Hindi Poems On Dussehra अर्थात इस article में आप पढेंगे, दशहरा पर हिन्दी कविताएँ. आपकी सुविधा के लिए हमने, कुछ बढ़िया कविताओं का collection नीचे दिया है, एक Table of Contents के साथ.
Hindi Poems On Dussehra – दशहरा पर हिन्दी कविताएँ
Contents
दशहरा / योगेन्द्र दत्त शर्मा
किस्सा एक पुराना बच्चो
लंका में था रावण,
राजा एक महा अभिमानी
कँपता जिससे कण-कण।
उस अभिमानी रावण ने था
सबको खूब सताया,
रामचंद्र जब आए वन में
सीता को हर लाया।
झलमल-झलमल सोने की
लंका पैरों पर झुकती,
और काल की गति भी भाई
उसके आगे रुकती।
सुंदर थी लंका, लंका में
सोना ही सोना था,
लेकिन पुण्य नहीं, पापों का
भरा हुआ दोना था।
तभी राम आए बंदर-
भालू को लेकर सेना,
साध निशाना सच्चाई का
तीर चलाया पैना।
लोभ-पाप की लंका धू-धू
जलकर हो गई राख,
दीप जले थे तब धरती पर
अनगिन, लाखों-लाख!
इसीलिए तो आज धूम है
रावण आज मरा था,
कटे शीश दस बारी-बारी
उतरा भार धरा का।
लेकिन सोचो, कोई रावण
फिर छल ना कर पाए,
कोई अभिमानी ना फिर से
काला राज चलाए।
तब होगी सच्ची दीवाली
होगा तभी दशहरा,
जगमग-जगमग होगा तब फिर
सच्चाई का चेहरा।
दशहरा / शर्मिष्ठा पाण्डेय
परिवर्तनों के युग में…
कुछ नया होगा…
अब,दशहरे में…
नहीं जलेगा…
वह,दुराचारी,अनाचारी…
नराधम,दस मुखों वाला…
रावण…..
उसका वंश नहीं मिटा…
अमिट है…
बाँट दिए हैं उसने…
अपने गुण…
संस्कार…
एक मुख वालों में…
सत्तासीन हैं…
सँभालते हैं…
अपने पूर्वज की धरोहर…
और स्वतः ही…
संचित रखते हैं…
अपनी नाभि में अमृत…
रुपी विष…
जो,उन्हें जीवित रखता…
सदैव…
और अब…
बढती ही जाती…
उनकी वंश बेल…
दुगनी,तिगुनी…
रक्तबीज के समान…
और,
प्रवंचनाओं,धारणाओं…
के पत्थरों…
से,टूट गया है…
वह खप्पर…
जो,पान करता था…
उसके रक्त का…
और,पनपने न देता…
अन्य रक्तबीज…
अब आना होगा…
असंख्य रामों को…
क्यूंकि…
अब प्रत्येक…
एक मुखी का वध…
करना होगा…
दस दस रामों को…
और…
कल्पों तक…
चलता रहेगा त्रेता…
अन्य युग…
ऊँघ रहे…
करेंगे और प्रतीक्षा…
अपनी बारी की श.पा. …
क्यूंकि…रावण ….
अभी मरा नहीं….
गंगा दशहरा / सुलोचना वर्मा
जो फेंका तुमने निर्माल्य को नदी में
मछली दे देगी श्राप तड़पकर
और तुम बन जाओगे मछली अगले जनम में
फिर होगा तुम्हारा जन्म किसी नाले में
मत डालो अब गंगा में धूप-लोबान
कि वह जल रही है धरती की चिता पर
सती की मानिन्द, एक लम्बे समय से
क्यूँ कुरेद रहे हो उसका मन तुम बारहों मास
और बना रहे हो झील निकालकर उसमें से रेत
लील लेगी एक दिन तुम्हे भी उसकी बदली हुई चाल
जाओ, शंखनाद कर रोक लो नदी पर बनता बाँध
कर आओ प्राण प्रतिष्ठा पहाड़ों पर लगाकर कुछ पेड़
फिर सुनाओ मछलियों को ज़िन्दगी का पवित्र मन्त्र
और मना लो गंगा दशहरा इस सही विधि के साथ ।
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