आवगे निंदिया / अमरेन्द्र
Contents
- 1 आवगे निंदिया / अमरेन्द्र
- 2 आसमान में / उषा यादव
- 3 आसमान में छेद कराते दादाजी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
- 4 आसमानी कक्षा / प्रकाश मनु
- 5 आहा, कैसा आया जाड़ा / प्रकाश मनु
- 6 इंगलिश का अखबार / धीरेंद्र कुमार यादव
- 7 इंद्रधनुष / श्रीप्रसाद
- 8 इंस्पेक्टर जी भागे / बालकृष्ण गर्ग
- 9 इक तीली, दो तार! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
- 10 इकड़ी-तिकड़ी / रमेश तैलंग
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आव गे निंदिया झुनमुन झुन
नूनू करै छै कुनमुन कुन।
गोड़ मली दैं आवी केॅ
गीत परी के गावी केॅ
थपथप करी केॅ थपकी दैं
गुड़िया रानी लपकी दैं
ऐलै निंदिया मलकी-मलकी
बिछिया बाजै रुनझुन रुन
आव गे निंदिया झुनमुन झुन।
मलमल केरोॅ निंदिया रानी
झलमल-झलमल सोना-चानी
सिर-सिर-सिर-सिर हवा बहै
खुसुर फुसुर की नींद कहै
नीनोॅ में छै नूनू चुप
फूल गिरै छै टुप, टुप, टुप
नूनू में छै अनधुन गुन।
आव गे निंदिया झुनमुन झुन
आसमान में / उषा यादव
चिड़ियाँ उड़तीं आसमान में।
तोते उड़ते आसमान में।
मम्मी, कितने सारे पक्षी,
दिन-भर उड़ते आसमान में।
उन सबके उड़ने की फर-फर,
ध्वनि पर देऊँ अगर ध्यान मैं।
कितनी ही कोशिश कर लूँ, पर
स्वर वह आता नहीं कान में।
लेकिन वायुयान जब उड़ता,
ऊँचे-नीले आसमान में।
घड़-घड़ की आवाजों का क्यों,
पड़ने लगता शोर कान में।
यही अनोखा उड़ता है क्या,
ऊँचे –नीले आसमान में।
धमकाता होगा जरूर ही,
यह चिड़ियों को आसमान में।
आसमान में छेद कराते दादाजी / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
गरम दूध मुझको पिलवाते दादाजी|
काजू या बादाम खिलाते दादाजी|
थाली में भर भर कर चंदा की किरणे,
मुझे चांदनी में नहलाते दादाजी|
कभी कभी जब मैं जिद पर अड़ जाता हूं,
तोड़ गगन से लाते तारे दादाजी|
मुझको जब भी लगती है ज्यादा गरमी,
बादल से सूरज ढकवाते दादाजी|
नहीं बूंद भर पानी जब होता घर में,
आसमान में छेद कराते दादाजी|
फिर वे मेघों को आदेश दिया करते,
जब चाहे जब जल गिरवाते दादाजी|
आसमानी कक्षा / प्रकाश मनु
आसमान की कक्षा में
चाँद बना है टीचर,
तारों को वह पढ़ा रहा
हौले से मुसकाकर।
टिम्मक-टिम्मक तारे अपने
साथी लगे बुलाने,
छोड़ो खेल-कूद, शैतानी
टीचर लगे पढ़ाने!
दौड़े तारे जल्दी से
नन्हे-नन्हे पग धर!
झलमल-झलमल नई रोशनी
बाँटो इस दुनिया को,
कहता चंदा-मुसकानों से
नहला दो बगिया को।
हर क्षण को त्योहार बनाकर
गाओ, जीवन भर!
यह प्यारा-सा चित्र रोज
पलकों में उगता है,
जब भी सपनों में आता
जादू-सा जगता है।
मन करता, नीला अंबर
बन जाए मेरा घर!
आहा, कैसा आया जाड़ा / प्रकाश मनु
गया नवंबर, शुरू दिसंबर,
उछल-कूदता भागा चंदर
लेकर आया स्वेटर दो-दो,
गरम कोट भी लाएगा वो।
ओढ़ेगा वह गरम रजाई,
नई रुई उसमें भरवाई।
जाड़े की जब होगी किल-किल,
खूब हँसेगा चंदर खिल-खिल।
और पढ़ेगा यही पहाड़ा-
आहा, कैस आया जाड़ा!
इंगलिश का अखबार / धीरेंद्र कुमार यादव
बंदर जी अखबार पुराना,
उठा कहीं से लाए।
कहा गधे से ‘आओ तुमको
खबरें नई सुनाएँ।’
बोले, ‘बस गिर गई खड्ड में,
मरे मुसाफिर सारे।
सुनो सुनाता हूँ, आगे-
दुनिया की खबरें प्यारे।’
बात काटकर गदहा बोला,
बंदर से इस बार-
‘हिंदी में पढ़ते हो बाबू,
इंगलिश का अखबार।’
इंद्रधनुष / श्रीप्रसाद
बरस-बरस बादल बिखरा है
आसमान धुलकर निखरा है
किरणें खिल-खिल झाँक रही हैं
अपनी शोभा आँक रही हैं
धरती के छोरों तक मिलता
आसमान के ऊपर खिलता
रंग हरा, नारंगी, पीला
लाल, बैंगनी, नीला-नीला
आसमान का रंग मिला फिर
इंद्रधनुष सतरंग खिला फिर
बूँदें जब झरती हों झर-झर
किरणें उतर रही हों सर-सर
बूँदों से जब किरणें मिलतीं
इंद्रधनुष बन करके खिलतीं।
इंस्पेक्टर जी भागे / बालकृष्ण गर्ग
नया-नया जब बना फूड-इंस्पेक्टर बुद्धू बंदर,
कहा रीछ- ‘माल चखाओ, जो दुकान के अंदर!’
तुरंत रीछ ने अदरक लाकर पेश कर दिया आगे,
अदरक चखते ही ‘थू-थू’ कर इंस्पेक्टर जी भागे।
[रचना: 22 दिसंबर 1995]
इक तीली, दो तार! / योगेन्द्र दत्त शर्मा
इक तीली, दो तार!
गुड्डा घोड़े पर सवार,
बनता नायब थानेदार,
सब पर रौब जमाता!
इक तीली, दो तार!
गुड़िया भी पूरी मक्कार,
बनती घर की नंबरदार
सब पर धौंस चलाती!
इक तीली, दो तार!
गुड्डा है पूरा फनकार,
लेकर तबला और सितार
फिल्मी गाने गाता!
इक तीली, दो तार!
गुड़िया भी है रौनकदार,
सजकर जाती रोज बजार
जमकर चाट उड़ाती!
इक तीली, दो तार!
गुड्डे-गुड़िया की तकरार,
पहुँची घर, बस्ती के पार
था भारी हंगामा!
इक तीली, दो तार!
गुड्डे की सुनकर फटकार
गुड़िया ने फिर की मनुहार,
कैसा रहा तमाशा!
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