‘सुधि’
- 7 अमर कहानी / कृष्ण शलभ
- 8 अमर रहे यह देश / रघुवीरशरण मित्र
- 9 अमरूद मियाँ / योगेन्द्र दत्त शर्मा
- 10 अमावस का गीत / रमेश रंजक
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ले आए हम ढेर खिलौने
चंचल गुड़िया, नटखट बौने,
बौनों के संग-संग मृगछौने-
अब तो खुश हो गुड़िया रानी?
बोलो, खुश हो गुड़िया रानी!
लो यह हाथी, बड़े मजे से
दोनों कान हिलाता,
यह घोड़ा बटन दबाते
दुलकी चाल दिखाता।
यह बंदर जो चढ़ा पेड़ पर
खों-खों खूब डराता,
उछल-उछलकर दो पैरों पर
भालू नाच दिखाता।
ले लो, ले लो सभी खिलौने
अजी, मिठाई के ये दोने,
सभी एक से एक सलोने-
अब तो खुश हो गुड़िया रानी?
बोलो, खुश हो गुड़िया रानी!
दूर देश से आई नौका
छुक-छुक-छुक पानी पर,
लो यह इंजन धुआँ उड़ाता
दौड़ रहा पटरी पर।
प्यारा-सा शाहजादा भी है
मोर मुकुट इक पहने,
छम-छम परियों के झिलमिल हैं
गहने, सुंदर गहने।
धनुष-बाण, गुल्लक, गुब्बारे
पीं-पीं सीटी, चंदा-तारे,
ले लो तुम सारे के सारे!
ले लो परियाँ, लो ये बौने-
अब तो खुश हो गुड़िया रानी?
बोलो, खुश हो गुड़िया रानी!
अब तो जाग / दीनदयाल शर्मा
कौन बुझाए खुद के भीतर, रहो जलाते आग,
ऐसे नहीं मिटा पाएगा, कोई आपका दाग।
मन की बातें कभी न करते, भीतर रखते नाग,
कैसे बतियाएं हम तुमसे, करते भागमभाग।
कहे चोर को चोरी कर ले, मालिक को कह जाग,
इज्जत सबकी एक सी होती, रहने दो सिर पाग।
धूम मचाले रंग लगा ले, आया है अब फाग,
बेसुरी बातों को छोड़ दे, गा ले मीठा राग।
मन के अँधियारे को मेट दे, क्यों बन बैठा काग,
कब तक सोये रहोगे साथी, उठ जा अब तो जाग।
अब दिन शाला चलने के / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
अब दिन शाला चलने के…
बीते दिन लड़ने-भिड़ने के,
अब आए दिन पढ़ने के।
छोड़ो अब तो गुड्डा-गुड़िया,
अब दिन कलम पकड़ने के।
घर में रहकर रोने-धोने,
अब दिन गए मचलने के।
कलम-किताबें बस्ता लेकर,
अब दिन शाला चलने के।
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी / महादेवी वर्मा
आँधी आई जोर शोर से,
डालें टूटी हैं झकोर से।
उड़ा घोंसला अंडे फूटे,
किससे दुख की बात कहेगी!
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
हमने खोला आलमारी को,
बुला रहे हैं बेचारी को।
पर वो चीं-चीं कर्राती है
घर में तो वो नहीं रहेगी!
घर में पेड़ कहाँ से लाएँ,
कैसे यह घोंसला बनाएँ!
कैसे फूटे अंडे जोड़े,
किससे यह सब बात कहेगी!
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
अबोध का बोध पाठ / लावण्या शाह
हैं छोटे छोटे हाथ मेरे,
छोटे छोटे पाँव।
नन्हीं नन्हीं आँखे मेरी
नन्हें नन्हें कान।
फिर भी हरदम चलता हूँ
हाथों से करता काम।
रोज देखता सुंदर सपना
सुनता सुंदर गान।
अब हमारी सुनो प्रार्थना
तुम भी बच्चे बन जाओ।
छोड़ो झगड़े और लड़ाई
अच्छे बच्चे बन जाओ।
अभिनंदन सै बार बसंत / सुधीर सक्सेना ‘सुधि’
खड़ा हुआ कब से एकाकी
अब तो आओ द्वार बसंत!
लगा हुआ है खिलते फूलों
का मेला नन्ही बगिया में,
मैंने वासंती सपनों को-
सजा लिया अपनी डलिया में।
आओगे तब तुमको दूँगा
फूलों का उपहार बसंत।
हवा शाम की डाक दे गई,
उसमें मिली तुम्हारी चिट्ठी।
जिसमें तुमने लिखी हुई हैं,
मनमोहक बातें खट-मिट्ठी।
मेरा भी पीले कागज पर
अंकित तुमको प्यार बसंत!
लौट चलीं सूरज की किरणें
कल आने का वादा देकर,
तुम भी सुबह-सुबह आ जाना
मधुमय स्वर वासंती लेकर।
आहट पा, चहकेगी बुलबुल,
अभिनंदन सौ बार बसंत!
अमर कहानी / कृष्ण शलभ
पड़ी चवन्नी तेल में रे, गाँधी बाबा जेल में
चले देश की ख़ातिर बापू
ले कर लाठी हाथ में
सारा भारत खड़ा हो गया
गांधी जी के साथ में
दिखा दिया कितनी ताक़त है सचमुच सबके मेल में
काट गुलामी की जंजीरें
रच दी अमर कहानी
अंग्रेज़ों के छक्के छूटे
याद आ गई नानी
हारी मलका रानी भैया मजा, आ गया खेल में
छोड़ विदेशी बाना, पहनी
सूत कात कर खादी
तकली नाची ठुम्मक ठुम्मक
बोल-बोल आज़ादी
आधी रात चढ़ गया, भारत आज़ादी की रेल में।
अमर रहे यह देश / रघुवीरशरण मित्र
अमर रहे यह देश हमारा, अमर रहे।
चलोदेश का मान बढ़ाते बढ़े चलें,
अंधकार में दीप जलाते बढ़े चलें।
हम श्रम से मिट्टी को सोना कर देंगे,
हम फूलों से बाग देश का भर देंगे।
प्यारा-प्यारा देश हमारा, अमर रहे,
हम सूरज बनकर घर-घर में धूप भरें,
हम झरनों की तरह देश में हँसा करें।
पेड़ों से हम सीख चुके छाया देना,
पर्वत से हमको आता पानी लेना।
बढ़ने वाला कदम हमारा, अमर रहे,
अमर रहे यह देश हमारा अमर रहे।
हम फूलों के लिए पेड़ बन आए हैं,
हम पेड़ों के लिए नीर भर लाए हैं।
हम धरती पर नई चाल से बढ़े चलें,
हम औरों के लिए सूर्य से अधिक जलें।
अपने बल का हमें सहारा, अमर रहे,
अमर रहे यह देश हमारा, अमर रहे।
अमरूद मियाँ / योगेन्द्र दत्त शर्मा
अमरूद मियाँ! अमरूद मियाँ!
मैं जहाँ कहीं भी जाता हूँ,
तुम रहते हो मौजूद, मियाँ!
तुम मीठे-मीठे, गोल-गोल
जैसे शरबत से भरे हुए,
इतराते फिरते हो, लेकिन
लगते अनार से डरे हुए।
तुम रहे इलाहाबाद कभी
पर गए यहाँ पर कूद, मियाँ!
अमरूद मियाँ! अमरूद मियाँ!
जब होते हरे, कड़े लगत
पीले होते तो बड़े नरम,
भीतर से तुम बेहद सफेद
जैसे रसगुल्ला या चमचम।
इतने सफेद तुम कैसे हो
क्या पीते हो तुम दूध, मियाँ!
अमरूद मियाँ! अमरूद मियाँ!
तुम आम नहीं, पर खास बहुत
कुछ बात निराली है जरूर,
क्या इत्र लगाकर आते हो
खुशबू फैला देते, हुजूर।
तुम इधर-उधर लुढ़का करते,
क्या चलते आँखें मूँद, मियाँ!
अमरूद मियाँ! अमरूद मियाँ!
अमावस का गीत / रमेश रंजक
शैतानी कर रहे सितारे
चाँद आज छुट्टी पर है ।
आज अन्धेरा अफ़सर है ।।
भेज दिए अर्दली धुँधलके
तम ने दसों दिशाओं को
चलते-चलते ठहर गई हैं
क्या हो गया हवाओं को ।
सड़कें ऐसे चुप हैं जैसे
शहर नहीं ये बंजर है ।
आज अन्धेरा अफ़सर है ।।
चली गई लानों की बातें
जाने किन तहखानों में
ऐसी ख़ामोशी है जैसी
होती है शमशानों में
आँगन से बाहर तक डर का
फैला हुआ समन्दर है ।
आज अन्धेरा अफ़सर है ।।
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