आओ हम भी करें दोस्ती / दिविक रमेश
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आओ हम भी करें दोस्ती
जैसे स्टेशन और रेल की
आओ हम भी करें दोस्ती
जैसी अपनी और खेल की।
कहानी और कविता वाली
पुस्तक भी तो कितनी प्यारी
जी करता है पुस्तक से भी
करें दोस्ती प्यारी प्यारी।
एक सीक्रेट चलो बताएं
टीचर जी भी दोस्त हमारी
साथ खेलतीं हमेँ पढ़ातीं
कितनी अच्छी दोस्त हमारी।
नहीं जानते अरे दोस्ती
चॉकलेट सी क्यों है लगती
सच्ची सच्ची अरे दोस्ती
हमें केक सी मीठू लगती।
कितना मजा हमारा होता
अगर दोस्त तारे बन जाते
उनके जन्मदिनों पर जाकर
ढ़ेर खिलौने हम दे आते
क्यों मन करता सब बच्चों से
करें दोस्ती प्यारी प्यारी
क्योँ मन करता कभी किसी से
हो कुट्टी न कभी हमारी।
आओ, दीप चलाएँ / प्रकाश मनु
खिली-खिली मुसकानें लेकर
आओ, दीप जलाएँ,
फुलझड़ियों के गाने लेकर
आओ, दीप जलाएँ।
एक दीप ऊँची मुँडेर पर
एक दीप देहरी पर,
एक दीप झिलमिल आँगन में
एक गली में बाहर।
दीपक एक जहाँ खेला करता,
है चुनमुन भैया,
दीपक एक जहाँ नन्ही की
होती पाँ-पाँ पैयाँ।
एक दीप अँधिययारी आँखों
का बन जाए तारा,
एक दीप झोंपड़ियों में भी
फैलाए उजियारा।
एक दीप-हाँ, याद आ गया
ठीक द्वार के आगे,
ताकि प्यार ही प्यार रहे बस
सारी नफरत भागे।
किस्से जहाँ सुनाती थी
बूढ़ी काकी हँस-हँसकर,
दीपक एक वहाँ भी रखना
थोड़ा शीश झुकाकर।
एक दीप ऐसा जो सबको
नेह-प्यार सिखलाए
आँधी-तूफानांे में जाने
का साहस बन जाए।
एक दीप इसलिए कि मन में
संशय कभी उगे ना,
एक दीप इसलिए कि भय का
दानव कभी जगे ना।
दीप-दीप से मिलकर होंगी
उजियारे की पाँतें,
दीपों की झिलमिल कतार-सी
होंगी मीठी बातें।
आओ, दीप जलाएँ लेकर
नई सुबह के सपने,
हम सबके हो जाएँ,
धरती के सुख-दुख हों अपने!
आओ, प्यारे चंदा / अनुभूति गुप्ता
आओ, प्यारे चंदा आओ,
मेरी झोली में आ जाओ।
तुम्हें झूला झुलाऊँगी मैं,
हलवा तुम्हें खिलाऊँगी मैं।
तुम बिन मेरा आँगन,
उजियारा है बहुत अधूरा।
मन-आंगन को मेरे,
तुम आकर कर दो पूरा।
आओ, प्यारे चæ#2306;दा आओ,
दीया-बाती तुम बन जाओ।
आकाश / बालकवि बैरागी
ईश्वर ने आकाश बनाया
उसमें सूरज को बैठाया
अगर नहीं आकाश बनाता
चाँद-सितारे कहाँ सजाता?
कैसे हम किरणों से जुड़ते?
ऐरोप्लेन कहाँ पर उड़ते?
आकाश / श्रीनाथ सिंह
जिसमे अपनी नाव चलाता,
दिन भर सूरज चमकीला।
और रात में तारों को ले,
चन्द्र जहाँ करता लीला।
जिसकी गोदी में शिशु हाथी,
सा फिरता बादल गीला।
हिलती हरियाली के ऊपर,
छाया जो नीला नीला।
वह ही है आकाश बालकों,
जिसका है कुछ ओर न छोर।
गर्व बड़प्पन का हो जिसको,
पहले देखे उसकी ओर।
आकाश / श्रीप्रसाद
नीली चादर-सा फैला है
इसे नहीं छू पाओगे
लेकिन इस खाली गोले की
सभी जगह तुम पाओगे
जब सूरज पूरब में आता
लाल रंग रँग जाता है
और शाम को जैसे सोना
पश्चिम में लहराता है
तारों से आकाश भरा है
चाँद चमकता आकर के
सूरज हर दिन मुसकाता है
किरण-किरण बिखरा करके
आसमान में चिड़ियाँ उड़कर
दूर कहाँ तक जाती हैं
चलती हवा हमेशा गुमसुम
और आँधियाँ आती हैं
बादल आ आकाश गोद में
जल ही जल बरसाता है
इंद्रधनुष सातों रंगों को
खिलखिलाकर बिखराता है
सूरज की रोशनी चमककर
इसको करती है नीला
मगर रात में कब रहता है
दिन के जैसा चमकीला।
आकाश / संजय अलंग
देखो कितना सुन्दर आकाश
चन्दा मामा फिलाता प्रकाश
टिमटिम चमकते ढ़ेर से तारे
अजब ग़जब कितने न्यारे
दिन होता तो सूरज आता
कितनी रोशनी भर कर लाता
नहीं करेंगें ऐसी भूल
जिससे बढ़े धुआँ और धूल
आकाश में बने रहें टिमटिम तारें
सुन्दर-सुन्दर प्यारे-प्यारे
आखर ज्ञान करांवांला / शिवराज भारतीय
भोळा-ढाळा भायलां नै
आखर ज्ञान करांवांला
पढणो-लिखणो सैं नै सीखांवां
देस रो भाग जगांवंला।
अणपढ़ जण री इण दुनियां में
कदर नहीं किण ठौड़ रे
मिलै जिको ही ठगल्यै-लुटल्यै
मच री रापण रोळ रे
दान आंक रो अणमोल्यो है
इणनै खूब लूटांवांला
देस रो भाग जगांवांला
पढया-लिख्यां री इण दुनियां में
अणपढ री पीछाण नी
भण्या-गुण्या री सभा बीच में
अणपढ़ नैं सम्मान नीं।
बास-गळी रा साथीड़ां नै
आखर दे मुळकांवांला
देस रो भाग जगांवांला।
आग / श्रीप्रसाद
दादी चिल्ला करके बोली
मुन्नू, जल्दी भाग
घर के पास बड़े छप्पर में
लगी जोर की आग
कोई पानी लेकर दौड़ा
कोई लेकर धूल
जलती बीड़ी फेंक फूस पर
किसने की यह भूल
छप्पर जला, जले दरवाजे
सब जल गया अनाज
तभी सुनी सबने घन-घन-घन
दमकल की आवाज
घंटे भर में दमकल ने आ
तुरत बुझाई आग
दमकल के ये वीर सिपाही
करते कितना त्याग
आक्सीजन और कार्बन
इनका जब हो मेल
गरमी और रोशनी देकर
आग दिखाती खेल
जाड़े में हम आग तापते
शीत न आती पास
आग बड़ी ताकत है लेकिन
करती बहुत विनाश
छुक-छुक चलती इससे रेलें
चलते हैं जलयान
चमकाती है सारे घर को
दीये की बन शान।
आज न आए / श्रीप्रसाद
आज न आए चंदा मामा
आज कहाँ पर खोए वे
क्या वे आना भूल गए हैं
या घर में ही सोए वे
तारे बैठे बाट जोहते
आसमान भी फीका है
सब कहते हैं, सुंदर चंदा
आसमान का टीका है
डाँट पड़ी क्या उनको घर में
फूट-फूटकर रोए वे
वे आते, चाँदनी चमकती
धरती अच्छी लगती तब
यह जो फैली है अँधियारी
दूर कहीं पर भ्गती तब
इतने उजले हैं, साबुन से
खूब गए हैं धोए वे
हम बच्चों के तो मामा हैं
अम्मी के हैं भाई वे
इसीलिए अक्सर आ-आकर
देते यहाँ दिखाई वे
मगर आज नभ के सागर में
क्या हैं गए डुबोए वे
आज न आए चंदा मामा
आज कहाँ पर खोए वे।
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