उठो मेरे लाल / अनुभूति गुप्ता
Contents
- 0.1 उठो मेरे लाल / अनुभूति गुप्ता
- 0.2 उठो लाल अब आँखें खोलो / प्रदीप शुक्ल
- 0.3 उड़न खटोला / रामस्वरूप दुबे
- 0.4 उड़न खटोले आ ! / रमेश तैलंग
- 0.5 उड़ा कबूतर / रमेश तैलंग
- 0.6 उड़ा कबूतर / श्यामसिंह ‘शशि’
- 0.7 उपवन / सपना मांगलिक
- 0.8 उपवन के फूल / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
- 0.9 उफ, बस्ता कितना भारी है / उषा यादव
- 0.10 उलझन / श्रीनाथ सिंह
- 1 Images For First Class Poems – पहली कक्षा की कविताओं की छवियाँ
अब आँखें खोलो मेरे लाल,
अब मुँह धो लो मेरे लाल।
मैं जग में पानी लायी हूँ,
तुम्हें जगाने को आयी हूँ।
खट्ठे-मीठे और रसीले,
आम बहुत है पीले-पीले।
खाकर इनको भूख मिटाओ।
फिर अपने विद्यालय जाओ।।
उठो लाल अब आँखें खोलो / प्रदीप शुक्ल
(बतर्ज़ : अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ जी)
उठो लाल अब आँखें खोलो।
पापा से गुड मॉर्निंग बोलो।
जल्दी से मुँह में ब्रश डालो।
बाथरूम में जाओ नहा लो।
देखो दूध ख़तम कर देना।
होम वर्क सब चेक कर लेना।
खिड़की के बाहर मत झाँको।
ऑफ़िस भी जाना है माँ को।
धूल कार्बन हवा में डोलें।
पेड़ नहीं चिड़िया क्या बोलें।
आसमान में छाई लाली।
बस, अब किरनें आने वाली।
उससे पहले तुमको जाना।
बेटा लंच समय पर खाना।
सात बज गए, बस है आई ।
तुमने ब्रेड पूरी ना खाई।
बेटा ख़ूब पढ़ाई करना।
तुम्हें क्लास में अव्वल रहना।
बच्चा अभी नींद का मारा।
बस में फिर सो गया बेचारा।
उड़न खटोला / रामस्वरूप दुबे
उड़न खटोले पर बैठूँ मैं
पंछी-सा बन जाऊँ,
बिना पंख उड़ जाऊँ नभ में
मन ही मन मुस्काऊँ।
दूर गगन से धरती देखूँ
अचरज में पड़ जाऊँ,
वन, महलों, नदियों को देखूँ
सबको छोटा पाऊँ।
नदियाँ सकरी दिखती मुझको,
महल घरौंदे जैसे,
छोटे गाँव, नगर भी छोटे,
पशु तो चींटी जैसे।
उड़न खटोले से जो दिखता
लगता जादू जैसा,
धरती और गगन को प्रभु ने
रूप दिया है कैसा?
उड़न खटोले आ ! / रमेश तैलंग
उड़नखटोले , परियों के देश मुझे ले चल ।
चन्दा मामा पर छढ़कर मैं छू लूँगा बादल ।
सपनों की शहजादी लोरी वहाँ सुनाएगी ।
मंगल ग्रह की सैर अनोखी रोज़ कराएगी ।
झिलमिल-झिलमिल करते तारे पास बुलाएँगे ।
हँसी-ख़ुशी का मौसम होगा, गाने गाएँगे ।
वहाँ न लिखना-पढ़ना होगा, खाने-पीने को-
नए-नए पकवान मिलेंगे, मीठे-मीठे फल ।
जगमग-जगमग रातें होंगी, उजले-उजले दिन ।
रंग-बिरंगी धरती होगी, जादू से पल-छिन ।
दृश्य एक से एक मिलेंगे जो मन को भाते
ऊँचे पर्वत, बहती नदियाँ, सागर लहराते ।
वहाँ न टूटे छप्पर होंगे, झोपड़ियाँ टूटी
वहाँ बने होंगे सुन्दर से सुन्दर राजमहल ।
नक्षत्रों के देश घूम जब वापस आऊँगा ।
सैर-सपाटे की बातें माँ को बतलाऊँगा ।
रह जाएँगे चकित सभी यह वर्णन सुन-सुन कर ।
बा मज़ा आएगा ये सब बातें कह-कह कर ।
अंतरिक्ष जाने वालों में होगा मेरा नाम,
’गगारिन’ सा चमकूँगा मैं आज नहीं तो कल ।
उड़ा कबूतर / रमेश तैलंग
में…में बकरी मटक-मटक
चली तो रस्ता गई भटक ।
ब-ब-बचाओ ! गले में उसके-
बोली निकली अटक-अटक ।
००
टिक-टिक घोड़ा टिम्मक-टिम ।
चलता डिम्मक-डिम्मक डिम ।
जिसने छोड़ी ज़रा लगाम ।
धरती पर आ गिरा धड़ाम ।
००
उड़ा कबूतर, ऊपर-ऊपर !
कित्ते ऊपर ? इत्ते ऊपर ।
नीचे कब तक आएगा ?
उड़कर जब थक जाएगा।
उड़ा कबूतर / श्यामसिंह ‘शशि’
उड़ा कबूतर
गोपी चंदर!
सुन रे भइया
कहाँ उड़ोगे,
तारों के घर!
मुझे ले चलो
अपने संग में,
नहीं करूँगी
तुमको तंग मैं!
बोलो-बोलो
क्या सोचा है
मन के अंदर?
उड़ा कबूतर
गोपी चंदर!
बैठो पिंकी
मैं चलता हूँ
तारों के घर,
वहाँ मिलेगी
दूध-मलाई
ऐसी तुमने
कभी न खाई।
और मिलेगा
यार मछंदर!
उड़ा कबूतर
गोपी चंदर!
उड़कर पहुँचा
तारों के घर
पिंकी उतरी
फिर अंबर पर।
और चली यह
उछल-उछलकर
जैसे कोई
चलता बंदर!
उड़ा कबूतर
गोपी चंदर!
उपवन / सपना मांगलिक
पुष्प झूमते हैं उपवन में
खिलती है डाली डाली
पत्ता पत्ता भीगे ओस से
रंग बिरंगी लगे हर क्यारी
भोरों की गुनगुन का गीत
तितली लेती मन को जीत
घास हरी मिटटी मटमैली
भीनी भीनी सुगंध है फैली
पक्षी करते चीं चीं का शोर
यहाँ नृत्य करते हैं मोर
आओ चलो हम पौध लगाएं
नए नए कई वृक्ष उगायें
पूरी धरती फिर होगी चमन
घर घर महकेगा उपवन
उपवन के फूल / त्रिलोक सिंह ठकुरेला
हम उपवन के फूल मनोहर
सब के मन को भाते।
सब के जीवन में आशा की
किरणें नई जगाते
हिलमिल-हिलमिल महकाते हैं
मिलकर क्यारी-क्यारी।
सदा दूसरों के सुख दें,
यह चाहत रही हमारी
कांटो से घिरने पर भी,
सीखा हमने मुस्काना।
सारे भेद मिटाकर सीखा
सब पर नेह लुटाना॥
तुम भी जीवन जियो फूल सा,
सब को गले लगाओ।
प्रेम-गंध से इस दुनियाँ का
हर कोना महकाओ॥
उफ, बस्ता कितना भारी है / उषा यादव
माँ, तेरी छोटी-सी गुड़िया,
इसको उठा-उठा हारी है।
उफ़, बस्ता कितना भारी है।
कैसे करूँ किताबें कम कुछ,
सब विषयों को पढ़ना होगा।
पेंसिल बाक्स छूट न जाए,
इसे ध्यान से धरना होगा।
अपनी सब चीजें सँभालकर
ले जाना होशियारी है,
उफ़, बस्ता कितना भारी है,
इंटरवल में भूख लगेगी,
लंच बाक्स भी बड़ा जरूरी।
टाफी की रंगीन पन्नियाँ,
#2354;े जाना भी है मजबूरी।
राधा को गुड़िया की शादी
की करनी तैयारी है।
उफ़ बस्ता कितना भारी है!
अरे, रसीद बुक भी है इसमें,
इसको तो मैं भूल गई थी।
टिकट फेट के बेचूँ, कहकर
मिस ने कल ही तो यह दी थी।
माँ, तेरी नन्ही बिटिया पर,
ढेरों जिम्मेवारी है।
उफ़, बसता कितना भारी है !
उलझन / श्रीनाथ सिंह
कोई मुझको बेटा कहता,
कोई कहता बच्चा।
कोई मुझको मुन्नू कहता,
कोई कहता चच्चा।
कोई कहता लकड़ा ! मकड़ा!
कोई कहता लौआ।
कोई मुझको चूम प्यार से,
कहता मेरे लौआ।
कल आकर इक औरत बोली,
तू है मेरा गहना।
रोटी अगर समझती वह तो,
मुश्किल होता रहना।
सब सहता हूँ पर बढ़ता है,
दुःख अन्दर ही अन्दर।
गालों पर जब चूम चूम,
माँ कहती – मेरे बन्दर।
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