Gautama Buddha in Hindi – इस article में महात्मा गौतम बुद्ध के जीवन के बारे में एक निबंध के रूप में Biography दी गयी है. (Life Essay)
महात्मा गौतम बुद्ध
भारत सदा से ही संतों, महापुरुषों एवं वीरों की जन्मस्थली रहा है । कहा गया है कि जब-जब संसार में अधर्म की वृद्धि एवं धर्म की .हानि होती है तो समाज का उद्धार करने के लिए किसी महापुरुष का जन्म होता है । गौतम बुद्ध का नाम भी ऐसे ही महापुरुष के रूप मैं विख्यात है । गौतम बुद्ध का बचपन का नाम सिद्धार्थ था । उनका जन्म आज से लगभग तीन हजार वर्ष पूर्व कपिलवस्तु के राजा शुद्धोदन के घर हुआ था । इनके जन्म के विषय में कहा जाता है कि एक बार महारानी महामाया ने स्वप्न देखा कि वे हिमालय के शिखर पर हैं और देवराज इंद्र का वाहन ऐरावत अपनी सुंड् में शतदल कमल लिए उनकी परिक्रमा कर रहा है । राजा को रानी के इस स्वप्न का जब पता चला तो राज- ज्योतिषियों को बुलाया गया । उन्होंने बताया कि यह स्वप्न मंगलसूचक है । महारानी की इच्छा देखकर राजा शुद्धोधन ने उन्हें उनके पिता के पास भेजने की व्यवस्था कर दी ।
महारानी महामाया नेपाल की थीं । मार्ग में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित लुंबिनी वन में गर्भवती महामाया एक बालक को जन्म देकर स्वर्ग सिधार गई । इस बालक को महामाया की छोटी बहन गौतमी ने पाला । बालक के जन्म ने पिता के मनोरथ को पूरा किया, इसलिए इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया । कुल गोत्र के अनुसार सिद्धार्थ को गौतम भी कहा गया । साधना के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए जब इन्हें जीवन के रहस्य का ज्ञान प्राप्त हुआ तो ये महात्मा बुद्ध कहलाए । बालक सिद्धार्थ की जन्म .कुंडली देखकर ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बालक महापुरुषों के गुण लेकर जन्मा है । निश्चय ही यह महायोगी सन्यासी और महान साधक के रूप में ख्याति प्राप्त करेगा । यदि किसी प्रभाव से इसका मन परिवार मैं रम गया तो यह महाप्रतापी राजा बनेगा और अपना नाम उज्जवल करेगा ।
महाराजा शुद्धोधन ने यह सुना तौ वे चिंताग्रस्त हो उठे । पुत्र की परवरिश राजसी ठाठ के साथ विशेष सावधानी. के साथ होने लगी । लेकिन जो योग लैकर पुत्र उत्पन्न हुआ उसका प्रभाव बचपन से ही उसकी प्रवृत्तियों पर स्पष्ट झलकने लगा । बालक सिद्धार्थ बचपन से ही गंभीर प्रकृति के थे । उनका मन राजसी वैभव में नहीं अपितु उद्यान में एकांत चिंतन में लगताथा । पिता ने यह देखा तौ राजकुमार सिद्धार्थ का विवाह यशोधरा नाम की राजकुमारी से कर दिया । राजकुमार सिद्धार्थ कुछ दिन तो इस नएपन को देखते-समझते रहे । इसी बीच -इनके यहां राहुल नाम के पुत्र ने जन्म लिया । लेकिन विधि को तो कुछ ओर ही स्वीकार था । पत्नी तथा परिवार भी उन्हें मोह-बंधन में न बांध सके । ‘ एक दिन भ्रमण करते हुए राजकुमार सिद्धार्थ को एक रोगी मिला, एक दिन एक बूढा और एक बार उन्हें एक शवयात्रा देखने को मिली । पूछने पर पता चला कि कोई मर गया है ।
इस तरह इन्हें रोग की भीषणता, वृद्धावस्था की लाचारी और मृत्यु की अनिवार्ययता ने इतना व्यथित किया कि इनका मन संसार से विरक्त हो गया । ये आत्मचिंतन में लीन हो गए । एक दिन रात्रि के तीसरे पहर में पत्नी तथा पुत्र को छोड़ गृह त्याग कर साधना मार्ग पर बढ़ गए । प्रात -काल यशोधरा ने शैथ्या पर जब इन्हें नहीं देखा तो वह सब कुछ समझ गई । पति के इस प्रकार का जानै यशोधरा को गहरा दु :ख हुआ । यशोधरा की इसी पीड़ा को राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यशोधरा काव्य ने बड़ी मार्मिकता के साथ वर्णित किया है । अनेक स्थानों की यात्रा करते, ज्ञान-पिपासा में राजकुमार सिद्धार्थ ‘ गया ‘ पहुंचे । वहां एक वट वृक्ष के नीचे समाधि लगाकर बैठ गए । वहीं इन्हें ज्ञान हुआ कि सादा जीवन ही उत्तम है । दु :ख का मूल कारण तृष्णा है । सत्य ही तप है । व्यक्ति को आत्म-परिष्कार से ही शांति मिलेगी । इस जीवन मैं कोई छोटा-बड़ा नहीं है । प्रत्येक को भक्ति का _ पूजा – अर्चना का पूर्ण अधिकार है । इन सबका बोध होने पर वे ‘ बुद्ध ‘ के नाम से विख्यात हुए । जिस वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान मिला उसे बोद्धिवृ क्ष कहा जाता है । गया मैं बुद्ध सारनाथ गए ।
यहां से उन्होंने अपने धर्म का प्रचार किया । उनके द्वारा चलाया गया धर्म हो बौद्ध धर्म कहलाया जिसका मूल मंत्र है बुद्ध शरणं गच्छामि, धम्म शरणं गच्छामि संघ सरण गच्छामि । जातिबंधन तोड़ने -के कारण सभी वर्गों विशेषकर छोटे वर्ग के लोगों ने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली । भारत में -सम्राट अशोक ने बुद्ध धर्म के उपदेश को चीन, -का, मध्य एशियाई तथा पूर्व एशियाई देशों में फैलाने में उल्लेखनीय योगदान दिया । आज भले ही समाज में सनातन धर्म, आर्य समाज का प्रबल प्रभाव हो किंतु मानव धर्म की दृष्टि से बौद्ध धर्म का अपना महत्त्व है । गौतम बुद्ध को उनके इस जीवन मंत्र के आधार पर .ही भगवान बुद्ध कहा जाता है ।
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