आज सवेरे / प्रकाश मनु
Contents
- 1 आज सवेरे / प्रकाश मनु
- 2 आज हमारी छुट्टी है / श्याम सुन्दर अग्रवाल
- 3 आज़ादी का गीत / रमेश रंजक
- 4 आजादी उत्सव / श्रीकान्त व्यास
- 5 आटे-बाटे / कन्हैयालाल मत्त
- 6 आटे-बाटे दही चटाके / बालकृष्ण गर्ग
- 7 आता है कौन / श्रीप्रसाद
- 8 आती है ये चिड़िया / श्रीप्रसाद
- 9 आती है लाज / बालकृष्ण गर्ग
- 10 आदत बुरी / रमेश तैलंग
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आज सवेरे
काम किए मैंने कुछ अच्छे!
आज सवेरे गया पार्क में
देखा मैंने फूलों को,
फूलों को देखा तो भाई
समझ गया मैं भूलों को!
तय कर डाला मस्त रहूँगा
और हँसूँगा खिल-खिलकर,
मेहनत से हर काम करूँगा
दिखलाऊँगा कुछ बनकर!
आकर होम वर्क कर डाला
फिर पौधों में पानी डाला,
पापा बोले-
देखो-देखो
ऐसे होते अच्छे बच्चे!
बैठ धूप में चिड़ियों को
देखा मैंने कथा सुनाते,
पहली बार पेड़ को देखा
हौले-हौले से मुस्काते!
सजा हुआ था आसमान में
रंगों का प्यारा मेला,
आहा, अपना जीवन भी है
सचमुच, कैसा अलबेला!
मैंने कविता एक बनाई
सुनकर झट दीदी मुस्काई,
सुंदर और बनेगी दुनिया-
काम करें हम अच्छे-अच्छे!
आज हमारी छुट्टी है / श्याम सुन्दर अग्रवाल
रविवार का प्यारा दिन है,
आज हमारी छुट्टी है ।
उठ जायेंगे क्या जल्दी है,
नींद तो पूरी करने दो ।
बड़ी थकावट हफ्ते भर की,
आराम ज़रूरी करने दो ।
नहीं घड़ी की ओर देखना,
न करनी कोई भागम- भाग ।
मनपसंद वस्त्र पहनेंगे,
आज नहीं वर्दी का राग ।
खायेंगे आज गर्म पराँठे,
और खेलेंगे मित्रों संग ।
टीचर जी का डर न हो तो,
उठती मन में खूब उमंग ।
होम-वर्क को नमस्कार,
और बस्ते के संग कुट्टी है ।
मम्मी कोई काम न कहना,
आज हमारी छुट्टी है ।
आज़ादी का गीत / रमेश रंजक
देश वही जो अपने में आज़ाद है,
आज़ादी का कोरस जिसको याद है ।
आज़ादी कुर्बानी है
कल के लिए कहानी है
यह हीरे का पानी है
उजली अमृत-बानी है
इस आँधी के हाथों में फ़ौलाद है,
आज़ादी का कोरस जिसको याद है ।
बन्धन एक ग़ुलामी है
कायरता का हामी है
नहीं बँधे जो बन्धन से
वही महकते चन्दन से
चन्दन जो ज़िन्दगी नहीं, बरबाद है,
आज़ादी का कोरस जिसको याद है ।
जीवन को चन्दन कर लो
कंचन से कुन्दन कर लो
जब तक साँसें फूल समझ
फिर मुट्ठी भर धूल समझ
यह मिट्टी तो इस मिट्टी की खाद है,
आज़ादी का कोरस जिसको याद है ।
आजादी उत्सव / श्रीकान्त व्यास
चल रे साथी जल्दी चल,
आजादी-उत्सव मनावै लेॅ।
वीर शहीदोॅ के यादोॅ में,
श्रद्धासुमन चढ़ावै लेॅ।
इस्कूल के अहाता में हम्में,
राष्ट्र तराना खूब गैवै।
वीर बांकुरोॅ के कुर्बानी,
साथी संगी केॅ बतलैवै।
पंद्रह अगस्त के शुभ दिन,
करवै याद सहपाठी संग।
भारत माय के रक्षा खातिर,
लड़वै हम्में खूब्बे जंग।
जे देशभक्त होलै कुर्बान,
होकरा सोॅ-सोॅ बार नमन।
छोपवै दुश्मन के गर्दन
तभी रहतै देशोॅ में अमन।
शहीद के लहू के बदला,
एक-एक दुश्मन सें लेवै।
दागवै दुश्मन पे गोली,
हम्में जवाब मुँहतोड़ देवै।
वैरी के सब टेढ़ोॅ नजर के,
होश ठिकाना लाय देवै।
दुश्मन के मूड़ी के माला,
भारत केॅ पहनाय देवै।
आटे-बाटे / कन्हैयालाल मत्त
आटे-बाटे दही पटाके,
सोलह-सोलह सबने डाटे।
डाट-डूटकर चले बजार,
पहुँचे सात समन्दर पार।
सात समन्दर भारी-भारी,
धूमधाम से चली सवारी।
चलते-चलते रस्ता भूली,
हँसते-हँसते सरसों फूली
फूल-फालकर गाए गीत,
बन्दर आए लंका जीत।
जीत-जात की मिली बधाई,
भर-भर पेट मिठाई खाई।
आटे-बाटे दही चटाके / बालकृष्ण गर्ग
घर में ‘पा-पा पैयाँ’ डोलें,
मधुर तोतली बोली बोलें।
कान पकड़कर ‘चाऊँ-माऊँ’,
पैरों पर हो ‘झू-झू पाऊँ’।
‘आटे-बाटे दही चटाके’,
तरह-तरह के खेल-तमाशे।
‘कानाबाती कुर्र’ करें हम,
हौआ से अब नही डरें हम।
खाते-पीते हैं मनमाना,
अजब-अटपटा गाते गाना।
हैं अपनी मर्जी के मालिक-
हम सब नन्हें-मुन्ने बालक।
[राष्ट्रीय सहारा (लखनऊ), 21 जुलाई 1998]
आता है कौन / श्रीप्रसाद
लाल थाल-सा जगमग-जगमग
रोज सुबह आता है कौन
पीली-पीली बड़ी सजीली
किरणें बिखराता है कौन
कली-कली खिलती है सुंदर
खिल जाते हैं फूल सभी
धरती सपना त्याग जागती
और भागती रात तभी
पेड़ों के पत्तों पर फिर
दीये से रख जाता है कौन
नदियों की लहरों में फिर
सुंदर दीपक लहराते हैैं
लाल थाल बनता है पीला
पक्षी मिलकर गाते हैं
पूरब में पल-पल ऊपर को
उठकर मुसकाता है कौन
दुनिया रंग बदल देती है
जीवन नया-नया होता
ताजा तन होता मन ताजा
कोई तारों को धोता
खुलते घाट, बाट खुलती है
ठाट बना जाता है कौन
हम उसके आते ही जगते
माँ भी कभी जगाती हैं
उसी समय को ठाकुर जी के
गाने दादी गाती हैं
बातें कामों की होती हैं
ये बातें लाता है कौन
लाल थाल-सा जगमग-जगमग
रोज सुबह आता है कौन।
आती है ये चिड़िया / श्रीप्रसाद
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
दाना खाकर मीठा गाना, गाती है ये चिड़िया
उड़कर आँगन में आती है, फिर यह छत पर जाती
फिर आँगन में जहाँ छाँह है, अपने पर फैलाती
देख-देख मुझको कैसे, मुसकाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
नन्ही-नन्ही एक चोंच है, नन्ही-सी दो आँखें
नन्हा सिर, नन्हे पंजे हैं, नन्ही-नन्ही पाँखें
नन्हे रवि को सबसे ज्यादा भाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
इसे पालकर घर में रख लूँ, कहीं नहीं फिर जाए
पर पिंजड़े में रहकर चिड़िया भला कहीं सुख पाए
मेरे घर में कभी न कुछ दुख पाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया
एक बार यह सुबह गीत गा, दाना खा जाती है
फिर दुपहर के बाद कहीं से, उड़कर यह आती है
फिर सूरज के छिप जाने तक, गाती है ये चिड़िया
दाना खाने, गाना गाने, आती है ये चिड़िया।
आती है लाज / बालकृष्ण गर्ग
पूछा कोयल से- ‘कैसे
मीठी तेरी आवाज?
वन की ओ लता मंगेशकर,
हमको तुझपर नाज’।
मीठी ‘कुहू-कुहू’ का कोयल
ने खोला यों राज-
‘भैया! कडवे बोल बोलने
में आती है लाज’।
[अमर उजाला (रविवासरीय, 16 दिसंबर 2001
आदत बुरी / रमेश तैलंग
हर वक़्त चिढ़ना,
चिढ़कर झगड़ना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।
ख़ुश रहने का है
बस एक जादू,
ग़ुस्से पर अपने
रखना जी क़ाबू,
पल-पल उबलना
धम्म-धमक चलना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।
धीरज नहीं हो तो
हो जाती गड़बड़,
जीवन की गाड़ी
करती है खड़-खड़ ,
औरों की सुनना न,
अपनी ही कहना—
आदत बुरी है, ये आदत बुरी।
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