अकड़म-बकड़म / दिविक रमेश
Contents
- 1 अकड़म-बकड़म / दिविक रमेश
- 2 अक्कड़ बक्कड़ / श्रीप्रसाद
- 3 अकड़ / दीनदयाल शर्मा
- 4 अंधकार की नहीं चलेगी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
- 5 अंतरिक्ष की सैर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
- 6 अंजलि / शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
- 7 अंगिका / अमरेन्द्र
- 8 अंगिका भाषा / अंजनी कुमार सुमन
- 9 अंखियों में आ जा निंदिया / अलका सिन्हा
- 10 अंक गणित / दीनदयाल शर्मा
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अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
याद आ गई माँ की माँ।
सूरज, तू जल्दी से आ।
धूप गुनगुनी ढ़ोकर ला।।
अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
ऐसे में मत कहो नहा।
सूरज, तू जल्दी से आ।
आ बिस्तर से हमें उठा।।
अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
गरमागरम जलेबी खा।
सूरज, तू जल्दी से आ।
आ बुढ़िया की जान बचा।।
अकड़म-बकड़म ठंडम ठा।
जा सर्दी अपने घर जा।।
अक्कड़ बक्कड़ / श्रीप्रसाद
अक्कड़ बक्कड़ बंबे भो
अस्सी नब्बे पूरे सौ
सौ चूहों ने मिलकर बिल्ली
एक पकड़ ली जब
चारों पैर बाँध रस्सी में
खूब जकड़ ली जब
चले डुबाने उसे नदी में
रोई अब बिल्ली
खाकर कसम कहा रक्खूँगी
मैं सबसे मिल्ली
हर चूहे के पैर छुए फिर
माँगी जब माफी
हाथ जोड़कर विनती भी की
चूहों से काफी
तब चूहों ने छोड़ा उसको
भागी अब बिल्ली
सब कहते हैं जाकर पहुँची
वह सीधे दिल्ली
अब वह दिल्ली में करती है
हरदम शैतानी
उसे देखकर के आई हैं
कल मेरी नानी
अक्कड़ बक्कड़ बंबे भो
अस्सी नब्बे पूरे सौ।
अकड़ / दीनदयाल शर्मा
अकड़-अकड़ कर
क्यों चलते हो
चूहे चिंटूराम,
ग़र बिल्ली ने
देख लिया तो
करेगी काम तमाम,
चूहा मुक्का तान कर बोला
नहीं डरूंगा दादी
मेरी भी अब हो गई है
इक बिल्ली से शादी।
अंधकार की नहीं चलेगी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
मां बोली सूरज से बेटे, सुबह हुई तुम अब तक सोये,
देख रही हूं कई दिनों से, रहते हो तुम खोये खोये।
जब जाते हो सुबह काम पर, डरे डरे से तुम रहते हो,
क्या है बोलो कष्ट तुम्हें प्रिय,साफ़ साफ़ क्यों न कहते हो।
सूरज बोला सुबह सुबह ही, कोहरा मुझे ढांप लेता है,
निकल सकूं कैसे चंगुल से, कोई नहीं साथ देता है।
मां बोली हे पुत्र तुम्हारा, कोहरा कब है क्या कर पाया,
उसके झूठे चक्रव्यूह को, काट सदा तू बाहर आया।
कवि कोविद बच्चे बूढ़े तक, लेते सदा नाम हैं तेरा,
कहते हैं सूरज आया तो, भाग गया है दूर अंधॆरा।
निश्चित होकर कूद जंग में, विजय सदा तेरी ही होगी,
तेरे आगे अंधकार या, कोहरे की न कभी चलेगी।
अंतरिक्ष की सैर / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
नभ के तारे कई देखकर
एक दिन बबलू बोला।
अंतरिक्ष की सैर करें माँ
ले आ उड़न खटोला॥
कितने प्यारे लगते हैं
ये आसमान के तारे।
कौतूहल पैदा करते हैं
मन में रोज हमारे॥
झिलमिल झिलमिल करते रहते
हर दिन हमें इशारे।
रोज भेज देते हैं हम तक
किरणों के हरकारे॥
कोई ग्रह तो होगा ऐसा
जिस पर होगी बस्ती।
माँ,बच्चों के साथ वहाँ
मैं खूब करुँगा मस्ती॥
वहाँ नये बच्चों से मिलकर
कितना सुख पाऊँगा।
नये खेल सिखूँगा मैं,
कुछ उनको सिखलाऊँगा॥
अंजलि / शिव कुमार झा ‘टिल्लू’
कक्का: सूति रहू अय बुच्ची ओल,
पाकल परोर सन लागय लोल
उल्लू मुख भदैया खिखिरक वोल,
नाम ‘अंजलि’ कतेक अनमोल
अंजलि: माय , कक्का वड़का शैतान,
थापर मारि ठोकै छथि कान
अहाँ सँ नु#2325;ा कऽ चिववथि पान,
फोड़वनि माथ वा तोड़वनि टॉग
कक्का: भौजी !छोटकी फूसि वजै छथि,
रीतू संग भरि दिन विन-विन करै छथि
दावि रहल छी हिनक देह हम,
उत्छृंखल नेना करै छथि तम-तम
अंजलि: कक्का जुनि घोरू मिथ्याक भंग,
आव नहि सूतव हम अहाँक संग
माँ लग हमरा सँ सिनेह देखवैत छी,
एकात पावि हमर घेंटी दवैत छी
कक्का: पठा देव काल्हि अहाँ केॅ हॉस्टल
नेनपन ओहि ठॉ भऽ जएत शीतल
ओतय भेटत नहि खीरक थारी,
नहि रसमलाइ नहि पनीरक तरकारी
अंजलि: काकू बनव हम बुधियारि नेना,
सदिखन वाजव सुमधुर वयना
ककरो संग नहि मुॅह लगाएव,
अहीं लग रहव हाँस्टल नहि जाएव
अंगिका / अमरेन्द्र
दादी-नानी खकसी बोललै-
हमरोॅ भाषा अंगिका ।
अंगिका ही ढोलक-तुतरु
तड़बड़ तासा अंगिका ।
बुनिया, चमचम, रसगुल्लो सब
यहेॅ बतासा अंगिका ।
बिन्दी, टिकुली, चूड़ी-चुनरी
झुमका-पासा अंगिका ।
ई बोलैवालाµघरवैया
आरो वासा अंगिका ।
अंगिका ही माय छै-
बोलै ई भौजाय छै ।
अंगिका माय जै पर खुश
ऊ सब खुश छै, बाकी फुस ।
अंगिका भाषा / अंजनी कुमार सुमन
अंगिका के उच्चो माथा
बहुत पुराना छै ई भाषा।
ऐकरे में तेॅ कथा-कहानी
लीखै छै अमरेन्दर चाचा
अंगिका के उच्चो माथा
बहुत पुराना छै ई भाषा।
सुमन चचा भी बोलै मीठा
लीखै छै ऊ बाल कवीता
राही मौसा हँसी लगाबै
भीड़ जुटाबै अच्छा खासा
अंगिका के उच्चो माथा
बहुत पुराना छै ई भाषा।
छोटा कुरता बड़ा पजामा
गीत लिखै छै परलय मामा
और विजेता फुफ्फा गाबै
रामायण के सच्चा गाथा
अंगिका के उच्चो माथा
बहुत पुराना छै ई भाषा।
अंखियों में आ जा निंदिया / अलका सिन्हा
हो के चांदनी पे तू सवार
अंखियों में आ जा निंदिया…
खूब पढ़ेगी, खूब बढ़ेगी
जैसे कोई चढ़ती बेल,
हर मुश्किल से टकराएगी
जीतेगी जीवन का खेल।
तू पा लेगी वो ऊंचाई
हैरत से देखे दुनिया
अंखियों में आ जा निंदिया…
धीरे-धीरे झूला झूले
जा पहुंचेगी अम्बर पार,
उड़ने वाला घोड़ा लेक
आएगा एक राजकुमार।
डोली ले जाएगा एक दिन
सजकर बैठी है गुड़िया।
अंखियों में आ जा निंदिया…
अंक गणित / दीनदयाल शर्मा
अंग्रेज़ी, हिन्दी, सामाजिक
और विज्ञान समझ में आए
अंकगणित जब करने बैठूँ
सारा दिमाग जाम हो जए ।
सरल जोड़ भाग गुणा घटाओ
कर लेता हूँ जैसे-तैसे
घुमा-घुमा कर पूछे कोई
उसको हल करूँ मैं कैसे ?
इतना बड़ा हो गया हूँ मैं
अंकगणित में अब भी ज़ीरो
बाकी सारे काम करूँ झट
दुनिया माने मुझको हीरो ।।
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