ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे / आनंद बख़्शी
Contents
- 1 ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे / आनंद बख़्शी
- 2 हाथ में आया जो दामन दोस्ती का / वर्षा सिंह
- 3 कुछ दोस्तों को हमने निभाया बहुत दिनों / नवाज़ देवबंदी
- 4 एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों / हसरत जयपुरी
- 5 सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है / मुनव्वर राना
- 6 सम्बोधनमा मित्र रामविलास / निमेष निखिल
- 7 दोस्ती दुश्मनी सलामत हो / प्रेमरंजन अनिमेष
- 8 अब विदा लेता हूँ / पाश
- 9 दुश्मनी मुमकिन है लेकिन दोस्ती मुमकिन नहीं / प्राण शर्मा
- 10 बिछड़े दोस्त के लिए / अंजू शर्मा
- 11 पुराना दोस्त / येव्गेनी येव्तुशेंको
- 12 दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सअई फ़रमायेंगे क्या / ग़ालिब
- 13 एक मेरा दोस्त मुझसे फ़ासला रखने लगा / उदयप्रताप सिंह
- 14 मेरे मित्र / रामनरेश पाठक
- 15 आह/दोस्ती(मुक्तक)/रमा द्विवेदी
- 16 आपका मित्र / अवतार एनगिल
- 17 दोस्ती जब किसी से की जाये / राहत इन्दौरी
- 18 दोस्त / बहादुर पटेल
- 19 दोस्ती को मात मत कर दोस्ती के नाम पर / रविकांत अनमोल
- 20 मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र
- 21 दोस्ती की चाह / जीत नराइन
- 22 हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है / मुनव्वर राना
- 23 दोस्ती पर कुछ तरस खाया करो / ओम प्रकाश नदीम
- 24 अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी / फ़राज़
- 25 मेरे दोस्त / अरविंदसिंह नेकितसिंह
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ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोडेंगे
ऐ मेरी जीत तेरी जीत तेरी हार मेरी हार
सुन ऐ मेरे यार
तेरा ग़म मेरा ग़म तेरी जान मेरी जान
ऐसा अपना प्यार
खाना पीना साथ है, मरना जीना साथ है
खाना पीना साथ है, मरना जीना साथ है
सारी ज़िन्दगी
ये दोस्ती …
लोगों को आते हैं दो नज़र हम मगर
ऐसा तो नहीं
हों जुदा या ख़फ़ा ऐ खुदा दे दुआ
ऐसा हो नहीं
ज़ान पर भी खेलेंगे तेरे लिये ले लेंगे
ज़ान पर भी खेलेंगे तेरे लिये ले लेंगे
सबसे दुश्मनी
ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे
हाथ में आया जो दामन दोस्ती का / वर्षा सिंह
हाथ में आया जो दामन दोस्ती का
हो गया जारी सफ़र फिर रोशनी का
चल पड़े, कल तक जो ठहरे थे क़दम
रास्ता फिर मिल गया है ज़िन्दगी का
साथ गर यूँ ही निभाते जाएँगे
बुझ न पाएगा दिया ये आरती का
चाहतों का चित्र यूँ आकार लेगा
रंग भरना तुम वफ़ा का, सादगी का
हीर-रांझा, कृष्ण-मीरा, मेघ-‘वर्षा’
प्यार से रिश्ता पुराना बंदगी का ।
कुछ दोस्तों को हमने निभाया बहुत दिनों / नवाज़ देवबंदी
कुछ दोस्तों को हमने निभाया बहुत दिनों
घाटे का कारोबार चलाया बहुत दिनों
हर एक सितम पे दाद दी हर जख्म पे दुआ
हमने भी दुश्मनों को सताया बहुत दिनों
तुझसे से बिछर कर तेरी कसम हम खुस नहीं रहे
दुनिया तो क्या है खुद से भी हम खुश नहीं रहे
दुश्मन हमारी हार पर खुश थे मियां
लेकिन हमारे दोस्त भी कम खुश नहीं रहे
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों / हसरत जयपुरी
एहसान मेरे दिल पे तुम्हारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
बनता है मेरा काम तुम्हारे ही काम से
होता है मेरा नाम तुम्हारे ही नाम से
तुम जैसे मेहरबां का सहारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
जब आ पडा है कोई भी मुश्किल का रास्ता
मैंने दिया है तुम को मुहब्बत का वास्ता
हर हाल में तुम्हीं को पुकारा है दोस्तों
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
यारों ने मेरे वास्ते क्या कुछ नहीं किया
सौ बार शुक्रिया अरे सौ बार शुक्रिया
बचपन तुम्हारे साथ गुज़ारा है दोस्तो
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तों
सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है / मुनव्वर राना
सियासत से अदब की दोस्ती बेमेल लगती है
कभी देखा है पत्थर पे भी कोई बेल लगती है
ये सच है हम भी कल तक ज़िन्दगी पे नाज़ करते थे
मगर अब ज़िन्दगी पटरी से उतरी रेल लगती है
ग़लत बाज़ार की जानिब चले आए हैं हम शायद
चलो संसद में चलते हैं वहाँ भी सेल लगती
कोई भी अन्दरूनी गन्दगी बाहर नहीं होती
हमें तो इस हुक़ूमत की भी किडनी फ़ेल लगती है.
सम्बोधनमा मित्र रामविलास / निमेष निखिल
मित्र रामविलास !
चढ्दा चढ्दै दुखको दुःसाध्य पहाड
सधैँ सम्झिन सकिनँ होला
तिमीसँग खाडीमा बाँधेको मित्रता,
सकिनँ होला सधैँ सम्झिनँ
सँगै काम गर्दा हामीले साटेका दुखसुखका कथाहरू
त्यहाँ हाम्रो मित्रता न पहाडी थियो न मधेसी
देश फर्किएपछि
म यो जब्बर पहाडसँग लडिरहेछु जीवनको युद्ध
तिमी सुख्खा फाँटसँग लडिरहेछौ तृष्णाको लडाइँ
हामी दुबै उस्तै दुखिया हौँ रामविलास !
मलाई शासक नभन ।
तिमीलाई थाहा छ रामविलास !
हिमालमाथि उडेका चरा
र त्यसमाथि उडेका बादल हेर्दै हुर्केको हुँ म
भिरमा उभिएका लाली गुराँस
र, त्यसैको छेउबाट उकालो लागेको उकालो उक्लँदै
त्यतैबाट ओरालो लागेको ओरालो ओर्लँदै
त्यतैको पानी ऐनामा आफ्नो अनुहार हेर्दै
त्यतैका बतासमा जीवनका सुरहरू सुसेल्दै
आइपुगेको हुँ म यहाँसम्म ।
मैले बिर्सेको छैन-
ग्रीष्मपछिको पहिलो वर्षासँगै
मकैबारीबाट उठेको माटोको सुगन्ध
ख्यालख्यालमै रहरले
बारीको डिलमा रोपेको आरुको बोट
त्यो बोटसँगै आफूभित्र कतै हुर्कँदै गएको अभिभावक बोध
समय क्रममा आरुका फूल बनेर मनभरि फुलेको हर्ष
पहिलो चोटि ठेस लागेर रगतले भिजेको माटो
धुले पाटी बोकेर पहिलो पल्ट
स्कुल टेक्दाको उत्सुकता र डर
प्रथम पटक गरेको दोस्ती र झगडा
र जीवनकै खतरनाक अनुभव त्यो पहिलो प्रेम
कसैको विरोधमा पहिलो चोछि उठाएको हात
र कसैको र्समर्थनमा बजाएको पहिलो ताली
केही बिर्सेको छैन रामविलास !
र, त्यही नै लेख्दै आएको छु आजसम्म कवितामा ।
बिर्सेको छैन रामविलास !
कहाँ छ म उभिएको धरती
कहाँ र कति तलसम्म गाडिएका छन् मेरा जराहरू
समयको हुरीले खसेर आज आफ्नै रुखबाट
हावामा उठ्दै उठ्दै म त्रि्रो छेउ आइपुगेको मात्र हुँ
माटोको बास्ना त उस्तै नै छ यहाँ पनि
र पनि, तिमीले भने जस्तो
म लेख्न सक्दिनँ तिम्रा दुखका कथा मेरा कवितामा
तिम्रा दुखको गहिराइ तिमीलाई मात्र थाहा छ
त्यसैले, डुब्न सक्दिनँ म त्यो गहिराइमा तिमी जसरी
र म उतार्न पनि सक्दिनँ तिम्रा पीडाहरुको वास्तविक तस्बिर
तिम्रा दुखको आधिकारिक दस्ताबेज
तिमीले नै लेख्ने हो रामविलास !
मसँग भिरमा मुसे खरुकी काट्दा
चिप्लेर घुँडा फुस्केको अनुभव छ
म त्यही लेख्छु
तिमीसँग पैनी छेउमा इकडी काट्दा
ढोडिया साँप कुल्चेको अनुभव छ
तिमी त्यही लेख
त्रि्रा सुखका सपनामा
जमिनदार र्सप जस्तै कुन्डली मारेर बसेको छ
मेरा सपनामा दाइँ गरिरहेछ हुक्के डिट्ठा
तिमीसँग खडेरीले मन डढाएका पीडा छन्
मसँग तुसारोले मन ठिहिर्याएको दुखेसो छ
तिमी लिचीको बोटमुनि गोमनसँग सन्त्रस्त छौ
म चिउरीको बोटमुनि चितुवासँग डराएको छु
हरेकका आफ्नै पीडा छन्
ती पीडाका सौर्न्दर्य पनि त
आफ्नै खालाका छन् नि रामविलास !
भन रामविलास !
हिमालका सेपा दाजुले हिउँ र हिमाल नलेखे
पहाडको मैले डाँडा र पाखा नलेखे
तर्राईको तिमीले गर्मी र लु नलेखे
तिमी नै भन-
कसरी लेखिन्छ हाम्रो सिङ्गो देश ?
दोस्ती दुश्मनी सलामत हो / प्रेमरंजन अनिमेष
(शरद रंजन शरद की एक ग़ज़ल की ज़मीन पर*)
दोस्ती दुश्मनी सलामत हो*
सबकी नेकी बदी सलामत हो
दीन-ओ-ईमां के कैसे ये झगड़े
हो ख़ुदा और ख़ुदी सलामत हो
बाद मुद्दत जो अपने घर लौटूँ
इसमें बहती नदी सलामत हो
ज़हन का क्या है कर दे दीवाना
यारो ज़िन्दादिली सलामत हो
इसने ही तो मिलाया इतनों से
दिल की आवारगी सलामत हो
पीर कोई फिरे नहीं दर से
अपनी फ़ाकाकशी सलामत हो
जी रहा हूँ बिछड़ के मैं भी तो
तू भी राजी ख़ुशी सलामत हो
स्याह आँखों के गहरे कोरों में
भोर की भैरवी सलामत हो
मौत मँडरा रही है हर जानिब
फिर भी ये ज़िन्दगी सलामत हो
जिसमें उम्मीद पल रही कल की
रंग वो जामुनी सलामत हो
हर तरफ़ घुप अन्धेरा है ‘अनिमेष’
रूह की रोशनी सलामत हो
कोई समझता नहीं दोस्त, बेबसी मेरी / ज्ञान प्रकाश विवेक
कोई समझता नहीं दोस्त, बेबसी मेरी
महानगर ने चुरा ली है ज़िन्दगी मेरी
तुम्हारी प्रार्थना के शब्द हैं थके हारे
सजा के देखिए कमरे में ख़ामुशी मेरी
मुझे भँवर में डुबो कर सिसकने लगता है
बहुत अजब है समन्दर से दोस्ती मेरी
तुम्हारे बाग का माली मैं बन गया लेकिन
किसी भी फूल पे मरज़ी नहीं चली मेरी
मैं नंगे पाँव हूँ जूते ख़रीद सकता नहीं
कि लोग इसको समझते हैं सादगी मेरी
खड़ा हूँ मश्क लिए मैं उजाड़ सहरा में
किसी की प्यास बुझाना है बन्दगी मेरी
ख़ुदा के वास्ते इस पे न डालिए कीचड़
बची हुई है यही शर्ट आख़री मेरी
तमाम ज़ख़्म मेरे हो गए बहुत बूढे
पुरानी पड़ गई यादों की डायरी मेरी.
अब विदा लेता हूँ / पाश
अब विदा लेता हूँ
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं
उस कविता में
महकते हुए धनिए का ज़िक्र होना था
ईख की सरसराहट का ज़िक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस
और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का ज़िक्र होना था
और जो भी कुछ
मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सब कुछ का ज़िक्र होना था
उस कविता में मेरे हाथों की सख़्ती को मुस्कुराना था
मेरी जाँघों की मछलियों को तैरना था
और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से
स्निग्धता की लपटें उठनी थीं
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और ज़िन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त
लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक़्शे से निपटना
और यदि मैं लिख भी लेता
शगुनों से भरी वह कविता
तो वह वैसे ही दम तोड़ देती
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही निसत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाख़ून बुरी तरह बढ़ आए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों के ख़िलाफ़ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है
युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में
मेरी तरफ चुम्बन के लिए बढ़े होंठों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना
या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र की साँस लेने से तुलना करना
बड़ा मज़ाक-सा लगता था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया
तुम्हें
मेरे आँगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख़्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूँ
मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्टी की तरह तपने वाले
अपने गाँव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चांदनी में पगे हुई ईख के सूखे पत्तों के ढेरों पर लेट कर
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हाँ, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है
मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूँ
उन सभी हसीन चीज़ों का
जो हमारे मिलन पर तम्बू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने से हसीन हो गई
मैं शुक्रिया करता हूँ
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का
जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इन्तज़ार में
रास्ते पर उगी हुई रेशमी घास का
जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का
जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कराकर हमारे लिए सेज बन गई
गन्नों पर तैनात पिदि्दयों का
जिन्होंने आने-जाने वालों की भनक रखी
जवान हुए गेहूँ की बालियों का
जो हम बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढंकती रही
मैं शुक्रगुजार हूँ, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया
तेरे केशों से पराग-केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूँ, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूँ
और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा
मेरे पास आभार है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूँ
प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफ़ा में पड़े रहकर
ज़ख़्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे
प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूँज जाना –
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हे कभी नहीं आएगा
जिन्हें ज़िन्दगी ने बनिया बना दिया
जिस्म का रिश्ता समझ सकना,
ख़ुशी और नफ़रत में कभी भी लकीर न खींचना,
ज़िन्दगी के फैले हुए आकार पर फ़िदा होना,
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना,
बड़ी शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूँ
तू भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों में पाल कर जवान किया
कि मेरी नज़रों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक़्शों की धार बाँधने में
कि मेरे चुम्बनों ने
कितना ख़ूबसूरत कर दिया तेरा चेहरा कि मेरे आलिंगनों ने
तेरा मोम जैसा बदन कैसे साँचे में ढाला
तू यह सभी भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक ज़िन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त मेरे भी हिस्से का जी लेना ।
दुश्मनी मुमकिन है लेकिन दोस्ती मुमकिन नहीं / प्राण शर्मा
दुशमनी मुमकिन है लेकिन दोस्ती मुमकिन नहीं
दिलजलों से प्यार वाली बात ही मुमकिन नहीं
यूँ तो उगती हैं हजारों लकड़ियाँ संदल के साथ
ख़ुशबुएँ हर एक की हों संदली मुमकिन नहीं
भूल जाऊं हर निशानी आपकी मुमकिन है पर
भूल जाऊं मेहरबानी आपकी मुमकिन नहीं
देखने में एक जैसे ही सही सारे मकान
हर मकाँ में एक जैसी रोशनी मुमकिन नहीं
माना ,ले के आया हूँ मैं एक विनती राम जी
ये मेरी विनती हो तुम से आख़री मुमकिन नहीं
पेड़ के ऊपर छिटकती है हमेशा चांदनी
पेड़ के नीचे भी छिटके चांदनी मुमकिन नहीं
मुस्कराने वाली कोई बात तो हो दोस्तों
बेवजह ही मुस्कराऊँ हर घड़ी मुमकिन नहीं
कभी दोस्ती के सितम देखते हैं / पुरुषोत्तम ‘यक़ीन‘
कभी दोस्ती के सितम देखते हैं
कभी दुश्मनी के करम देखते हैं
कोई चहरा नूरे-मसर्रत से रोशन
किसी पर हज़ारों अलम देखते हैं
अगर सच कहा हम ने तुम रो पडोगे
न पूछों कि हम कितने गम देखते हैं
गरज़ उउ की देखी, मदद करना देखा
और अब टूटता हर भरम देखते हैं
ज़ुबाँ खोलता है यहां कौन देखें
हक़ीक़त में कितना है दम देखते हैं
उन्हें हर सफ़र में भटकना पडा है
जो नक्शा न नक्शे-क़दम देखते हैं
यूँ ही ताका-झाँकी तो आदत नहीं है
मगर इक नज़र कम से कम देखते हैं
थी ज़िंदादिली जिन की फ़ितरत में यारों !
‘यक़ीन’ उन की आँखों को नम देखते हैं
बिछड़े दोस्त के लिए / अंजू शर्मा
अगर मैं कह दूँ कि हम आम दोस्त थे
तो ये वाक्य सच्चाई से उतना ही दूर होगा
जितनी दूरी थी हमारे कदमों के बीच
इस दूरी का कारण कुछ भी हो सकता है
शायद इसलिए कि तुम्हारे और मेरे
सपनों की मंज़िलें कुछ और थीं,
या शायद इसलिए कि तुम तुम थे,
और मैं मैं,
पर ये भी हकीकत है कि
एक अनजान रिश्ते में बंधे होने के बावजूद
किसी अँधेरी सड़क पर लड़खड़ाते हुए
मैंने नहीं हाथ थामा कभी तुम्हारा हाथ
हालांकि तुम्हारे हाथों ने सदा ही थामी थी
मेरी परेशानियाँ, मेरी मुश्किलें
और बेसाख्ता मेरे कंधे से
गिरते शाल को सँभालने
कभी तुमने भी नहीं बढ़ाई अपनी बाजू
इसके बावजूद हम दोनों जानते थे कि
सिर्फ एहतियातन होता था,
यूं मेरे हर कदम के ठीक आगे
मौजूद थी हमेशा
तुम्हारी अदृश्य हथेली,
मैंने कभी स्नेह को शब्द मानकर
नहीं गिने उसके हिज्जे
वरना
ये ठीक तुम्हारे नाम के बराबर होते
और दोस्ती को अगर जिंदगी के
तराज़ू में तोला जाता तो
उसका वजन ठीक तुम्हारी मुक्त हंसी के
बराबर होता
तुम्हारे बैग को गर कभी टटोला जाता
तो आत्मीयता, परवाह और अपनेपन के
खजाने की चाबी का हाथ लगना
तय ही तो था,
पर दोस्ती के इस खुशनुमा सफर
में नहीं था कोई भी ऐसा स्टेशन
जिसका नाम प्रेम होता,
फिर एक दिन दोस्ती और प्यार
समानार्थी शब्द से प्रतीत
होने लगे तुम्हारे और दुनिया के लिए
प्रेम की राह पर आगे बढ़ चुके
जब तुम लिख रहे थे…प्यार…प्यार…
मैंने मुस्कुराते हुये लिखा
अपने रिश्ते की किताब पर
कि दोस्ती का अर्थ सिर्फ दोस्ती होता है
और बढ़ गयी आगे अपनी मंज़िल की ओर…
पुराना दोस्त / येव्गेनी येव्तुशेंको
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
दुश्मन हो चुका है जो अब
लेकिन सपने में वह दुश्मन नहीं होता
बल्कि दोस्त वही पुराना, अपने उसी पुराने रूप में
साथ नहीं वह अब मेरे
पर आस-पास है, हर कहीं है
सिर मेरा चकराए यह देख-देख
कि मेरे हर सपने में सिर्फ़ वही है
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
चीक़ता है दीवार के पास
पश्चाताप करता है ऎसी सीढ़ियों पर खड़ा हो
जहाँ से शैतान भी गिरे तो टूट जाए पैर उसका
घृणा करता है वह बेतहाशा
मुझसे नहीं, उन लोगों से
जो कभी दुश्मन थे हमारे और बनेंगे कभी
भगवान कसम!
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
जीवन के पहले उस प्यार की तरह
फिर कभी वापिस नहीं लौटेगा जो
हमने साथ-साथ ख़तरे उठाए
साथ-साथ युद्ध किया जीवन से, जीवन भर
और अब हम दुश्मन हैं एक-दूसरे के
दो भाइयों जैसे पुराने दोस्त
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
जैसे दिखाई दे रहा हो लहराता हुआ ध्वज
युद्ध में विजयी हुए सैनिकों को
उसके बिना मैं- मैं नहीं
मेरे बिना वह- वह नहीं
और यदि हम वास्तव में दुश्मन हैं तो अब वह समय नहीं
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
मेरी ही तरह मूर्ख है वह भी
कौन सच्चा है, कौन है दोषी
मैं इस पर बात नहीं करूंगा अभी
नए दोस्तों से क्या हो सकता है भला
बेहतर होता है पुराना दुश्मन ही
हाँ, एकबारगी दुश्मन नया हो सकता है
पर दोस्त तो चाहिए मुझे पुराना ही
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय
दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सअई फ़रमायेंगे क्या / ग़ालिब
दोस्त ग़मख्वारी में मेरी सअ़ई फ़रमायेंगे क्या
ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ुन न बढ़ आयेंगे क्या
बे-नियाज़ी हद से गुज़री, बन्दा-परवर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़रमायेंगे, ‘क्या?’
हज़रत-ए-नासेह गर आएं, दीदा-ओ-दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझायेंगे क्या
आज वां तेग़ो-कफ़न बांधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरा क़त्ल करने में वो अब लायेंगे क्या
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा! यूं सही
ये जुनून-ए-इश्क़ के अन्दाज़ छुट जायेंगे क्या
ख़ाना-ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं, ज़ंजीर से भागेंगे क्यों
हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा, ज़िन्दां से घबरायेंगे क्या
है अब इस माअ़मूरा में, क़हते-ग़मे-उल्फ़त ‘असद’
हमने ये माना कि दिल्ली में रहें, खायेंगे क्या
एक मेरा दोस्त मुझसे फ़ासला रखने लगा / उदयप्रताप सिंह
एक मेरा दोस्त मुझसे फ़ासला रखने लगा
रुतबा पाकर कोई रिश्ता क्यों भला रखने लगा
जब से पतवारों ने मेरी नाव को धोखा दिया
मैं भँवर में तैरने का हौसला रखने लगा
मौत का अंदेशा उसके दिल से क्या जाता रहा
वह परिन्दा बिजलियों में घोसला रखने लगा
जिसकी ख़ातिर मैंने सारी दीन-दुनिया छोड़ दी
वह मेरा दिल मुझसे ही शिकवा-गिला रखने लगा
मेरी इन नाकामियों की कामयाबी देखिए
मेरा बेटा दुनियादारी की कला रखने लगा
मेरे मित्र / रामनरेश पाठक
मेरे मित्र,
रात आये थे सुना मिलने
मगर दुर्भाग्य ! हम तुम मिल न पाए,
बज गए थे आठ
अधजली सिगरेट सी इस
ज़िन्दगी को राख पर बादल विचारों के घुमड़ते जा रहे हैं
मूर्ती मेरी तैरती सहसा नज़र के सामने
मुसका उठी है और
तुमको पत्र लिखने लग गया हूँ
कायल हूँ तुम्हारी नेकनीयत औ’
शराफत सी भरी तस्वीर,
सोचता हूँ: क्या कभी कुछ गैर इंसानी ख्यालों में
तुम्हारी कलम या तुम खुद भुला जाते नहीं हो ?
तुम्हारे गीत में धढ़कन दिलों को, तार की झंकार,
औ’ इंसानियत का दर्द उभरा है,
तुम भी मानते होगे-
वही कविता बड़ी जिसकी रगों में दौड़ता
लोहू मोहब्बत का,
वही सच्ची कला, साहित्य
जिसमें मनुज पुत्रों के लिए
मरहम नुमायाँ हो, संवेदना हो, प्रेम हो,
सौन्दर्य हो.
मगर तुमने सदा ही कांट बीने हैं,
रफूगर ने तुम्हारी ही गरेवाँ टाक पर रख दी,
बताओ क्या कभी ठोकर तुम्हें बेचैन कर देती नहीं है ?
दिल तुम्हारा उचटता है ही नहीं कब भी ?
कलम हरदम पकड़ में ही रहा करती ?
बहकती नहीं है ?
प्रश्न इतने हैं
मगर उत्तर सदा-सा साधा-सा तुम
स्वयं दे जाते–
“पूजो आदमी को
राजनीतिक दाँव पेंचों में नहीं इंसान बंधता
मुहब्बत ही ख़ुदा है
वही मजहब, वही भगवान जो पूजा सीखाता हो,
घृणा का पाठ रटवाता नहीं हो,
आदमी हन्दू, मुसलमान, पारसी, ईसाई
तो कतई नहीं, वह आदमी है बस,
करो पूजा, मुहब्बत भी इसी हमशक्ल की”
मगर ऐ दोस्त,
शायद भूल तुम गए हो
सजा इस आदमी को पूजने की–
बुद्ध को खाना पड़ा मांस
ईसा को पड़ी शूली, और
उस सुकरात को पीना पड़ा था जहर
और गांधी को विषैली गोलियां
मंसूर को ज़िन्दा जलाया था गया !!!
आँखों से देखी सुनी है औ’
तवारीख के सबक भी याद हैं तुमको
फिर भी कह रहे हो आदमी को पूजने की बात ?
मगर तुम फिर कहोगे ‘आदमी पूजो’
तुम्हारी अक्ल सीधी है,
मान लेता हूँ तुम्हारी,
मानता आया सदा जग
तुम्ही कुछ बददिमागों की पढाई और रटाई बात,
एक उत्तर और दो तुम
आज की दुनियाँ हमारी
कौन, मजहब, औ सियासी कैम्प में
बँटती, बिखरती, टूटती देती दिखाई है.
मुहब्बत का, मुरव्वत का कोई खेमा
नज़र आता नहीं है क्यों
जहाँ मानव चैन से कोई सांस ले पाता
जहाँ एटम बम नहीं, मुस्कान की बरसा हुआ करती,
वेद और कुरआन के बदले
मुहब्बत के सबक होते,
किसी तलवार के बदले किसी की बांसुरी बजती,
कुदरत और धरती, ज़िन्दगी औ रूह
सब कुछ खुशनुमा होती,
बस एक ही नगमा दिलों के तार पर बजता
सभी मिहनत मशक्कत से कमाते,
साथ बैठे कूटकर खाते,
सभी होते बराबर,
औ’ सभी भाई-बहन होते
स्यात चुप्पी साध लोगे,
क्योंकि ऐसे प्रश्न पर अब
कलम चुप है, कला चुप, साहित्य मालता हाथ बैठा है !!!
खैर, छोड़ो, जल गयी सिगरेट,
ख़त लम्बा हुआ, चाय ठंडी पड़ गयी
भाभी को मेरा आदाब कह देना
और मुन्नू की उधम की, खैरियत की खबर देना,
प्यार की मीठी थपकियाँ दो लगा देना
तुम्हें कंठ आश्लेष, मृदुल, मसृण स्नेह,
तेरी कमल को एक लम्बी ज़िन्दगी की उम्र
मैं तुम्हारा सदा केवल-अभिन्न !
आह/दोस्ती(मुक्तक)/रमा द्विवेदी
किसी की भावनाओं से,कभी खिलवाड़ मत करना,
अगर न कर सको तुम प्यार का इकरार मत करना,
भस्म हो जाता लोहा भी मृतक की आह भरने से,
किसी की आह लग जाए,कभी वो बात मत करना।
किसी की दोस्ती के बीच काँटे मत बिछाना तुम,
अगर कुछ कर सको करना,सरल राहें बनाना तुम,
बड़ा तकदीर वाला वो जिसे इक दोस्त मिल जाए,
किसी की दोस्ती को देख दिल को मत जलाना तुम।
आपका मित्र / अवतार एनगिल
आपका मित्र
मात्र कोई तौलिया नहीं
जिसे आप
हाथ सुखाने के लिए
इस्तेमाल करना चाहते हैं
मित्र होता है____मित्र !
जो पश्मीना अहसास
जो आपको अपनी स्नेही बाहों में
लपेट लेता है
ठीक उस समय
जब तुन्द सर्द हवाओं में
आपके दात बज रहे होते है।
आपका मित्र
होता नही कोई पालतू
भागा चला आता है जो
आपकी अनमनी
टुकड़ा भर दुकान पर
इस पर भी वह
होता है ज़रूर
एक करीबी अहसास
खिंचा चला आता है जो
आपकी
एक ही पुकार पर
नहीं कोई शर्तनामा दोस्ती
जिस पर हस्ताक्षर करके
कोई उसे कर दे
ताले में बंद
नहीं कोई होशियारी-दोस्ती
नहीं कोई छल
ओट में जिसकी
शत्रु से लड़कर
जीतते हैं युद्ध
है मगर दोस्ती
सादगी वह
जिसमें साथ-साथ चलते
बिना किसी प्रतियोगिता के
जाते हैं आप
खुद को भी हार
दोस्ती जब किसी से की जाये / राहत इन्दौरी
दोस्ती जब किसी से की जाये|
दुश्मनों की भी राय ली जाये|
मौत का ज़हर है फ़िज़ाओं में,
अब कहाँ जा के साँस ली जाये|
बस इसी सोच में हूँ डूबा हुआ,
ये नदी कैसे पार की जाये|
मेरे माज़ी के ज़ख़्म भरने लगे,
आज फिर कोई भूल की जाये|
बोतलें खोल के तो पी बरसों,
आज दिल खोल के भी पी जाये|
दोस्त / बहादुर पटेल
दोस्त! तुम्हारा जो यह दोस्ती का ढंग है
यह तुम जो मेरे साथ
मित्रता का बर्ताव करते हो
सचमुच तुम्हारे भीतर यह जो लावा है
धीरे-धीरे मुझे पिघलाता जा रहा है
इसके बाद यह जो धातु का रेला
तुम्हारी ओर बढ़ता है
इसके पीछे जो निशान है
वे आज तक मेरे हृदय पर मौज़ूद हैं
दोस्त! कितना कठिन होता है
जीवन में बिना किसी मित्र के एक
क़दम उठाना
ये दोस्ती भी अजब चीज़ होती है
इसके भीतर जो गीलापन है
उसमें भीगते रहते हैं हम
और वह धीरे-धीरे हमें करता रहता है ख़त्म
कभी हम दोस्ती के नाम से जाने जाएँ
और ज़बरदस्त यारी के
ज़बरदस्त दुश्मनी में भी
दोस्ती ही बनी र्हे पहचान हमेशा
तो दोस्त एक भी दोस्ती के हक़ में
एक बात तो है ही।
दोस्ती को मात मत कर दोस्ती के नाम पर / रविकांत अनमोल
दोस्ती को मात मत कर दोस्ती के नाम पर
इस तरह की बात मत कर दोस्ती के नाम पर
गर भरोसा उठ गया है हाथ मेरा छोड़ दे
तल्ख़ यूँ जज़्बात मत कर दोस्ती के नाम पर
मुझपे पहले ही ज़माने भर के हैं एहसां बहुत
और एहसानात मत कर दोस्ती के नाम पर
मुझसे कोई बात कर अच्छी बुरी, खोटी ख़री
हाँ मगर कुछ बात मत कर दोस्ती के नाम पर
मैं बड़ी मुश्क़िल से जीता हूँ दिलों के खेल में
अब ये बाज़ी मात मत कर दोस्ती के नाम पर
मुझको मेरे हाल पर रहने दे ऐ मेरे हबीब
रहम की ख़ैरात मत कर दोस्ती के नाम पर
दोस्ती बदनाम हो जाए न दुनिया में कहीं
ऐसी वैसी बात मत कर दोस्ती के नाम पर
मुझसे रिश्ता तोड़ता है तोड ले तू हाँ मगर
आग की बरसात मत कर दोस्ती के नाम पर
दोस्ती एहसास है एहसास रहने दे इसे
बहस यूँ दिन रात मत कर दोस्ती के नाम पर
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला / बशीर बद्र
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला
बहुत अजीब है ये क़ुरबतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में मैंने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
दोस्ती की चाह / जीत नराइन
कब फिर कन्धा पर हाथ धरके, अकेले में अपने से सटके
गड्ढ़ा-गड्ढ़ा मेढ़ी पेटी झलासी, पेड-पेड़
उ दोस्ती के याद करके, याद में दोहराई।
बचपन के कै बात तो भूल गैली, कतने ख्याल से भी उतर गाल
भूल ना जा की बचपना बीत गैल, छोड़ के याद के ढंग
करे में सपरे जैसे।
साथ में चलो तो बीच से बाइसिकिल पास हो जाए
अटपट लगे कि देहीं, देहीं से छुवाए
बचाइके हमलोग चलीला अलगीयाए।
बकी अपने से दोस्ती पे किट के दाग फैलल है,
चद्दर पुराना है हीलाके झार दे, विसय दोस्ती के है
ते दाग में लड़कपन के रूप होई।
जौन दोस्ती में लड़कपन के लक्ष्यवाइ तक भी ना,
जौन चीज में बचपना ना,
आकेरे जड़ में करारी और पुनइ में वादा पले है
ओमे अपने में भेंट करे खात जगह खोजे के पड़े है।
हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है / मुनव्वर राना
हमारी दोस्ती से दुश्मनी शरमाई रहती है
हम अकबर हैं हमारे दिल में जोधाबाई रहती है
किसी का पूछना कब तक हमारे राह देखोगे
हमारा फ़ैसला जब तक कि ये बीनाई रहती है
मेरी सोहबत में भेजो ताकि इसका डर निकल जाए
बहुत सहमी हुए दरबार में सच्चाई रहती है
गिले-शिकवे ज़रूरी हैं अगर सच्ची महब्बत है
जहाँ पानी बहुत गहरा हो थोड़ी काई रहती है
बस इक दिन फूट कर रोया था मैं तेरी महब्बत में
मगर आवाज़ मेरी आजतक भर्राई रहती है
ख़ुदा महफ़ूज़रक्खे मुल्क को गन्दी सियासत से
शराबी देवरों के बीच में भौजाई रहती है
दोस्ती पर कुछ तरस खाया करो / ओम प्रकाश नदीम
दोस्ती पर कुछ तरस खाया करो ।
बेज़रूरत भी कभी आया करो ।
सोचो मैंने क्यों कही थी कोई बात,
हू-ब-हू मुझको न दोहराया करो ।
रोशनी के तुम अलमबरदार हो,
रोशनी में भी कभी आया करो ।
बर्फ़ होता जा रहा हूँ मैं ’नदीम’
मेरे ऊपर धूप का साया करो ।
अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी / फ़राज़
अव्वल अव्वल की दोस्ती है अभी
इक ग़ज़ल है कि हो रही है अभी
मैं भी शहरे-वफ़ा में नौवारिद
वो भी रुक रुक के चल रही है अभी
मैं भी ऐसा कहाँ का ज़ूद शनास
वो भी लगता है सोचती है अभी
दिल की वारफ़तगी है अपनी जगह
फिर भी कुछ एहतियात सी है अभी
गरचे पहला सा इज्तिनाब नहीं
फिर भी कम कम सुपुर्दगी है अभी
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता
बूंदा-बांदी भी धूप भी है अभी
ख़ुद-कलामी में कब ये नशा था
जिस तरह रु-ब-रू कोई है अभी
क़ुरबतें लाख खूबसूरत हों
दूरियों में भी दिलकशी है अभी
फ़सले-गुल में बहार पहला गुलाब
किस की ज़ुल्फ़ों में टांकती है अभी
सुबह नारंज के शिगूफ़ों की
किसको सौगात भेजती है अभी
रात किस माह -वश की चाहत में
शब्नमिस्तान सजा रही है अभी
मैं भी किस वादी-ए-ख़याल में था
बर्फ़ सी दिल पे गिर रही है अभी
मैं तो समझा था भर चुके सब ज़ख़्म
दाग़ शायद कोई कोई है अभी
दूर देशों से काले कोसों से
कोई आवाज़ आ रही है अभी
ज़िन्दगी कु-ए-ना-मुरादी से
किसको मुड़ मुड़ के देखती है अभी
इस क़दर खीच गयी है जान की कमान
ऐसा लगता है टूटती है अभी
ऐसा लगता है ख़ल्वत-ए-जान में
वो जो इक शख़्स था वोही है अभी
मुद्दतें हो गईं ‘फ़राज़’ मगर
वो जो दीवानगी थी, वही है अभी
नौवारिद – नया आने वाला, ज़ूद-शनास – जल्दी पहचानने वाला
वारफतगी – खोया खोयापन, इज्तिनाब – घृणा, अलगाव
सुपुर्दगी – सौंपना, खुदकलामी – खुद से बातचीत, शिगूफ़े- फूल, कलियां
चश्मे-पुर-खूं – खून से भरी हुई आँख
आबे-जमजम – मक्के का पवित्र पानी
अबस – बेकार, सानी – बराबर, दूसरा
कामत – लम्बे शरीर वाला (यहाँ कयामत/ज़ुल्म ढाने वाले से मतलब है)
मेरे दोस्त / अरविंदसिंह नेकितसिंह
मेरे प्रगति पथ पर
आएँगे वे पल
होगा तू जब
मात्र एक ज़रिया ।
या कभी होगा तू,
अदॄश्य मेरे लिए
हूँगा जिस समय अभिजात्यों संग मैं ।
अवसर मिलने की, देरी बस होगी
भोंकूँगा छुरा,
फिर
छोड़ तुझे
खून से लथपथ
सरकूँगा रेंगता हुआ,
तेरी ही कुरसी पर
निगलता जैसा
अजगर
बिना डकार
शिकार का अपने…
आऊँगा ज़रूर
बाद में, आऊँगा ज़रूर,
बूँदें दो
बहाने,
अदा होगा तब
कर्ज़
दोस्ती का तुम्हारा…
पोंछ आँखें फिर,
चल दूँगा पुनः.
हाथों में छुरा
कोई अन्य दोस्त..
पर प्यारे मित्र मेरे!
तू निराश न होना,
रिश्ता तुम्हारे साथ ख़त्म न होगा यहीं
लौटूँगा अवश्य,
कभी किसी दिन,
माँगने तुझसे,
अदायगी उन दो बून्दों की,
हक अपनी
मैत्री का!
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