लेखन मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग रहा है। चाहे वह कल्पना की दुनिया हो या वास्तविक जीवन की घटनाएँ, लेखकों ने अपनी लेखनी के माध्यम से संसार को समृद्ध किया है। ऐसे बहुत से लेखक हैं जिन्होंने साहित्य को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। परंतु, मेरे लिए सबसे प्रिय लेखक हैं प्रेमचंद।
प्रारंभिक जीवन
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी ज़िले के लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। उन्होंने न केवल हिंदी साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि उर्दू साहित्य में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
शिक्षा और प्रारंभिक करियर
प्रेमचंद की शिक्षा प्रारंभ में उर्दू और फारसी में हुई। इनके पिता का नाम अजायब राय और माता का नाम आनंदी देवी था। जीवन के प्रारंभिक काल में ही माता-पिता का स्वर्गवास होने के कारण उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
प्रेमचंद ने प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की। शिक्षा का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने अपने जीवन को साहित्य और शिक्षा के प्रति समर्पित कर दिया।
साहित्यिक योगदान
प्रेमचंद ने अपने साहित्यिक करियर में अनेक कहानियाँ, उपन्यास, नाटक और निबंध लिखे हैं। उनके लेखन की प्रमुख विशेषता उनकी यथार्थवादी दृष्टि थी। उनके पात्र आम जनमानस के होते थे और उनकी समस्याओं को प्रमुखता से उभारा जाता था।
प्रमुख रचनाएँ
- गोदान: यह प्रेमचंद का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन और उनकी समस्याओं का सजीव चित्रण किया गया है।
- गबन: यह उपन्यास भारतीय समाज में विदेशी वस्त्रों की स्थिति को दर्शाता है और विशेषतः महिलाओं की चिंताओं को उभारता है।
- कर्मभूमि: इसमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की झलक मिलती है और सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है।
यथार्थवाद के प्रणेता
प्रेमचंद को हिंदी साहित्य में यथार्थवाद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने अपने लेखन में समाज की कुरीतियों, आर्थिक असमानता, जातिवाद और अन्य सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाया। उनके साहित्य में जो सजीवता और यथार्थता है वह अन्यत्र कहीं नहीं मिलती।
भारतीय समाज का सजीव चित्रण
प्रेमचंद के लेखन में भारतीय समाज का सजीव चित्रण मिलता है। वे अपने पात्रों के माध्यम से ग्रामीण जीवन की समस्याओं, आभाव और दु:ख को इस प्रकार प्रकट करते हैं कि पाठक स्वयं को उन पात्रों के साथ जुड़ा हुआ महसूस करता है।
प्रभावशाली लेखन शैली
प्रेमचंद की लेखन शैली उनकी प्रमुख पहचान है। उनकी भाषा सरल, सहज और प्रभावशाली होती है। वे अपने पात्रों और घटनाओं को इतने सजीव रूप से प्रस्तुत करते हैं कि पाठक उनके साथ हंसता, रोता और चिंतन करता है।
सामाजिक सुधारक
प्रेमचंद सिर्फ लेखक ही नहीं थे, वे एक सामाजिक सुधारक भी थे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज में सुधार लाने की कोशिश की। उनके लेखन में स्पष्ट रूप से दिखता है कि वे समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए कितने तत्पर थे।
प्रभाव और प्रेरणा
प्रेमचंद का साहित्यिक योगदान न केवल भारतीय साहित्य में, बल्कि विश्व साहित्य में भी महत्वपूर्ण है। उनके लेखन ने अनेक लेखकों और कवियों को प्रेरित किया। उनकी सरल और प्रभावी भाषा ने लाखों पाठकों को आकर्षित किया और वे आज भी साहित्य प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं।
विरासत और समृद्धि
आज भी प्रेमचंद की रचनाएँ प्रासंगिक हैं और समाज को दिशा देने में सक्षम हैं। उनके साहित्य को पढ़कर नई पीढ़ी न केवल साहित्यिक समृद्धि को अपनाती है, बल्कि सामाजिक सुधार की दिशा में भी प्रेरित होती है।
निष्कर्ष
इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि प्रेमचंद न केवल एक महान लेखक थे, बल्कि वे एक समाज सुधारक, यथार्थवादी दृष्टि के प्रणेता और समाज के प्रति संवेदनशील मानव भी थे। उनका साहित्य भारतीय समाज को हमेशा प्रेरित करता रहेगा और उनके योगदान को हमेशा स्मरण किया जाएगा।
प्रेमचंद का लेखन हमारे समाज का आईना है और उनके साहित्य को जितना पढ़ा जाए, उतना ही कम है। उनके शब्द, उनके पात्र और उनकी कहानियाँ हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे और हमारी संस्कृति और समाज को समृद्ध करती रहेंगी।