आओ खेले / श्रीप्रसाद
Contents
- 1 आओ खेले / श्रीप्रसाद
- 2 आओ खेले खेल / अनुभूति गुप्ता
- 3 आओ खेलें नया-सा खेल / दिविक रमेश
- 4 आओ चलें घूम लें हम भी / दिविक रमेश
- 5 आओ चाँद / प्रकाश मनु
- 6 आओ पेड़ लगाएं / नागेश पांडेय ‘संजय’
- 7 आओ प्यारे तारो आओ / महादेवी वर्मा
- 8 आओ बच्चो / दीनदयाल शर्मा
- 9 आओ महीनो आओ घर / दिविक रमेश
- 10 आओ शोर मचाएँ / श्याम सुन्दर अग्रवाल
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आओ, आओ, आओ खेलें
आओ खेलें गुइयाँ
छत पर खूब चाँदनी छाई
जैसे उतरा चंदा
गाना मीठा-सा गायेगी
नन्ही-नन्ही नंदा
सोने के गोटे की साड़ी
पहने आई टुइयाँ
चाईंमाईं चाईंमाईं
घेरा एक बनाओ
खूब ड़ी-सी छत है मिलकर
गोले में सब आओ
देखो, कैसे चुपके-चुपके
चली आ रही चुइयाँ
लो, दादी कुछ लेकर आईं
सबको लाईं टॉफी
दस या बारह नहीं, लिये हैं
वे डिब्बे में काफी
एक-एक कर लें दादी से
दादी बैठी भुइयाँ
कल पिकनिक पर सभी चलेंगे
खूब करेंगे हल्ला
खेलेंगे हम सब मिल करके
ले लेना सब बल्ला
चीजें लाना, मैं लाऊँगी
बड़ी चटपटी घुइयाँ
कल सब बगिया में भी आना
फूली क्यारी-क्यारी
गेंदा और गुलाब खिले हैं
मेरी है फुलवारी
रोज सींचती हूँ मैं बगिया
छोटी-सी कुइयाँ।
आओ खेले खेल / अनुभूति गुप्ता
आओ हम खेले
वही खेल पुराना,
छुपम-छुपाई का
पसंदीदा
खेल हमारा।
चिंटू, बबली,
टिंकू, मीकू
तुम सब कहीं
छुप जाओ,
एक, दो,
तीन, चार
पकड़े गये
चिंटू, बबली, टिंकू,
अब मीकू तुम
बाहर आओ।
आओ खेलें नया-सा खेल / दिविक रमेश
आओ खेलें नया-सा खेल
लगे न पैसे हो न जेल।
देश बनें हम अपना प्यारा
सारे जग का राजदुलारा।
तुम सब आओ
पहाड़ बनो तुम
और बनो तुम जंगल।
तुम सारी नदियाँ बन जाओ
तुम बन जाओ समंदर,
देखो नक्शा ध्यान से देखो
और खड़े हो जाओ।
कुछ साधु कुछ योगी बनकर
जग-जगह पर जाओ
कुछ मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे,
गिरिजाघर बन जाओ।
एक जना लेकर फूलों को
कश्मीर बनेगा प्यारा
एक जना गोरा-चिट्टा जो
ताज़ बनेगा न्यारा।
बाकी बच्चे, गाँव-शहर
कुछ चीते हैं, कुछ भालू
एक रेल भी चलो बना लो
उसका इंजन तुम हो कालू।
सभी जगहों पर जाना है
देख-देखकर आना है
तरह-तरह के कपड़ों वाला
तरह-तरह की बोली वाला
तरह-तरह के भोजन वाला
अपना देश निराला है।
कभी रुके न अपना खेल
आओ खेलें नया-सा खेल।
आओ चलें घूम लें हम भी / दिविक रमेश
छुट्टियों के आने से पहले
हम तो लगते खूब झूमने।
कह देते मम्मी-पापा से
चलो चलो न चलो घूमने।
बहुत मज़ा आता है जब जब
हमें घूमने को है मिलता।
कभी इधर तो कभी उधर हम
चलें घूमने मन यह करता।
कभी करे मन गांव चलें हम
फसलें जहां मस्त लहरातीं।
हरे भरे पेड़ों पर बैठीं
झूम झूम चिड़ियां हों गातीं।
कभी करे मन जाकर दिल्ली
मैट्रो जी की सैर करें हम।
और आगरा जाकर देखें
ताजमहल की सुन्दरता हम।
अगर देखना हवा महल तो
जयपुर हमको जाना होगा।
और पहाड़ देखने हों तो
शिमला हमकॊ जाना होगा।
सुन्दर सागर और तट उनके
गोवा में जाकर देखेंगे।
चेरापूंजी में जाकर हम
मेघों का सागर देखेंगे।
कितना बड़ा देश है अपना
घूम घूम कर हम देखेंगे।
डोसे, इडली, रसगुल्लों के
शहर घूम कर हम देखेंगे।
जब भी नई जगह जाते हैं
नया नया सबकुछ क्यों दिखता?
धरती नई, नई वस्तुएं
नया नया अनुभव क्यों मिलता?
आओ चाँद / प्रकाश मनु
जल्दी आओ भैया चाँद,
ले लो एक रुपैया चाँद!
कितने अच्छे लगते हो जी,
सर्दी में तुम ठिठुर न जाना!
कर लो एक मढैया चाँद!
चाँदनिया में मुस्काते हो
सारे जग को नहलाते हो,
जरा इधर भी हँस दो प्यारे-
टेर रही है मैया चाँद!
नीले नभ का घूँघट लेकर
सब तारों को न्योता देकर,
एक बार तो नाच दिखा दो-
धा-धिन, ता-ता-थैया चाँद!
गरम दूध यह, और मलाई
चाँदी की थलिया में लाई,
एक साँस में सब पी जाओ-
आओ, पाँ-पाँ पैयाँ चाँद!
आओ पेड़ लगाएं / नागेश पांडेय ‘संजय’
सारे जग के शुभचिन्तक,
ये पेड़ बहुत उपकारी।
सदा-सदा से वसुधा इनकी
ऋणी और आभारी।
परहित जीने-मरने का
आदर्श हमें सिखलाएँ।
फल देते, ईंधन देते हैं,
देते औषधि न्यारी।
छाया देते, औ‘ देते हैं
सरस हवा सुखकारी।
आक्सीजन का मधुर खजाना
भर-भर हमें लुटाएँ।
गरमी, वर्षा, शीत कड़ी
ये अविकल सहते जाते,
लू, आँधी, तूफान भयंकर
देख नहीं घबड़ाते।
सहनशीलता, साहस की
ये पूज्यनीय प्रतिमाएँ।
पेड़ प्रकृति का गहना हैं,
ये हैं श्रृंगार धरा का।
इन्हें काट, क्यूँ डाल रहे
अपने ही घर में डाका।
गलत राह को अभी त्याग कर
सही राह पर आएँ।
आओ प्यारे तारो आओ / महादेवी वर्मा
आओ, प्यारे तारो आओ
तुम्हें झुलाऊँगी झूले में,
तुम्हें सुलाऊँगी फूलों में,
तुम जुगनू से उड़कर आओ,
मेरे आँगन को चमकाओ।
आओ बच्चो / दीनदयाल शर्मा
आओ बच्चो रेल बनाएँ ।
आगे-पीछे हम जुड़ जाएँ ।।
ईशु तम इंजन बन जाओ ।
लाली तुम पीछे चली जाओ ।।
गार्ड बन तुम काम करोगी ।
संकट में गाड़ी रोकोगी ।।
हम डिब्बे बन जाएँगे ।
छुक-छुक रेल चलाएँगे ।।
आओ महीनो आओ घर / दिविक रमेश
अपनी अपनी ले सौगातें
आओ महीनों आओ घर।
दूर दूर से मत ललचाओ
आओ महीनों आओ घर।
थामें नए साल का झंडा
आई आई अरे जनवरी।
ले गोद गणतंत्र दिवस को
लाई खुशियां अरे जनवरी।
सबसे नन्हा माह फरवरी
फूलों से सजधज कर आता।
मार्च महीना होली लेकर
रंगभरी पिचकारी लाता।
माह अप्रैल बड़ा ही नॉटी
आकर सबको खूब हँसाता।
चुपके चुपके आकर बुद्धू
पहले ही दिन हमें बनाता।
गर्मी की गाड़ी ले देखो
मई-जून मिलकर हैं आए।
बस जी करता ठंडा पी लें
ठंडी कुल्फी हमको भाए।
दे छुटकारा गर्मी से कुछ
आई आई अरे जुलाई।
बादल का संदेशा लेकर
बूंदों की बौछारें लाई।
लो अगस्त भी जश्न मनाता
आज़ादी का दिन ले आया।
लालकिले पर ध्वज हमारा
ऊंचा ऊंचा लो फहराया।
माह सितम्बर की मत पूछो
कितना अच्छा मौसम लाता!
पढ़ने-लिखने को जी करता
मन भी कितना है बहलाता।
हाथ पकड़ कर अक्टूबर का
माह नवम्बर ठंडा आता।
ले दशहरा और दीवाली
त्योहारों के साज सजाता।
आ पहुंचा अब लो दिसम्बर
कंपकपाती रातें लेकर।
जी करता बस सोते जाएं
कम्बल गर्म गर्म हम लेकर।
आओ शोर मचाएँ / श्याम सुन्दर अग्रवाल
बड़ा मजा आता है हमको,
हम तो शोर मचाएँगे,
हमको पता है टीचर जी,
आकर डाँट लगाएँगे।
करे न ज़रा शरारत कोई,
ज़रा नहीं शोर मचाएँ।
चुप रहना है खेल बड़ों का,
हम कैसे समय बिताएँ?
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