Hindi Poems on Environment या वातावरण पर हिन्दी कविताएँ. इस आर्टिकल में बहुत सारी हिन्दी कविताओं का एक संग्रह दिया गया है जिनका विषय वातावरण (Environment) पर आधारित है.
Hindi Poems on Environment – वातावरण पर हिन्दी कविताएँ
वातावरण / त्रिलोचन
साँझ गुलाबी काँप रही है ठंड से,
उधर गुलाबों के पौधे लाचार हैं
झूल झूल कर फूल हवा से कह रहे
हैं यह, इतनी, छेड़छाड़ अच्छी नहीं ।
काँप रहे हैं पेड़, तृणों की बात क्या
यहाँ चलाई जाय । सुदूर दिगंत में
मेघ-खंड सहसा उद्भासित हो गए,
सूर्य क्षितिज को सूना करके देर का
चला गया । हलकी आभा आकाश की
क्रमशः हलकी हो कर नभ की नीलिमा
को गहराती चली । नीलिमा क्या हुई,
यह, इतनी, श्यामता कहाँ थी जो यहाँ
से धीरे धीरे सारे संसार में
फैल गई । धूमाच्छादित हैं वृक्ष वे,
टहनी टहनी डाली डाली थाम के
धुआँ और ऊपर चढ़ता है, गंध से
वातावरण बसा है, जनपथ पुत गया
बिजली की आभा से । कुहरा क्षीण है,
अस्ति नास्ति के बीच । लोग आ जा रहे
पैदल या सवारियों से, आवाज़ की
बाँहें इधर उधर फैलाए राह में
अत्र तत्र सर्वत्र शीत का ज़ोर है ।
व्यूह / शैलप्रिया
शब्दों का व्यूह
बहुत उलझा हुआ है
मौसम कई रंगों में लिपटा है
स्मृतियों पर धुँध घिरी है
परदे सरकते हैं
जीवन के
दृष्टियाँ काले परदों से
टकराकर लौटती हैं
आसपास का वातावरण अब गीला है
नन्ही बूँदें मन के कोनों में बसी हैं
काले परदे के आगे
कुछ नहीं सूझता
आँखें भर आई हैं
वातावरण का गीलापन
एक फ़रेब है
धरती स्वर्ग दिखाई दे / संतोष कुमार सिंह
करके ऐसा काम दिखा दो, जिस पर गर्व दिखाई दे।
इतनी खुशियाँ बाँटो सबको, हर दिन पर्व दिखाई दे।
हरे वृक्ष जो काट रहे हैं, उन्हें खूब धिक्कारो,
खुद भी पेड़ लगाओ इतने, धरती स्वर्ग दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
कोई मानव शिक्षा से भी, वंचित नहीं दिखाई दे।
सरिताओं में कूड़ा-करकट, संचित नहीं दिखाई दे।
वृक्ष रोपकर पर्यावरण का, संरक्षण ऐसा करना,
दुष्ट प्रदूषण का भय भू पर, किंचित नहीं दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
हरे वृक्ष से वायु-प्रदूषण का, संहार दिखाई दे।
हरियाली और प्राणवायु का, बस अम्बार दिखाई दे।
जंगल के जीवों के रक्षक, बनकर तो दिखला दो,
जिससे सुखमय प्यारा-प्यारा, ये संसार दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
वसुन्धरा पर स्वास्थ्य-शक्ति का, बस आधार दिखाई दे।
जड़ी-बूटियों औषधियों की, बस भरमार दिखाई दे।
जागो बच्चो, जागो मानव, यत्न करो कोई ऐसा,
कोई प्राणी इस धरती पर, ना बीमार दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
पर्यावरण-1 / राजा खुगशाल
वह जैसा था
वैसा ही गूँजता रहा हवा में
उसकी ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया
और न इसके लिए उसने
किसी तरह का कोई वातावरण रचा
वह उठा
और चुपचाप चला गया सभा-कक्ष से
सड़क पर बस की प्रतीक्षा में उसने पाया
अमलतास का दरख़्त नीला
और आसमान हरा
उसने देखा पृथ्वी की चिन्ता में
भाप उठने लगी है समुद्रों से
धरती से भू-उपग्रहों की ओर
पहले कुछ पत्ते उड़े, फिर थोड़े से लोग
फिर बारिश में घुलने लगा
वक़्त का बुझा हुआ चेहरा ।
सुख भरे वातावरण की खोज में / सर्वत एम जमाल
सुख भरे वातावरण की खोज में
लोग निकले स्वर्ण-कण की खोज में
आईने चमके तो भगदन मच गई
सब के सब थे आवरण की खोज में
पाँव उसके अब धरा पर हैं कहाँ
विश्व है जिसके चरण की खोज में
बेझिझक कह दीजिये अब दिल की बात
मत भटकिये व्याकरण की खोज में
एक जैसा हर समय वातावरण होता नहीं / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
एक जैसा हर समय वातावरण होता नहीं
अर्चना के योग्य हर इक आचरण होता नहीं
जूझना कठिनाइयों की बाढ़ से अनिवार्य है
मात्र चिन्तन से सफलता का वरण होता नहीं
मिल सका किसको भला नवनीत मन्थन के बिना
दुख बिना चुपचाप सुख का अवतरण होता नहीं
लाख हो शृंगार नारी के लिए सव व्यर्थ है
पास में यदि शीलता का आभरण होता नहीं
जल रहा हो जब वियोगी मन विरह की आग में
यत्न कितना भी करो पर विस्मरण होता नहीं
व्याकरण के बंधनों में ग्रंथ सारे ही बंधे
प्यार कितना भी करो पर विस्मरण होता नहीं
मैं अकेला ही चलूंगा लक्ष्य के पथ पर अभय
अब किन्हीं क़दमों का मुझसे अनुसरण होता नहीं
नित नए परिधान बदले सभ्यता चाहे कोई
क्या महत्ता लाज का यदि आवरण होता नहीं
तन भले ही मिल सकें पर मन नहीं मिलते कभी
जब तलक है प्रेम रस का संचरण होता नहीं
जो न आँसू की कहानी सुन द्रवित होता ‘मधुप’
वह निरा पाषाण है, अन्तः करण होता नहीं
युग का मौन वातावरण! / बलबीर सिंह ‘रंग’
युग का मौन वातावरण!
प्रलय प्रेरित मंत्र जागे,
मुक्त हो पर तंत्र जागे,
चेतना के प्राण छू कर-
सुप्त जीवन यंत्र जागे।
व्योम व्याकुल है धरा के चूमने को चरण!
युग का मौन वातावरण!
आज का मानव न दुर्बल,
आज का मानव न असफल,
लय हुआ विध्वंस कल में-
आज के निर्माण में बल।
स्वप्न भी करने चला अब सत्य का आचरण!
युग का मौन वातावरण!
जीर्ण कुटियों की कहानी,
भग्न हृदयों की निशानी,
चिर-विकल जनता जनार्दन-
की खुली अवरुद्ध वाणी
बधिर बनकर रह न सकते देव अशरण शरण!
युग का मौन वातावरण!
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