Dr. B.R. Ambedkar Biography in Hindi अर्थात इस article में आपके लिए डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर जी की जीवनी को हिन्दी भाषा में दिया गया है.
डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर
विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक गणराज्य भारत के संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 मै अप्रैल, 1891 में मध्यप्रदेश के रत्नागिरी जिले में हुआ था । यह स्थान इंदौर नगर के करीब है । इस गांव का नाम मऊ है । उनके पिताजी श्री रामजी राव मिलिट्री में सूबेदार थे । उनकी माताजी का नाम भीमाबाई था । वे एक कुशल गृहिणी थी । भीमराव नाम उनके माता-पिता द्वारा रखा गया । जब वे पांच वर्ष के हुए तो उन्हें विद्यालय में दाखिला दिलवाया गया, लेकिन विद्यालय में उन्हें और बच्चों से दूर जमीन पर टाट पर बैठना पड़ता था, जबकि और बच्चे बेंचों पर बैठते थे । स्कूल में उनके साथ ऊंच-नीच और छुआछूत का व्यवहार किया जाता था, परंतु वे सदा अपना ध्यान पढ़ाई में लगाते थे । जब भीमराव पांच वर्ष के थे तो उनकी माताजी का स्वर्गवास हो गया ।
वे यद्यपि कानून, दर्शन और समाज- शास्त्र के महाविद्वान् थे, तथापि जाति-प्रथा की संकीर्णता के कारण उन्हें तत्कालीन सवर्ण समाज की पूणा और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा । इसी संकीर्णता के कारण उन्हें कदम-कदम पर अपमानित होना पड़ा, किंतु इस अपमान से उनका मनोबल कम न हुआ, बल्कि इससे उनके आत्मबल और संघर्ष की गति और तीव्र हो गई और अंतत: वे इन विसंगतियों पर विजय पाने में सफल रहे । उनकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी, फिर भी जैसे-तैसे उन्होंने जी-जान से और मन लगाकर बी .ए. पास किया और एम .ए. प्राइवेट करने की सोची ताकि कहीं नौकरी करके पढ़ाई भी चलाऊँ और घर की आर्थिक दशा का सुधार भी करूं । जल्दी ही उन्हें फौज में नौकरी मिल गर्डर, उन्हें लेफ्टीनेंट का पद दिया गया, पर दुर्भाग्यवश उनके पिता बीमार पड़ गए और उन्हें नौकरी से त्याग-पत्र देना पड़ा, परंतु उनके पिता ने एक बार चारपाई पकड़ी तो वे ठीक न हुए और शीघ्र ही स्वर्ग सिधार गए ।
महाराज गायकवाड़ ने भीमराव की इच्छा-शक्ति देखते हुए उन्हें सन् 1913 में पढ़ाई के लिए अमेरिका भेज दिया । भारत वापसी पर उन्होंने अनेकों सामाजिक कार्य किए ।
उन्होंने दलितों पर हो रहे अत्याचारों का पुरजोर विरोध किया, उन्होंने अनेक सभाओं में दलित वर्ग के लोगों को अपने संदेशों में जाग्रत होने को कहा । वे समाज के माथे से छुआछूत, अस्पृश्यता और धार्मिक आडंबरों जैसे कलंकों को मिटा देना चाहते थे । वे दलितों के लिए मसीहा बनकर उभरे ।
20 नवंबर, 1930 को इंग्लैंड में गोलमेज कांफ्रेंस हुई । इसमें भारत की सामाजिक विषमताओं की चर्चा करते हुए डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर ने कहा– ‘भारत में अंग्रेजों की अफसरशाही सरकार दलितों का कल्याण न कर सकी । दलितों के पक्ष में यदि प्रचलित सामाजिक व्यवस्थाऔरअर्थिक जीवन में परिवर्तन किया गया तो सवर्ण वर्ग के लोग इसका विरोध करेंगे और अंग्रेज उनके विरोध से डरते हैं । हम महसूस करते है कि अपने दुखों का समापन हम खुद ही कर सकते हैं और यह काम तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि राजनीतिक शक्ति हमारे हाथों में नहीं उग जाती ।’
संविधान सभा में 25 नवंबर 1949 में संविधान पेश करते हुए भी उन्होंने सामाजिक समरसता पर बल देते हुए कहा था- “26जनवरी, 1950 को हम विसंगतियों के जीवन में प्रवेश कर जाएंगे । राजनीतिक तौर पर तो हम बराबर हो जाएंगे, किंतु सामाजिक और आर्थिक जीवन में नहीं ।”
‘राजनीतिक शक्ति सब तालों की कुंजी है’, यही सोचकर उन्होंने राजनीतिक शक्ति अधिकाधिक प्राप्त करने पर जोर दिया। वे इस शक्ति का उपयोग सामाजिक विषमता को दुरकरने के लिए करना चाहते थे । अपने इस प्रयास में वे काफी हद तक सफल हुए । भारत रत्न डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर का समरत जीवन भारतवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है ।
सन् 1948 में वे बीमार रहने लगे थे और सन् 1956 में उनका स्वर्गवास हो गया, पूरे सम्मान के साथ उनका अंतिम सरकार किया गया । इस तरह एक महापुरुष देश को सुमार्ग दिखाकर हमेशा-हमेशा के लिए विदा हो गया । उनके दिखाए गए पथ पर चलकर और उनकी बातों का अनुसरण करके हम आज भी समाज में नाम ऊंचा कर सकते हैं ।
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